Search
  • Noida, Uttar Pradesh,Email- masakalii.lifestyle@gmail.com
  • Mon - Sat 10.00 - 22.00

Tag Archives: Health

Your child will sleep soundly as soon as he goes to bed

Sleep Benefits: बच्चों के फिजिकल और मेंटल डेवलपमेंट के मद्देनजर भरपूर नींद बहुत ही जरूरी है। जल्दी सोने और जल्दी उठने से बच्चों में अनुशासन आता है और वे स्वस्थ्य रहते हैं। इससे बच्चों की इम्यूनिटी भी बूस्ट होती है। बचपन से बच्चों का एक टाइम सेट करें, उसके मुताबिक ही बच्चों को जागना, सोना, पढ़ना, खेलना सिखाएं। हालांकि ज्यादतर माता-पिता इन बातों पर अपने बिजी शेड्यूल की वजह से ध्यान नहीं दे पाते हैं। पेरेंट्स खुद रात में देर से सोते हैं और बच्चे भी उन्हीं के साथ सोना पसंद करते हैं, ऐसे में उनका बेड टाइम भी लेट हो जाता है। पर साधारण से लगने वाली ये बात गंभीर है। इसलिए बच्चों को वक्त पर सोने और उठने की आदत डालें। कुछ तरीके आपके लिए बेहद कारगर हो सकते हैं-

लेट नाइट डिनर से बचें

अगर आप चाहते हैं कि बच्चा समय पर सो जाए तो आप लेट नाइट डिनर से बचें। रात 08 बजे से पहले आप डिनर कर लें। डिनर और बच्चों के सोने के समय में कम से कम 02 से 03 घंटे का गैप होना जरूरी। ऐसा करने से एसिड रिफ्लक्स और पाचन संबंधी अन्य समस्याएं नहीं होंगी।

स्क्रीन टाइम पर दें कम रखें

Your child will sleep soundly as soon as he goes to bed

आमतौर पर बच्चे माता-पिता के साथ देर तक टीवी या फिर मोबाइल देखते हैं। लेकिन यह पेरेंट्स की बड़ी भूल है। स्क्रीन की ब्लू लाइट बच्चों के साथ ही बड़ों की नींद में खराब करती है। इसलिए सोने से कम से कम 1 घंटे पहले बच्चे को स्क्रीन से दूर रखें।

चीनी और कैफीन की मात्रा कम दें

बच्चों को हमेशा चीनी और कैफीन से दूर रहना चाहिए पर ज्यादातर बच्चे सोने से पहले दूध पीते हैं, जिसमें कॉफी या फिर चॉकलेट पाउडर आदि भी डाला जाता है। लेकिन चीनी और कैफीन दोनों ही नींद के दुश्मन हैं। इससे बेड पर जाने से ठीक पहले बच्चों को दूध न दें। बच्चों को दूध देने का बेस्ट टाइम शाम 4 से 6 के बीच है। उसी समय उन्हें दूध दें।

सोने का रूटीन बनाएं

Your child will sleep soundly as soon as he goes to bed

सोने से कम से कम 30 मिनट पहले इसका एक रूटीन सेट करें। किताबें पढ़कर बच्चों को सुनाएं, कहानियां सुनाएं, लोरी गाएं। इनसे बच्चा मेंटली और फिजिकली सोने के लिए तैयार होगा। वहीं बच्चों को सुलाने से पहले उनके साथ खेलने या फिर हंसी मजाक करने जैसी एक्टिविटी न करें। इससे बच्चे का माइंड एक्टिव रहेगा और वो सोना ही नहीं चाहेगा।

रात में बनाएं सोने का माहौल

अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा गहरी और अच्छी नींद ले तो उसे अच्छा नींद का माहौल दें। कमरे को साफ करें, बेडशीट या तो चेंज करें या फिर उसे फिर से ठीक से बिछाएं, कमरे की रोशनी धीमी करें, पर्दे अच्छे से लगाएं। बच्चों को नाइट वियर जरूर पहनाएं। ये उनकी नाइट रूटीन का हिस्सा होने चाहिए। उन्हें नहलाकर या फिर हाथ मुंह वॉश करके क्रीम और पाउडर लगाएं। इससे वे रिलैक्स होंगे। इसी के साथ कमरे का टेंपरेचर बच्चों के अनुसार सेट करें। इससे बच्चे को पता चल जाएगा कि अब सोने का समय है और वे गहरी नींद सो पाएंगे। इतना ही नहीं उनकी नींद बीच-बीच में टूटेगी नहीं।

फोटो सौजन्य- गूगल

Mental Health: Parents yelling at children has a serious impact on their minds

Mental Health:

कई पैरेंट्स छोटी-मोटी बात पर आपस में चिल्लाने लगते हैं या वह बच्चों पर गुस्सा करने लगते हैं, जो सभी को आम बात लगती है। दिनभर की थकान, काम का टेंशन और बच्चों की शरारतें सब मिलकर कभी-कभी पैरेंट्स को चिल्लाने पर मजबूर कर देते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि लगातार गुस्सा या चिल्लाने से बच्चों के दिमाग और भावनाओं पर गंभीर असर पड़ता है?

शायद आपको तुरंत इसका पता ना चले लेकिन घर पर बच्चों के साथ होने वाली कसकर चिल्लाने से छोटे व बड़े दोनों उम्र के बच्चों के दिमाग पर असर डालती है। साइकोलॉजिस्ट के मुताबिक गुस्से में चिल्लाने पर बच्चे का मस्तिष्क डर और तनाव की स्थिति में चला जाता है। उनके शरीर में कॉर्टिसोल नामक तनाव हार्मोन बढ़ जाता है। लंबे वक्त तक यह हार्मोन ज्यादा रहने से बच्चे में चिंता, अवसाद और सीखने की क्षमता में कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

बच्चों पर उनकी उम्र के हिसाब से प्रभाव

छोटे बच्चे का मस्तिष्क अभी विकसित हो रहा होता है, इसलिए चिल्लाना उन्हें बहुत डराता है और वे सहज रूप से सीख नहीं पाते। वहीं, किशोरावस्था में लगातार डांट और चिल्लाना उनके आत्म-सम्मान, कॉन्फिडेंस और सामाजिक व्यवहार को डिस्टर्ब कर सकता है।

चिल्लाने की जगह ये करें

Mental Health: Parents yelling at children has a serious impact on their minds

  • संयम बनाएं- गुस्से में फौरन चिल्लाने की बजाय पहले खुद शांत होना जरूरी।
  • सकारात्मक भाषा अपनाएं- बच्चों को डांटने की बजाय समझाने की कोशिश करें।
  • मिसाल के तौर पर- बच्चा होमवर्क नहीं करता? चिल्लाने की बजाय उसके साथ बैठकर कारण समझें और हल खोंजे।
  • प्रोत्साहन दें- छोटी छोटी अच्छी आदतों और प्रयासों को सराहें। इससे बच्चा ज्यादा आत्मविश्वासी बनता है।

माता-पिता के लिए खास टिप्स

खुद के तनाव को पहचाने- अगर आप तनाव में हैं, तो गुस्से को नियंत्रित करना मुश्किल होता है। शांत होने के तरीके अपनाएं-गहरी सांस लें, ध्यान करें, थोड़ी शारीरिक गतिविधि करें या थोड़ा समय अकेले बिताएं।

संवाद बनाएं, आदेश नहीं- बच्चों से बात करें, उन्हें समझाएं कि गलती सुधारने का मौका है।

चिल्लाने के नुकसान

  1. बच्चों में डर और असुरक्षा की भावना बढ़ती है।
  2. उनकी सोचने और सीखने की क्षमता पर असर पड़ता है।
  3. लंबे वक्त में भावनात्मक समस्याएं और आत्मविश्वास में कमी आ सकती है।
  4. सामाजिक जीवन और रिश्तों में भी असर दिखाई दे सकता है।

सबसे अहम बात

Mental Health: Parents yelling at children has a serious impact on their minds

डॉक्टर के अनुसार बच्चों के लिए प्यार और सुरक्षा की भावना सबसे अहम है। जब हम गुस्से में चिल्लाते हैं तो वे सिर्फ डर महसूस करते हैं और सीखने या सोचने की जगह बचने पर ध्यान देते हैं।
इसलिए हर बार गुस्सा आने पर एक गहरी सांस लें और बच्चों के साथ संवेदनशील, प्यार सा और सकारात्मक संवाद करें। चिल्लाना तात्कालिक राहत दे सकता है पर लंबे समय में यह बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास को प्रभावित करता है। संयम, समझदारी और मोहब्बत से बच्चों को समझाना उन्हें हेल्दी, खुशहाल और आत्मविश्वासी बनाता है।

हाइलाइट्स-

आपका बच्चों के साथ कैसा व्यावहार करते हैं,इसका बच्चे के दिमाग पर सीधा असर पड़ता है। चिल्लाने से बच्चे के मन में डर पैदा हो जाता है।
बच्चों पर चिल्लाने के बजाय प्यार से बात करें और कूल होकर समझाएं।

फोटो सौजन्य- गूगल

Heating food in a microwave can lead to serious diseases like cancer

Microwave में खाना गर्म करना सेहत के लिए नुकसानदायक

आज के टेक्नोलॉजी के इस युग में घरेलू जिंदगी में बहुत सारी सुविधाएं हो गई हैं। अब हर काम के लिए मशीनें हाजिर हैं। ऐसी ही एक मशीन है माइक्रोवेव, जिसे खाने को गर्म रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आजकल ज्यादातर घरों में माइक्रोवेव पाया जाता है पर क्या आप जानते हैं कि माइक्रोवेव में खाना गर्म करना हेल्थ के लिए भारी नुकसानदेह हो सकता है। बता दें कि माइक्रोवेव इलेक्ट्रिक होने के कारण इससे रेडिएशन निकलती है, जोकि खाने को रेडियोएक्टिव बना सकता है। माइक्रोवेव ऐसे में गर्म किए गए खाने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां होने की आशंका बनी रहती है।

माइक्रोवेव में खाना गर्म करते वक्त कभी भी ऐसी गलती ना करें

Heating food in a microwave can lead to serious diseases like cancer

वैसे माइक्रोवेव में खाना गर्म किया जा सकता है लेकिन सावधानी भी रखनी होगी। खाना सेहत को नुकसान ना पहुंचाए। रिसर्च में यह साफ हुआ है कि माइक्रोवेव से रेडिएशन केवल खाना गर्म करने को लेकर निकलता है। हालांकि, कुछ गलतियां करने से फिर भी बचना चाहिए।

माइक्रोवेव के बर्तन ही इस्तेमाल करें

अगर आप चाहते हैं कि माइक्रोवेल में खाना गर्म करने के बाद भी वह सेहत को नुकसान न पहुंचाए, तो इसके लिए माइक्रोवेव में उन बर्तनों का ही इस्तेमाल करें, तो इस मशीन के लिए बने होते हैं। प्लास्टिक के बर्तन गर्म होने पर हानिकारक केमिकल छोड़ सकते हैं। ऐसे में यह सेहत के लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है।

नॉर्मल टेंपरेचर पर ही गर्म करें खाना

ऐसा तो सभी जानते हैं कि खाने को ज्यादा पकाने से पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। ऐसे में यदि सही तापमान और सही समय तक खाने को गर्म किया जाए, तो इससे खाने को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता है। पौष्टिकता के लिहाज से यह सुरक्षित रहता है।

माइक्रोवेव में ज्यादा टाइम सेट कर खाना न करें गर्म

Heating food in a microwave can lead to serious diseases like cancer

माइक्रोवेव में खाने को ज्यादा समय तक भी गर्म नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह न सिर्फ खाने के टेस्ट को खराब करता है, बल्कि ओवन को भी खराब कर सकता है। दरअसल, ज्यादा देर तक खाना गर्म करने पर उसके पोषक तत्व भी खत्म हो जाते हैं।

Women in 40 की उम्र में आते हैं बड़े बदलाव, उम्र के इस पड़ाव को खुद के रखें एक्टिव और फिट

फॉयल पेपर में गर्म न करें खाना

बता दें कि ओवन में भूलकर भी एल्युमीनियन फॉयल पेपर नहीं रखना चाहिए। असल में, इससे माइक्रोवेव को तो नुकसान पहुंचता ही है, साथ ही सेहत के लिए भी यह सुरक्षित नहीं है। ऐसे में अगर आप ओवन में खाना गर्म कर रहे हैं, तो सिरेमिक या फिर कांच के बर्तनों का इस्तेमाल ही करें। माइक्रोवेव का सही से इस्तेमाल कर अपना और अपनों का ख्याल रखें।

फोटो सौजन्य- गूगल

Mental Health: Excessive stress has a direct connection with your memory

Mental Health: आजकल हर किसी की जिंदगी में बस भागदौड़ है और किसी ना किसी बात को लेकर तनाव है। लगातार टेंशन और स्ट्रेस में रहने के कारण कई तरह की समस्याएं हो सकती है। किसी को ऑफिस का स्ट्रेस है तो किसी को घर का, हर इन्सान किसी ना किसी बात से तनावग्रस्त है। तनाव की वजह से सिर्फ मानसिक समस्याएं ही नहीं, बल्कि कई तरह की फिजिकल समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। बता दें कि लंबे समय तक स्ट्रेस में रहना आपके दिमाग को प्रभावित कर सकता है।

डॉक्टर का कहना है कि जब आप टेंशन लेते हैं तो दिमाग से कॉर्टिसोल नाम का हार्मोन निकलता है जिसकी वजह से आपको अच्छा फील नहीं होता है। कभी कभी ऐसा होना नार्मल है लेकिन जब आप लंबे वक्त तक तनाव में रहते हैं तो दिमाग पर इसका विपरीत असर पड़ने लगता है। इसकी वजह से आपकी याददाश्त कमजोर होने लगती है और आप बातें भूलने लगते हैं।

तनाव दिमाग को कैसे प्रभावित करता है?

Mental Health: Excessive stress has a direct connection with your memory

  • ज्यादा तनाव लेने से दिमाग का एक हिस्सा, हिप्पोकैम्पस, सिकुड़ जाता है। यह दिमाग का वह भाग है जहां मेमोरी होती है और जो सीखने से जुड़ा हुआ है। ज़्यादा टेंशन लेने से हमारा दिमाग़ सिर्फ थकता नहीं है, बल्कि इससे हमारी सोचने की क्षमता में भी गिरावट आ जाती है। हम अपने अंदर की क्रिएटिविटी खो देते हैं, हमें फैसले लेने में घबराहट होती है।
  • ज्यादा तनाव सेरोटोनिन और डोपामाइन के स्तर को, बिगाड़ देता है, जो दिमाग के लिए जरूरी है। इस कारण, चिंता, अवसाद और अनिद्रा की परेशानी हो सकती है।
  • ज्यादा तनाव के कारण कोर्टिसोल का स्तर बढ़ने से दिमाग और शरीर की सूजन को बढ़ जाती है, जो समय के साथ बढ़ सकती है। अगर इसका इलाज न किया जाए, तो अल्जाइमर या पार्किंसंस जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
  • ज्यादा तनाव से प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स प्रभावित होता है। इसकी वजह से व्यक्ति चिड़चिड़ा, मूड स्विंग्स, अकेलापन और ओवर सेंसिटिविटी महसूस करता है।

दिमाग को तनाव से ऐसे बचाएं- 

  1. टाइम मैनेजमेंट करें – कामों की लिस्ट बनाकर प्रायोरिटी सेट करें।
  2. बॉडी को मूव करें – रोज़ाना 20–30 मिनट वॉक या एक्सरसाइज स्ट्रेस को घटाती है।
  3. नींद जरूरी है- रात में 7-8 घंटे की अच्छी नींद जरूर लें।
  4. सांस पर ध्यान दें – गहरी सांस लेने से दिमाग तुरंत रिलैक्स होता है।
  5. डिजिटल डिटॉक्स – थोड़ी देर मोबाइल और सोशल मीडिया से दूर रहें।
  6. पॉजिटिव एक्टिविटी – म्यूजिक, पढ़ना, मेडिटेशन या हॉबी टेंशन घटाते हैं।
  7. लोगों से बात करें – अपनी फीलिंग्स शेयर करने से बोझ हल्का होता है।
A Strong relationship needs regular sex

REGULAR SEX: बॉडी को स्वस्थ और फिट रखने के लिए लोग ज्यादातर जिम और फैंसी डाइट का हेल्प लेते हैं लेकिन रिलेशन में सेक्सुअल इंटिमेसी दिनों दिन बढ़ते टेंशन के अलावा कई समस्याओं को दूर भगाने का सबसे मजेदार विकल्प है। दिनभर के कामकाज के बाद नियमित रूप से तनाव का सामना करना पड़ता है, जो मूड स्विंग की वजह बनता है। ऐसे में सेफ सेक्स को रूटीन में शामिल करके शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है। वे महिलाएं जो अक्सर सेक्स को एंजॉय करती हैं, वे हमेशा अपने पार्टनर के साथ जुड़ाव की गहरी भावना का अनुभव करती हैं, जिससे रिश्ता हेल्दी और खुशहाल बन जाता है और कुल मिलाकर उनकी जिंदगी ज्यादा संतुलित हो जाती है।

ये हैं रेगुलर सेक्स से शरीर को मिलने वाले फायदे

विशेषज्ञ का कहना हैं कि नियमित सेक्स कई तरह से आपकी मदद कर सकता है। हालांकि सेक्स के विषय पर अभी भी लोग खुलकर बात करना पसंद नहीं करते हैं। यौन संबंध से मेंटल हेल्थ और शरीर को सक्रिय रखने में मदद मिलती है। खासकर उम्र बढ़ने के साथ नियमित सेक्सुअल एक्टीविटीज़ में शामिल होने से शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य दोनों पर सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है।

क्या सेक्स सेहत को प्रभावित करता है?

अमेरिकन सेक्सुअल हेल्थ एसोसिएशन के मुताबिक नियमित सेक्स शरीर को फायदा पहुंचाता है। ये पुरुषों और महिलाओं के लिए कार्डियोवेस्कुलर एक्सरसाइज के तौर पर फायदा पहुंचाता है। अलावा इसके इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने, हृ्दय रोगों से राहत, कैलोरीज स्टोरेज की रोकथाम और मांसपेशी की मजबूती को बढ़ाने में मदद करता है।

नियमित सेक्स करने से सेहत को मिलते हैं ये 8 फायदे-

A Strong relationship needs regular sex

1. इमोशनल बॉडिंग मजबूत होती है

अक्सर उम्र के साथ पति-पत्नी के रिश्ते में खिंचाव बढ़ने लगता है। ऐसे में नियमित सेक्स इमोशनल इंटिमेसी और कपल्स के बीच गहरे संबंध को बढ़ाता है। ऑक्सीटोसिन को लव हार्मोन कहा जाता है, जो सेक्स और शारीरिक स्पर्श के दौरान रिलीज़ होता है। ये हार्मोन भावनात्मक बंधंन को मजबूत करने में मदद करता है और भागीदारों के बीच विश्वास और स्नेह बढ़ाता है। इससे अधिक सटिस्फेक्शन और स्टेबल रिलेशन बनते हैं। जर्नल सेज चॉइस की रिपोर्ट के मुताबिक रेगुलर सेक्सुअल एक्टीविटी फिज़िकल और इमोशनल हेल्थ को प्रभावित करती है।

2. अच्छी आती है नींद

इससे शरीर में ऑक्सीटोसिन यानी लव हार्मोन की मात्रा बढ़ने लगती है और सेक्स के दौरान एंडोर्फिन रिलीज होता है। इन दोनों हार्मोन के मिलने से नींद की गुणवत्ता में सुधार आने लगता है। इससे शरीर को अधिक आराम महसूस होता है और ऊर्जा का स्तर भी बढ़ने लगता है।

3. इम्यून सिस्टम बेहतर होता है

NIH की रिपोर्ट के अनुसार वे लोग जो फ्रीक्वेंट सेक्स करते थे यानी सप्ताह में एक से दो बार या उससे अधिक बार, उनके स्लाइवा में अधिक इम्युनोग्लोबुलिन एआईजीए पाया जाता है। आईजीए एक प्रकार की एंटीबॉडी है जो बीमारियों को रोकने में महत्वपूर्ण साबित होती है और हयूमन पेपिलोमावायरस या एचपीवी के खिलाफ रक्षा कवच के रूप में कार्य करता है। इससे महिलाएं बीमारियों और संक्रमणों से लड़ने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो जाती हैं। रिपोर्ट के अनुसार जैसे-जैसे यौन गतिविधियां बढ़ती है, वैसे ही रोग प्रतिरोधक क्षमता संक्रमण से निपटने में ज्यादा सक्षम हो जाती है।

4. हृदय संबंधी समस्याएं कम होती हैं

यौन संबंध को नियमित रखने से हृदय गति, ब्लड सर्कुलेशन और ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ने लगता है, जो समग्र हृदय स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करता है। नियमित सेक्स महिलाओं में हृदय रोग और स्ट्रोक के जोखिम को कम करने में भी कारगर है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक नियमित यौन गतिविधि हृदय रोग वाले पुरुषों और महिलाओं के लिए रोगी के साथ-साथ साथी के जीवन की गुणवत्ता को भी बढ़ाता है।

5. तनाव कम होता है

A Strong relationship needs regular sex

इससे जिंदगी में दिनों-दिन बढ़ने वाले तनाव को कम किया जा सकता है और सकारात्मक मनोदशा को बढ़ावा देने की क्षमता में सुधार आने लगता है। दरअसल, सेक्स के दौरान शरीर एंडोर्फिन जारी करता है, जिससे व्यक्ति खुशी का अनुभव करता है। ये रसायन तनाव और चिंता से निपटने में मदद करते हैं जिससे महिलाएँ अधिक आराम और संतुष्ट महसूस करती हैं। नियमित सेक्स करने से भावनात्मक कल्याण और खुशी का एक चक्र बन सकता है। जर्नल ऑफ़ फ़ैमिली साइकोलॉजी के शोध में पाया गया कि दैनिक जीवन में जिन प्रतिभागियों ने यौन गतिविधि कम होने की बात कही, उनमें सेक्स की कमी पाई गई।

6. मज़बूत होती हैं पेल्विक मसल्स

इंटिमेसी जहां सेक्सुअल हेल्थ के लिए महत्वपूर्ण है, तो इससे पेल्विक फ्लोर मसल्स की भी मज़बूती बढ़ जाती है। इससे यूटर्स और ब्लैण्डर को भी हेल्दी रखा जा सकता है। सेक्सुअल एंक्टीविटी से जहां आपसी प्यार और अंडरस्टैडिंग बढ़ने लगती है, तो वहीं लोअर बॉडी के मसल्स को मज़बूती मिलती है और स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम कम हो जाता है। इससे वेजाइना से संबधी बीमारियों का जोखिम कम होने लगता है।

7. पेट की चर्बी में आती है कमी

प्लोस वन के रिसर्च के अनुसार पुरुष सेक्स के दौरान प्रति मिनट लगभग 4.2 कैलोरी जलाते हैं, जबकि महिलाएं प्रति मिनट 3.1 कैलोरी बर्न करती हैं। सेक्स से शरीर में कैलोरी स्टोरेज से बचा जा सकता है और शरीर स्वस्थ रहता है। कैलोरी बर्न होना सेक्स सेशन की स्पीड, समय और पोज़िशन पर निर्भर करता है।

8. प्राकृतिक पेन किलर है

सेक्स के दौरान एंडोर्फिन का स्राव न केवल तनाव को कम करने में मदद करता है बल्कि यह एक नेचुरल दर्द निवारक के रूप में भी काम कर सकता है। विशेषज्ञ के अनुसार कुछ महिलाओं को यौन गतिविधि में शामिल होने के बाद सिरदर्द, मासिक धर्म में ऐंठन और शरीर के अन्य हिस्सों में दर्द से अस्थायी राहत महसूस होता है।

फोटो सौजन्य- गूगल

Never forget to warm up before going for a morning walk

Morning Walk: शरीर को पूरे दिन एक्टिव और हेल्दी बनाए रखने के लिए ज्यादातर लोग दिन की शुरूआत मॉर्निंग वॉक से करते हैं। पर्यावरण के नजदीक कुछ देर रहने से पक्षियों की चहचहाहट, ठंडी हवाओं और हरियाली को खुली आंखों से महसूस किया जाता है। इससे बॉडी और माइंड एक्टिव रहता है। हालांकि गर्मी के दिनों में देरी से वॉक के लिए निकलने के कारण पसीना आना, बार-बार गला सूखना और थकान का सामना करना पड़ता है। ऐसे में नियमित वक्त पर वॉक पर जाना बेनिफिशियल साबित होता है। सुबह की सैर पर निकलने से पहले रखें कुछ बातों का खास ध्यान-

एक हेल्थ रिपोर्ट के मुताबिक पैदल चलना सभी उम्र के लोगों के लिए व्यायाम का एक बेहतरीन तरीका है। इसके लिए पैदल चलने की क्रिया को धीरे धीरे शुरू करें। समय के साथ इसकी आदत हो जाने पर रास्ते की लंबाई और चलने की गति बढ़ाते जाएं।

इस बारे में फिटनेस एक्सपर्ट बताते हैं कि शरीर को संतुलित रखने और मांसपेशियों की ऐंठन से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करें। इससे शरीर का लचीलापन बढ़ने लगता है और शारीरिक अंगों में बढ़ने वाली थकान से भी बचा जा सकता है। नियमित रूप से इसका अभ्यास शरीर में जमा कैलोरीज को भी बर्न करने में मदद करता है।

मॉर्निंग वॉक पर जाने से पहले रखें इन बातों का ध्यान

Never forget to warm up before going for a morning walk

1. वॉर्मअप होना ना भूलें

वॉक करने से पहले शरीर को एक्टिव करने के लिए वॉर्मअप सेशन बहुत आवश्यक है। इससे शरीर का तापमान उचित बना रहता है और शरीर में लचीलापन रहता है। इसके अलावा कोर मसल्स मज़बूत बनते हैं, जिससे चोटिल होने का खतरा भी कम होने लगता है। वॉक से पहले 15 मिनट का वॉर्मअप मांसपेयियों सेशन बेहद ज़रूरी है। एक रिपोर्ट के अनुसार वॉर्मअप की मदद से मांसपेशियों में बढ़ने वाले खिंचाव को कम किया जा सकता है और ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने में मदद मिलती है।

2. बॉडी को हमेशा हाइड्रेट रखें

Never forget to warm up before going for a morning walk

टहलने से कुछ देर पहले पानी पीने से बार-बार प्यास लगने की समस्या हल होने लगती है। साथ ही कार्यप्रणाली में सुधार आने लगता है, जिससे होने वाली थकान से बचा जा सकता है। इससे शरीर के तापमान को नियंत्रित करने, जोड़ों की मोबिलिटी को बढ़ाने और पोषक तत्वों के अवशोषण में मदद मिलती है। इससे शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह उचित बना रहता है।

3. कपड़े और जूतों का ख्याल रखें

गर्मी में वॉक पर जाने के दौरान अधिक टाइट कपड़े पहनने से बचें। इसके अलावा फुल स्लीव्स और कैप को भी अवॉइड करें। इससे गर्मी का स्तर बढ़ने लगता है। ऐसे में हल्के रंग के और खुले कपड़े पहनें। इसके अलावा स्पोर्टस शूज पहनकर ही वॉक पर निकलें। इससे थकान कम होने लगती है और गिरने का जोखिम भी कम हो जाता है।

4. धीमी गति से करें शुरूआत

तेज़ी से चलना जहां एक तरफ आपके समय को तो बचाता है। मगर उससे शारीरिक थकान बढ़ जाती है और बार बार पसीना आने लगता है। ऐसे में शुरूआत धीमी गति से करें और फिर स्टेमिना बिल्ड होने के बाद समय सीमा को बढ़ा दें। इससे स्वास्थ्य को भी फायदा मिलता है।

5. सही तकनीक का करें प्रयोग

आराम से धीरे और बाहों को हिलाते हुए चलें। इसके अलावा वॉक के दौरान शरीर को एकदम सीधा कर लें और लंबे लंबे फुट स्टेप्स लेने से बचें। शुरूआत 20 मिनट की वॉक से कर लें और सप्ताह में 2 से 3 बार ही वॉक के लिए जाएं।

6. खुद को कूल कर लें

आप हमेशा लॉन्ग और फास्ट सैर करने के बाद शांत हो जाएं। शरीर को एक्टिव रखने के लिए टहलने के बाद कुछ स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करें। इससे बॉडी में बढ़ने वाली पेन और थकान कम होने लगती है। इसके बाद बॉडी को कुछ देर रिलैक्स होने के लिए छोड़ दें, जिससे शरीर की एनर्जी दोबारा बूस्ट हो सके।

फोटो सौजन्य- गूगल 

When there is a delay in periods, apart from pregnancy

Period शुरू होने में अगर देरी होती है तो अधिकतर मामले में प्रेगनेंसी को जिम्मेदार ठहराया जाता है। बता दें कि वजन में बहुत ज्यादा बदलाव, हार्मोनल अनियमितताएं और मेनोपॉज की तरफ बढ़ता साइकल भी इसके कारणों में से एक हो सकता है। अगर एक या दो महीने से ज्यादा पीरियड में देरी की समस्या होती है तो यह एमेनोरिया का प्रॉब्लम हो सकता है। यदि यह समस्या अक्सर हो रही है तो गायनेकोलोजिस्ट से मिलना जरूरी है। फिलहाल एक एक्सपर्ट से जानते हैं कि किन वजहों से पीरियड में देरी हो सकती है।

पीरियड में देरी बढ़ा देती है चिंता

जिस दिन पीरियड शुरू होती है और अगली माहवारी के पहले दिन तक को एक पीरियड साइकल कहा जाता है। सामान्य पीरियड साइकल लगभग 28 दिनों का होता है। हालांकि एक सामान्य चक्र 38 दिनों तक का भी हो सकता है। अगर आपकी पीरियड साइकल इससे ज्यादा लंबा है या सामान्य से अधिक लंबा है तो इसे पीरियड में देरी माना जाता है। लगातार पीरियड में देरी होने पर महिलाएं अपना प्रेगनेंसी टेस्ट करती हैं। पर अगर आप प्रेगनेंट नहीं हैं, तब पीरियड में देरी होने के और भी कई कारण हो सकते हैं।

प्रेगनेंसी के अलावा पीरियड मिस होने के कारण

How can you take care of your wife or girlfriend during periods?

1. थायराइड में गड़बड़ी

गायनेकोलोजिस्ट बताती हैं कि थायराइड पीरियड साइकल को नियंत्रित करने में मदद करता है। बहुत अधिक या बहुत कम थायराइड हार्मोन पीरियड साइकल को बहुत हल्का, भारी या अनियमित बना सकता है। थायराइड डिजीज के कारण मासिक धर्म कई महीनों या उससे अधिक समय तक रुक सकते हैं, इस स्थिति को एमेनोरिया कहा जाता है।

2. हाई प्रोलैक्टिन लेवल

डॉ. रिद्धिमा शेट्टी बताती हैं, ‘ब्रेन के पिटउइटेरी ग्लैंड से सीक्रेट होता है प्रोलैक्टिन हॉर्मोन। प्रोलैक्टिन हार्मोन स्तनपान, ब्रेस्ट टिश्यू के विकास और दूध उत्पादन के लिए जिम्मेदार होते हैं। ब्लड में प्रोलैक्टिन का सामान्य से अधिक स्तर पीरियड में देरी कर सकता है। 50-100 एनजी/एमएल के बीच हाई प्रोलैक्टिन लेवल अनियमित अनियमित पीरियड और इनफर्टिलिटी के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। कुछ दवा, इन्फेक्शन यहां तक कि स्ट्रेस भी प्रोलैक्टिन हॉर्मोन के सीक्रेशन को बढ़ावा देता है।’

3. हीमोग्लोबिन का लेवल गिरना

Say goodbye to heavy bleeding by adopting these tips during periods

विशेषज्ञ के मुताबिक हीमोग्लोबिन का लो लेवल एंडोमीट्रियल ग्रोथ को प्रभावित कर सकता है। इससे पीरियड शुरू होने में देरी हो सकती है। लो हीमोग्लोबिन के कारण शरीर में आयरन कम हो जाता है, जो पीरियड्स को प्रभावित कर सकता है। इसके कारण एनीमिया हो जाता है, जो मासिक धर्म चक्र में देरी या अनियमितताओं का कारण बन सकता है। यदि लगातार दो से ज्यादा पीरियड साइकिल में देरी या अनियमित पीरियड का अनुभव हो रहा है, तो समस्या को समझने के लिए डॉक्टर से परामर्श करना जरूरी है।

4. अत्यधिक मोटापा या पोषण की कमी

अधिक वजन या मोटापा मासिक धर्म चक्र को प्रभावित कर सकता है। यदि वजन अधिक है, तो शरीर अतिरिक्त मात्रा में एस्ट्रोजन का उत्पादन करने लग सकता है। यह महिलाओं में प्रजनन प्रणाली को नियंत्रित करने वाले हार्मोनों में से एक है। एस्ट्रोजन की अधिकता सीधे तौर पर पीरियड को प्रभावित कर सकती है। यह उसे रोकने का कारण भी बन सकती है। पोषक तत्वों की कमी भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। क्योंकि शरीर में बहुत अधिक बदलाव आने पर इस साइकल पर नेगेटिव इफेक्ट पड़ता है।

5. फीवर और इन्फेक्शन

किसी तरह का संक्रमण मासिक धर्म को सीधे तौर पर प्रभावित नहीं कर सकता है। लेकिन इसके कारण होने वाला फीवर, यूटीआई के कारण पीरियड डिले हो सकता है। UTI के कारण शरीर पर पड़ने वाला तनाव पीरियड को प्रभावित कर सकता है। साथ ही यदि आपकी स्ट्रेसफुल लाइफस्टाइल है, तो तनाव कोर्टिसोल प्रोडक्शन बढ़ा देते हैं। इससे पीरियड में देरी हो जाती है।

क्या करें जब एक-दो महीने से पीरियड न आए?

How can you take care of your wife or girlfriend during periods?

पीरियड में सप्ताह भर की देरी होना सामान्य है। पर अगर आपके पीरियड पंद्रह से बीस दिन बाद भी नहीं आए हैं, तब यह जरूरी है कि आप अपना प्रेगनेंसी टेस्ट करें। कुछ महिलाओं को 01 महीने बाद भी पीरियड नहीं आता। जबकि कुछ जानना चाहती हैं कि 02 महीने बाद भी पीरियड न आए तो क्या करें?

एक्सपर्ट के अनुसार पर अगर आप यौन सक्रिय हैं तो बेहतर है कि आप अपना प्रेगनेंसी टेस्ट करवाएं। लेकिन अगर आप सेक्सुअली एक्टिव नहीं हैं, तो आपको जबरन पीरियड लाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। कई बार तनाव और खानपान सही नहीं होने के कारण भी पीरियड में एक-दो महीने की देरी हो जाती है। यह स्थिति नॉर्मल नहीं है। इसलिए जरूरी है कि आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें। किसी भी तरह के घरेलू उपाय अपनाकर जबरन पीरियड लाने का प्रयास करना आपके लिए खतरनाक हो सकता है। इसलिए ऐसा न करें।

फोटो सौजन्य- गूगल

Super Food

Immunity: जब मौसम सर्दियों का हो तो कभी जुकाम तो कभी स्किन प्रॉब्लम का खतरा बढ़ जाता है। अलावा इसके बुजुर्गों को जोड़ों में दर्द और हृदय में जकड़न के जोखिम को भी बढ़ा देती है। ऐसे में शरीर को हेल्दी रखने के लिए खानपान का ख्याल रखना जरूरी है। अगर आप भी मौसमी बीमारियों के कुप्रभावों से बचना चाहती हैं तो कुछ ऐसे सुपरफूड्स को आहार में जरूर शामिल करें जिससे शरीर में रोग से लड़ने की क्षमता को बढ़ाया जा सके। आइये जानते हैं कुछ खास सुपरफूड्स काम्बो के बारे में जिन्हें आहार में शामिल करके इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में मदद मिलती है-

ज्यादातर आहार में फ्लेवर एड करने के लिए कई तरह के मसाले और टेस्ट मेकर्स को रेासपी में मिलाया जाता है जिससे कि आहार की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सके। मगर इसमें पोषण को बढ़ाने के लिए सुपरफूड्स को जोड़ने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती है। इन सप्लीमेंट्स को मसालों, पत्तियों या फूड्स के तौर पर एड किया जा सकता है। इससे बॉडी को एंटीऑक्सीडेंटस और एंटी बैक्टीरियल प्रॉपर्टीज़ की प्राप्ति होती है।

डायटीशियन बताती हैं कि इम्यून सिस्टम बूस्ट करने के लिए पौष्टिक आहार के सेवन से पहले गट हेल्थ को मज़बूत रखना जरूरी है। इसे शरीर में हेल्दी बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे मेटाबॉलिज्म बूस्ट होता है। शरीर की हेल्दी फंक्शनिंग की मदद से शरीर के वज़न को संतुलित रखा जा सकता है और एनर्जी का स्तर उचित बना रहता है।

इन सुपरफूड्स को मिलाकर इम्यून सिस्टम को करें मजबूत

1. दही और पालक

Super Food with Curd

दही के सेवन से जहां प्रोबायोटिक्ट की मात्रा प्राप्त होती है, तो वहीं पालक में मौजूद बीटा कैरोटीन और फाइटोन्यूट्रिएंट्स की मात्रा शरीर को फ्री रेडिकल्स के खतरे से बचाने में मदद करते है। विटामिन डी के मुख्य स्रोत दही को ब्लैंड करके उसमें कटी हुई पालक को डालकर खाने से न केवल गट हेल्थ मज़बूत होती है बल्कि आयरन और फोलेट की प्राप्ति होती है।

अलावा इसके पोषक तत्वों का एबजॉर्बशन भी बढ़ने लगता है। USDA के अनुसार आहार में 01 कप दही को शामिल करने से 28 फीसदी फासफोरस, 10 फीसदी मैग्नीशियम और 12 फीसदी पोटेशियम की प्राप्ति होती है। इसकी मदद से रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।

2. हल्दी और काली मिर्च

Turmeric Powder with Daal

हल्दी में एंटी इंफ्लामेटरी गुण पाए जाते हैं। इसमें मौजूद एक्टिव कंपाउड संक्रमण के प्रभाव को कम करने में मदद करते है। इसके अलावा हल्दी मे पाई जाने वाली करक्यूमिन की मात्रा इंफ्लामेशन को कम करके हेल्दी ब्लड वेसल्स की फंक्शनिंग में मदद करती है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंटस की मात्रा अलसरेटिव कोलाइटिस से राहत दिलाती है।

किसी भी रेसिपी में हल्दी के साथ काली मिर्च को मिलाकर खाने से शरीर को पिपरिन की प्राप्ति होती है, जिससे पोषक तत्वों का एबजॉर्बशन बढ़ने लगता है। खिचड़ी को तैयार करने के दौरान हल्दी के साथ काली मिर्च को मिलाकर खाने से शरीर को फायदा मिलता है।

3. टमाटर में मिलाएं अदरक

आहार में टेस्ट का तड़का जोड़ने के लिए अदरक का इस्तेमाल किया जाता है। इसके सेवन से शरीर में खांसी जुकाम का खतरा कम होने लगता है और पाचनतंत्र मज़बूत बनता है इसके सेवन से शरीर में व्हाइट ब्लड सेल्स की मात्रा बढ़ती है, जिससे इम्यून सिस्टम को बूस्ट किया जा सकता है। वहीं टमाटर में मौजूद लाइकोपिन कंपाउड से शरीर में हृदय रोगों और कैंसर के चातरे को कम किया जा सकता है। लाइकोपिन फैट सॉल्यूबल है, जिससे इसके एबजॉर्बशन में मदद मिलती है। टमाटर के सूप में अदरक के पेस्ट को एड करके सेवन करने से शरीर को पोषण की प्राप्ति होती है।

4. आंवला में शहद मिलाकर खाएं

मेडिसिनल प्रॉपर्टीज़ से भरपूर आंवला में विटामिन सी की उच्च मात्रा पाई जाती है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंटस मौसमी संक्रमण के प्रभाव को कम करके शरीर को विटामिन और मिनरल प्रदान करते हैं। इसमें पाई जाने वाली एंटी बैक्टीरियल प्रॉपर्टीज़ से बैक्टीरिया और पायरस के प्रभाव को कम किया जा सकता है। वही शहद को आंवला में मिलाकर खाने से डाइजेस्टिव सिस्टम बूस्ट होता है और विटामिन सी की प्राप्ति से एजिंग का प्रभाव कम होने लगता है। कटे हुए आंवला में शहद मिलाकर स्टोर कर लें। रोज़ाना एक चम्मच इस का सेवन करने से शरीर में मौजूद विषैले पदार्थों को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है, जिससे वेटलॉस में भी मदद मिलती है।

5. शकरकंदी और एवोकाडो

बीटा कैरोअीन से भरपूर शकरकंदी अक्सर सर्दियों में खाया जाने वाला सुपरफूड है। इससे आहार में स्वाद के साथ पोषण को जोड़ा जा सकता है। इसके सेवन से शरीर को विटामिन ए की प्राप्ति होती है। वहीं इसमें एवोकाडो को मिलाने से शरीर में फैटी एसिड की कमी को पूरा किया जा सकता है। इन दोनों को मिलाकर खाने से इम्यून सिस्टम को बूस्ट किया जा सकता है ।

6. पपीते में काली मिर्च को करें एड

विटमिन A और C से भरपूर पपीते का सेवन करने से डज्ञइजेशन समेत ओवरऑल हेल्थ को फायदा मिलता है। अलावा इसके फाइबर की उच्च मात्रा मेआबॉलिज्म को भी बूस्ट करने में मदद करता है। इसमें काली मिर्च को जोड़कर खाने से व्हाइट ब्लड सेल्स की मात्रा बढ़ने लगती है, जिससे शरीर में बैक्टीरिया और वायरस का प्रभाव कम होने लगता है।

फोटो सौजन्य- गूगल

Breastfeeding

Breast Feeding को लेकर कुछ जरूरी बातें हमें मालूम नहीं होती, जिससे मां और शिशु दोनों को नुकसान होता है। मां का दूध बच्चे के लिए न्यूट्रीशन से भरा वो आहार है जो उसकी समूचे ग्रोथ में मददगार साबित होता है। ब्रेस्टफीडिंग मां और बच्चे दोनों की सेहत के लिए फायदेमंद है। वैसे तो शिशु के लिए पैदा होने के 06 माह तक ब्रेस्टफीडिंग की सलाह दी जाती है लेकिन कई बार गलत तरीके से फीडिंग मां को तो थका देती ही है साथ-साथ बच्चे को भी कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं।

ब्रेस्टफीडिंग के वक्त कुछ बातों का अमल करना जरूरी है ताकि मां और बच्चे का स्वास्थ्य बिल्कुल सही रहे। आइये जानते हैं ब्रेस्टफीडिंग के दौरान मां को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-

ब्रेस्टफीडिंग क्यों है ज़रूरी-

breastfeeding

इस बारे में विशेषज्ञ की राय हैं कि ब्रेस्टफीडिंग मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए अहम है। मां के दूध से नवजात शिशु को सभी जरूरी पोषण मिल जाते हैं, जिससे बच्चे की ग्रोथ में मदद मिलती है। अलावा इसके शिशु को पर्याप्त ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है। पर ब्रेस्टफीडिंग के दौरान कुछ खास बातों का ख्याल रखना भी आवश्यक है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक ब्रेस्ट मिल्क में इम्युनोग्लोबुलिन या एंटीबॉडी पाई जाती हैं। इससे मिलने वाला प्रोटीन बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करते हैं। अलावा इसके बच्चों में टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज़ का जोखिम भी कम हो जाता है। वहीं, ब्रेस्टफीडिंग करवाने से ब्रेस्ट और ओवरी कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है।

ब्रेस्टफीडिंग कराते समय इन बातों का रखें ध्यान

1. बच्चे की जरूरत का रखें ध्यान

 

Breast feeding

बच्चे को जब भी भूख लगे उसे स्तनपान करवाएं। अपनी तरफ से समय निर्धारित करने का प्रयास न करें। बार-बार स्तनपान कराने से दूध पर्याप्त मात्रा में बनता है और बच्चे को पूरा पोषण मिल पाता है। साथ ही किसी तरह के ब्लॉकेज या थक्का बनने का खतरा भी नहीं रहता। अगर वर्किंग मॉम हैं, तो ब्रेस्ट पंपिंग के जरिये दूध निकालकर भी बच्चे को पिलाया जा सकता है। बच्चा जब बड़ा होने लगे, तब अचानक स्तनपान बंद न करें। फीडिंग धीरे-धीरे छुड़ाने से आपके शरीर को ढलने का समय मिल जाता है और किसी तरह की परेशानी नहीं होती है।

2. क्लीनिंग पर ध्यान देना जरूरी

फीडिंग के समय हाइजीन का ख्याल रखना सबसे महत्वपूर्ण है। ब्रेस्ट फीडिंग के दौरान रोज नहाना, कपड़ों की साफ सफाई और नियमित रूप से कपड़े बदलना जरूरी है। ब्रेस्ट फीडिंग के लिए कपड़े ढीले पहनें और उनकी बनावट ऐसी हो, जिससे बच्चे को आसानी से स्तनपान कराया जा सके। स्तनों पर बार-बार हाथ लगाने से बचें। हाथ लगाने से संक्रमण का खतरा रहता है। अगर स्तनों की सफाई के लिए वाइप्स का इस्तेमाल करती हैं, तो ध्यान रहे कि वाइप्स में किसी तरह के रसायन का प्रयोग न हुआ हो।

3. सही पोश्चर में कराएं ब्रेस्टफीडिंग

breastfeeding

कुछ महिलाएं जब बच्चा लेटा हुआ होता है, तभी स्तनपान करवाने लगती हैं। ये पोश्चर बच्चे के लिए सही नहीं है। प्रयास करें कि बच्चे को करवट कराते हुए या गोद में लेकर सही तरह से उसे अपने स्तनों के पास लाएं। इससे मां और बच्चे दोनों का पोश्चर सही रहता है। जिससे कई तरह की शारीरिक परेशानियों से बचा जा सकता है। बच्चे को बारी-बारी से दोनों स्तनों से स्तनपान कराएं।

4. स्वयं को हाइड्रेटेड रखें

वॉटर इनटेक का ध्यान ब्रेस्टफीडिंग के दौरान रखना आवश्यक है। इससे शरीर हाइड्रेट रहता है और दूध न आने की समस्या हल हो जाती है। स्तनपान के दौरान पानी, जूस, शेक्स, हेल्दी सूप और अन्य तरल पदार्थों का सेवन करे। इससे शरीर में मिनरल्स की कमी पूरी हो जाती है। अलावा इसके शरीर एक्टिव और हेल्दी रहता है।

5. अपने खानपान का रखें ख्याल

हेल्दी और संतुलित आहार करना हमेशा जरूरी होता है। विशेषरूप से स्तनपान के समय यह और भी आवश्यक हो जाता है, क्योंकि मां से ही बच्चे को पोषण मिलता है। खानपान पर ध्यान देते हुए यह समझें कि अगर आपके कुछ खाने से बच्चे को परेशानी होती है, तो ऐसी चीजों से दूर रहें। बहुत भारी और मुश्किल से पचने वाले आहार की तुलना में सुपाच्य आहार ग्रहण करना सही रहता है। पानी भी पर्याप्त मात्रा में पीना चाहिए।

फोटो सौजन्य – गूगल

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

VEGAN DIET: आज कई लोग जैसे कि स्पोर्ट्स पर्सन, एथलीट और सेलिब्रिटी हैं जो वीगन डाइट यानी प्लांट बेस्ड डाइट लेटे हैं। वहीं, प्लांट बेस्ड डाइट के मद्देनजर कई स्टडी किए गए जिसमें सामने आया है कि यह एक व्यक्ति के उम्र को बढ़ा देता है। क्या वाकई ऐसा मुमकिन है? क्या प्लांट बेस्ड डाइट एनिमल बेस्ड डाइट से ज्यादासुरक्षित है? आज यहां आपके सभी प्रश्नों के जवाब लेकर आए हैं। तो आइये जानते हैं, प्लांट बेस्ड डाइट और लांगेविटी को लेकर क्या कहती है स्टडी।

जानें प्लांट बेस्ड डाइट और लोंगेविटी को लेकर क्या कहती है स्टडी-

साल 2020 में दो अध्ययन किए गए और उसमें पाया गया कि प्लांट बेस्ड डाइट लेने से किसी भी इंसान की उम्र ज्यादा लंबी हो सकती है। हार्वर्ड और तेहरान विश्व विद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक स्टडी में पाया गया कि जिन लोगों ने प्लांट बेस्ड डायट से अपने प्रोटीन की जरूरतों को पूरा किया है, उसमें वक्त से पहले मौत का जोखिम 05 फीसदी कम होता है।

JAMA इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि रेड मीट और अंडे की जगह प्लांट बेस्ड प्रोटीन का सेवन करने वाले पुरुषों में समय से पहले मौत का जोखिम 24 फीसदी और महिलाओं में 21 फीसदी तक कम होता है।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन द्वारा प्रकाशित अध्ययन के अनुसार प्लांट बेस्ड डाइट एंटीऑक्सीडेंट का एक बेहतरीन स्रोत है, जो आपकी बॉडी सेल्स को फ्री रेडिकल्स के प्रभाव से बचाता है और बॉडी इन्फ्लेमेशन को कम कर देता है। अलावा इसके इसमें फाइटोकेमिकल्स पाए जाते हैं, जिन में एंटी इन्फ्लेमेटरी और एंटी कैंसर प्रॉपर्टीज होती हैं और यह शरीर को इस तरह की बीमारियों से बचाते हैं।

जानें प्लांट बेस्ड डाइट के फायदे

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

मणिपाल हास्पिटल, गाज़ियाबाद में हेड ऑफ न्यूट्रीशन और डाइटेटिक्स डॉ अदिति शर्मा ने वेगन डायट यानी कि प्लांट बेस्ड डाइट फॉलो करने के कुछ महत्वपूर्ण फायदे बताएं हैं। डॉक्टर के अनुसार यह खुद को स्वस्थ एवं सुरक्षित रखने का एक अच्छा तरीका है।

1. वेट लॉस में होती है मदद

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार वीगन डाइट में कम फैट और अधिक फाइबर होता है। नट्स, पालक, केला आदि जैसे फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ खाने से आपको संतुष्टि प्राप्त होती है और आप कम खाती हैं।

2. ब्लड शुगर करता है कंट्रोल

विगन डाइट आपको ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। प्लांट बेस्ड डायट में अधिक साबुत अनाज, ताजी सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ होते हैं, जो ग्लाइसेमिक इंडेक्स में कम रैंक करते हैं। इस प्रकार यह ग्लूकोज के स्तर को सामान्य रखने में आपकी मदद करता है। प्लांट बेस्ड डायट में सैचुरेटेड फैट भी कम होता है, जो इसे टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए आदर्श बनाता है।

3. CANCER के खतरे को करें कम

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

मोटापा, गतिहीन जीवनशैली आदि जैसे कई जीवनशैली कारक किसी व्यक्ति को कुछ प्रकार के कैंसर, विशेष रूप से पेट, लिवर, पेनक्रियाज, पित्ताशय आदि के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं। अधिक फलियां और क्रूसिफेरस सब्जियां खाने और रेड मांस जैसे रिफाइंड खाद्य पदार्थों का सेवन कम करने से कैंसर होने का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है।

4. मेटाबॉलिज्म को बनाए बेहतर

प्लांट बेस्ड डाइट हमारे आंत में बैक्टीरिया/माइक्रोबायोम को बढ़ावा देता है। इस प्रकार हेल्दी बैक्टीरिया बेहतर पाचन में मदद करते हैं, साथ ही साथ मेटाबॉलिज्म भी बेहतर होता है। इससे पाचन संबंधी समस्याओं का खतरा कम हो जाता है। साथ ही साथ वेट मैनेजमेंट में भी मदन मिलती है।

5.हेल्दी हृदय को बढ़ावा दें

बता दें कि यह डाइट कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और साथ ही ब्लड शुगर और पुरानी सूजन को भी कम करता है, इसलिए यह हृदय स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भी बहुत अच्छा है। बढ़ता कोलेस्ट्रॉल और क्रोनिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस दो ऐसे वजह हैं, जो अक्सर हार्ट अटैक का कारण बनते हैं।

फोटो सौजन्य- गूगल