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Category Archives: Health

Mental Health: Parents yelling at children has a serious impact on their minds

Mental Health:

कई पैरेंट्स छोटी-मोटी बात पर आपस में चिल्लाने लगते हैं या वह बच्चों पर गुस्सा करने लगते हैं, जो सभी को आम बात लगती है। दिनभर की थकान, काम का टेंशन और बच्चों की शरारतें सब मिलकर कभी-कभी पैरेंट्स को चिल्लाने पर मजबूर कर देते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि लगातार गुस्सा या चिल्लाने से बच्चों के दिमाग और भावनाओं पर गंभीर असर पड़ता है?

शायद आपको तुरंत इसका पता ना चले लेकिन घर पर बच्चों के साथ होने वाली कसकर चिल्लाने से छोटे व बड़े दोनों उम्र के बच्चों के दिमाग पर असर डालती है। साइकोलॉजिस्ट के मुताबिक गुस्से में चिल्लाने पर बच्चे का मस्तिष्क डर और तनाव की स्थिति में चला जाता है। उनके शरीर में कॉर्टिसोल नामक तनाव हार्मोन बढ़ जाता है। लंबे वक्त तक यह हार्मोन ज्यादा रहने से बच्चे में चिंता, अवसाद और सीखने की क्षमता में कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

बच्चों पर उनकी उम्र के हिसाब से प्रभाव

छोटे बच्चे का मस्तिष्क अभी विकसित हो रहा होता है, इसलिए चिल्लाना उन्हें बहुत डराता है और वे सहज रूप से सीख नहीं पाते। वहीं, किशोरावस्था में लगातार डांट और चिल्लाना उनके आत्म-सम्मान, कॉन्फिडेंस और सामाजिक व्यवहार को डिस्टर्ब कर सकता है।

चिल्लाने की जगह ये करें

Mental Health: Parents yelling at children has a serious impact on their minds

  • संयम बनाएं- गुस्से में फौरन चिल्लाने की बजाय पहले खुद शांत होना जरूरी।
  • सकारात्मक भाषा अपनाएं- बच्चों को डांटने की बजाय समझाने की कोशिश करें।
  • मिसाल के तौर पर- बच्चा होमवर्क नहीं करता? चिल्लाने की बजाय उसके साथ बैठकर कारण समझें और हल खोंजे।
  • प्रोत्साहन दें- छोटी छोटी अच्छी आदतों और प्रयासों को सराहें। इससे बच्चा ज्यादा आत्मविश्वासी बनता है।

माता-पिता के लिए खास टिप्स

खुद के तनाव को पहचाने- अगर आप तनाव में हैं, तो गुस्से को नियंत्रित करना मुश्किल होता है। शांत होने के तरीके अपनाएं-गहरी सांस लें, ध्यान करें, थोड़ी शारीरिक गतिविधि करें या थोड़ा समय अकेले बिताएं।

संवाद बनाएं, आदेश नहीं- बच्चों से बात करें, उन्हें समझाएं कि गलती सुधारने का मौका है।

चिल्लाने के नुकसान

  1. बच्चों में डर और असुरक्षा की भावना बढ़ती है।
  2. उनकी सोचने और सीखने की क्षमता पर असर पड़ता है।
  3. लंबे वक्त में भावनात्मक समस्याएं और आत्मविश्वास में कमी आ सकती है।
  4. सामाजिक जीवन और रिश्तों में भी असर दिखाई दे सकता है।

सबसे अहम बात

Mental Health: Parents yelling at children has a serious impact on their minds

डॉक्टर के अनुसार बच्चों के लिए प्यार और सुरक्षा की भावना सबसे अहम है। जब हम गुस्से में चिल्लाते हैं तो वे सिर्फ डर महसूस करते हैं और सीखने या सोचने की जगह बचने पर ध्यान देते हैं।
इसलिए हर बार गुस्सा आने पर एक गहरी सांस लें और बच्चों के साथ संवेदनशील, प्यार सा और सकारात्मक संवाद करें। चिल्लाना तात्कालिक राहत दे सकता है पर लंबे समय में यह बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास को प्रभावित करता है। संयम, समझदारी और मोहब्बत से बच्चों को समझाना उन्हें हेल्दी, खुशहाल और आत्मविश्वासी बनाता है।

हाइलाइट्स-

आपका बच्चों के साथ कैसा व्यावहार करते हैं,इसका बच्चे के दिमाग पर सीधा असर पड़ता है। चिल्लाने से बच्चे के मन में डर पैदा हो जाता है।
बच्चों पर चिल्लाने के बजाय प्यार से बात करें और कूल होकर समझाएं।

फोटो सौजन्य- गूगल

Heating food in a microwave can lead to serious diseases like cancer

Microwave में खाना गर्म करना सेहत के लिए नुकसानदायक

आज के टेक्नोलॉजी के इस युग में घरेलू जिंदगी में बहुत सारी सुविधाएं हो गई हैं। अब हर काम के लिए मशीनें हाजिर हैं। ऐसी ही एक मशीन है माइक्रोवेव, जिसे खाने को गर्म रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आजकल ज्यादातर घरों में माइक्रोवेव पाया जाता है पर क्या आप जानते हैं कि माइक्रोवेव में खाना गर्म करना हेल्थ के लिए भारी नुकसानदेह हो सकता है। बता दें कि माइक्रोवेव इलेक्ट्रिक होने के कारण इससे रेडिएशन निकलती है, जोकि खाने को रेडियोएक्टिव बना सकता है। माइक्रोवेव ऐसे में गर्म किए गए खाने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां होने की आशंका बनी रहती है।

माइक्रोवेव में खाना गर्म करते वक्त कभी भी ऐसी गलती ना करें

Heating food in a microwave can lead to serious diseases like cancer

वैसे माइक्रोवेव में खाना गर्म किया जा सकता है लेकिन सावधानी भी रखनी होगी। खाना सेहत को नुकसान ना पहुंचाए। रिसर्च में यह साफ हुआ है कि माइक्रोवेव से रेडिएशन केवल खाना गर्म करने को लेकर निकलता है। हालांकि, कुछ गलतियां करने से फिर भी बचना चाहिए।

माइक्रोवेव के बर्तन ही इस्तेमाल करें

अगर आप चाहते हैं कि माइक्रोवेल में खाना गर्म करने के बाद भी वह सेहत को नुकसान न पहुंचाए, तो इसके लिए माइक्रोवेव में उन बर्तनों का ही इस्तेमाल करें, तो इस मशीन के लिए बने होते हैं। प्लास्टिक के बर्तन गर्म होने पर हानिकारक केमिकल छोड़ सकते हैं। ऐसे में यह सेहत के लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है।

नॉर्मल टेंपरेचर पर ही गर्म करें खाना

ऐसा तो सभी जानते हैं कि खाने को ज्यादा पकाने से पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। ऐसे में यदि सही तापमान और सही समय तक खाने को गर्म किया जाए, तो इससे खाने को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता है। पौष्टिकता के लिहाज से यह सुरक्षित रहता है।

माइक्रोवेव में ज्यादा टाइम सेट कर खाना न करें गर्म

Heating food in a microwave can lead to serious diseases like cancer

माइक्रोवेव में खाने को ज्यादा समय तक भी गर्म नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह न सिर्फ खाने के टेस्ट को खराब करता है, बल्कि ओवन को भी खराब कर सकता है। दरअसल, ज्यादा देर तक खाना गर्म करने पर उसके पोषक तत्व भी खत्म हो जाते हैं।

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फॉयल पेपर में गर्म न करें खाना

बता दें कि ओवन में भूलकर भी एल्युमीनियन फॉयल पेपर नहीं रखना चाहिए। असल में, इससे माइक्रोवेव को तो नुकसान पहुंचता ही है, साथ ही सेहत के लिए भी यह सुरक्षित नहीं है। ऐसे में अगर आप ओवन में खाना गर्म कर रहे हैं, तो सिरेमिक या फिर कांच के बर्तनों का इस्तेमाल ही करें। माइक्रोवेव का सही से इस्तेमाल कर अपना और अपनों का ख्याल रखें।

फोटो सौजन्य- गूगल

Mental Health: Excessive stress has a direct connection with your memory

Mental Health: आजकल हर किसी की जिंदगी में बस भागदौड़ है और किसी ना किसी बात को लेकर तनाव है। लगातार टेंशन और स्ट्रेस में रहने के कारण कई तरह की समस्याएं हो सकती है। किसी को ऑफिस का स्ट्रेस है तो किसी को घर का, हर इन्सान किसी ना किसी बात से तनावग्रस्त है। तनाव की वजह से सिर्फ मानसिक समस्याएं ही नहीं, बल्कि कई तरह की फिजिकल समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। बता दें कि लंबे समय तक स्ट्रेस में रहना आपके दिमाग को प्रभावित कर सकता है।

डॉक्टर का कहना है कि जब आप टेंशन लेते हैं तो दिमाग से कॉर्टिसोल नाम का हार्मोन निकलता है जिसकी वजह से आपको अच्छा फील नहीं होता है। कभी कभी ऐसा होना नार्मल है लेकिन जब आप लंबे वक्त तक तनाव में रहते हैं तो दिमाग पर इसका विपरीत असर पड़ने लगता है। इसकी वजह से आपकी याददाश्त कमजोर होने लगती है और आप बातें भूलने लगते हैं।

तनाव दिमाग को कैसे प्रभावित करता है?

Mental Health: Excessive stress has a direct connection with your memory

  • ज्यादा तनाव लेने से दिमाग का एक हिस्सा, हिप्पोकैम्पस, सिकुड़ जाता है। यह दिमाग का वह भाग है जहां मेमोरी होती है और जो सीखने से जुड़ा हुआ है। ज़्यादा टेंशन लेने से हमारा दिमाग़ सिर्फ थकता नहीं है, बल्कि इससे हमारी सोचने की क्षमता में भी गिरावट आ जाती है। हम अपने अंदर की क्रिएटिविटी खो देते हैं, हमें फैसले लेने में घबराहट होती है।
  • ज्यादा तनाव सेरोटोनिन और डोपामाइन के स्तर को, बिगाड़ देता है, जो दिमाग के लिए जरूरी है। इस कारण, चिंता, अवसाद और अनिद्रा की परेशानी हो सकती है।
  • ज्यादा तनाव के कारण कोर्टिसोल का स्तर बढ़ने से दिमाग और शरीर की सूजन को बढ़ जाती है, जो समय के साथ बढ़ सकती है। अगर इसका इलाज न किया जाए, तो अल्जाइमर या पार्किंसंस जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
  • ज्यादा तनाव से प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स प्रभावित होता है। इसकी वजह से व्यक्ति चिड़चिड़ा, मूड स्विंग्स, अकेलापन और ओवर सेंसिटिविटी महसूस करता है।

दिमाग को तनाव से ऐसे बचाएं- 

  1. टाइम मैनेजमेंट करें – कामों की लिस्ट बनाकर प्रायोरिटी सेट करें।
  2. बॉडी को मूव करें – रोज़ाना 20–30 मिनट वॉक या एक्सरसाइज स्ट्रेस को घटाती है।
  3. नींद जरूरी है- रात में 7-8 घंटे की अच्छी नींद जरूर लें।
  4. सांस पर ध्यान दें – गहरी सांस लेने से दिमाग तुरंत रिलैक्स होता है।
  5. डिजिटल डिटॉक्स – थोड़ी देर मोबाइल और सोशल मीडिया से दूर रहें।
  6. पॉजिटिव एक्टिविटी – म्यूजिक, पढ़ना, मेडिटेशन या हॉबी टेंशन घटाते हैं।
  7. लोगों से बात करें – अपनी फीलिंग्स शेयर करने से बोझ हल्का होता है।
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Women in 40: अनुभव और थकान से भरी एक ऐसी उम्र जब आप बहुत कुछ समझ चुकी होती हैं। लेकिन करने को अब भी बहुत कुछ शेष होता है। घर और बाहर की दुनिया की कई चुनौतियों को आप ने पार कर लिया है, मगर कामयाबी के कई सितारे अभी आपके कंधों पर सजने बाकी होते हैं। इस उम्र तक आते अधिकतर महिलाएं अपनी सेहत को सबसे निचले लेवल पर ला चुकी होती है। जबकि यह वही उम्र है जब आपको अपनी सेहत का सबसे अधिक ख्याल रखने की आवश्यकता होती है।

वजन, उम्र और पोजिशन कुछ ऐसी हो जाती है कि शारीरिक रूप से एक्टिव रहने का वक्त भी कम होता चला जाता है। जिसके कारण आप अपनी उम्र के पुरषों से ज्यादा बीमारियों के गिरफ्त में होते हो। अगर इन जोखिमों से बचकर, सफलता के साथ आगे बढ़ना है तो आपको खुद को शारीरिक रूप से सक्रिय रखने पर ध्यान देना होगा।

एक सीनियर साइकोलॉजिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट के मुताबिक देखने में भले ही यह सामान्य लगे लेकिन यह उम्र आपके मन के स्तर पर बहुत सारे बदलाव लेकर आती है और यह सब हॉर्मोन में हो रहे बदलाव की वजह से होता है। जो आपकी स्किन, पीरियड, मूड और वेट सभी कुछ प्रभावित करते हैं। इसलिए इस समय आपको अपना और ज्यादा ख्याल रखना जरूरी होता है।

महिलाओं में 40 की उम्र में होने वाली सबसे आम समस्याएं

1. हॉर्मोनल असंतुलन

ये उम्र उन हॉर्मोन में बदलाव की उम्र है, जो अभी तक आपके रिप्रोडक्टिव हेल्थ और बाहरी खूबसूरती के लिए जिम्मेदार थे। अनियमित माहवारी और त्वचा पर उग आने वाले बाल बताते हैं कि आपके हॉर्मोन असंतुलित हो रहे हैं। इस समय एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हॉर्मोन में गिरावट आने लगती है।

2. हेयर फॉल और स्किन में बदलाव

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एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन आपकी प्रजनन क्षमता के साथ-साथ आपके लुक को भी प्रभावित करते हैं। इनमें बाल पहले से हल्के और पतले होने लगते हैं, जबकि त्वचा में लोच और कसाव की कमी दिखाई देने लगती है। बालों का सफेद होना और त्वचा पर झुर्रियां उम्र के इसी पड़ाव पर नजर आने लगती है।

3. पाचन संबंधी समस्याएं

40 की उम्र की महिलाओं का पाचन तत्र पहले से धीमा हो जाता है, जिससे उन्हें पाचन संबंधी समस्याएं बहुत ज्यादा परेशान करने लगती हैं। अक्सर आपने महसूस किया होगा कि पहले आप जिन चीजों को बड़े दिलचस्पी के साथ खाती थीं, अब वही आपके पेट पर बोझ की तरह रहती है। अगर परहेज न किया जाए, तो गैस, एसिडिटी और बदहजमी जैसी समस्याएं इस समय ज्यादा होने लगती हैं।

4. वजन में इजाफा होना

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मेटाबॉलिज्म धीमा होने और हॉर्मोन असंतुलन होने की वजह से महिलाओं को इस उम्र में पेट के पास चर्बी बढ़ने लगती है। इस समय वजन बढ़ना जितना आसान होता है, उसे नियंत्रित करना उतना ही मुश्किल हो जाता है।

5. कमजोर होने लगती हैं हड्डियां

हालांकि 30 के बाद से ही महिलाओं की बोन डेंसिटी कम होने लगती है, इसलिए उन्हें केल्शियम पर ध्यान देने की सलाह दी जाती है। मगर 40 की उम्र पार करते एस्ट्रोजन की कमी के कारण ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है। इसलिए केल्शियम के साथ-साथ आपको विटामिन-D का लेवल भी चेक करते रहने की जरूरत होती है।

6 मूड स्विंग्स

हॉर्मोन सिर्फ आपकी प्रजनन क्षमता को ही नहीं, बल्कि आपके मूड को भी प्रभावित करते हैं। हॉर्मोनल असंतुलन के कारण इस समय आपको ज्यादा गुस्सा आ सकता है। ज्यादातर महिलाओं के परिवार में यह शिकायत आती है कि वे बहुत चिड़चिड़ी और गुस्सैल हो गई हैं। यह पेरिमेनोपॉज का भी एक संकेत हो सकता है। जब आपको हॉट फ्लैश और मूड स्विंग्स का सामना करना पड़ता है।

इस उम्र में कैसे रहा जाए फिट और हेल्दी

डॉक्टर के अनुसार 40 की उम्र में सक्रिय रहने के लिए तनाव को संतुलित करना, अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखना और सकारात्मक जीवनशैली अपनाने का दृष्टिकोण रखना आवश्यक है। तनाव ऊर्जा को समाप्त करने वाले प्रमुख कारणों में से एक है, इसलिए इसे प्रभावी ढंग से प्रबंधित रहना बेहद जरूरी है।

1. टेंशन देने वाले कारकों की पहचान करें

सबसे पहले, अपने जीवन में मौजूद तनाव के कारणों की पहचान करें, यानी यह जानें कि तनाव व्यवसायिक, व्यक्तिगत, वित्तीय या सामाजिक जीवन से आ रहा है। तनाव प्रबंधन पर सक्रिय रूप से काम करें और जरूरत पड़ने पर किसी जानकार से मार्गदर्शन लें। जितनी जल्दी कोई व्यक्ति अपने तनाव को पहचानकर किसी विशेषज्ञ से सलाह लेता है, उतने ही ज्यादा अवसर होते हैं कि वह अपने 40 के दशक में सक्रिय और ऊर्जावान रह सके। इसके साथ ही, उचित नींद लेना भी जरूरी है। अच्छी गुणवत्ता वाली नींद हमारे शरीर और दिमाग को ऊर्जावान बनाने के लिए जरूरी होती है।

2. खूब सारा पानी पीएं

हाइड्रेशन भी एक महत्वपूर्ण कारक है। पर्याप्त मात्रा में तरल पेय पीना और आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार लेना बहुत जरूरी है। इसके अतिरिक्त, संगीत सुनना, किताबें पढ़ना या रचनात्मक गतिविधियों में शामिल होना मन और संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है।

3. चाय-कॉफी कम कर दें

हो सकता है कि सुबह की पहली कॉफी या चाय आपको दिन के लिए तैयार करती हो, मगर यह आपको डिहाइड्रेट भी करती है। इसलिए इन्हें कम करने और धीरे-धीरे छोड़ने की ओर ध्यान दें। साथ ही, निकोटीन, शराब या किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों से दूर रहना अत्यंत आवश्यक है।

4. हर रोज़ एक्सरसाइज करें

यह आपके लिए सबसे जरूरी एक्टिविटी है। डांस, जुंबा, एरोबिक्स, साइकलिंग, कार्डियो जो भी आपको पसंद है, उसकी मदद से खुद को एक्टिव रखें। हर दिन कम से कम 45 मिनट और सप्ताह में पांच दिन आपका फिजिकल एक्सरसाइज करना बहुत जरूरी है। इससे मेटाबॉलिज्म ठीक रहता है, वजन नियंत्रित रहता है और आपका मूड भी अच्छा रहता है और आप कम बीमार पड़ती हैं।

डॉक्टर का कहना है कि साल में कम से कम एक बार संपूर्ण स्वास्थ्य जांच कराना चाहिए। ये सुझाव किसी भी व्यक्ति को उनके 40 के दशक में सक्रिय और ऊर्जावान बनाए रखने में मदद पहुंचा सकता है।

फोटो सौजन्य- गूगल

How can you take care of your wife or girlfriend during periods?

Period के समय महिलाओं के शरीर में कई तरह के बदलाव देखने के मिलते हैं। यूट्रस कॉन्ट्रैक्ट के कारण जहां जांघों और कमर में दर्द बना रहता है। वहीं, हार्मोनल बदलाव मूड स्विंग की समस्या को बढ़ा देते हैं। ऐसे में अपने खानपान का ध्यान रखने के अलावा शरीर को गर्माहट प्रदान करने के लिए चाय का सेवन करती हैं। हालांकि इससे मांसपेशियों में उठने वाले दर्द कम होने लगता है। लेकिन कई बार चाय का सेवन हेल्थ को नुकसान पहुंचा सकता है। आइये जानते हैं पीरियड के दौरान चाय पीना हेल्थ के लिए कितना फायदेमंद है?

डायटीशियन के अनुसार पीरियड साइकल के दौरान महिलाओं को चाय का सेवन करने से पेट के निचले हिस्से में होने वाले दर्द से राहत मि्यालती है। असल में शरीर का तापमान को बैलेंस रखने वाली चाय से मसल्स कान्ट्रेक्शन को कम किया जा सकता है। मगर ज्यादा मात्रा में इसका सेवन करने से पेट में एसिडिटी, ब्लोटिंग और अपच का सामना करना पड़ता है। अलावा इसके ड्यूरिटिक प्रभाव होने के कारण फ्रीक्वेंट यूरिनेशन का भी सामना करना पड़ता है।

ज्यादा चाय किस तरह हेल्थ को पहुंचाता है नुकसान

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अध्ययन के मुताबिक पीरियड के दौरान चाय पीने से कैटेचिन और टैनिक एसिड की मात्रा शरीर में बढ़ जाती है जो आयरन के एबजॉर्बशन को कम करता है। इस तरह आयरन के अवशोषण में रुकावट डालने का कार्य करते हैं। ऐसे में ज्यादा चाय पीने से बचना चाहिए।

पीरियड में चाय पीने से क्या होता है-

1. यूरीन के लिए बार बार जाना

चाय में कैफीन की उच्च मात्रा पाई जाती है, जिससे उसका प्रभाव डयूरिटक होने लगता है और बॉडी में वॉटर एक्सक्रीशन की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसके कारण फ्रीक्वेंट यूरिनेशन का सामना करना पड़ता है, जो पीरियड के दौरान परेशानी का सबब बनती है।

2. नींद में कमी आना

When there is a delay in periods, apart from pregnancy

चाय का सेवन करने से ब्रेन एक्टिव हो जाता है, जिससे अनिद्रा की समस्या बढ़ने लगती है। पीरियड साइकल के दौरान महिलाओं को क्रैम्प की शिकायत बढ़ जाती है। ऐसे में शरीर को आराम पहुंचाने के लिए हेल्दी नैप्स और भरपूर नींद की जरूरत होती है। ज्यादा चाय का सेवन नींद में बाधा उत्पन्न करने लगता है।

3. ब्लोटिंग को बढ़ाती है चाय

अधिक मात्रा में चाय का सेवन करने से गट मोटिलिटी का सामना करना पड़ता है। इसके कारण पेट फूलने लगता है और असुविधा बढ़ने लगती है। इससे वॉटर रिटेंशन का भी सामना करना पड़ता है। पीरियड के दौरान चाय पीने से ब्लोटिंग और अपच का सामना करना पड़ता है।

4. पीरियड हो सकते हैं हैवी

Say goodbye to heavy bleeding by adopting these tips during periods

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक कैफीन से शरीर में एस्ट्रोजन का उत्पादन बढ़ने लगता है। इससे हार्मोन असंतुलन बढ़ने लगता है। इससे प्रीमेन्स्ट्रुअल सिंड्रोम, हैवी पीरियड और ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ने लगता है। दरअसल, कैफीन एरोमाटेज एंजाइम को बाधित करने लगता है, जो एंड्रोजन को एस्ट्रोजन में परिवर्तित करने का काम करता है।

5. शरीर में पानी की कमी

ब्लीडिंग के कारण शरीर में फ्लूइड का लेवल कम होने लगता है। ऐसे में चाय का सेवन करने से यूरिनेशन बढ़ जाता है। इसके वजह से पानी की कमी शरीर में बढ़ने लगती है, जिसके कारण घबराहट, सिरदर्द और थकान का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में चाय को पानी या फिर लेमन व ग्रीन टी से रिप्लेस कर सकते हैं।

Prostate Cancer: 8 important questions related to prostate cancer in men

Prostate Cancer: पुरुषों के पेट में प्रोस्टेट एक छोटी ग्लैंड मात्र है जिसका आकार एक अखरोट जैसा होता है यह ग्लैंड सिर्फ पुरुषों में पाई जाती है। प्रोस्टेट कैंसर एक तरह का कैंसर है जो प्रोस्टेट ग्लैंड में होता है। मालूम हो कि यह कैंसर तब शुरू होता है जब प्रोस्टेट ग्रंथि में कोशिकाएं अनियंत्रित होने लगती है। एक अध्ययन के अनुसार, प्रोस्टेट ग्लैंड से बढ़कर शरीर के अन्य भागों में जाने लगता है तब यूरीन संबंधी परेशानियां नजर आने लगती है।

60 फीसदी मामले इस बीमारी के 65 वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों में होते हैं। हर 14 लोगों में से एक बुजुर्ग को इस बीमारी से दोचार होना पड़ता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर, कैंसर से होने वाली मौतों का दूसरा मुख्य कारण है। जबकि प्रोस्टेट से भारत भी बचा हुआ नहीं है। यही वजह है कि इस बीमारी से संबंधित अक्सर लोगों के दिमाग में काफी प्रश्न होते हैं, हम आपको ऐसे ही कुछ सवालों के बारे में बताएंगे-

1. क्या है प्रोस्टेट कैंसर?

प्रोस्टेट कैंसर एक तरह का कैंसर है जो पुरुषों की प्रोस्टेट ग्लैंड में उत्पन्न होता है। यह छोटी सी ग्लैंड अखरोट के आकार का होता है पर बुजुर्ग पुरुषों में यह बहुत बड़ा हो सकता है। प्रोस्टेट कैंसर धीरे-धीरे बढ़ता है। हालांकि, कई प्रोस्टेट कैंसर अधिक आक्रामक होते हैं और प्रोस्टेट ग्लैंड के बाहर फैल सकते हैं, जोकि घातक हो सकता है।

2. प्रोस्टेट कैंसर के कारण ?

Prostate Cancer: 8 important questions related to prostate cancer in men

प्रोस्टेट कैंसर के लिए बढ़ती उम्र एक प्रमुख वजह होता है। भारत में, व्यक्ति की आयु 50 वर्ष होने के बाद ये बीमारी विकसित होने का जोखिम तेज़ी से बढ़ने लग जाता है। अलावा इसके अन्य जोखिम वाले कारणों में बहुत अधिक धूम्रपान करने की आदत, खराब खान-पान और ओबिसिटी है।

3. कैसे फैलता है प्रोस्टेट कैंसर?

प्रोस्टेट कैंसर के फैलने के तेज़ी के ऊपर इसको 2 मूल प्रकार में रखा गया है-

  • एग्रेसिव (Aggressive) या आक्रामक: ये बहुत तेजी से बढ़ता है।
  • नॉन-एग्रेसिव (non-aggressive): ये धीमी गति से बढ़ता है।

4. कैंसर के लक्षण ?

प्रोस्टेट कैंसर के ये लक्षण हो सकते हैं: पेशाब करने में परेशानी, पेशाब करते वक्त दर्द या जलन होना, हाई ब्लड प्रेशर, पेशाब में खून, एक बार में कम या ज्यादा बार जाना।

5. प्रोस्टेट कैंसर के स्क्रीनिंग टेस्ट क्या होते हैं?

प्रोस्टेट कैंसर के स्क्रीनिंग के लिए प्रोस्टेट-स्पेसिफिक एंटीजन (PSA) टेस्ट और डिजिटल रेक्टल एग्जाम (DRE) की टेस्ट की जाती है।

6. प्रोस्टेट कैंसर को रोका जा सकता है?

प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को कम करने के लिए आपको स्वस्थ और पौष्टिक आहार का सेवन करना चाहिए, इसमें टमाटर, फूलगोभी, हरी पत्तेदार सब्जियां, ओमेगा -3 फैटी एसिड (फैट वाली मछलियां और नट्स) और सोया से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करना चाहिए।

7. किस तरह की लाइफस्टाइल अपनाकर प्रोस्टेट कैंसर से बचा जा सकते है?

लाइफस्टाइल में स्वस्थ रूप से कुछ परिवर्तन करके जैसे वजन कम करना, स्वस्थ आहार लेना, नियमित एक्सरसाइज करना, एक्टिव रहना, धूप से बचना और तंबाकू और शराब का सेवन कम करने जैसे उपायों से प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को कम करने में मदद हो सकती हैं।

8. प्रोस्टेट कैंसर का इलाज दर्दनाक होता है?

प्रोस्टेट कैंसर की पहचान अगर शुरुआत में हो जाती है तो इसके प्रबंधन में सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती। इसका उपचार रेडियो थेरेपी और कीमो से की जाती है। इसलिए इसके इलाज में कोई दर्द नहीं होता।

फोटो सौजन्य- गूगल

Lose Weight: Now you don't need to sweat to lose weight

Lose Weight: वजन कम करना महज एक्सरसाइज और डाइट का मामला भर नहीं है बल्कि इसका असल संबंध आपके पाचन तंत्र से भी होता है। गट हेल्थ विशेषज्ञ का मानना है कि अगर आप अपने पाचन तंत्र का ध्यान रखेंगे तो फैट तेजी से बर्न कर पाएंगे। गट हेल्थ का मतलब हमारे पाचन तंत्र, खासकर आंतों का सही तरीके से काम करना। बता दें कि हमारे गट में ट्रिलियन्स की संख्या में गुड और बैड बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जिन्हें मिलाकर गट माइक्रोबायोम कहा जाता है। जब इन बैक्टीरिया का संतुलन सही रहता है तो पाचन, इम्यून सिस्टम, मेटाबॉलिज्म और मानसिक स्वास्थ्य भी फिट रहता है। खराब गट के कारण गैस, सूजन, कब्ज, स्किन की समस्या और वजन बढ़ने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। आइये जानते हैं वो रोजाना के हैबिट्स जो आपको हेल्दी गट और फैट लॉस में मददगार साबित होगी।

फाइबर फुड्स से करें दिन की शुरुआत

If the liver is happy then your health will also smile

सुबह के नाश्ते में फाइबर युक्त चीजें जैसे ओट्स, चिया सीड्स या ताजे फल शामिल करें। ये न सिर्फ लंबे वक्त पेट भरा रखते हैं, बल्कि गट में अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ावा देकर पाचन को सुधारते हैं और मेटाबॉलिज्म को सक्रिय बनाते हैं, जिससे फैट तेजी से बर्न होता है। अगर आप वेट कंट्रोल रखना चाहते हैं, तो अपनी डाइट में फाइबर फूड्स को ब्रेकफास्ट से ही शामिल करने की आदत डाल लें। ऐसा करना आपकी पाचन क्रिया को भी हेल्दी बनाए रखने में मदद करेगा।

प्रोबायोटिक फूड

आपको अपनी खाने में प्रोबायोटिक्स शामिल करने की जरूरत है। दही, छाछ, अचार जैसे फूड्स प्रोबायोटिक्स से भरपूर होते हैं, जो गट बैलेंस को सुधारते हैं। ये फूड्स पेट की सूजन कम करते हैं और फैट स्टोरेज को रोकते हैं। शरीर के बढ़ते वजन को कंट्रोल करने के लिए भी अपनी डाइट में प्रोबायोटिक्स से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करना जरूरी है।

कम से कम 30 मिनट खुद को रखें एक्टिव

Never forget to warm up before going for a morning walk

हर दिन चलना, योग करना या हल्का कार्डियो करना गट मूवमेंट को बेहतर बनाता है। इससे पाचन क्रिया तेज होती है, शरीर में सूजन कम होती है और मेटाबॉलिज्म एक्टिव रहता है। नियमित फिजिकल एक्टिविटी फैट बर्निंग प्रोसेस को तेज करने में सहायक होती है और ऊर्जा भी बढ़ाती है। ऐसा सिर्फ वजन कम करने के लिए ही नहीं बल्कि आपके अंदरूनी स्वास्थ्य को सही बनाए रखने के लिए भी बेहद जरूरी है।

मीठे और प्रोसेस्ड फूड से रहें दूर

शुगर और जंक फूड्स का ज्यादा सेवन गट में बैड बैक्टीरिया को बढ़ाता है, जिससे गट बैलेंस बिगड़ जाता है। इससे सूजन, गैस, कब्ज जैसी समस्याएं होती हैं और मेटाबॉलिज्म धीमा पड़ता है। नतीजतन, फैट बर्न करना मुश्किल हो जाता है और वजन घटाने की प्रक्रिया रुक जाती है। साथ ही बाहर के प्रोसेस्ड फूड्स व ज्यादा चीनी वाले फूड्स स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य खई बीमारियों की वजह भी बन सकते हैं।

पर्याप्त नींद के फायदे

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नींद की कमी और ज्यादा तनाव गट हेल्थ को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे पाचन और फैट बर्निंग प्रोसेस धीमी हो जाती है। डेली 7-8 घंटे की गहरी नींद और मेडिटेशन जैसी तकनीकों से हार्मोन बैलेंस रहता है, मेटाबॉलिज्म सुधरता है और वजन घटाना बेहद आसान होता है।

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Attractive Breast: किस लड़की की चाहत नहीं होती- सुडौल और आकर्षक ब्रेस्ट। कई लड़कियों को ब्रेस्ट का मनचाहा आकार नेचुरली मिल जाता है, पर कुछ लड़कियों को ब्रेस्ट का मनचाहा आकार नहीं मिल पाता है। ब्रेस्ट का छोटा होने के पीछे कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। खराब खानपान, शरीर में न्यूट्रिएंट इलिमेंट्स की कमी या जेनेटिक के कारण से ब्रेस्ट का साइज छोटा रह जाता है।

छोटे ब्रेस्ट का आकार लड़कियों या महिलाओं के आत्मबल स्तर को गिरा सकता है। इसलिए हर लड़की स्तनों का आकार बढ़ाने के लिए तरह-तरह के उपाय इस्तेमाल करती हैं। कोई इंजेक्शन लगवाता है तो कोई सर्जरी की मदद लेतीं हैं। लेकिन आप चाहे तो नेचुरल तरीकों से भी ब्रेस्ट का आकार बढ़ा सकती हैं। एक्सपर्ट से जानते हैं ब्रेस्ट साइज बढ़ाने के लिए क्या हैं घरेलू उपाय-

ये है ब्रेस्ट साइज बढ़ाने के टिप्स

1. रोजाना एक्ससरसाइज करें

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ब्रेस्ट साइज का आकार बढ़ाने के लिए आपको डेली एक्सरसाइज और योगभ्यास करना चाहिए। एक्सरसाइज करने से ब्रेस्ट के नजदीक की मांसपेशियों का विकास तेजी से होता है। इससे स्तनों के आकार को भी बढ़ावा मिलता है। स्तनों का आकार बढ़ाने के लिए आपको रोजाना 30 मिनट एक्सरसाइज अपने रूटीन में शामिल करना होगा। इससे स्तनों के आस-पास की मांसपेशियां टोन भी होती हैं। स्तनों के साइज बढ़ाने के लिए आप पुश-अप, डंबल चेस्ट प्रेस और वॉल प्रेस जैसी एक्सरसाइज अपना सकती हैं।

2. फाइटोएस्ट्रोजन से भरे फूड्स खाएं

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फाइटोएस्ट्रोजन स्तनों के आकार को बढ़ावा देता है। फाइटोएस्ट्रोजन ब्रेस्ट टिश्यू को बढ़ाने में मदद करते हैं। अगर आप स्तनों के साइज बढ़ाना चाहते हैं, तो अपनी डाइट में फाइटोएस्ट्रोजन जरूर शामिल करें। आपको बता दें कि अलसी के बीज, सोयाबीन, तिल के बीज, टोफू, मूंगफली, अखरोट आदि में फाइटोस्ट्रोजन पाया जाता है। इन फूड्स को खाने से स्तनों के साइज बढ़ाने में मदद मिल सकती है। ब्रेस्ट साइज बढ़ाने के लिए मेथी के दाने भी बेहद उपयोगी साबित होते हैं। आपको अपनी डाइट में डेयरी प्रोडक्ट्स, नट्स, सीड्स और दाल जरूर शामिल करने चाहिए।

3. मसाज टैक्निक है कारगर

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अगर आपके स्तनों का आकार छोटा है, तो आपको मसाज टैक्निक भी जरूर अपनानी चाहिए। मसाज करने से ब्रेस्ट साइज को बढ़ावा मिल सकता है। अगर आप कुछ महीनों तक रोज सुबह-शाम स्तनों की मालिश करेंगे, तो इससे मांसपेशियों का विकास तेजी से होता है। ब्रेस्ट साइज बढ़ाने के लिए आप नारियल तेल, जैतून के तेल या बादाम के तेल से मालिश कर सकते हैं। इसके लिए आप कोई भी तेल लें और इसे गुनगुना कर लें। अब तेल को स्तनों पर लगाएं और फिर सर्कुलर मोशन में मसाज करें। आप रोज रात को स्तनों की मसाज कर सकते हैं। इससे आपको काफी फर्क देखने को मिलेगा।

If you are a 'Newly Mom' then take care of yourself like this

Newly Mom: प्रेग्नेंसी शुरू होते ही शरीर में कई तरह के हार्मोनल चेंजिंग दिखने लगते हैं और 09 महीने के फेज के बाद जब डिलीवरी होती है तो मां को सबसे अधिक खुशी का एहसास होता है पर इसके बाद कई सरह के स्ट्रेस भी सामने आते हैं जैसे कि चिड़चिढ़ापन, उदासी, चिंता, बच्चे के साथ जुड़ाव में कमी जैसा प्रॉब्लम होने लगता है। डिलीवरी के बाद शरीर कमजोर हो जाता है और तनाव का कुप्रभाव भी सेहत पर नजर आता है।

प्रेग्नेंसी के बाद पहले जैसा हेल्दी और फिट बनने के लिए अपने रूटीन के साथ ही खानपान का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है। वरना कुछ प्रॉब्लम लाइफटाइम परेशानी खड़ा कर सकती है जैसे वजन कंट्रोल न किया जाए तो कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है साथ ही शरीर में दर्द और कमजोरी लंबे वक्त तक बनी रह सकती है। विशेषज्ञ से जानेंगे कि कैसे डाइट को सही तरीकों से लेकर योगा या वर्कआउट करने तक कैसे अपने स्वास्थ्य को ठीक रख सकती हैं।

नई मां की फिजिकल हेल्थ के साथ ही मेंटल हेल्थ भी दुरुस्त रहना बहुत जरूरी होता है, तभी वह अपने बच्चे को भी पूरी तरह से देखभाल कर पाएंगी और बच्चा हेल्दी रहता है। बाद वाली परेशानियों से बचने के लिए सबसे जरूरी होता है फैमिली का इमोशनल सपोर्ट। अलावा इसके भी एक्सपर्ट ने कई छोटी-छोटी ट्रिक बताई हैं और डाइट, वर्कआउट की डिटेल भी दी है ताकि डिलीवरी के बाद मां खुद को स्वस्थ रख सके।

एक्सपर्ट लाइफस्टाइल डिजीज जैसे डायबिटीज, पीसीओडी, थायराइड, ओबेसिटी आदि से लोगों को नेचुरली रिवर्स करने में मदद करती हैं और यह भी बताती हैं कि कैसे आप टेस्टी खाना खाकर भी स्लिम और फिट रह सकते हैं।

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मेंटल हेल्थ दुरुस्त रखने के टिप्स

  • एक्सपर्ट कहती हैं कि नई मां बनी हैं तो रोजाना कुछ देर लाइट वॉक करें और नंगे पैर घास पर चलें।
  • मेंटल हेल्थ को सुधारने के लिए ब्रीदिंग टेक्निक जैसे कपालभाति प्राणायाम और अनुलोम विलोम करना सही रहता है।
  • एक्सपर्ट का कहना है कि कोई भी स्ट्रेस जो आपको परेशान कर रहा हो, उसके बारे में बात करें।
  • स्ट्रेस कम ना हो तो जरूरत के हिसाब से थेरेपिस्ट या काउंसलर से बात करनी है तो वो बिल्कुल नॉर्मल है। जरूर बात करें, स्ट्रेस को कैसे डील करें?

भरपूर नींद लेना है जरूरी

good sleep

एक्सपर्ट के मुताबिक सबसे जरूरी है नई माएं अच्छी नींद लें, क्योंकि नींद न सिर्फ शारीरिक तौर पर आराम देती है, बल्कि मेंटली भी रिलैक्स दिलाने में मदद करती है। इसके लिए स्लीप स्नैचिंग तकनीक का सहारा लेना चाहिए यानी जब बेबी सो रहा हो या फिर फैमिली में किसी और के पास हो तो उस दौरान आप भी पावर नैप लें।

ब्रेस्टफीडिंग करवाना है फायदेमंद

Breast feeding

एक्सपर्ट कहती हैं कि बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग जरूर कराएं. ये मां और शिशु दोनों के लिए फायदेमंद होती है। वजन घटाने के लिए पेशेंस रखें, क्योंकि ग्रेचुअल वेट लॉस और ग्रेजुअल फैट लॉस करना ही सेफ रहता है और यही सही तकनीक है पोस्टपार्टम वेट को कम करने की।

कब कर सकते हैं फिजिकल एक्टिविटी

एक्सपर्ट का कहना है कि नॉर्मल डिलीवरी हुई है तो 06 हफ्ते के बाद फिजिकल एक्टिविटी कर सकती हैं और अगर सी-सेक्शन हुआ है तो डॉक्टर्स की एडवाइस के बाद ही किसी तरह का वर्कआउट या योग करना शुरू करें। बाद के दौरान फिटनेस के लिए आप ब्रीदिंग, लाइट वॉक, लाइट स्ट्रेचिंग, योगा को रूटीन में एड कर सकते हैं. ज्यादा जल्दबाजी न करें, अपनी बॉडी को हील होने दें तभी शरीर सही तरह से फंक्शन कर पाएगा।

ये चीजें करें अवॉइड

नई माएं एमटी कैलोरी बिल्कुल न लें, जैसे बिस्किट, शुगरी ड्रिंक्स को अवॉइड करना चाहिए. एक्सपर्ट कहती हैं कि बहुत सारे लोग वेट लॉस के चक्कर में चाय-कॉफी ज्यादा लेते हैं, लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि ये बॉडी को एसिडिक कर सकते हैं और कैफीन से शरीर को नकली किक मिलती है। इंस्टेंट एनर्जी के चक्कर में इनको पीने से बचें। चाय-कॉफी पी भी रहे हैं तो शुगर मत मिलाएं और दिन में एक या दो बार ही लीजिए।

हाइड्रेट रहना है लाभदायक

एक्सपर्ट के अनुसार हाइड्रेशन को बनाए रखें, सादा पानी पीने के अलावा जीरा वाटर, धनिया वाटर, कोकोनट वाटर, सौंफ का पानी आदि पीएं, क्योंकि इन मसालों में कैल्शियम से अलावा भी कई मिनरल्स होते हैं। घर का सिंपल खाना खाइए। ये आपके लिए पोस्टपार्टम को डील करने के लिए बेस्ट है।

डाइट का ध्यान कैसे रखें

एक्सपर्ट का कहना है कि डिलीवरी के बाद वेट कंट्रोल करना हो तो किसी भी फैट डाइट को फॉलो नहीं करना चाहिए पर वजन कम करने के चक्कर में कोई भी ट्रेंडी डाइट फॉलो करना शुरू न करें। न्यूट्रिशनल डाइट लें, जिसमें कैलोरी भी कम हो और पोषक तत्व भी अच्छी मात्रा में हो, साथ ही रेगुलर लाइट वॉक कीजिए।

नई माएं लें ऐसा खाना

एक्सपर्ट के मुताबिक डिलीवरी के बाद आयरन और कैल्शियम रिच फूड खाएं, जैसे रागी, ड्राई फ्रूट्स और हरी सब्जियां और फल। वह कहती हैं कि मैं तो आपको कहूंगी बादाम, अखरोट, पंपकिन सीड्स, सूरजमुखी के बीज, गोंद आदि को नट्स, सीड्स और ड्राई फ्रूट्स को मिलाकर लड्डू बना लें। दो लड्डू रोज आप दूध के साथ लें. इससे कई न्यूट्रिएंट्स की कमी पूरी हो जाती है और कमजोरी नहीं लगती। डिलीवरी के बाद खाने में अंडा, दाल, नट्स शामिल करें जो प्रोटीन की पूर्ति करेंगे।

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Vaginal Infection: Do not ignore the problem of burning and itching in the vagina

Vaginal Infection: भारत जैसे देशों में महिलाओं के स्वास्थ्य पर काफी कम बातें होती हैं। कभी-कभी वीमेन से जुड़ी छोटी-छोटी दिक्कतों को नजरअंदाज करना महिलाओं के लिए भारी पर जाता है। लेडीज में वेजाइनल इन्फेक्शन एक ऐसी ही समस्या है। आज हम बताएंगे कि आखिर क्यों होता है वेजाइनल इन्फेक्शन और क्या हैं इससे बचने के तरीके-

जानें क्या है वेजाइनल इन्फेक्शन-

वेजाइनल इन्फेक्शन वेजाइनल में हुए संक्रमण को कहते हैं। ये इन्फेक्शन बैक्टीरिया, फंगस, या वायरस के कारण हो सकता है। दरअसल, वेजाइना में बैक्टीरिया और फंगस में एक बैलेंस होता है पर जब यही बैलेंस बिगड़ता है तो इनफेक्शन की संभावना बढ़ जाती है। भले ही ये इन्फेक्शन मामूली लगे लेकिन कई बार और बड़ी बीमारियों को जन्म दे देता है।

वेजाइनल इन्फेक्शन के लक्षण

Vaginal Infection: Do not ignore the problem of burning and itching in the vagina

1. यूरिन डिस्चार्ज में दर्द-

यूरिन डिस्चार्ज करते हुए दर्द या जलन होना या वेजाइना से बदबू आना।

2. खुजली और जलन –

वेजाइना और उसके आसपास खुजली और जलन होने लगे तो इनफेक्शन के ही लक्षण हैं।

3. लालिमा और सूजन-

वेजाइना के आसपास की त्वचा लाल और सूज सकती है।

4. सेक्स के दौरान दर्द-

पेशाब के दौरान जलन या दर्द और सेक्स के दौरान दर्द।

5. अनियमित पीरियड्स

पीरियड्स की साइकिल अनियमित हो सकती है। एक्सपर्ट ने वैजाइनल इंफेक्शन को दो भागों में बांटा है।

1. नॉन सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन

2. सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन

इन्हें और कई भागों में बांटा जा सकता है-

1. बैक्टीरियल वेजिनोसिस :

यह तब होता है जब वेजाइना में अच्छे और नुकसानदायक बैक्टीरिया का बैलेंस बिगड़ जाता है। ये नॉन सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन है।

2. फंगल इन्फेक्शन :

यह कैंडीडा नामक फंगस के कारण होता है। ये संक्रमण तब बढ़ता है जब फंगस का स्तर नॉर्मल से अधिक हो जाता है। इसमें आपकी वैजाइना लाल।हो जाती है। डायबिटीज के पेशेंट्स को इसका ख़तरा अधिक होता है।

3. ट्राइकोमोनायसिस:

ये सेक्सुअली ट्रांसमिट हुआ इनफेक्शन है जो Trichomonas vaginalis नाम की बैक्टीरिया से फैलता है। सेक्स के दौरान कॉन्डोम ना इस्तेमाल करना, एक से अधिक पार्टनर्स के साथ सेक्स करना- ये इस इन्फेक्शन के प्रमुख कारण हैं।

4. हार्मोनल बदलाव:

पीरियड्स, प्रेग्नेन्सी या मेनोपॉज के दौरान महिलाओं के शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं, इस बदलाव से भी वेजाइनल इन्फेक्शन हो सकता है। पीरियड्स के दौरान अगर आप अपने पैड्स तीन चार बार नहीं बदलते तो ये इन्फेक्शन कॉमन है।

5. वेजाइनल सफाई में गलत तरीका अपनाना:

वेजाइना को अंदर से साफ करने के लिए डूशिंग या कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल इनफेक्शन का कारण बन सकता है। ये भी नॉन सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन है।

वेजाइनल इन्फेक्शन से कैसे बचें-

Vaginal Infection: Do not ignore the problem of burning and itching in the vagina

  • वेजाइना को हल्के गुनगुने पानी से धोएं। बाहरी हिस्से की सफाई करें, लेकिन अंदरूनी हिस्से को जबरन रगड़ने की ज़रूरत नहीं।
  • सूती अंडरवियर का इस्तेमाल करें और तंग कपड़ों से बचें, जो पसीना रोक दे।
  • पीरियड्स के दौरान हर 4-6 घंटे में पैड या टैम्पोन बदलें। अक्सर ग्रामीण इलाकों में लोग इसे सीरियसली नहीं लेते जिस वजह से इंफेक्शन बढ़ जाता है।
  • सेफ सेक्स करें। सेक्स के दौरान कंडोम का इस्तेमाल करें। सेक्स के लिए एक से अधिक पार्टनर से बचें।
  • वेजाइना के पास परफ्यूम, डिओडोरेंट या किसी साबुन का इस्तेमाल न करें।
  • दही और प्रोबायोटिक्स युक्त खाना खाएं। चीनी कम से कम खाएं ।
  • तनाव कम लीजिए। ज्यादा तनाव लेने से शरीर में हार्मोन्स का बैलेंस बिगड़ सकता है जो इनफेक्शन को बढ़ाता है।

वेजाइनल इंफेक्शन इन स्थितियों में हो सकता है गंभीर (When seek to a Doctor in vaginal infection)
अगर आपको ये समस्याएं महसूस हों, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करिए-

1. वेजाइना से लगातार डिस्चार्ज।
2. खुजली या जलन जो घरेलू उपाय से ठीक न हो।
3. बुखार, पेट के निचले हिस्से में दर्द या थकावट।
4. सेक्स के दौरान दर्द।
5. बार-बार वेजाइनल इन्फेक्शन होना।

एक्सपर्ट के मुताबिक इंफेक्शन को लोग अनदेखा या अनसीरियसली ले लेते हैं जिसकी वजह से यह बड़ी समस्या का रूप ले लेती है। उनका कहना था कि ये जो हम इन्फर्टिलिटी को बड़ी समस्या के तौर पर देख रहे हैं, यह इन्हीं छोटी-छोटी बातों को इग्नोर करने का नतीज़ा है।

घरेलू उपाय जो कर सकते हैं मदद:

1. दही (Yogurt)

दही में प्रोबायोटिक्स होते हैं, जो अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ावा देते हैं।

2. लहसुन (Garlic):

लहसुन एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुणों से भरपूर होता है। इसे अपने खाने में शामिल करें।

3. गर्म पानी (Hot Water)

हल्के गर्म पानी में थोड़ा नमक मिलाकर वेजाइना को धोने से राहत मिलती है।

4. टी ट्री ऑयल (Tea Tree Oil)

टी ट्री ऑयल में एंटी-फंगल गुण होते हैं। इसे नारियल तेल में मिलाकर लगाया जा सकता है।

वो गलतियां जिससे होता है वेजाइनल इन्फेक्शन

1. गीले अंडरवियर पहनना।
2. साबुन या अन्य सस्ते कॉस्मेटिक का वैजाइना पर इस्तेमाल।
3. पब्लिक टॉयलेट का गलत इस्तेमाल।
4. यौन संबंध बनाते समय सुरक्षा का ध्यान न रखना। कॉन्डोम को अवॉयड करना
5. शरीर की साफ-सफाई पर ध्यान न देना।
6.टाइट कपड़े जो वैजाइना को भी एयर टाइट बना देते हैं।