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Category Archives: Health

BEL SHARBAT: Bel Sharbat works as a heat protection

BEL SHARBAT: गर्मी के मौसम में तरह-तरह की स्पेशल फूड्स फेमस है उनमें से एक है बेल। पूरे देश में गर्मी के मौसम में बेल का शरबत लोग जमकर पीते हैं ताकि शरीर गर्मी से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार रहे बेल एक बेहद फायदेमंद और कूलिंग फ्रूट है, जो विशेष रूप से गर्मी के मौसम में फायदेमंद माना जाता है। आप आसानी से घर बेल का शरबत तैयार कर सकती हैं। इनमें कई अहम पोषक तत्वों की गुणवत्ता और प्रॉपर्टीज पाई जाती है, जो सेहत के लिए भिन्न रूपों में फायदेमंद साबित हो सकती है। अगर आपने अभी तक इस उम्दा फल का आजमाया नहीं है तो इस गर्मी इसे जरूर आजमाएं।

आपके लिए हम इसकी काफी आसान रेसिपी लेकर आए हैं, जिसे आप 10 मिनट में तैयार कर सकती हैं। यह रिफ्रेशिंग ड्रिंक आपको पूरे दिन फ्रेश रखने का काम करता है, एनर्जेटिक और हाइड्रेटेड रहने में मदद करता है। इस तरह आप गर्मी से निजात पाते हैं। आइये जानते हैं बेल का शरबत तैयार करने की रेसिपी-

बेल शरबत की रेसिपी

BEL SHARBAT: Bel Sharbat works as a heat protection

बेल शरबत बनाने के लिए जरूरी समान

1 बड़ा बेल
4 बड़ा चम्मच चीनी (जरूरत अनुसार)
1 लीटर पानी
पुदीने की पत्तियां
बर्फ के टुकड़े
एक चुटकी नमक

इस तरह तैयार करें बेल का शरबत

  • बेल को बेलन से तोड़ें और फिर चम्मच की मदद से गूदा निकाल लें।
  • अपनी उंगलियों का उपयोग करें और गूदे को मसलें, फिर इनमें से सारे बीज निकाल लें।
  • बीज काफी कड़वे होते हैं, इसलिए सुनिश्चित करें कि कोई भी बीज जूस में न छुटे, अन्यथा मुंह का स्वाद बिगड़ सकता है।
  • गुदे में ठंडा पानी डालें और इसे वापस से अच्छी तरह से मसलें।
  • अब इसे छननी में डालें और लकड़ी के चम्मच का उपयोग करके छलनी पर दबाएं।
  • इसमें से जितना हो सके उतना गूदा निकालें, बड़े रेशों को छोड़ दें।
  • अगर आपको ज्यादा मिठास चाहिए तो चीनी डालें, या मिठास के लिए शहद जैसे हेल्दी विकल्प भी इस्तेमाल कर सकती हैं।
  • एक बड़े कंटेनर में बर्फ के टुकड़े, कुचले हुए पुदीने के पत्ते डालें और ऊपर से शर्बत डालें।
  • अच्छी तरह मिलाएं और ठंडा शराब सर्व करें।
  • आप चाहें तो एक चुटकी नमक भी मिला कर सकती हैं, ये पूरी तरह से वैकल्पिक है।

 

जानें बेल का शरबत पीने के क्या है फायदे

1. पाचन में करता है सुधार

बेल जैसे सुपरफूड में डाइट्री फाइबर और पेक्टिन की मात्रा मौजूद होती है, जो मल त्याग को बढ़ावा देने और स्वस्थ पाचन को बढ़ावा देने में आपको मदद करती है। यह एक प्राकृतिक रेचक के रूप में कार्य करता है, जिससे कब्ज की स्थिति उत्पन्न नहीं होती, वहीं यह समग्र पाचन स्वास्थ्य में सुधार करता है।

2. शरीर को रखता है ठंडा

बेल आपके शरीर को अंदर से ठंडा रखने में मदद करता है, और गर्मी से संबंधित सभी समस्याओं से राहत प्रदान करता है। इसकी कूलिंग प्रॉपर्टीज शरीर की गर्मी कम करती है और आपको तरोताजा महसूस करने में मदद करती है। यह गर्मी से होने वाली परेशानी से राहत पाने का एक प्रभावी विकल्प है।

3. इम्यूनिटी को करता है बुस्ट

बेल विटामिन-C और A के साथ-साथ अन्य एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। ये पोषक तत्व व्हाइट ब्लड सेल्स के उत्पादन को उत्तेजित करते हैं और शरीर को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से लड़ने के लिए तैयार करते हैं। इस तरह शरीर संक्रमण तथा बीमारियों के चपेट में नहीं आती।

4. ब्लड शुगर मैनेजमेंट में अहम रोल अदा करता है

बेल के रस में फेरुलिक एसिड और रुटिन जैसे कंपाउंड पाए जाते हैं, जो ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मदद करती है। ये कंपाउंड इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार करते हैं और रक्त शर्करा के स्तर को कम करते हैं। डायबिटीज के मरीज भी बेल शरबत का आनंद ले सकते हैं, पर उन्हें इसमें चीनी जैसे मिठास के विकल्प को नहीं मिलना चाहिए।

5. हाइड्रेशन रखता है मेंटेन

बेल का जूस प्राकृतिक रूप से प्यास बुझाने में भी मददगार साबित होता है। ये शरीर को गर्म मौसम में पूरी तरह से हाइड्रेटेड रखता है, जिससे डिहाइड्रेशन के लक्षणों से राहत मिलती है। डिहाईड्रेशन थकान, कमजोरी और चक्कर आने जैसे परेशानी पैदा कर सकता है।

6. ऊर्जा शक्ति को रखें बरकरार

गर्मी में अत्यधिक पसीना निकलने की वजह से शरीर जल्दी थक जाती है, ऐसे में हर दिन बेल का जूस पीने से आपके शरीर में ऊर्जा शक्ति का संचार बना रहता है और आप लंबे समय तक एनर्जेटिक रहती हैं। फल में मौजूद पोषक तत्वों का अद्भुत संयोजन ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने और गर्मियों में सुस्ती को कम करने में मदद करता है।

7. हेल्दी स्किन के लिए फायदेमंद होता है

इस सुपरफूड में एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन्स की गुणवत्ता पाई जाती है जो त्वचा को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचाती है और कोलेजन के उत्पादन को बढ़ावा देती है। इस प्रकार स्किन इलास्टिसिटी में सुधार होता है और प्रीमेच्योर एजिंग का खतरा कम हो जाता है।

8. बॉडी को डिटॉक्सीफाई करता है

इस कूलिंग शरबत में बॉडी टॉक्सिंस को बाहर निकालने की क्षमता होती है। यह एक प्राकृतिक डिटॉक्सिफायर के रूप में कार्य करता है। इसकी उच्च फाइबर सामग्री पाचन तंत्र के माध्यम से टॉक्सिक उत्पादों को खत्म करने में सहायता करती है। इस प्रकार पाचन क्रिया, त्वचा स्वस्थ सहित समग्र सेहत को बढ़ावा मिलता है।

फोटो सौजन्य- गूगल

Does having sex during pregnancy really make normal delivery easier?

Pregnancy में सेक्स कितना सही है? ये बहस काफी पुरानी है। घर के बड़े-बुजुर्ग प्रेगनेंसी में सेक्स को सख्ती से मना करते हैं जबकि डॉक्टर इसे पूरी तरह सुरक्षित मानते हैं। ज्यादातर स्त्री रोग विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर प्रेगनेंसी में कोई दिक्कत नहीं है, तो सेक्स करने में कोई बुराई नहीं है। बल्कि यह प्रेगनेंसी में आपके मू़ड और रिश्ते को बेहतर बनाए रखने में मददगार साबित हो सकता है। स्त्री रोग एक्पर्ट इसे नॉर्मल डिलीवरी के लिए भी फायदेमंद मानती हैं। क्या वाकई प्रेगनेंसी में सेक्स नॉर्मल डिलीवरी में महत्वपूर्ण रोल अदा करता है? आइये समझते हैं इसे विस्तार से-

प्रेगनेंसी में सेक्स पर जानें विशेषज्ञ की राय

These symptoms of pregnancy start appearing only 3 to 4 days after conceiving, pregnancy is confirmed even before the period is missed

विशेषज्ञ ने प्रेगनेंसी में सेक्स करने पर जोर दिया है। वे इसे नॉर्मल डिलीवरी के लिए मददगार मानती है। अपनी पोस्ट में उन्होंने घरों में काम करने वाली उन महिलाओं का जिक्र करते हुए बताया है कि कैसे इन महिलाओं में ज्यादातर की नॉर्मल डिलीवरी होती है। जबकि शहरी-कामकाजी महिलाओं में सी सेक्शन के मामले अधिक देखने को मिलते हैं।

इसके लिए वे उनके गर्भावस्था के पूरे 09 महीने शारीरिक रूप से सक्रिय होने को सबसे बड़ा कारण बताती हैं। एक्सपर्ट की माने तो जो महिलाएं अपनी गर्भावस्था में शारीरिक रूप से सक्रिय रहती हैं, उनके लिए नॉर्मल डिलीवरी आसान हो जाती है। जबकि फिजिकली एक्टिव ना रहने वाली महिलाओं में सी सेक्शन डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है।

इंडियन टॉयलेट सीट का इस्तेमाल है फायदेमंद

गांव की औरतों का उदाहरण देते हुए डॉ अरुणा कालरा कहती हैं, कि इंडियन स्टाइल की टॉयलेट सीट का इस्तेमाल करते हुए आप स्क्वाट पॉजीशन में बैठते हैं, जिससे पेल्विक मसल्स को संकुचित होने और फैलने में मदद मिलती है। यह मुद्रा शरीर के इस हिस्से के लिए एक स्वभाविक व्यायाम है।

सेक्स कैसे करता है नॉर्मल डिलीवरी में योगदान

फिजिकली एक्टिव रहने और इंडियन टॉयलेट सीट के प्रयोग के अलावा प्रेगनेंसी में किया गया सेक्स भी नॉर्मल डिलीवरी को आसान बना देता है। डॉक्टर के मुताबिक पुरुषों के सीमन में एक प्रोस्टाग्लैंडीन नाम का तत्व होता है। जो नॉर्मल डिलीवरी में मदद करता है। डॉक्टर का कहना है कि अगर आप प्रेगनेंसी में सेक्स करने से डरती हैं, तो 9वां महीना शुरू होने के बाद सेक्स करना जरूर शुरू करें ताकि वेजाइनल मसल्स मजबूत हो सकें और योनि प्रसव आसानी से हो सके।

एक्सपर्ट के मुताबिक वे इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही में सेक्स करना नॉर्मल वेजाइनल डिलीवरी को आसान बना देता है। यह गर्भाशय के निचले हिस्से की मांसपेशियों को नर्म और लचीला बनाता है, ऑक्सीटॉसिन रिलीज करवाता है और आप दोनों को फीलगुड भी करवाता है। अब घबराने की जरूरत नहीं, अपनी डॉक्टर से सलाह लें और गर्भावस्था में सेक्स को पूरी तरह से एनजॉय करें।

Never forget to warm up before going for a morning walk

Morning Walk: शरीर को पूरे दिन एक्टिव और हेल्दी बनाए रखने के लिए ज्यादातर लोग दिन की शुरूआत मॉर्निंग वॉक से करते हैं। पर्यावरण के नजदीक कुछ देर रहने से पक्षियों की चहचहाहट, ठंडी हवाओं और हरियाली को खुली आंखों से महसूस किया जाता है। इससे बॉडी और माइंड एक्टिव रहता है। हालांकि गर्मी के दिनों में देरी से वॉक के लिए निकलने के कारण पसीना आना, बार-बार गला सूखना और थकान का सामना करना पड़ता है। ऐसे में नियमित वक्त पर वॉक पर जाना बेनिफिशियल साबित होता है। सुबह की सैर पर निकलने से पहले रखें कुछ बातों का खास ध्यान-

एक हेल्थ रिपोर्ट के मुताबिक पैदल चलना सभी उम्र के लोगों के लिए व्यायाम का एक बेहतरीन तरीका है। इसके लिए पैदल चलने की क्रिया को धीरे धीरे शुरू करें। समय के साथ इसकी आदत हो जाने पर रास्ते की लंबाई और चलने की गति बढ़ाते जाएं।

इस बारे में फिटनेस एक्सपर्ट बताते हैं कि शरीर को संतुलित रखने और मांसपेशियों की ऐंठन से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करें। इससे शरीर का लचीलापन बढ़ने लगता है और शारीरिक अंगों में बढ़ने वाली थकान से भी बचा जा सकता है। नियमित रूप से इसका अभ्यास शरीर में जमा कैलोरीज को भी बर्न करने में मदद करता है।

मॉर्निंग वॉक पर जाने से पहले रखें इन बातों का ध्यान

Never forget to warm up before going for a morning walk

1. वॉर्मअप होना ना भूलें

वॉक करने से पहले शरीर को एक्टिव करने के लिए वॉर्मअप सेशन बहुत आवश्यक है। इससे शरीर का तापमान उचित बना रहता है और शरीर में लचीलापन रहता है। इसके अलावा कोर मसल्स मज़बूत बनते हैं, जिससे चोटिल होने का खतरा भी कम होने लगता है। वॉक से पहले 15 मिनट का वॉर्मअप मांसपेयियों सेशन बेहद ज़रूरी है। एक रिपोर्ट के अनुसार वॉर्मअप की मदद से मांसपेशियों में बढ़ने वाले खिंचाव को कम किया जा सकता है और ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने में मदद मिलती है।

2. बॉडी को हमेशा हाइड्रेट रखें

Never forget to warm up before going for a morning walk

टहलने से कुछ देर पहले पानी पीने से बार-बार प्यास लगने की समस्या हल होने लगती है। साथ ही कार्यप्रणाली में सुधार आने लगता है, जिससे होने वाली थकान से बचा जा सकता है। इससे शरीर के तापमान को नियंत्रित करने, जोड़ों की मोबिलिटी को बढ़ाने और पोषक तत्वों के अवशोषण में मदद मिलती है। इससे शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह उचित बना रहता है।

3. कपड़े और जूतों का ख्याल रखें

गर्मी में वॉक पर जाने के दौरान अधिक टाइट कपड़े पहनने से बचें। इसके अलावा फुल स्लीव्स और कैप को भी अवॉइड करें। इससे गर्मी का स्तर बढ़ने लगता है। ऐसे में हल्के रंग के और खुले कपड़े पहनें। इसके अलावा स्पोर्टस शूज पहनकर ही वॉक पर निकलें। इससे थकान कम होने लगती है और गिरने का जोखिम भी कम हो जाता है।

4. धीमी गति से करें शुरूआत

तेज़ी से चलना जहां एक तरफ आपके समय को तो बचाता है। मगर उससे शारीरिक थकान बढ़ जाती है और बार बार पसीना आने लगता है। ऐसे में शुरूआत धीमी गति से करें और फिर स्टेमिना बिल्ड होने के बाद समय सीमा को बढ़ा दें। इससे स्वास्थ्य को भी फायदा मिलता है।

5. सही तकनीक का करें प्रयोग

आराम से धीरे और बाहों को हिलाते हुए चलें। इसके अलावा वॉक के दौरान शरीर को एकदम सीधा कर लें और लंबे लंबे फुट स्टेप्स लेने से बचें। शुरूआत 20 मिनट की वॉक से कर लें और सप्ताह में 2 से 3 बार ही वॉक के लिए जाएं।

6. खुद को कूल कर लें

आप हमेशा लॉन्ग और फास्ट सैर करने के बाद शांत हो जाएं। शरीर को एक्टिव रखने के लिए टहलने के बाद कुछ स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करें। इससे बॉडी में बढ़ने वाली पेन और थकान कम होने लगती है। इसके बाद बॉडी को कुछ देर रिलैक्स होने के लिए छोड़ दें, जिससे शरीर की एनर्जी दोबारा बूस्ट हो सके।

फोटो सौजन्य- गूगल 

Those men who are interested in BABY PLAN

अगर आप BABY PLAN करना चाहते हैं और कंसीव करने का मन बना रहे हैं तो अपने साथ-साथ अपने पार्टनर की फर्टिलिटी का भी जरूर ध्यान रखें। जब कभी हम फर्टिलिटी की बात करते हैं तो पहले फीमेल फर्टिलिटी की ही बात करते हैं लेकिन अक्सर मेल फर्टिलिटी को दरकिनार कर देते हैं। यह समझना बहुत जरूरी है कि कंसीव करने के लिए एग और स्पर्म दोनों फर्टाइल होने जरूरी होते हैं। मेल फर्टिलिटी से संबंधित जानकारी पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी होनी चाहिए। क्योंकि अपने पार्टनर को सही गाइड करने में कोई बुराई नहीं।

एक सीनियर गाइनेकोलॉजिस्ट और रोबोटिक सर्जन ने मेल फर्टिलिटी बूस्ट करने को लेकर कुछ अहम टिप्स दिए हैं। आइये इस बारे में पूरे विस्तार से जानते हैं-

जानें पुरुषों के हेल्दी फर्टिलिटी से जुड़े कुछ टिप्स

Those men who are interested in BABY PLAN

1. टाइट और सिंथेटिक अंडरगारमेंट्स से नुकसान

कुछ अध्यन के मुताबिक टाइट अंडर गारमेंट्स या पैंट पहनने वाले पुरुषों का स्पर्म काउंट सामान्य पुरुषों की तुलना में कम होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि टाइट अंडरगारमेंट हवा को पास होने से रोकते हैं, जिसकी वजह से अंदर का तापमान बढ़ जाता है। स्क्रोटल टेंपरेचर बढ़ने की वजह से स्पर्म काउंट पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसलिए अगर आपके पार्टनर टाइट और सिंथेटिक अंडरगारमेंट्स पहनते हैं, तो इन्हें आज ही कॉटन अंडरगारमेंट से बदले ताकि उनके टेस्टीकल्स एक हेल्दी एनवायरमेंट में रह सकें।

2. स्कोमिंग का कुप्रभाव

जो लोग अत्याधिक स्मोकिंग करते हैं उन पुरुषों की फर्टिलिटी यानी कि स्पर्म काउंट और क्वालिटी दोनों समय के साथ कम होते जाता है। सिगरेट का धुआं ब्लड वेसल्स को नुकसान पहुंचता है, इसके अलावा डीएनए डैमेज का कारण बन सकता है। ब्लड वेसल्स के नुकसान की वजह से ब्लड फ्लो कम हो जाता है, जिसकी वजह से इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। कुछ मामलों में पुरुषों के स्पर्म असामान्य शेप में आ जाते हैं, जिसकी वजह से फर्टिलाइजेशन की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है। वहीं सिगरेट के धुएं में मौजूद टॉक्सिंस डीएनए डैमेज का कारण बन सकते हैं, ऐसे में मिसकैरेज, बर्थ डिफेक्ट जैसे गंभीर समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।

3. सॉना-जकूजी बाथ प्लानिंग के 6 महीने पहले से न लें

Those men who are interested in BABY PLAN

सॉना और जकूजी बाथ को लंबे समय से अलग-अलग कल्चर में प्रैक्टिस किया जा रहा है। इसे शरीर को रिलैक्स करने के लिए और कई सेहत संबंधी फायदे प्रदान करने के लिए जाना जाता है। पर असल में स्पर्म काउंट और मेल फर्टिलिटी पर इसका नकारात्मक असर हो सकता है, यह स्पर्म की मात्रा और गुणवत्ता दोनों को प्रभावित कर सकता है। टेस्टिकल्स शरीर के बाहर इसलिए होते हैं, क्योंकि उन्हें बॉडी के कोर टेंपरेचर से कम टेंपरेचर में रहने की आवश्यकता होती है, ताकि हेल्दी स्पर्म प्रोडक्शन मेंटेन रखा जा सके। इस तरह लंबे समय तक गर्म वातावरण में समय बिताने की वजह से स्पर्म काउंट और मोटिलिटी कम हो जाती है, और एब्नार्मल स्पर्म बढ़ जाता है। जिसकी वजह से कंसीव करने में परेशानी आती है। इसलिए बेबी प्लैनिंग के 06 महीने पहले से सॉना और जकूजी बाथ लेना बंद कर दें।

4. गोद में लैपटॉप और अगली जेब में मोबाइल न रखें

जिस प्रकार सॉना और जकूजी बाथ में टेस्टिकल्स को अधिक तापमान में रहना पड़ता है, जिसकी वजह से स्पर्म क्वालिटी पर नकारात्मक असर पड़ता है। ठीक उसी प्रकार गोद में लैपटॉप रखकर इस्तेमाल करने से या अपने मोबाइल फोन को अपने फ्रंट पॉकेट में रखने की वजह से स्क्रोटल टेंपरेचर बढ़ जाता है, जो स्पर्म प्रॉडक्शन और क्वालिटी को डिस्टर्ब कर सकता है। हालांकि, प्राइमरी कंसर्न हिट है, परंतु लैपटॉप द्वारा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड जेनरेट होता है, जिसकी वजह से स्पर्म क्वालिटी संबंधी समस्याएं आ सकती हैं। इसलिए हमेशा डेस्क पर रखकर लैपटॉप चलाएं।

5. खानपान का रखें ध्यान

इन सभी के अलावा मेल फर्टिलिटी को बनाए रखने के लिए खान-पान पर ध्यान देना भी जरूरी है। पर्याप्त मात्रा में विटामिन-C युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए, जो एक प्रकार का एंटीऑक्सीडेंट है, और शरीर पर ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के प्रभाव को कम कर देता है। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस स्पर्म काउंट को प्रभावित कर सकता है।

अलवा इसके पर्याप्त मात्रा में विटामिन-D लेने की सलाह दी जाती है, जो टेस्टोस्टरॉन लेवल को मेंटेन रखने में मदद करते हैं। साथ ही साथ कम से कम तनाव लें और शरीर को पर्याप्त आराम दें। इतना ही नहीं नियमित रूप से एक्सरसाइज करना भी निहायत ही जरूरी है, ताकि पूरी तरह स्वस्थ रहा जा सके।

फोटो सौजन्य- गूगल

Natural Cooking

Natural Cooking: आज के इस आधुनिकता भरी दुनिया में किचन में स्टील, नॉन स्टिक और कुकर जैसे बर्तन आम हो गए हैं। लेकिन एक बार फिर आयुर्वेद और विज्ञान पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों की ओर लौटने की सलाह दे रहा है। मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने और खाना खाने के फायदे हेल्थ के साथ-साथ परंपरा की दृष्टि से भी काफी अहम हैं।

मिट्टी के बर्तन में पकाने के फायदे

आयुर्वेद के मुताबिक खाने को धीमी आंच में पकाना ही सबसे बेहतर तरीका है। मिट्टी के बर्तनों में खाना धीरे-धीरे पकता है जिससे इसमें मौजूद सभी जरूरी न्यूट्रियंस सुरक्षित रहते हैं, जबकि कुकर में तेज भाप और दबाव की वजह से ऐसा नहीं होता है। कुकर में खाना बनने के दौरान 87 प्रतिशत तक पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। पर मिट्टी के बर्तनों में ये 100 प्रतिशत तक सुरक्षित रहते हैं। साथ ही भोजन में मौजूद सभी प्रोटीन शरीर को खतरनाक बीमारियों से सुरक्षित रखते हैं।

खाने का टेस्ट में इजाफा करता है मिट्टी का बर्तन

Natural Cooking

मिट्टी के बर्तन भारत में पारंपरिक रूप से सदियों से उपयोग में लाए जा रहे हैं। मिट्टी के बर्तन अन्य धातुओं के बर्तनों की तुलना में आज भी काफी सस्ते होते हैं। विभिन्न रूपों, डिजाइनों और रंगों में ये बर्तन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही जगह पर आसानी से मिल जाते हैं। मिट्टी के बर्तनों में पकाया हुआ खाना वी सिर्फ स्वास्थ्यवर्धक होता है, बल्कि इसका टेस्ट भी लाजवाब होता है। सौंधी सी खुशबू और मसालों का मेल एक ऐसा खास जायका तैयार करता है जिसे कोई भी भूल नहीं सकता। ये खाने को खास बना देता है, या खाने के स्वाद को दो गुना कर देता है।

आज के दौर में मिट्टी के बर्तन केवल सेहत के लिहाज से ही नहीं, बल्कि सजावट और पारंपरिकता के लिए भी पसंद किए जा रहे हैं। खूबसूरत कलाकारी से सजे ये बर्तन किचन और डाइनिंग टेबल को एक देसी और आकर्षक रूप देते हैं। सुबह की चाय कुल्हड़ में हो या ठंडा पानी मटकी में, इसका अनुभव अलग ही होता है।

सेहत के लिए है फायदेमंद

एक इंसान को हर दिन 18 तरह के सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरूरत होती है। ये पोषक तत्व मुख्य रूप से मिट्टी से प्राप्त होते हैं। दूसरी तरफ, एल्युमीनियम के बर्तनों में पकाया गया खाना इन पोषक तत्वों को नष्ट कर देता है. इतना ही नहीं, यह टीबी, डायबिटीज, अस्थमा और पैरालिसिस जैसी कई गंभीर बीमारियों का कारण भी बन जाता है। कांसे और पीतल के बर्तन में भी खाना बनाने से कुछ पोषक तत्व नष्ट होते हैं। लेकिन सबसे सुरक्षित और लाभदायक मिट्टी के बर्तन ही होते हैं।

आज के आधुनिक दौर में मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल माइक्रोवेब में भी किया जाता है जिससे इन्हें पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह के किचन में प्रयोग करना आसान हो जाता है। हालांकि इनका सीधा तेज ताप में इस्तेमाल ना करने की सलाह जी जाती है, क्योंकि इनकी हीट सहन करने की क्षमता अन्य धातुओं सेथोड़ा कम होती है। मिट्टी के बर्तनों में अगर दही भी जमाते हैं तो इनका स्वाद काफी बढ़ जाता है। गर्म दूध भी जब मिट्टी की हांडी में डाला जाता है तो उसमें एक अलग ही सौंधापन आ जाता है।

फोटो सौजन्य- गूगल

How diabetes weakens bones and joints

DIABETES: आजकल भागदौड़ वाली जीवनशैली के कारण सेहत संबंधी प्रॉब्लम्स भी तेजी से बढ़ रही है। ब्लड प्रेशर से लेकर डायबिटीज तक जैसी गंभीर समस्याएं भी अब आम हो गई हैं। डायबिटीज अब ऐसी समस्या बन चुकी है जो कम उम्र के लोगों को भी तेजी से दबोच लेती है। बता दें कि यह ऐसी बीमारी है जो किसी को एक बार घेर ले तो फिर धीरे-धीरे शरीर को कमजोर करने लगती है। जिससे शरीर को दूसरी बीमारियां तेजी से घेरती हैं। शरीर में शुगर लेवल बढ़ने पर इसे नियंत्रित कर पाना भी मुश्किल हो जाता है। डायबिटीज ब्लड शुगर को तो बढ़ावा ही है, साथ ही साथ बोन और ज्वाइंट्स को भी कमजोर करने लगता है। जिससे ऑस्टियोपोरोसिस यानी हड्डियों के पतले होने, घिसने और अर्थराइटिस की समस्या में इजाफा हो सकता है। इससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और फ्रैक्चर और ज्वाइंट्स पेन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। जानते हैं डायबिटीज हड्डियों और ज्वाइंट्स को कैसे नुकसान पहुंचाता है-

विशेषज्ञ बताते हैं कि, मधुमेह न केवल ब्लड शुगर को बढ़ाता है, बल्कि यह हड्डियों और जोड़ों को भी कमजोर कर सकता है। जब शरीर में शुगर लेवल लंबे समय तक बढ़ा रहता है, तो यह हड्डियों में कैल्शियम की मात्रा को कम कर सकता है, जिससे वे कमजोर हो जाती हैं। इससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। अलावा इसके डायबिटीज के कारण जोड़ों में सूजन आ सकती है, जिससे दर्द और जकड़न फील होती है।

कई मामलों में, हाई ब्लड शुगर शरीर के टिशूज़ और कार्टिलेज को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे गठिया जैसी समस्याएं पनप सकती हैं। डायबिटीज से प्रभावित नसों और रक्त वाहिकाओं के कारण हड्डियों और जोड़ों में सही मात्रा में पोषण नहीं पहुंच पाता, जिससे ठीक होने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और छोटी चोटें भी जल्दी ठीक नहीं होतीं। लंबे समय तक अनकंट्रोल शुगर रहने से बोन मिनरल डेंसिटी कम हो जाती है, जिससे फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है, खासकर रीढ़, कूल्हों और घुटनों में।

डायबिटीज से ग्रस्त लोगों को अपनी हड्डियों और जोड़ों की देखभाल के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए, कैल्शियम और विटामिन-D युक्त आहार लेना चाहिए और शुगर लेवल को कंट्रोल में रखना चाहिए। अगर हड्डियों या जोड़ों में लगातार दर्द या जकड़न हो रही हो, तो इसे नजरअंदाज भूलकर भी ना करें और तुरंत अपने डॉक्टर से सलाह लें। सही खान-पान, नियमित व्यायाम और ब्लड शुगर को नियंत्रित रखकर हड्डियों को मजबूत रखा जा सकता है और जोड़ों की समस्याओं से निजात पाया जा सकता है।

हड्डियों और ज्वाइंट्स को कैसे प्रभावित करती है DIABETES?

How diabetes weakens bones and joints

डायबिटीज अब एक आम समस्या बन चुकी है, जिसकी सबसे बड़ा कारण है अनियमित लाइफस्टाइल और खान-पान। डायबिटीज हड्डियों और ज्वाइंट्स की सेहत को भी काफी प्रभावित करती है। आइये जानते हैं कि डायबिटीज हड्डियों और ज्वाइंट्स में किस तरह की समस्याएं उत्पन्न कर सकती है।

1. हड्डियों को बनाता है कमजोर

डायबिटीज हड्डियों के बनने और टूटने के बीच के संतुलन को बिगाड़ देती है, जिससे धीरे-धीरे हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है। इससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और आगे चलकर फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है।

2. Joints Pain और अकड़न की समस्या

ब्लड शुगर यानी हाइपरग्लाइसेमिया से लंबे वक्त तक परेशान होने के कारण जोड़ों में सूजन की समस्या पैदा हो जाती है, जिससे जोड़ों में दर्द, अकड़न की शिकायत होने लगती है। इसलिए, व्यक्ति को अपने सामान्य दैनिक कार्य करने में भी कठिनाई होने लगती है।

3. घाव का देरी से भरना

डायबिटीज के कारण जिस तरह सामान्य बीमीरियों से उबरने में भी समय लग जाता है, उसी तरह चोटों के भरने में भी देरी होती है। डायबिटीज के चलते शरीर में ब्लड फ्लो प्रॉपर नहीं रहता, जिसके चलते फ्रैक्चर और जोड़ों की चोटों के ठीक होने में देरी होती है।

4. बढ़ जाता है ऑस्टियोआर्थराइटिस का खतरा 

डायबिटीज के मरीजों में ऑस्टियोआर्थराइटिस का खतरा ज्यादा होता है। खासतौर पर घुटनों में। इससे वजन बढ़ता है, सूजन होती है और जॉइंट्स को नुकसान पहुंचता है, जिससे जोड़ों में टूट-फूट की समस्या हो सकती है।

5. लिगामेंट इंजरी

ब्लड में ग्लूकोज के बढ़ने से लिगामेंट कमजोर होने लगता है, जिससे डायबिटिक व्यक्ति में ऐसी लिगामेंट इंजर की आशंका ज्यादा हो जाती है, जिसके लिए तत्काल उपचार की जरूरत होती है।

6. फ्रोजन शोल्डर

डायबिटीज के चलते एडहेसिव कैप्सूलाइटिस या फ्रोजन शोल्डर की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसके कारण कंधे के जोड़ में असहनीय दर्द और अकड़न की समस्या पैदा हो जाती है।

डायबिटीज के मरीज इस तरह रखें हड्डियों की सेहत का ध्यान

How diabetes weakens bones and joints

डायबिटीज के पेशेंट्स को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि ये स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं का खतरा भी बढ़ा देती है। तो चलिए जानते हैं कि डायबिटीज के मरीजों को अपनी हड्डियों और जॉइंट्स कैसे ख्याल रखना चाहिए।

1. कैल्शियम-विटामिन युक्त भोजन का सेवन

अपनी हड्डियों और जॉइंट्स की सेहत का ख्याल रखने के लिए डायबिटीज के मरीजों को अपने खानपान का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए। ऐसे किसी भी खाद्य से दूर रहना चाहिए जो ग्लूकोज की मात्रा को तेजी से बढ़ाता है। डायबिटीज के मरीजों को कैल्शियम और विटामिन से भरपूर खाद्य का सेवन करना चाहिए।

2. ये चीजें करें डाइट में शामिल

डायबिटीज के मरीजों को अपनी डाइट में डेयरी प्रोडक्ट्स, मेवे, हरी पत्तेदार सब्जियां और अगर आप नॉन-वेजीटेरियन (Non-Vegetarian) हैं तो मछली का सेवन जरूर करना चाहिए। इससे बोन हेल्थ इंप्रूव होती है और हड्डियों और जॉइंट्स के दर्द में राहत मिलती है।

3. इन चीजों से रहें दूर

डायबिटीज के मरीजों को भूलकर भी चीनी और कार्बोहाइड्रेट से युक्त खाद्यों का सेवन नहीं करना चाहिए। क्रेविंग होने पर इसके अल्टरनेट तलाशें, लेकिन चीनी और कार्बोहाइड्रेट से दूर ही रहें।

4. रूटीन में बढ़ाएं फिजिकल एक्टिविटी

डायबिटीज के मरीजों में वजन तेजी से बढ़ने लगता है, जिससे हड्डियों और जॉइंट्स भी प्रभावित होते हैं। इसलिए डायबिटीज के मरीजों को अपने रूटीन में पैदल चलना, फिजिकल एक्टिविटी और योग को शामिल करना चाहिए। इससे वजन बढ़ने का खतरा दूर होता है और बोन हेल्थ इंप्रूव होती है।

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Don't let your skin turn colorless in the colors of Holi

HOLI के अवसर पर चेहरे पर गुलाल और हाथों में पिचकारी ना हो तो फिर मजा ही क्या? लेकिन रंगों के इस खास त्योहार का लुत्फ उठाने के चक्कर में अपने त्वचा पर पड़ने वाले प्रभाव को भूल जाते हैं। आसमान में उड़ता गुलाल जहां वातावरण को मदमस्त बनाता है तो वहीं चेहरे के बढ़ते रफनेस का भी कारण होता है। ऐसे में स्किन को इन बैड इफेक्ट से बचने के लिए कुछ स्किन केयर टिप्स को जरूर फॉलो करना जरूरी है। इससे स्किन का लचीलापन बना रहता है और त्वचा क्लीन वा क्लीयर दिखने लगती है। जानते हैं स्किन के ग्लो को बरकरार रखने के लिए होली से पहले इन टिप्स को करें फॉलो-

स्किन पर रंगों का प्रभाव

इस बारे में स्किन केयर विशेषज्ञ का कहना है कि पारंपरिक तरीके से खेली जाने वाली होली में फूलों और उससे तैयार रंगों से होली खेली जाती थी। मगर आधुनिकता के इस दौर में सिंथेटिक पिगमेंट का इस्तेमाल त्वचा को नुकसान पहुंचा रहा है। इससे स्किन और आंखों पर जलन और बालों का रूखापन बढ़ने लगता है। इसके अलावा लंबे समय तक धूप में होली खेलने से स्किन टैनिंग और टैक्सचर प्रभावित होने का जोखिम बढ़ जाता है। कुछ आसान प्री होली टिप्स से स्किन को रंगों के नुकसान से बचाया जा सकता है।

इन प्री होली स्किन केयर टिप्स को करें फॉलो

1. स्किन को हाइड्रेट रखें

रंगों के त्योहार होली में तेज़ धूप चेहरे को नुकसान पहुंचाती है और निर्जलीकरण का जोखिम बढ़ जाता है। ऐसे में शरीर को हाइड्रेट रखने के लिए पानी अवश्य पीएं। इसके अलावा हेल्दी पेय पदार्थों का भी सेवन करें। इससे पसीने के कारण होने वाले फ्लूइड लॉस से बचा जा सकता है।

2. ठंडे पानी से चेहरे को धोएं

ओपन पोर्स की समस्या के कारण रंग स्किन की लेयर्स में पहुंचकर इंफेक्शन और सूजन का कारण साबित होता है। इसके अलावा मुहांसों का भी खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में पोर्स को संकुचित करने याबंद करने के लिए ठंडे पानी में चेहरे को डिप करें या फिर बर्फ को चेहरे पर रगड़ें। इससे ओपन पोर्स से बचा जा सकता है

3. बादाम का तेल करें इस्तेमाल

Don't let your skin turn colorless in the colors of Holi

 

स्किन को फ्री रेडिकल्स और हार्मफुल केमिकल से बचाने के लिए प्रोटेक्टिव लेयर की आवश्यकता होती है। इसके लिए बादाम के तेल की लेयर को चेहरे पर अप्लाई कर लें। इससे स्किन पर दाग धब्बों की समस्या हल हो जाती है। साथ ही चेहरे पर रंग चिपकने के खतरे से भी बचा जा सकता है। होली खेलने से पहले बादाम के तेल को नारियल के तेल में मिलाकर चेहरे, गर्दन और बाजूओं पर अप्लाई करें।

4. पेट्रोलियम जेली लगाएं

पेट्रोलियम जेली की एक परत लगाने से आपकी त्वचा हाइड्रेटेड और सुरक्षित रहती है। इससे त्वचा पर रंगों का प्रभाव कम हो जाता है, जिसके चलते त्वचा पर जलन और खुरदरापन कम होने लगता है। इससे होंठ, गर्दन, कान और आंखों के नीचे की त्वचा सुरक्षित रखने में मदद मिलती है। इन जगहों से रंग को निकालना बेहद मुश्किल हो जाता है।

5. बाजूओं को ढककर रखें

पूरी आस्तीन के कपड़े पहनने से आपके शरीर को अधिक मात्रा में रंग के संपर्क में आने से बचाया जा सकता है। इसके अलावा बालों को दुपट्टे, बंदाना या स्कार्फ से कवर कर लें। दरअसल, रंग के संपर्क में आने से त्वचा पर केमिकल का प्रभाव बढ़ जाता है, जिससे स्किन की शुष्कता बढ़ने लगती है।

6. सनस्क्रीन करें इस्तेमाल

Excessive use of sunscreen is harmful, do not forget to do it before sleeping at night

तेज़ धूप से स्किन को बचाने के लिए नियमित रूप से सनस्क्रीन इस्तेमाल करें। इससे त्वचा पर टैनिंग का खतरा कम होने लगता है और स्किन सेल्स बूस्ट होते हैं। सन प्रोटेक्शन फैक्टर यानि एसपीएफ का अवश्य ध्यान रखें और उसकी वेल्यू 50 रखने से एज़िग के प्रभाव से भी मुक्ति मिल जाती है। इससे त्वचा पर रंगों के प्रभाव से भी बचा जा सकता है।

7. ऑर्गेनिक कलर लगाएं

ऑर्गेनिक और केमिकल फ्री रंग त्वचा को जलन से बचाने और स्वस्थ त्वचा बनाए रखने में मदद करते हैं। ये पक्के और केमिकल युक्त रंगों के समान कई दिनों तक त्वचा पर नहीं ठहरते है। इससे स्किन मुलायम रहती है।

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The water coming out of the taps of houses is giving rise to CANCER

CANCER: आज बुजुर्गों की बात बिल्कुल सच हो गई कि एक दिन वो भी आएगा जब हमें पानी को छान (फिल्टर) कर पीना पड़ेगा। उन्होंने जो कहा वह आज सच साबित हो चुका है और फिल्टर का पानी हमारे स्वस्थ जीवन के लिए काफी जरूरी है, वजह कई सारे हैं जिनके कारण अब ग्राउंड वाटर भी हमारे पीने लायक नहीं रहा पर क्या आप को मालूम है कि इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी तक हो जाने का खतरा है? ऐसे जानलेवा खतरों से बचने के लिए हम कौन सा तरीका इस्तेमाल कर सकते हैं।

टैप के पानी से CANCER का खतरा!

जर्नल ऑफ एक्सपोजर साइंस एण्ड इन्वायरमेन्टल एपिडेमोलोजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे घरों में टैप से गिरने वाले पानी में ऐसे परमानेंट एलीमेंट्स पाए जाते हैं जो कैंसर के लिए एक बड़ी वजह हैं। रिपोर्ट एक स्टडी के आधार पर है और उसके नतीजों के अनुसार, ऐसे लोग जो टैप वाटर को पीने में या खाना बनाने में इस्तेमाल करते हैं, उनमें कैंसर का खतरा 33 फीसदी तक बढ़ जाता है। रिपोर्ट में आगे है कि दुनिया भर की लगभग 45 फीसदी आबादी इसकी जद में है। कैंसर के ये खतरा वाकई बड़ा भी है फिर भी इसके बगैर हमारा काम एक दिन भी नहीं चल सकता।

टेप के पानी में कैंसर पैदा करने वाले एलीमेंट्स

The water coming out of the taps of houses is giving rise to CANCER

1.आर्सेनिक (Arsenic)

आर्सेनिक एक खतरनाक केमिकल एलीमेंट है जो प्राकृतिक रूप से जमीन के अंदर पाया जाता है। अगर टैप के पानी में आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा हो तो ये कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है। वैसे तो आर्सेनिक कुदरती जल सोर्स में ही पाया जाता है लेकिन ये स्टोर किये गए पानी में भी जन्म ले सकता है, खासकर तब जब पानी की सफाई का इंतेजाम न हो।

3.क्लोरीन (Chlorine)

कैंसर हॉस्पिटल के अनुसार, क्लोरीन का इस्तेमाल पानी को साफ करने के लिए किया जाता है। लेकिन पानी में ज्यादा क्लोरीन के होने से कुछ नुकसान देने वाले केमिकल एलीमेंट्स बन सकते हैं, जिन्हें डिसिन्फेक्टन बायप्रोडक्ट्स (DBPs)कहा जाता है। इनमें से कुछ केमिकल्स जैसे डायक्लोरोसाइनोफिन (Dichloramine) और ट्राइहैलोमिथेन (Trihalomethanes) कैंसर को बढ़ावा दे सकते हैं।

4.लेड (Lead)

लेड एक मेटल है जो पुराने पाइपलाइन और हमारे घर के नलों में हो सकती है। लिड अगर पानी में ज्यादा मात्रा में तो ये हमारे शरीर में जमा होने लगता है। इसकी वजह से पहले ट्यूमर और बाद में कैंसर तक के भी खतरे देखे जाते हैं।

क्या पानी से बढ़ रहा है कैंसर का खतरा

The water coming out of the taps of houses is giving rise to CANCER

1.लॉंगटाइम एक्सपोजर

डॉक्टर कहते हैं कि इन खतरों के बावजूद ये कहना भी सही है कि टैप के पानी से कैंसर का खतरा तब ही ज्यादा होगा जब हम इसे ज्यादा इस्तेमाल में लाएं। ज्यादा से मेरा मतलब लंबे समय तक। अगर पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड, या लिड जैसी चीजें हैं और हम उन्हें लगातार पीते हैं तो ये धीरे-धीरे शरीर में जमा होने लगते हैं और इस वजह से शरीर में कैंसर जन्म लेता है।

2. केमिकल रिएक्शन का शरीर पर असर

ये आप जानते होंगे कि पानी को साफ करने के लिए भी कुछ केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है। कई बार तो ये तरीका सही होता है लेकिन जब बिना जाने कि पानी के अंदर कौन से नुकसानदायक एलीमेंट्स हैं, किसी केमिकल के जरिए उसे साफ करने की कोशिश की जाती है तो केमिकल रिएक्शन होने के चांस होते हैं। ये केमिकल रिएक्शन शरीर में असर छोड़ते है और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों तक भी पहुंचा सकते हैं।

बचाव के उपाय

1. पानी का टेस्ट करवाएं

सबसे पहला कदम है, पानी की क्वालिटी टेस्ट करना। आप लोकल अथॉरिटी से बोल कर अपने घर आ रहे पानी की क्वालिटी के बारे में पूछ सकते हैं। पानी का टेस्ट करने की भी रिक्वेस्ट डाल सकते हैं ताकि आपको पता लगे कि आपके पानी में कौन से एलीमेंट्स ऐसे हैं जो नुकसान दे रहे हैं। कई बार अगर ये काम लोग प्राइवेटली भी कराते हैं।

2. फिल्टर का इस्तेमाल करें

अगर आपके पानी में आर्सेनिक, लेड, फ्लोराइड या अन्य हानिकारक एलीमेंट्स हैं तो एक अच्छा पानी फिल्टर लगवाना बेहद जरूरी है। आजकल बाजार में कई प्रकार के वाटर फिल्टर्स उपलब्ध हैं जो इन खतरनाक तत्वों को पानी से निकाल सकते हैं। ऐसे फिल्टर्स का चुनाव करें जो इन तत्वों को आसानी से और पूरे तरीके से हटाने में सक्षम हों।

3. पानी उबाल कर पियें

अगर आपके इलाके के पानी में आर्सेनिक या लिड की समस्या है तो पानी उबालने से वह कुछ हद तक सुरक्षित हो सकता है क्योंकि पानी को उबालने से बैक्टीरिया और वायरस खत्म हो जाते हैं। हालांकि, ये सही है कि उबालने से पूरी तरह पानी के एलीमेंट्स हट जाएं इसकी गारंटी नहीं है लेकिन यह जरूर है कि उबालने से पानी कुछ हद तक साफ जरूर हो सकता है।

4. नई पाइप का इस्तेमाल

अगर आपके घर में पुराने पाइप हैं तो उसे बदल देना चाहिए। पाइप जितना पुराना होगा, उसमें लेड जैसे खतरनाक एलीमेंट्स के होने का खतरा उतना ही होगा। अलावा इसके अपको इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि आपके घर पानी जिस सोर्स से आ रहा हो, उसकी पाइपलाइन भी बहुत पुरानी न हो। अगर ऐसा है तो पानी गरम कर के या फ़िल्टर कर के ही पियें।

5. पानी के श्रोत का रखें ध्यान

आपके लिए यह जानना जरूरी है कि आप जो पानी पी रहे हैं या खाना बनाने में इस्तेमाल कर रहे हैं, वो कहां से आ रहा है। अगर वो किसी सुरक्षित जगह से नहीं आ रहा जो साफ है तो फिल्टर्ड मिनरल वाटर का इस्तेमाल करें।

When there is a delay in periods, apart from pregnancy

PERIODS: किशोर अवस्था के मद्देनजर गर्भावस्था तक महिलाओं के जिंदगी में शारीरिक और मानसिक तौर पर बहुत कुछ चलता रहता है। पीरियड्स भी इन्हीं प्रक्रियाओं में से एक है। किसी को एक से ज्यादा पीरियड्स भी होते हैं तो किसी को 07, ये हर महिलाओं की उनकी शरीरिक बनावट की वजह से बदलते रहते हैं। कुछ महिलाओं के पीरियड्स अनियमित होते हैं। वहीं, कुछ को पीरियड्स जल्दी होने की समस्या से दो चार होना पड़ता है।

अगर एक बार पीरियड्स थोड़ा जल्दी हो जाएं तो यह चिंता की बात नहीं है लेकिन यह लगातार हो रहा है तो यह आपके लिए स्वास्थ्य को लेकर अलर्ट रहने का वक्त है। आपका पीरियड्स आपकी वर्तमान पीरियड्स के पहले दिन से शुरू होता है। इसकी समाप्ति अगले पीरियड्स के पहले दिन होती है। औसतन, एक चक्र 21 से 39 दिनों के बीच होता है। इसलिए आपके द्वारा ब्लीड किए जाने वाले दिनों की संख्या भी अलग-अलग होती है।

अगर आपकी पीरियड्स साइकिल या चक्र 21 दिनों की है, तो यह एक चिंताजनक बात है और आपको इस बदलाव को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये आपके शारीरिक स्वास्‍थ्‍य के बारे में बहुत कुछ बताता है।

यहां हैं जल्‍दी पीरियड्स आने के लिए 9 अहम वजह

1. प्रीमेनोपॉज़

जैसा कि नाम से पता चलता है, यह रजोनिवृत्ति से पहले के पीरियड्स हैं। आम तौर पर ये मध्य-चालीसवें या बाद के वर्षों में शुरू होता है। ज्यादातर मामलों में चार साल तक चलता है। इस समय के दौरान, हार्मोन के स्तर में भारी उतार-चढ़ाव देखा जाता है। जिससे हर महीने ओव्यूलेशन नहीं हो सकता। इससे अनियमित या पीरियड 18 दिन या 21 दिन पर भी हो सकते हैं।

2. इंटेंस एक्सरसाइज

आप सोच सकती हैं कि जिम में व्यायाम करना आपके शरीर की मदद कर रहा है। पर, हर चीज में संतुलन की जरूरत होती है। बहुत जोरदार व्यायाम आपके पीरियड्स को रोक सकता है। यह एक ऐसी स्थिति है, जो एथलीटों में सबसे अधिक देखी जाती है।

यहां तक ​​कि अगर पीरियड्स बंद नहीं होते हैं, तो यह जल्दी पीरियड्स होने का कारण बनता है। उचित ऊर्जा के बिना, आपका शरीर सामान्य तरीके से ओव्यूलेट करने के लिए पर्याप्त मात्रा में हार्मोन का उत्पादन नहीं कर पाएगा।

3. वजन में उतार-चढ़ाव

ज्यादातर केस में, आपके पीरियड में कोई भी बदलाव आपके वजन से जुड़ा होता है। चाहे, तेजी से वजन घट रहा हो या बढ़ रहा हो, आपके हार्मोन पर प्रभाव डाल सकता है। जब ऐसा होता है, तो आपके पीरियड्स प्रभावित हो जाते हैं। जिससे आपको समय से पहले ही माहवारी (Early periods) हो सकती है।

4. तनाव का स्तर आपके हार्मोन पर डाल सकता है प्रभाव

How can you take care of your wife or girlfriend during periods?

तनाव के बारे में बात किये बिना कोई भी सूची कैसे पूरी हो सकती है?आपके तनाव का स्तर आपके हार्मोन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। जिससे अनियमित पीरियड्स हो सकते हैं। कारण कोई भी हो, खुद को तनाव मुक्त करने के तरीके खोजें।

5. हार्मोनल बर्थ कंट्रोल

गर्भनिरोधक गोलियों में मौजूद हार्मोन, ओव्यूलेशन और आपके पीरियड्स पर सीधा प्रभाव डालते हैं। यदि आप नियमित रूप से गर्भनिरोधक गोलियां लेती हैं, तो आपकी अगले पीरियड का समय इस बात पर निर्भर करेगा कि आपके चक्र के दौरान आपने गोलियां लेना कब शुरू किया था।

इसके अलावा, अंतर्गर्भाशयी उपकरणों जैसे विकल्प भी मासिक धर्म चक्र अनियमितताओं का कारण बन सकते हैं, लेकिन केवल शुरुआती दो से तीन महीनों में।

6. पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम)

पीरियड्स जल्दी होने के लिए एक और कारण पीसीओएस या पॉलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम है, जो प्रत्येक 10 महिलाओं में 01 को प्रभावित करता है। असल में, यह बहुत सी महिलाओं में अनियंत्रित हो जाता है। जब तक कि वे बेबी प्‍लान नहीं करते। PCOS के कुछ सबसे सामान्य लक्षणों में अनियमित पीरियड्स, मिस्ड पीरियड्स, मुंहासे, वजन बढ़ना और शरीर पर अत्यधिक हेयर ग्रोथ शामिल हैं।

7. एंडोमेट्रियोसिस

यह मासिक धर्म विकार तब होता है जब ऊतक जो आपके गर्भाशय को लाइन करता है वह गर्भाशय के बाहर बढ़ने लगता है। इस स्थिति में, महिलाएं केवल अनियमित पीरियड्स से नहीं गुजरती हैं, बल्कि मासिक धर्म में गंभीर ऐंठन, पीठ के निचले हिस्से में दर्द और सेक्स के दौरान दर्द का अनुभव करती हैं।

8. अनियंत्रित मधुमेह

जब मधुमेह का समय पर निदान नहीं किया जाता है, तो रक्त शर्करा का स्तर सामान्य से बहुत अधिक होता है। साल 2011 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि टाइप 02 मधुमेह वाली महिलाओं में अनियमित पीरियड्स थे।

9. थायराइड की बीमारी

यह माना जाता है कि आठ में से एक महिला को अपने जीवनकाल में थायरॉयड की समस्या होगी। जब थायरॉयड ग्रंथि ठीक से काम नहीं करती है, तो आपका चयापचय और मासिक धर्म चक्र अनियंत्रित हो जाता है। ज्यादातर मामलों में, पीरियड्स सामान्य से काफी हल्के होते हैं और जल्दी आते हैं। अप्रत्याशित रूप से वजन बढ़ना या कम होना भी इसका एक कारण है।

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Excessive use of perfume for skin can cause big problems for you

सर्द मौसम में अक्सर लोग शरीर की दुर्गंध से निजात पाने को लेकर डियो और PERFUME का प्रयोग करने लगते हैं। लेकिन सोचे कि दुर्गंध दूर करने का दम भरने वाले ये प्रोडक्ट्स दिनभर तन पर लगाए रखने की वजह से किस तरह से आपके स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि इसे लगाने से दिनभर हम अच्छी फ्रेगरेंस को फील करते हैं। मगर बता दें कि इसका ज्यादा इस्तेमाल सिरदर्द, रैशेज, एलर्जी और कॉन्टैक्ट एक्जिमा समेत कई समस्याओं का कारण बनने लगता है। इसमें मौजूद रासायनिक तत्व शरीर को कई तरह से प्रभावित करने लगता है। आइये जानते हैं परफ्यूम से शरीर को होने वाले नुकसान के बारे में-

परफ्यूम का स्किन पर असर

रिपोर्ट के मुताबिक सुगंधित उत्पादों में थैलेट्स, एल्डीहाइड्स, पैराबेंस और एल्युमीनियम समेत कई कंपाउड पाए जाते हैं। इसके कारण स्किन एलर्जी, स्तन कैंसर, रिप्रोडक्टिव डिसऑर्डर, माइग्रेन और रेस्पीरेटरी समस्याओं का खतरा बना रहता है। स्किन केयर उत्पादों में मौजूद खुशबू में गेरानियोल, यूजेनॉल, सिट्रोनेलोल, फथलेट्स जैसे एलर्जेंस होते हैं। इनसे त्वचा की एलर्जी, हाइव्स, खुजली, रैशेज़, छींक और पिगमेंटेशन की समस्या बनी रहती है।

एक्सपर्ट बताती हैं कि परफ्यूम का इस्तेमाल भले ही खुशबू के लिए किया जाता है लेकिन इसमें मौजूद कुछ केमिकल्स आपकी त्वचा और सेहत पर हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं। एक्सपर्ट के मुताबिक परफ्यूम में इस्तेमाल होने वाले सिंथेटिक सुगंधित तत्व और प्रिज़र्वेटिव्स से एलर्जी, जलन और रैशेज़ जैसी समस्याएं हो सकती हैं। कई बार ये समस्याएं तुरंत दिखाई नहीं देतीं पर लंबे समय तक परफ्यूम के इस्तेमाल से त्वचा की संवेदनशीलता बढ़ सकती है।

परफ्यूम से स्किन को होने वाले नुकसान

1. रैशेज़ की समस्या

परफ्यूम में मौजूद केमिकल्स से त्वचा पर खुजली, लाल चकत्ते और सूजन की समस्या बढ़ने लगती है। इसमें मौजूद केमिकल्स से त्वचा की नमी कम होने लगती है और स्किन ग्लो में बदलाव आने लगता है। इससे स्किन डलनेस और इरिटेशन बढ़ जाती है। साथ ही त्वचा पर सूजन की समस्या भी बढ़ने लगती है ।

2. त्वचा का सूखापन

सर्द मौसम में अधिक मात्रा में पानी न पीना डिहाइड्रेशन को बढ़ाता है। लेकिन साथ ही परफ्यूम का अत्यधिक इस्तेमाल भी इस समस्या का कारण सिद्ध हो सकता है। दरअसल, परफ्यूम अल्कोहल बेस्ड होते हैं, जिससे त्वचा की नमी छिन जाती है और रूखापन बढ़ने लगता हैं। साथ ही त्वचा पर दाने नज़र आने लगते हैं।

3. एलर्जी का खतरा

इसके लगातार इस्तेमाल से आंखों में जलन, छींकना और खुजनी बढ़ने लगती है। दरअसल, परफ्यूम में इथेनॉल की उच्च मात्रा पाई जाती है, जो हर उम्र के लोगों के लिए खतरनाक साबित होती है। एनवायरमेंटल वर्किंग ग्रुप के रिसर्च के मुताबिक परफ्यूम में मौजूद 34 फीसदी इंग्रीडिएंटस में विषाक्तता यानी टॉक्सीसिटी पाई जाती है।

4. सन सेंसीटिविटी

सुबह परफ्यूम लगाने के बाद धूप में जाने से त्वचा में जलन और पिगमेंटेशन का भी खतरा बना रहता है। इससे स्किन पर यूवी रेज़ का प्रभाव नज़र आने लगता और सन टैनिंग की भी समस्या बनी रहती है। दरअसल, इसके इस्तेमाल से स्किन इरीटेशन, डिसकलरेशन और जलन की समस्या बनी रहती है और इस स्थिति को फोटो टॉक्सीसिटी भी कहा जाता है। वे लोग जिनकी त्वचा संवेदनशील है उन्हें इससे दूर रहने की जरूरत है।

5. सांस संबधी समस्याओं का जोखिम

परफ्यूम की तेज सुगंध कुछ लोगों में सांस की समस्या या सिरदर्द का कारण बनने लगती है। एक्सपर्ट के मुताबिक परफ्यूम का प्रयोग सीमित मात्रा में करें और त्वचा पर सीधे लगाने से बचें। अगर आपको एलर्जी की समस्या है, तो बिना खुशबू वाले उत्पादों का चयन करें। हेल्थ डायरेक्ट की रिर्पोट के अलुसार लगभग तीन में से हर एक व्यक्ति सुगंधित उत्पादों के संपर्क में आने पर स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त महसूस होता है। इससे अस्थमा अटैक, हे फीवर, सिरदर्द, माइग्रेन, चक्कर आना और सांस लेने में तकलीफ और कंजेशन बढ़ने लगती हैं।

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