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Category Archives: Health

Women are more sensitive to diseases than men

महिलाएं ऐसे ही सेंसटिव (Sensitive) नहीं कहलाती, उनका स्वभाव और बॉडी भी पुरुषों की तुलना में ज्यादा संवेदनशील होती है। बीमारियों के मद्देनजर भी महिलाओं की स्थिति ऐसी होती हैं। कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनकी चपेट में आने की आशंका महिलाओं को ही अधिक होती है। पुरुष उनसे काफी हद तक बचे रहते हैं। ऐसे में बीमारियों को लेकर पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक सचेत रहने की आवश्यकता होती है।

आज हम ऐसी ही बीमारियों के बारे में जानने की कोशिश करेंगे, जिनसे महिलाओं को पुरुषों से ज्यादा खतरा रहता है। महिलाओं को भी इन परेशानियों के बारे में जानना चाहिए।

विटामिन D की कमी होना

विटामिन D इंसान की बॉडी के लिए जरूरी तत्व है। इससे कई तरह की बीमारियां पनपने का खतरा पैदा हो जाता है. महिलाएं आमतौर पर विटामिन डी का शिकार हो जाती हैं। एक स्टडी में भी सामने आया है कि महिलाओं की एक चौथाई आबादी विटामिन डी की शिकार हैं। इसकी कमी से महिलाओं का इम्यून सिस्टम बहुत तेजी से कमजोर हो जाता है। इससे शारीरिक परेशानी होने के साथ हडडी भी कमजोर होने लगती हैं।

आयरन डेफिसिएंशी की परेशानी

Women are more sensitive to diseases than men

पीरियड, डिलेवरी और सही तरह से पोषक तत्व न लेने के कारण महिलाओं में ब्लड की कमी देखने को मिलती है। डॉक्टरों का कहना है कि आमतौर पर जितनी भी महिलाएं अस्पताल में आती हैं। अधिकांश एनीमिक होती हैं। एनीमिक से आशय ब्लड की कमी होना है। इसकी प्रमुख वजह हर महीने पीरियड का होना है। अगर पीरियड नार्मल दिनों से अधिक दिनों तक रहता है तो यह परेशानी और अधिक हो सकती है।

PCOS की चपेट में भी आती हैं महिलाएं

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम यानि पीसीओएस एक हॉर्मोनल सिंड्रोम है। यह महिलाओं की ओवेरी पर खराब प्रभाव डालता है। हार्मोनल इंबेलेंस होने से यह समस्या और अधिक गंभीर हो जाती है। इंडियन नेशनल हेल्थ पोर्टल में पब्लिस्ड सर्वे के मुताबिक दक्षिण भारत में 9.13 प्रतिशत महिलाएं एवं महाराष्ट्र में 22.5 प्रतिशत महिलाएं पीसीओएस की समस्या से पीड़ित हैं।

मैटरनल हेल्थ प्रोब्लम

महिलाओं में प्रेग्नेंसी की समस्या आमतौर पर देखने को मिलती है। हाल में यूएन की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि गर्भावस्था या इससे जुड़ी समस्याओं के कारण से हर 02 मिनट में एक महिला की जान चली जाती है। ऐसे में महिलाओं को होने वाली इस समस्या की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। इससे महिलाओं को महफूज किया जा सकता है।

फोटो सौजन्य- गूगल

WHO warning: Long working hours increase the risk of heart disease and heart attack

Omega 3 Fatty Acid अच्छे स्वास्थ्य के लिए: शरीर को हेल्दी रहने के लिए विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्वों का सेवन जरूरी होता है। अगर आप अपने आहार पर ध्यान नहीं दे रहे हैं तो शरीर में कई तरह की कमी हो सकती है और परेशान करने वाले लक्षण हो सकते हैं। ऐसी ही एक समस्या है ओमेगा- 3 की कमी, ब्ल्ड के धक्के जमने के साथ-साथ हार्मोन बनाने के लिए शरीर द्वारा ओमेगा-3 फैटी एसिड की जरूरत होती है। ओमेगा- 3 में पाए जाने वाले ईपीए और डीएचए आपकी स्किन के स्वास्थ्य और आंखों की रोशनी में भी मदद करते हैं।
यहां कुछ संकेत दिए गए हैं जो शरीर में ओमेगा- 3 की कमी के साइन दे सकते हैं-

नाखून टूटना और रूखी त्वचा इसके संकेत हो सकते हैं

आपकी त्वचा, बालों और नाखूनों को दुरुस्त रखने के लिए ओमेगा-3 फैटी एसिड की आवश्यकता पड़ती है। इस स्वस्थ वसा की कमी से शुष्क त्वचा के साथ-साथ त्वचा पर चकत्ते भी हो सकते हैं। सूखे, टूटे और कमजोर नाखून भी ओमेगा-3 की कमी के लक्षण हो सकते हैं। आपके नाखून और सूजन को कम करने के लिए ओमेगा -3 फैटी एसिड जरूरी हैं। ओमेगा-3 वसा आपके बालों को पोषण देने और घने बालों को सहारा देने के लिए आवश्यक हैं। इसलिए कमी से त्वचा की कोशिकाओं और बालों के रोम के कुपोषित होने के कारण बालों का झड़ना हो सकता है। इस कमी के अन्य सामान्य लक्षणों में नींद में कमी और थकान शामिल हैं।

Heart Disease और Heart Attack का होता है खतरा

लॉन्ग-चेन ओमेगा-3 फैटी एसिड आपके दिल को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी हैं। एक्सपर्ट के मुताबिक ओमेगा-3 की कमी से हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है। ओमेगा -3 फैटी एसिड आपके शरीर में ट्राइग्लिसराइड्स के स्तर को कम करने में भी मदद करता है, जिसके उच्च स्तर आपको हृदय रोग और स्ट्रोक के खतरे में डाल सकते हैं। शरीर में ओमेगा -3 फैटी एसिड की खपत बढ़ाने के लिए आप कुछ खाद्य पदार्थ खा सकते हैं जिनमें शामिल हैं: वनस्पति तेल, अलसी के बीज, भांग के बीज, चिया के बीज, पालक और अखरोट, समुद्री भोजन भी एक बड़ा स्रोत है जिसमें तैलीय मछली जैसे सामन, सार्डिन, हेरिंग और एंकोवी शामिल हैं।

अगर आपमें कमी है तो क्या करें?

अगर आपको लगता है कि आपको ओमेगा-3 फैटी एसिड की कमी हो सकती है तो डॉक्टर से सलाह लें। अपने आहार में ओमेगा-3 से भरपूर तत्वों की मात्रा बढ़ाने से कमी के लक्षण कम हो सकते हैं। अगर आप ओमेगा-3 सप्लीमेंट लेने की योजना बना रहे हैं तो अपने डॉक्टर से बात करें.

Your sleeping position reveals your personality

नींद (Sleep) आपके व्यवहार और स्वभाव को बिगाड़ने के लिए काफी है। हो सकता है कि आपने ऐसा फील भी किया हो पर कुछ रिसर्च भी इस बात को सही साबित करती है। अगर हम रात में सोए ना तो आप अधिक चिड़चिड़े, गुस्सैल और टेंशन के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं। वहीं, जब आप अच्छी नींद लेते हैं तो आपका मूड अक्सर सामान्य हो सकता है।

रिसर्च से पता चला है कि आंशिक नींद की कमी का भी मूड पर बहुत असर पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि एक हफ्ते के लिए रात में सिर्फ 4-5 घंटे की नींद तक सीमित रहने वाले लोगों के ज्यादा तनावग्रस्त, क्रोधित, उदास और मेंटली थका हुआ महसूस किया। जब लोगों ने सामान्य नींद शुरू की तो उनके मूड में सुधार देखने को मिला।

लेकिन सिर्फ नींद ही मूड को नहीं बिगाड़ती, बल्कि मूड भी नींद का चक्र खराब कर सकता है। चिंता उत्तेजना को बढ़ाती है, जिससे सोना मुश्किल हो जाता है। तनाव शरीर को उत्तेजित और सतर्क बनाकर नींद को भी प्रभावित करता है। जो लोग लगातार तनाव में रहते हैं उनमें नींद की समस्या होती है। इन सब का असर आपके व्यवहार पर पड़ता है।

चिड़चिड़ा हो जाता है स्वभाव:

Male Inferlity

नींद की कमी हमें चिड़चिड़ा बना देती है। आम दिनों में हम लोगों से सामान्य तौर पर बात करते हैं। कई बार लोग ऐसी बातें करते हैं, जो हमें नागवार गुजरती हैं, लेकिन हम आराम से जवाब देकर माहौल को सामान्य बनाए रखते हैं पर यही चीज तब हो जब आपकी नींद पूरी न हुई हो तो हो सकता है आप सामने वाले को चिड़चिड़ा होकर जवाब दें। जो आपकी पर्सनैलिटी को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है।

गुस्सैल हो जाता है स्वभाव: नींद की कमी आपको गुस्सैल बना सकती है। आमतौर पर हम परिस्थितियों का सामना शांति से करते हैं लेकिन नींद न पूरी होने से इसका उलट हो सकता है। ऐसे में किसी भी अप्रिय परिस्थिति में गुस्सा आना तय होता है। जो आपके कई काम बिगाड़ सकता है। गुस्सैल इंसान को सामाजिक नजरिए से पसंद नहीं किया जाता।

तनाव दिखता है साफ: स्थिति को सामान्य रूप से संभाल ना पाने की स्थिति में तनाव हो सकता है। वहीं, अगर आप पहले से ही तनाव में हैं तो ये और बढ़ सकता है। इन सबका असर आपके चेहरे पर भी नजर आने लगता है और आप लोगों की नजर में एक अप्रिय इंसान हो सकते हैं।

5 Ayurvedic herbs have remedies and properties to avoid H3N2 virus

कोरोना के बाद अब एच3एन2 वायरस (H3N2 Virus) ने लोगों को फिर से डराना शुरू कर दिया है। जिसके बाद लोग सहमे से दिख रहे हैं। देश में फैले इस वायरस से अब तक 10 लोगों की जान जा चुकी है। पहले लोगों ने इसके असर को अनदेखा किया। वहीं, अब सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। उत्तर प्रदेश में ज्यादातर सरकारी अस्पतालों के ICU वार्ड के सभी बेड फुल चल रहे हैं लेकिन डरने से ज्यादा जरूरी है बचाव के उपाय करना। एच3 एन2 वायरस से बचाव के लिए यहां कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के बारे में विस्तार से समझाया जा रहा है।

काफी तेजी से फैल रहा है जानलेवा H3N2 वायरस

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आकड़ों पर नजर डालें, तो जनवरी से मार्च तक H3N2 के 455 मामले आ चुके हैं। इस वायरस में पहले सांस की बीमारी और गले से संबंधित परेशानी होती है। वहीं कुछ मरीजों में ठंड लगना, शरीर में दर्द, बुखार, उल्टी आना, नाक बहना और दस्त सहित अन्य लक्षण देखे जा रहे हैं।

एक्सपर्ट की मानें तो इस वायरस में चिंता विषय यह है कि यह कोरोना वायरस की तरह यह भी फैल रहा है। इसमें जब कोई एच3एन2 वायरस से संक्रमित व्यक्ति छींकता या खांसता है, तो सामने वालों को भी संक्रमित कर देता है। हालांकि अभी तक इसका कोई तय उपचार नहीं है। ज्यादातर लोग आयुर्वेदिक उपायों से ही अपनी इम्युनिटी मजबूत कर रहे हैं ताकि इस वायरस से बचा जा सके। एच3एन2 वायरस में मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी खांसी से होती है। आयुर्वेदिक डॉक्टर ने खांसी से छुटकारा पाने का बताया सटीक इलाज-

ऐसे करें इस्तेमाल-

इम्युनिटी बढ़ाने और खांसी से छुटकारा पाने के लिए 5 हर्ब्स

1. गिलोय का करें यूज

वास्तव में गुडुची और गिलोय एक ही चीज हैं। कुछ लोग इसको गिलोय नाम से भी जानते हैं। इसका सेवन टॉन्सिलिटिस और कोल्ड से बचाव के लिए किया जाता है। यह खांसी और खराश को कम करने में मदद करता है। इसके गर्म पानी के साथ सुबह खाली पेट लेने से लाभ होता है।

2. तुलसी में है खांसी से लड़ने की क्षमता

डॉक्टरों के मुताबिक आयुर्वेद में तुलसी के कई फायदे हैं। इसमें खांसी, जुखाम, बुखार से लड़ने के प्रचुर गुण हैं। तुलसी में एंटीबॉडी बनाने की क्षमता होती है। इसका जितना अधिक सेवन किया जाएगा, शरीर में उतनी ज्यादा मात्रा में एंटीबॉउी बनेंगी। जो किसी भी रोग से लड़ने के लिए शरीर में सक्षम होगी। इसके अलावा शरीर में जमा कफ को पलता करने में तुलसी मददगार साबित हो सकती है।

इसका सेवन करने के लिए इसका काढ़ा बनाया जा सकता है। जिसमें पहले आपको तुलसी की छह से सात पत्तियां लेनी होंगी। इसके बाद चाय वाले पैन में इसे डाल कर पानी में पांच काली मिर्च और अदरक घिस कर अच्छे से आठ से नौ मिनट तक उबालें। इसके बाद स्वादानुसार नींबू निचोड़ कर कप में छान ले और इसका उपयोग करें।

3. गुड़ की चाय का करें सेवन

एक्सपर्ट मानते हैं कि गुड़ में आयरन की भरपूर मात्रा पाई जाती है। जिससे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी भी पूरी की जा सकती है। साथ ही शरीर में यदि कमजोरी है तो उसे भी इससे दूर किया जा सकता है। गुड़ की चाय बनाने के लिए इसमें अदरक का तुकड़ा और तुलसी की चार पत्तियों को डाल कर गुड़ के साथ एक कप पानी में उबाल लें। जब आधा कप पानी रहा जाए तो उसे गैस से हटा लें। चाय को ठंडा होने से पहले ही गरम-गरम पिएं। इससे गले में थोड़ा आराम मिलेगा। गुड की चाय चीनी की चाय से कई गुना बॉडी के लिए लाभदायक है।

4. मुलेठी से खांसी का होगा सफाया

आयुर्वेद में कई तरह की जड़ी-बूटियां हैं, जिससे पुरानी से पुरानी बीमारी को दूर किया जा सकता है। उसी में एक नाम मुलेठी का है, जिसके सेवन से खांसी, कफ, खराश को भगाया जा सकता है। यदि कोई इसका सेवन करता है, तो एक सप्ताह के भीतर सांस के रास्ते में जमे कफ को पतला कर बाहर कर देने की क्षमता है इसमें। इसका सेवन करने के लिए चाय के पैन में एक स्पून मुलेठी का पाउडर लें और एक ग्लास गर्म पानी में मिलाएं। फिर इसको पिएं, ऐसा दिन में दो बार करें। खांसी के साथ कफ को बाहर करेगी।

5. शहद में सोंठ का करें सेवन

आयुर्वेद में हर्बल सीरप के नाम से जानी जाने वाली सौंठ के कई फायदे हैं। सौंठ को अदरक और शहद के साथ मिलाकर खाने से सर्दी, जुखाम, खांसी में आराम मिलेगी। एंटी इंफ्लेमेटरी गुण से भरपूर सौंठ गले की खराश को कम करने में कारगर है। इसका सेवन शहद और अदरक के किया जा सकता है। इसके लिए 1/4 चम्मच सौंठ, एक चम्मच शहद, एक छोटा हिस्सा अदरक का मिलाकर सेवन करें। हफ्ते में तीन बार लेना होगा।

Never ignore unresolved problems related to Ladies' health

पीरियड्स (Periods) के दौरान कुछ महिलाओं को हर घंटे पैड बदलने की आवश्यकता पड़ती है। इस तरह की हैवी ब्लीडिंग महिलाओं को बहुत ज्यादा परेशान कर देती है। वहीं, इस समस्या के कारण महिलाओं के हेल्थ पर भी बुरा असर पड़ता है। हेवी ब्लीडिंग की दिक्कत होने के कई वजह हो सकते हैं। कई बार कुछ विटामिंस और मिनेरल्स की कमी हैवी ब्लीडिंग का कारण होती है तो कई बार कुछ और मेडिकल कंडीशन। अगर आपको भी हैवी ब्लीडिंग का सामना करना पड़ता है तो कुछ आयुर्वेदिक तरीकों से राहत पाई जा सकती है।

क्यों होने लगती है हैवी ब्लीडिंग

Say goodbye to heavy bleeding by adopting these tips during periods

पीरियड्स के दौरान हैवी ब्लीडिंग होने का एक मेन वजह फाइब्रॉएड्स होता है। जिसकी वजह से शरीर से खून ज्यादा निकलने लगता है। वहीं, कई बार हार्मोनल इंबैलेंस के कारण से भी हैवी ब्लीडिंग होती है। अगर शरीर में विटामिन E और मैग्नीशियम की कमी है तो महिलाएं हैवी ब्लीडिंग से परेशान हो सकती है। अगर पीरियड्स 07 दिनों से ज्यादा दिन तक जारी रहता है और मासिक चक्र 21 दिनों से कम का होता है तो जरूरी है कि डॉक्टर की मदद ली जाए। अगर 02 दिनों में हैवी ब्लीडिंग का सामना करना पड़ता है या जनरल मासिक चक्र के दिनों में ब्लीडिंग ज्यादा होती है तो कुछ घरेलू तरीकों से इसे कंट्रोल किया जा सकता है।

हल्दी वाला दूध करेगा हेल्प

हैवी ब्लीडिंग होती है तो हल्दी वाला दूध पीने से राहत मिलती है। दूध में दालचीनी पीने से भी पीरियड्स के हैवी ब्लीडिंग को कम किया जा सकता है।

गाजर और अदरक का ऐसे करें इस्तेमाल

हैवी ब्लीडिंग की समस्या है तो अदरक को कुचलकर उसमें शहद मिलाएं। इस मिश्रण को खाने से काफी राहत मिलती है। साथ ही गाजर को पीरियड्स के दौरान खाएं। हैवी फ्लो होने पर गाजर के रस में अदरक के रस को मिलाकर पीने से दर्द और फ्लो में राहत मिलती है।

हमेशा रहें हाईड्रेटेड

5 very important questions that every woman has to ask her gynecologist..

हैवी फ्लो की समस्या बनी रहती है तो खुद को हाईड्रेटेड रखना जरूरी है। पानी ढेर सारा पीएं और लिक्विड वाली चीजों को डाइट में इस्तेमाल करें। इससे शरीर में एनर्जी की कमी नहीं होगी। हैवी फ्लो की वजह से कई बार महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त हो जाती है। ऐसे में पीरियड्स के दौरान खानपान का ध्यान रखना जरूरी है।

ऐसे समय में विटामिन्स और मिनेरल्स है जरूरी

हैवी ब्लीडिंग होती है तो विटामिन C,E के साथ मैग्नीशियम से भरपूर चीजों को खाएं। कीवी, ब्रोकली, टमाटर, स्ट्राबेरी, तिल के बीज, खरबूज के सीड इन विटामिन्स और मैग्नीशियम से भरपूर फूड्स को खाएं। जिससे कि शरीर में ज्यादा थकान महसूस ना हो।

आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ बॉडी बिल्डिंग ब्लॉक्स माने जाते हैं। इन्हीं पर पूरा बॉडी निर्भर करता है। अगर ये तीनों ब्लॉक्स हमारी बॉडी में सही प्रोपोर्शन में रहते हैं तो इन्सान स्वस्थ्य रहता है। वहीं, दूसरी तरफ अगर ये तीनों दोष के तौर पर शरीर को परिवर्तित करने लगते हैं तो वे उम्र घटाने का भी काम करते हैं। अगर आप लंबी (long life) उम्र और हेल्दी लाइफ चाहते हैं तो अपने लाइफस्टाइल में ये प्रभावशाली बदलाव करने होंगे।

यहां हम जानने का प्रयास करेंगे कि वो कौन सी ऐसी चीजें हैं जिससे आप लंबी उम्र जी सकते हैं।

प्रकृति और बॉडी क्लॉक को समझना आवश्यक

स्वस्थ और हेल्दी रहने के लिए शरीर की क्लॉक को नेचर की क्लॉक से मैच करके चलें। इसका मतलब कि इस बात को समझें कि दिन है तो आप हेल्दी और हैवी मील लें। क्योंकि की इस दौरान पाचन शक्ति बढ़ जाती है। मगर शाम ढलते ही हल्का खाना खाएं। रात के वक्त पाचन तंत्र धीमा हो जाता है। रात को जल्द सो जाएं। दरअसल, रात में मेलाटैनिन हार्मोन रिलीज होता है और आप स्लीपिंग डिसआर्डर से बच सकते हैं। इस बारे में हमारी एक्सपर्ट टोनऑप से डॉ रूचि सोनी बता रही है कि लंबी उम्र के लिए किस तरह करें आयुर्वेद का पालन।

जानें आयुर्वेद के वे सीक्रेट जो आपकी उम्र में कर सकते हैं इजाफा

आहार ही आधार है

डॉक्टर बताते हैं कि अक्सर फ्राइड और जंक फूड खाने से शरीर में कई तरह की समस्याएं पैदा होने लगती है। इससे बचने के लिए मौसमी फलों और सब्जियों का सेवन करनें। इनसे हमें उच्च मात्रा में फाइबर, जिंक, विटामिन्स और मिनरल्स की प्राप्ति होती है। इससे शरीर स्वस्थ रहता है और हम बीमारियों से भी दूर हो जाते हैं।

खाना खाने के दौरान कोल ड्रिंक्स पीने से परहेज करें। इससे मेटाबाल्ज्मि कमज़ोर होता है। डाइजेशन को सुधारने के लिए रूम टेम्परेचर में जूस और पानी पिएं। इससे शरीर को चमत्कारी लाभ मिलता है।

पौष्टिक आहार को डाइट का हिस्सा बनाएं। इससे शरीर में रस धातु का संचार हेता है, जो हमारे इम्यून सिस्टम को मज़बूत बनाने का काम करता है। इसके अलावा खाने का धीरे-धीरे पूरी तरह से चबाकर खाएं, ताकि वो आसानी से डाइजेस्ट हो पाए।

डॉक्टर्स के मुताबिक फास्टिंग हेल्दी रहने की एक सुप्रीम रेमेडी है, जो हमारी गट हेल्थ को मज़बूत करने में मदद करती है।

सोने और जागने का समय

Your sleeping position reveals your personality

ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि अच्छी आदतें ही किसी इंसान को स्वस्थ, अमीर और बुद्धिमान बना सकती है। देर रात तक जागना और सुबह देर से उठना शरीर को कमज़ोर बनाता है। खुद को फिट रखने के लिए सुबह 4 बजे उठना और रात 10 बजे तक बिस्तर पर जाना बेहद ज़रूरी है। अगर आप दिनभर बंद कमरे या ऑफिस में अपना वक्त बिताते हैं, तो सुबह उठने के बाद मार्निंग वॉक या योग को अपने रूटीन में ज़रूर शामिल करें। इससे आपके शरीर में एनर्जी लेवल बढ़ता है। साथ ही खुली हवा में सांस लेने में रेसपिरेटरी संबधी परेशानियां अपने आप दूर होने लगती हैं।

आयुर्वेद के हिसाब से हमें सुबह सुर्योदय से दो घंटे पहले यानी 04 बजे तक उठना अनिवार्य है। इस समय में शरीर के सभी हार्मोंस एक्टिव होने लगते हैं। इस समय में उठने से शरीर में भारीपन और सुस्ती का एहसास होता है। ऐसे में योग और मेडिटेशन के ज़रिए शरीर को एक्टिवेट किया जा सकता है।

ज्यादा खाना यानी उम्र कम

फास्टिंग हेल्दी रहने की एक सुप्रीम रेमेडी है, जो हमारी गट हेल्थ को मज़बूत करने में मदद करती है। इसके अलावा दैनिक आहार में अत्यधिक खाने से बचें। इससे आप स्वस्थ और लंबा जीवन व्यतीत कर सकते हैं। सेंट लुइस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की ओर से 2008 में एक रिसर्च किया गया था। इसके हिसाब से यदि आप अपनी भूख का 80 प्रतिशत खाना खा लेते है, तो इसका अर्थ है कि आपकी उम्र अब कम हो रही है।

अलाव इसके कैलोरी को घटाने से T3 नामक थायराइड हार्मोन के उत्पादन को कम करने में मदद मिलती है। यह आपके मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है और एजिंग प्रोसेस को कम करता है।

तेल मालिश है बहुत खास

डॉक्टर बताते हैं कि शरीर को संतुलित करने में मसाज एक अहम रोल अदा करती है। सुबह स्नान करने से पहले कुछ मिनटों की तेल मालिश से शरीर के सभी दोष शांत होने लगते है। इससे स्टेमिना बढ़ने लगता है, स्किन में निखार आता है और रातभर में शरीर के अंदर रिलीज़ होने वाले टॉक्सिंस बाहर आ जाते हैं। इतना ही नहीं, स्किन कई तरह के बैक्टिरियल इंफेक्शन से भी दूर रहती है। अगर आप नियमित मसाज करते हैं तो किसी तरह का इंफेक्शन आसानी से नहीं ह सकता।

जीभ का भी रखें ख्याल

आयुर्वेद के हिसाब से बहुत सी बीमारियों का अंदाजा आपकी जीभ को देखकर लगाया जा सकता है। आमतौर पर जीवा हल्की गुलाबी नज़र आती है। कई बार बिना पचा हुआ खाना और क्लाग्ड आर्गन्स आपकी जीभ पर सफेद परत बना लेते हैं। इससे शरीर में टॉक्सिन जमा होने लगते हैं। ऐसे में रोज़ाना ब्रश करने के अलावा टंग क्लीनिंग का भी ख्याल रखें।

Those 5 reasons which can be responsible for Miscarriage

कई बार प्रेगनेंसी के दौरान कुछ स्वास्थ्य समस्याओं की वजह गर्भपात (Miscarriage) हो जाता है। हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि गर्भपात के वास्तविक कारण क्या हैं? इससे आगे की प्रेगनेंसी के दौरान सावधानी बरत कर इससे बचा जा सकता है।

प्रेगनेंसी के दौरान दो बातें हो सकती है। पहली यह कि स्वस्थ तरीके से बच्चे का जन्म हो सकता है। दूसरी बात यह भी हो सकती है कि बच्चे के जन्म से पहले कुछ जटिलताएं सामने आ सकती हैं। इनमें से एक मिसकैरेज या गर्भपात होना भी हो सकता है। यह जानकारी बेहद अहम है कि ज्यादातर बार गर्भपात उन वजहों से होता है, जो हमारे और आपके नियंत्रण से बाहर होते हैं। असल में, गर्भावस्था के नुकसान के सटीक कारण का पता लगाना अक्सर मुश्किल होता है। हालांकि, गर्भपात के सामान्य कारणों के बारे में जानने से सावधानी बरतने में सपोर्ट मिल सकता है। गर्भावस्था में स्वस्थ होने की संभावना बढ़ सकती है।

गर्भावस्था के नुकसान के कुछ सामान्य कारण यहां दिए गए हैं:

असामान्य गुणसूत्र (Abnormal Chromosomes)

पहले 12 हफ्तों में होने वाले आधे से अधिक गर्भपात के लिए बच्चे के गुणसूत्रों की असामान्य संख्या जिम्मेदार होती है। क्रोमोसोम आपके बच्चे के बालों और आंखों के रंग जैसे लक्षणों का निर्धारण करते हैं। गुणसूत्रों की क्षतिग्रस्त या गलत संख्या होने से बच्चे का उचित विकास नहीं हो पाता है। जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है, खासकर 35 साल की उम्र के बाद क्रोमोसोमल समस्याओं और गर्भावस्था के नुकसान के लिए जोखिम काफी बढ़ जाता है।

चिकित्सा मुद्दे (Medical Issues)

Those 5 reasons which can be responsible for Miscarriage

गर्भावस्था को पूर्ण अवधि तक ले जाने में मां का स्वास्थ्य अहम भूमिका निभाता है। रूबेला (Rubella) या साइटोमेगालोवायरस जैसे संक्रमण, एचआईवी (HIV) या सिफलिस, थायरॉयड रोग और ऑटोइम्यून विकारों जैसे संक्रमण गर्भावस्था के दौरान मां से बच्चे को होने की संभावना बनी रहती है। इनके अलावा, यदि ठीक से प्रबंधित न किया जाए तो मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी पुरानी स्थितियां गर्भावस्था के साथ समस्याएं पैदा कर सकती हैं। स्वास्थ्य समस्याओं के अलावा, आपकी आदतें गर्भावस्था के नुकसान के जोखिम को भी बढ़ा सकती हैं। धूम्रपान, अत्यधिक शराब का सेवन और अवैध दवाओं के सेवन से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है।

दवाएं (Medications)

कई ओवर-द-काउंटर और प्रिस्क्रिप्शन दवाएं गर्भावस्था के नुकसान की संभावनाओं को भी बढ़ा सकती हैं। इनमें दर्द और सूजन के लिए गैर-स्टेरॉयड एंटी-इंफ्लैमेटरी ड्रग्स (NSDS), रूमेटोइड आर्थराइटिस के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली दवाएं इनमें शामिल हैं। एक्जिमा जैसी कुछ स्किन प्रॉब्लम के लिए ली जाने वाली दवाएं भी खतरे को बढ़ा देती है।

पर्यावरणीय खतरे (Environmental Hazards)

सेकेंड हैंड धुएं के अलावा, घर या ऑफिस में आपके आसपास के वातावरण में मौजूद कुछ पदार्थों से आपकी गर्भावस्था को खतरा हो सकता है।

इनमें वर्म या रोडेंट को मारने के लिए प्रयोग किये जाने वाले कीटनाशक, घरों में पेंट थिनर या पेंट जैसे सॉल्वैंट्स या पानी के पाइप में मौजूद लेड भी खतरा बढ़ा सकता है।

भोजन विषाक्तता (Food Poisoning)

गर्भावस्था के दौरान कई प्रकार के खाद्य विषाक्तता गर्भपात या गर्भावस्था के नुकसान के जोखिम को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। साल्मोनेला आमतौर पर कच्चे या अधपके अंडे में पाया जाता है। इसके कारण समस्या हो सकती है। टोक्सोप्लाज़मोसिज़ अक्सर संक्रमित कच्चा मांस खाने के कारण होता है।

गर्भपात (Miscarriage) रोकने के उपाय

यह चिंता करना सामान्य है कि कुछ गतिविधियां या काम गर्भावस्था के जोखिम को बढ़ा सकती हैं। यदि गर्भावस्था हाई रिस्क वाला नहीं है, तो अधिकांश नियमित गतिविधियां जैसे काम करना, बैठना या उचित समय के लिए खड़े रहना, हवाई यात्रा, यदि गर्भावस्था हाई रिस्क वाला नहीं है, तो यौन संबंध बनाना, व्यायाम, भावनात्मक आघात होना से बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। आपकी गर्भावस्था सुरक्षित रहेगी। आमतौर पर गर्भपात को रोकना संभव नहीं है। अपने शरीर की उचित देखभाल करना सबसे अधिक जरूरी है।

गर्भावस्था के दौरान खुद की देखभाल करने के तरीके

गर्भावस्था के दौरान खुद की देखभाल करने के कुछ तरीकों में सभी प्रसवपूर्व देखभाल गतिविधियों को शामिल करना चाहिए। हेल्दी वजन बनाए रखना, प्रसवपूर्व विटामिन लेना, गर्भपात के जोखिम कारकों जैसे सिगरेट-धूम्रपान और शराब पीने से बचना चाहिए। साथ ही नियमित व्यायाम के साथ स्वस्थ आहार भी जरूर लें। अपने डॉक्टर के निर्देशों का पालन करना और अपनी अच्छी देखभाल करना बेहद जरूरी है। क्योंकि आप अपनी खुशी के बंडल का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं।

Sexual intimacy helps in recovering from loneliness and depression

हर इंसान किसी ना किसी के साथ क्लोज संबंध चाहता है। घनिष्टता (Closeness) या अंतरंगता (Sexual Intimacy) आम तौर पर लोगों के बीच निकटता को दिखाती है। यह संबंध व्यक्तिगत होते हैं। समय के साथ आप दूसरों से जब ज्यादा कनेक्ट होने लगती हैं तो एक दूसरे के प्रति अधिक गहरी भावना महसूस कर सकती हैं। एक-दूसरे के साथ अधिक सहज फील कर सकती हैं। यह अहम नहीं है कि यह लगाव महज भावनात्मक स्तर पर हो। यह फिजिकल स्तर पर भी हो सकता है। अंतरंगता या घनिष्टता आपके कम्पलीट हेल्थ पर पॉजिटिव रूप से असर डाल सकता है।

किसी के साथ इंटीमेट होने से पहले कुछ बातों को जानना है जरूरी

अपने विचारों और भावनाओं को किसी ऐसे व्यक्ति के साथ शेयर करें जिनसे आप प्यार करती हैं। उनके प्रति आपके मन में सम्मान का भाव है। अगर आप सेक्स के स्तर पर किसी के साथ इंटिमेट होने जा रही हैं तो उनके बारे में हर तरह की जानकारी मालूम कर लें। उनकी आदतों, व्यवहार, सेक्सुअली ट्रांस्मिटेड डिजीज के प्रति भी जागरूक रहें। ध्यान रहे कि जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। समय के साथ ही किसी व्यक्ति के साथ अंतरंगता निर्मित होती है। यदि अन्तरंग होने के बाद आपको उनके बारे में किसी तरह की बुरी जानकारी मिलती है। तो सिवा पछताने के आपके हाथ में कुछ नहीं रहेगा। अगर अन्तरंग होने वाले साथी से दुर्व्यवहार या हिंसा हो जाती है, तो इससे आपको संकेत मिल गया। आपका रिश्ता संकट में है।

यहां है अन्तरंग से मिलने वाले लाभ

मानसिक स्वास्थ्य को लाभ-

Sexual intimacy helps in recovering from loneliness and depression

अन्तरंगता आपके मानसिक स्वास्थ्य को लाभ पहुंचा सकती है। हार्मोन लेवल पर इसका पॉजिटिव प्रभाव पड़ता है। विशेष रूप से ऑक्सीटोसिन पर। इससे आपका तनाव दूर होगा। इंटिमेसी के दौरान अगर कोई आपका स्पर्श करता है, तो खुशी के हार्मोन डोपामाइन का सीक्रेशन अधिक होता है।

शारीरिक स्तर पर भावनात्मक लगाव का प्रभाव

फिजिकल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित शोध आलेख बताते हैं, अगर आपकी सर्जरी हुई है। सर्जरी के बाद आपके पास भावनात्मक लगाव रखने वाला व्यक्ति बैठता है, तो तनाव के स्तर में सुधार होता है। बेहतर उपचार और स्वस्थ व्यवहार से घाव जल्दी भरते हैं। इससे उम्र पर भी प्रभाव पड़ता है। अन्तरंगता से आपकी उम्र भी लंबी हो सकती है। भावनात्मक लगाव शारीरिक स्तर पर प्रभावित कर सकता है। ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन लेवल बढ़ता है। इससे ब्लड सर्कुलेशन सही होता है। ब्लड प्रेशर घटता है। हार्ट हेल्थ सुदृढ़ होता है।

अकेलेपन उबर सकते हैं

जर्नल ऑफ़ सोशल एंड पर्सनल रिलेशनशिप में प्रकाशित शोध आलेख के मुताबिक अगर आप अकेली रह रही हैं, तो अन्तरंगता यहां आपका अकेलापन दूर कर सकता है। यह अकेलेपन का मुकाबला कर सकती है। कुछ अध्ययन बताते हैं कि व्यक्ति समाज से कट कर अकेले जीने लगते हैं।

अकेलापन के कारण मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी हुई है। सामाजिक अलगाव के पीछे निश्चित रूप से अंतरंगता की कमी जिम्मेदार है। अकेलापन हमारी सोच, नींद नहीं आने का कारण बनता है। यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है। वहीं यदि आप किसी व्यक्ति के साथ अन्तरंग हैं, तो यह सामाजिक अलगाव और अकेलेपन की भावनाओं को कम करने में मदद कर सकता है।

सेक्सुअल इंटिमेसी घटाता है Depression

द इंटिमेट जर्नल के रिसर्च के मुताबिक अगर आप सेक्स लेवल पर किसी के साथ इंटिमेट हैं, तो मस्तिष्क डोपामाइन, सेरोटिनिन और ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन सीक्रेट करता है। ये सभी न्यूरोट्रस्मीटर हैं, जो खुशी और रिलैक्स होने की भावनाओं को बढ़ावा देते हैं। दूसरी ओर स्ट्रेस हार्मोन के लेवल में भी कमी आती है। रसायनों का यह प्राकॉतिक प्रवाह अस्थायी रूप से अपसाद की भावनाओं में सुधार कर सकता है।

Never ignore unresolved problems related to Ladies' health

स्वयं और परिवार की पूरी जिम्मेदारी आमतौर पर घर की महिलाओं (Ladies) पर ही होती है। ऐसे में उनके लिए खुद को देने के लिए वक्त बचता ही नहीं। कामकाजी महिलाओं के लिए वर्क लाइफ बैलेंस करना और भी मुश्किल होता है। ऐसे में अक्सर महिलाएं अपने स्वास्थ्य के साथ समझौता करती हैं और यही वजह है कि महिलाओं में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं (Health Problems In Women) लगातार बढ़ रही हैं। अब वक्त आ गया है कि महिलाओं के स्वास्थ्य (Women’s Health) के मद्देनजर थोड़ा सा अलर्ट रहा जाएं। स्वास्थ्य से जुड़े कुछ समस्याएं हैं जो महिलाओं में आमतौर पर देखने को मिलता है, आज हम उन्हीं की बात कर रहे हैं।

महिलाओं में आम है ये हेल्थ से जुड़ी समस्याएं

ब्रेस्ट कैंसर

महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। महिलाओं में ब्रेस्ट सेल्स का अनियमित विकास ब्रेस्ट ब्रेस्ट कैंसर की असल बनता है। अक्सर शुरुआत मिल्क डक्ट की लायनिंग से होती है, जिसकी वजह से ब्रेस्ट में नॉड्स बन जाते हैं। ब्रेस्ट के ऊपर की स्किन के कलर में बदलाव, कड़ापन या ब्रेस्ट साइज में बदलाव इसके कुछ आम लक्षण होते हैं।

बार-बार पेशाब आना

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मूत्र पथ के संक्रमण (यूटीआई) तब होते हैं जब बैक्टीरिया मूत्रमार्ग में प्रवेश कर जाते हैं और बढ़ने लगते हैं। वे महिलाओं में विशेष रूप से आम हैं, क्योंकि उनका मूत्रमार्ग पुरुषों की तुलना में अधिक छोटा होता है। इससे मूत्राशय तक पहुंचने के लिए बैक्टीरिया के यात्रा करने की लंबाई कम हो जाती है। यूटीआई के लक्षणों में बार-बार पेशाब आना, पेशाब करते समय दर्द या जलन और धुंधला पेशाब शामिल हैं।

चिंता और अवसाद

महिलाओं में हार्मोनल बदलाव से डिप्रेशन (अवसाद) और एंजायटी (चिंता) की संभावना बढ़ जाती है. प्रेग्नेंसी के दौरान और उसके बाद महिलाओं में ये समस्या काफी सामान्य होती जा रही है।

दिल की बीमारी

दिल की बीमारी महिलाओं में लगातार बढ़ रही है. दिल के दौरे के लक्षणों में सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ और बाहों में कमजोरी शामिल हैं. हालांकि, महिलाएं दिल के दौरे के रूप में अपने लक्षणों को नहीं पहचान सकती हैं, उन्हें लगता है कि अधिक काम करने की वजह से उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है. मैनोपोज हृदय रोग का कारण नहीं बन सकता है, मैनोपोज के बाद कुछ जोखिम कारक अधिक सामान्य होते हैं, जैसे हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल और कम एस्ट्रोजन।

Learn from ancestors the surefire way to live up to 100 years

अर्ली टू बेड एंड अर्ली टू राइज.. बचपन में हम सबने यह कविता पढ़ी है पर बड़े होकर कम लोग ही इसे फॉलो कर पाते हैं। वैसे यह केवल कही सुनी बात नहीं है। भारतीय ट्रडिशन के कुछ नियम वाकई हमारी लाइफ क्वालिटी में सुधार कर सकते हैं। यह बात अब विज्ञान भी मानता है। कई डॉक्टर्स अब लंबी उम्र जीने के लिए पुरानी पद्धति पर जिंदगी जीने की सलाह दे रहे हैं। जैसे हमारे पूर्वज जीते थे। वैसे, तो इंडियन ट्रडिशन से कई चीजें सीखने वाली हैं। यहां 10 ऐसे नियम हैं जिन्हें अपनाकर आप अपनी जिंदगी बदल सकते हैं।

भारतीय संस्कृति के ये 10 नियम अपनाकर हम बीमारियों से दूर रहकर लंबी उम्र जी सकते हैं।

वह पहला नियम बताती हैं ब्रह्म मुहूर्त में जागना। यानी सूरज निकलने से पहले जागना। सूर्योदय से पहले उठना हमारे हेल्थ के लिए बहुत अच्छा है। यह हमारे मेलानिन और कॉर्टिसॉल हॉरमोन को बैलेंस रखने में काफी अच्छा है। इससे हम खुश रहते हैं। ज्यादा देर से उठने वाले लोगों की अपेक्षा हमारे पास ज्यादा समय होता है। इससे हमारे काम करने की क्षमता भी बढ़ जाती है।

दूसरा नियम- ये बनाएं कि सुबह उठने के बाद अपने-अपने गॉड को धन्यवाद दें। आपके पास जो भी है उसके लिए धन्यवाद का भाव रखें। इससे मन उदास नहीं रहता। सूर्य, पृथ्वी, हवा, पानी, पेड़-पौधे इन सबके लिए ग्रैटिट्यूड रखें।

तीसरा नियम है– आसन, प्राणायाम, ध्यान, मुंद्रा, बंद, गतिस योग वगैरह नियमित रूप से करें।

चौथा नियम है- सूर्य को अर्घ्य देना। ऐसा करने से हमारी आंखें और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर रहता है। Vit- D मिलता है।

पांचवा काम आप नहाने के बाद प्रार्थना करें। सुबह उठकर नहाने से ब्लड प्रेशर नॉर्मल रहता है, हॉरमोन्स बैलेंस रहते हैं। साथ ही शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य रहता है।

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छठा नियम है जमीन पर बैठकर भोजन करना। पाल्थी मारकर या वज्र आसन में जमीन में बैठकर खाना खाने से पेट नहीं निकलता न ही मोटापा बढ़ता है। ऐसा करने जोड़ों में दर्द नहीं होता साथ ही एसिडिटी और पाचन की समस्या भी नहीं होती।

सातवां नियम- अपने हाथ से खाएं। छुरी-कांटा छोड़कर, साफ हाथों से खाना खाएं। यह भारत का पारंपरिक तरीका है। हमारे हाथ की उंगलियों में नर्व एंडिंग्स होती हैं। ये दिमाग से कनेक्टेड होती हैं। जब हम खाना छूते हैं तो दिमाग को सिग्नल मिलते हैं कि खाना आने वाला है। इससे हमारा डाइजेस्टिव सिस्टम तैयार हो जाता है। छुरी-कांटे से खाने पर खाना शॉक की तरह से आता है तो डाइजेशन से जुड़ी दिक्कतें हो जाती हैं।

आठवां तरीका है- आयुर्वेद मसाज। घर्षण क्रिया सहित कई ऐसी मसाज हैं जो हमारी कई बीमारियां दूर कर सकती हैं।

नौवां नियम है- घर का बना खाना। भारत में बनने वाली ट्रडिशनल डिशेज में कई मसाले और हर्ब्स होते हैं। ये हमारी हेल्थ के लिए अच्छे होते हैं। पारंपरिक तरह से घर का बना खाना हमारी हेल्थ के लिए अच्छा होता है।

दसवां नियम है- परिवार का प्यार और बॉन्डिंग। पूरी दुनिया में परिवार टूट रहे है लेकिन जॉइंट फैमिली भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। जब आप डिप्रेशन, किसी परेशानी या अकेलेपन में होते हैं तब आपको परिवार की अहमियत पता चलती है।