
Health Tips: अनहेल्दी जीवन शैली और अनियमित खानपान वेटगेन का मुख्य कारण साबित होता है। ऐसे में वर्क आउट के लिए कुछ ऐसी चीज लेनी चाहिए जो स्वास्थ्य के लिए अहम हो, इसमें जो नाम सबसे ऊपर आता है वो है अजवाइन और जीरे का पानी, जोकि आपके वजन को नियंत्रित रखता है। इसमें मौजूद गुणों का भंडार वजन को कम करने के अलावा पेट फूलने की समस्या से छुटकारा दिलाने में भी मदद करते हैं। अजवाइन और जीरे में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा और एंटी इंफ्लामेटरी गुण स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होता है। आइये जानते हैं वजन नियंत्रित करने के लिए किस तरह से इन दोनों का मिश्रण फायदेमंद होता है-
अजवाइन और जीरे के बीज क्यों हैं खास
इस बारे में डायटीशियन का कहना है कि अजवाइन का सेवन करने से शरीर को डाइजेस्टिव एंजाइम की प्राप्ति होती है। इसमें मौजूद फाइबर, विटामिन और मिनरल शरीर के पाचन में सुधार करके मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में मदद करते हैं। इन बीजों से पेट फूलनाए गैस और अपच को कम किया जा सकता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक इसमें थाइमोल और कार्वाक्रोल जैसे दो एक्टिव कंपाउड पाए जाते हैं, जो बैक्टीरिया और फंगस के विकास को रोकते हैं।
वहीं, जीरा में एंटीऑक्सीडेंट गुणों के अलावा डाइजेस्टिव एंजाइम मौजूद हैं, जो पाचन में सहायता करने में मदद करते है। वे भूख बढ़ाने, सूजन को कम करने और वजन प्रबंधन में सहायता करते हैं। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार जीरा लीवर से पित्त यानी बाइल के स्राव को भी बढ़ाता है। पित्त पेट में वसा और कुछ पोषक तत्वों को पचाने में मदद करता है। शोध के अनुसार आईबीएस के 57 रोगियों ने दो हफ्ते तक जीरे का सेवन किया। इससे लक्षणों में सुधार देखने को मिला।
अजवाइन और जीरे के महत्वपूर्ण फायदे
1. पाचन में लाए सुधार
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च एंड हेल्थ साइंसेज की रिपोर्ट के मुताबिक जीरा गैस्ट्रिक जूस के स्राव को उत्तेजित करके पाचन में सुधार करने में मदद करता है। वहीं, अजवाइन में कार्मिनेटिव गुण होते हैं जो सूजन और गैस को कम करने में मदद करते हैं। इन्हें पानी के साथ मिलाए जाने पर पोषण अवशोषण में सुधार आने लगता है।
2. एसिडिटी से दिलाए राहत
जीरा और अजवाइन का पानी पेट के मौजूद ACID को कम करके एसिडिटी से राहत दिलाने में मदद कर सकता है। इसकी मदद से गैस्ट्रिक जूस को एसिडिक होने से रोका जा सकता है। बायोकेमिस्ट्री रिसर्च इंटरनेशनल के अनुसार अजवाइन के बीज गैस और सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं।
3. मेटाबॉलिज्म को करता है बूस्ट
इससे चयापचय को उत्तेजित करने में मदद मिलती हैं, जिससे अधिक कैलोरी को बर्न किया जा सकता है। इनमें मौजूद फाइबर की मात्रा भूख को कम करके शरीर में कैलोरी को स्टोर होने से राकते हैं। इससे ओवरइटिंग और बार बार भूख लगने की समस्या को कम किया जा सकता है। साथ ही शरीर में दिनभर एक्टिव बना रहता है।
4. डिटॉक्सिफाइंग गुणों का खजाना
इस पानी का सेवन करने से विषाक्त पदार्थों और वॉटर रिटेंशन को खत्म करने में मदद मिलती हैंं। इससे बॉडी फंक्शनिंग उचित बनी रहती है। साथ ही बार बार भूख लगने की समस्या को भी हल किया जा सकता है। इसके सेवन से पाचनतंत्र को मज़बूती मिलती है।
ऐसे तैयार किया जाता है अजवाइन और जीरे का पानी
अजवाइन और जीरे का पानी एक पारंपरिक भारतीय पेय पदार्थ है जिसे पानी में अजवाइन और जीरे को उबालकर बनाया जाता है। मिश्रण का सेवन अक्सर इसके पाचन और स्वास्थ्य लाभों के लिए किया जाता है। व्यंजनों को तैयार करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अजवाइन और जीरा में औषधीय गुण पाए जाते हैं। जब इन्हें पानी में उबाला जाता है, तो उससे नेचुरल ऑयल और एक्टिव कंपाउड मिलते हैं, जिससे शरीर को कई अहम फायदे मिलते हैं।
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COVID CASES: भारत समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना वायरस ने एक बार फिर से पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। भारत में भी कोविड-19 के मामलों में लगातर बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। महाराष्ट्र में शुक्रवार को कोविड-19 के 45 केस सामने आए। इसमें सबसे अधिक मुंबई में 35, पुणे में 04, रायगढ़ में 02, कोल्हापुर में 02 और ठाणे तथा लातूर में एक नए मरीज मिले हैं। मुंबई में अब तक कोरोना के कुल मरीजों की तादाद 183 हो गई है। वहीं, महाराष्ट्र में पॉजिटिव मामले 210 तक पहुंच गए हैं।
कोरोना के ना केवल संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है, बल्कि अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। यानी लक्षण गंभीर हो रहे हैं। भारत में केरल, महाराष्ट्र सहित 257 से अधिक मामले सक्रिय हैं। जबकि मुंबई में दो लोगों की कोविड से मौत हो चुकी है। विशेषज्ञों ने अभी से सावधानी बरतने की सलाह दी है और अनुमान लगाया है कि अगले तीन सप्ताह और भी अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।
कोविड का नया वेरिएंट और ताज़ा आंकड़े
सिंगापुर, थाईलैंड और हांगकांग में संक्रमितों की जांच के आंकड़ों में सामने आया है कि इस बार संक्रमण का कारण ओमिक्रोन का सब वेरिएंट JN.1 संक्रमण फैला रहा है। इससे कई एशियाई देशों में लोग हल्के से गंभीर लक्षणों के शिकार हो रहे हैं।
अप्रैल के आखिरी और मई के पहले सप्ताह में ही कोविड संक्रमितों की संख्या 14 हजार के पार पहुंच गई है। इनमें सर्वाधिक खराब हालात सिंगापुर और हांगकांग के हैं, जहां हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी गई है। जापान में भी सार्स कोविड के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।
भारत में COVID के सक्रिय मामले
कोविड के प्रसार का तरीका पहले जैसा है, जिसने साल 2019 के अंत से मार्च-अप्रैल 2020 तक दुनिया भर में कहर बरपाया था। भारत के बड़े शहरों, जो अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं से सीधे जुड़े हैं, वहां सबसे ज्यादा कोविड के सक्रिय मामले देखे जा रहे हैं। इनमें केरल और मुंबई में सबसे ज्यादा लोग कोविड के सब वेरिएंट जेएन.1 से संक्रमित हुए हैं।
क्या इस वेरिएंट से घबराने की जरूरत है?
कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों और मुंबई में हुई 2 मौतों के बाद लोगों में डर का माहौल है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी तत्काल सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ का कहना है कि एशिया के कई देशों में कोविड-19 के मामलों में स्पष्ट वृद्धि देखी जा रही है, जिससे स्वास्थ्य अधिकारियों की चिंता बढ़ गई है। बदलते हुए वायरस वेरिएंट और कम होती रोग प्रतिरोधक क्षमता इस मौजूदा लहर को बढ़ावा दे रही है। इस समय जब लोगों की आवाजाही और सेहत के प्रति लापरवाही भी बढ़ी है।
ओमिक्रॉन स्ट्रेन का नया सबवेरिएंट्स, JN.1 मौजूदा हेल्थ जोखिमों के लिए जिम्मेदार है। यह सबवेरिएंट अत्यधिक संक्रामक है और पहले की तुलना में बेहतर तरीके से रोग प्रतिरोधक क्षमता को चकमा देने में कामयाब है।
विशेषज्ञ आगे कहते हैं कि हालांकि, यह अधिक घातक नहीं है। इसके तेज़ी से फैलने के कारण कुल मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है। जो लोग पहले से वैक्सीनेटेड हैं, उनमें लक्षण हल्के ही पाए जा रहे हैं।
बूस्टर डोज लेना हो सकता है बचाव का उपाय
विशेषज्ञ के मुताबिक रोग प्रतिरोधक क्षमता समय के साथ कम हो जाती है। इसलिए कई देशों ने बूस्टर डोज लेने की सलाह दी है। एशिया के अधिकांश लोगों ने एक साल से भी पहले अपनी वैक्सीन की खुराक ली थी। समय पर बूस्टर न मिलने के कारण प्रतिरक्षा क्षमता घट जाती है, जिससे बुज़ुर्गों और वे लोग जो अन्य किसी बीमारी से पहले ही ग्रस्त हैं, उनमें संक्रमण का जोखिम और ज्यादा बढ़ जाता है।
महामारी के समय के नियमों में ढील ने समस्या को और गंभीर बना दिया है। लोग अब सामान्य जीवन में लौट आए हैं, मास्क पहनना, सामाजिक दूरी बनाए रखना और स्वच्छता जैसे उपायों को काफी हद तक छोड़ दिया गया है। सार्वजनिक समारोहों और अंतरराष्ट्रीय यात्रा के फिर से शुरू हो जाने से वायरस को फैलने का भरपूर मौका मिल गया है।
अगले तीन हफ्ते हैं बेहद संवेदनशील
मौजूदा लहर को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है और लोगों को सावधानी बरतनी चाहिए ताकि संक्रमण से बचा जा सके। अगले तीन हफ्ते इन मामलों में तेजी देखी जा सकती है। फ्यूचर में किसी भी नए म्यूटेशन का समय रहते पता लगाने के लिए निगरानी जारी रखना लाभकारी हो सकता है। इसके अलावा, सतर्कता और जिम्मेदार व्यवहार वायरस को नियंत्रित रखने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
चढ़ते-उतरते मौसम भी इसमें भूमिका निभा रहे हैं। ज्यादातर लोग घरों के अंदर रहने लगे हैं, जहां वेंटिलेशन की कमी होती है और संक्रमण का खतरा अधिक होता है। अलावा इसके अब टेस्टिंग भी कम हो गई है, जिससे केसों की सही संख्या रिपोर्ट नहीं हो पा रही है। असली आंकड़े रिपोर्ट किए गए मामलों से कहीं अधिक हो सकते हैं।
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REGULAR SEX: बॉडी को स्वस्थ और फिट रखने के लिए लोग ज्यादातर जिम और फैंसी डाइट का हेल्प लेते हैं लेकिन रिलेशन में सेक्सुअल इंटिमेसी दिनों दिन बढ़ते टेंशन के अलावा कई समस्याओं को दूर भगाने का सबसे मजेदार विकल्प है। दिनभर के कामकाज के बाद नियमित रूप से तनाव का सामना करना पड़ता है, जो मूड स्विंग की वजह बनता है। ऐसे में सेफ सेक्स को रूटीन में शामिल करके शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है। वे महिलाएं जो अक्सर सेक्स को एंजॉय करती हैं, वे हमेशा अपने पार्टनर के साथ जुड़ाव की गहरी भावना का अनुभव करती हैं, जिससे रिश्ता हेल्दी और खुशहाल बन जाता है और कुल मिलाकर उनकी जिंदगी ज्यादा संतुलित हो जाती है।
ये हैं रेगुलर सेक्स से शरीर को मिलने वाले फायदे
विशेषज्ञ का कहना हैं कि नियमित सेक्स कई तरह से आपकी मदद कर सकता है। हालांकि सेक्स के विषय पर अभी भी लोग खुलकर बात करना पसंद नहीं करते हैं। यौन संबंध से मेंटल हेल्थ और शरीर को सक्रिय रखने में मदद मिलती है। खासकर उम्र बढ़ने के साथ नियमित सेक्सुअल एक्टीविटीज़ में शामिल होने से शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य दोनों पर सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है।
क्या सेक्स सेहत को प्रभावित करता है?
अमेरिकन सेक्सुअल हेल्थ एसोसिएशन के मुताबिक नियमित सेक्स शरीर को फायदा पहुंचाता है। ये पुरुषों और महिलाओं के लिए कार्डियोवेस्कुलर एक्सरसाइज के तौर पर फायदा पहुंचाता है। अलावा इसके इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने, हृ्दय रोगों से राहत, कैलोरीज स्टोरेज की रोकथाम और मांसपेशी की मजबूती को बढ़ाने में मदद करता है।
नियमित सेक्स करने से सेहत को मिलते हैं ये 8 फायदे-
1. इमोशनल बॉडिंग मजबूत होती है
अक्सर उम्र के साथ पति-पत्नी के रिश्ते में खिंचाव बढ़ने लगता है। ऐसे में नियमित सेक्स इमोशनल इंटिमेसी और कपल्स के बीच गहरे संबंध को बढ़ाता है। ऑक्सीटोसिन को लव हार्मोन कहा जाता है, जो सेक्स और शारीरिक स्पर्श के दौरान रिलीज़ होता है। ये हार्मोन भावनात्मक बंधंन को मजबूत करने में मदद करता है और भागीदारों के बीच विश्वास और स्नेह बढ़ाता है। इससे अधिक सटिस्फेक्शन और स्टेबल रिलेशन बनते हैं। जर्नल सेज चॉइस की रिपोर्ट के मुताबिक रेगुलर सेक्सुअल एक्टीविटी फिज़िकल और इमोशनल हेल्थ को प्रभावित करती है।
2. अच्छी आती है नींद
इससे शरीर में ऑक्सीटोसिन यानी लव हार्मोन की मात्रा बढ़ने लगती है और सेक्स के दौरान एंडोर्फिन रिलीज होता है। इन दोनों हार्मोन के मिलने से नींद की गुणवत्ता में सुधार आने लगता है। इससे शरीर को अधिक आराम महसूस होता है और ऊर्जा का स्तर भी बढ़ने लगता है।
3. इम्यून सिस्टम बेहतर होता है
NIH की रिपोर्ट के अनुसार वे लोग जो फ्रीक्वेंट सेक्स करते थे यानी सप्ताह में एक से दो बार या उससे अधिक बार, उनके स्लाइवा में अधिक इम्युनोग्लोबुलिन एआईजीए पाया जाता है। आईजीए एक प्रकार की एंटीबॉडी है जो बीमारियों को रोकने में महत्वपूर्ण साबित होती है और हयूमन पेपिलोमावायरस या एचपीवी के खिलाफ रक्षा कवच के रूप में कार्य करता है। इससे महिलाएं बीमारियों और संक्रमणों से लड़ने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो जाती हैं। रिपोर्ट के अनुसार जैसे-जैसे यौन गतिविधियां बढ़ती है, वैसे ही रोग प्रतिरोधक क्षमता संक्रमण से निपटने में ज्यादा सक्षम हो जाती है।
4. हृदय संबंधी समस्याएं कम होती हैं
यौन संबंध को नियमित रखने से हृदय गति, ब्लड सर्कुलेशन और ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ने लगता है, जो समग्र हृदय स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करता है। नियमित सेक्स महिलाओं में हृदय रोग और स्ट्रोक के जोखिम को कम करने में भी कारगर है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक नियमित यौन गतिविधि हृदय रोग वाले पुरुषों और महिलाओं के लिए रोगी के साथ-साथ साथी के जीवन की गुणवत्ता को भी बढ़ाता है।
5. तनाव कम होता है
इससे जिंदगी में दिनों-दिन बढ़ने वाले तनाव को कम किया जा सकता है और सकारात्मक मनोदशा को बढ़ावा देने की क्षमता में सुधार आने लगता है। दरअसल, सेक्स के दौरान शरीर एंडोर्फिन जारी करता है, जिससे व्यक्ति खुशी का अनुभव करता है। ये रसायन तनाव और चिंता से निपटने में मदद करते हैं जिससे महिलाएँ अधिक आराम और संतुष्ट महसूस करती हैं। नियमित सेक्स करने से भावनात्मक कल्याण और खुशी का एक चक्र बन सकता है। जर्नल ऑफ़ फ़ैमिली साइकोलॉजी के शोध में पाया गया कि दैनिक जीवन में जिन प्रतिभागियों ने यौन गतिविधि कम होने की बात कही, उनमें सेक्स की कमी पाई गई।
6. मज़बूत होती हैं पेल्विक मसल्स
इंटिमेसी जहां सेक्सुअल हेल्थ के लिए महत्वपूर्ण है, तो इससे पेल्विक फ्लोर मसल्स की भी मज़बूती बढ़ जाती है। इससे यूटर्स और ब्लैण्डर को भी हेल्दी रखा जा सकता है। सेक्सुअल एंक्टीविटी से जहां आपसी प्यार और अंडरस्टैडिंग बढ़ने लगती है, तो वहीं लोअर बॉडी के मसल्स को मज़बूती मिलती है और स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम कम हो जाता है। इससे वेजाइना से संबधी बीमारियों का जोखिम कम होने लगता है।
7. पेट की चर्बी में आती है कमी
प्लोस वन के रिसर्च के अनुसार पुरुष सेक्स के दौरान प्रति मिनट लगभग 4.2 कैलोरी जलाते हैं, जबकि महिलाएं प्रति मिनट 3.1 कैलोरी बर्न करती हैं। सेक्स से शरीर में कैलोरी स्टोरेज से बचा जा सकता है और शरीर स्वस्थ रहता है। कैलोरी बर्न होना सेक्स सेशन की स्पीड, समय और पोज़िशन पर निर्भर करता है।
8. प्राकृतिक पेन किलर है
सेक्स के दौरान एंडोर्फिन का स्राव न केवल तनाव को कम करने में मदद करता है बल्कि यह एक नेचुरल दर्द निवारक के रूप में भी काम कर सकता है। विशेषज्ञ के अनुसार कुछ महिलाओं को यौन गतिविधि में शामिल होने के बाद सिरदर्द, मासिक धर्म में ऐंठन और शरीर के अन्य हिस्सों में दर्द से अस्थायी राहत महसूस होता है।
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BEL SHARBAT: गर्मी के मौसम में तरह-तरह की स्पेशल फूड्स फेमस है उनमें से एक है बेल। पूरे देश में गर्मी के मौसम में बेल का शरबत लोग जमकर पीते हैं ताकि शरीर गर्मी से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार रहे बेल एक बेहद फायदेमंद और कूलिंग फ्रूट है, जो विशेष रूप से गर्मी के मौसम में फायदेमंद माना जाता है। आप आसानी से घर बेल का शरबत तैयार कर सकती हैं। इनमें कई अहम पोषक तत्वों की गुणवत्ता और प्रॉपर्टीज पाई जाती है, जो सेहत के लिए भिन्न रूपों में फायदेमंद साबित हो सकती है। अगर आपने अभी तक इस उम्दा फल का आजमाया नहीं है तो इस गर्मी इसे जरूर आजमाएं।
आपके लिए हम इसकी काफी आसान रेसिपी लेकर आए हैं, जिसे आप 10 मिनट में तैयार कर सकती हैं। यह रिफ्रेशिंग ड्रिंक आपको पूरे दिन फ्रेश रखने का काम करता है, एनर्जेटिक और हाइड्रेटेड रहने में मदद करता है। इस तरह आप गर्मी से निजात पाते हैं। आइये जानते हैं बेल का शरबत तैयार करने की रेसिपी-
बेल शरबत की रेसिपी
बेल शरबत बनाने के लिए जरूरी समान
1 बड़ा बेल
4 बड़ा चम्मच चीनी (जरूरत अनुसार)
1 लीटर पानी
पुदीने की पत्तियां
बर्फ के टुकड़े
एक चुटकी नमक
इस तरह तैयार करें बेल का शरबत
- बेल को बेलन से तोड़ें और फिर चम्मच की मदद से गूदा निकाल लें।
- अपनी उंगलियों का उपयोग करें और गूदे को मसलें, फिर इनमें से सारे बीज निकाल लें।
- बीज काफी कड़वे होते हैं, इसलिए सुनिश्चित करें कि कोई भी बीज जूस में न छुटे, अन्यथा मुंह का स्वाद बिगड़ सकता है।
- गुदे में ठंडा पानी डालें और इसे वापस से अच्छी तरह से मसलें।
- अब इसे छननी में डालें और लकड़ी के चम्मच का उपयोग करके छलनी पर दबाएं।
- इसमें से जितना हो सके उतना गूदा निकालें, बड़े रेशों को छोड़ दें।
- अगर आपको ज्यादा मिठास चाहिए तो चीनी डालें, या मिठास के लिए शहद जैसे हेल्दी विकल्प भी इस्तेमाल कर सकती हैं।
- एक बड़े कंटेनर में बर्फ के टुकड़े, कुचले हुए पुदीने के पत्ते डालें और ऊपर से शर्बत डालें।
- अच्छी तरह मिलाएं और ठंडा शराब सर्व करें।
- आप चाहें तो एक चुटकी नमक भी मिला कर सकती हैं, ये पूरी तरह से वैकल्पिक है।

Pregnancy में सेक्स कितना सही है? ये बहस काफी पुरानी है। घर के बड़े-बुजुर्ग प्रेगनेंसी में सेक्स को सख्ती से मना करते हैं जबकि डॉक्टर इसे पूरी तरह सुरक्षित मानते हैं। ज्यादातर स्त्री रोग विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर प्रेगनेंसी में कोई दिक्कत नहीं है, तो सेक्स करने में कोई बुराई नहीं है। बल्कि यह प्रेगनेंसी में आपके मू़ड और रिश्ते को बेहतर बनाए रखने में मददगार साबित हो सकता है। स्त्री रोग एक्पर्ट इसे नॉर्मल डिलीवरी के लिए भी फायदेमंद मानती हैं। क्या वाकई प्रेगनेंसी में सेक्स नॉर्मल डिलीवरी में महत्वपूर्ण रोल अदा करता है? आइये समझते हैं इसे विस्तार से-
प्रेगनेंसी में सेक्स पर जानें विशेषज्ञ की राय
विशेषज्ञ ने प्रेगनेंसी में सेक्स करने पर जोर दिया है। वे इसे नॉर्मल डिलीवरी के लिए मददगार मानती है। अपनी पोस्ट में उन्होंने घरों में काम करने वाली उन महिलाओं का जिक्र करते हुए बताया है कि कैसे इन महिलाओं में ज्यादातर की नॉर्मल डिलीवरी होती है। जबकि शहरी-कामकाजी महिलाओं में सी सेक्शन के मामले अधिक देखने को मिलते हैं।
इसके लिए वे उनके गर्भावस्था के पूरे 09 महीने शारीरिक रूप से सक्रिय होने को सबसे बड़ा कारण बताती हैं। एक्सपर्ट की माने तो जो महिलाएं अपनी गर्भावस्था में शारीरिक रूप से सक्रिय रहती हैं, उनके लिए नॉर्मल डिलीवरी आसान हो जाती है। जबकि फिजिकली एक्टिव ना रहने वाली महिलाओं में सी सेक्शन डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है।
इंडियन टॉयलेट सीट का इस्तेमाल है फायदेमंद
गांव की औरतों का उदाहरण देते हुए डॉ अरुणा कालरा कहती हैं, कि इंडियन स्टाइल की टॉयलेट सीट का इस्तेमाल करते हुए आप स्क्वाट पॉजीशन में बैठते हैं, जिससे पेल्विक मसल्स को संकुचित होने और फैलने में मदद मिलती है। यह मुद्रा शरीर के इस हिस्से के लिए एक स्वभाविक व्यायाम है।
सेक्स कैसे करता है नॉर्मल डिलीवरी में योगदान
फिजिकली एक्टिव रहने और इंडियन टॉयलेट सीट के प्रयोग के अलावा प्रेगनेंसी में किया गया सेक्स भी नॉर्मल डिलीवरी को आसान बना देता है। डॉक्टर के मुताबिक पुरुषों के सीमन में एक प्रोस्टाग्लैंडीन नाम का तत्व होता है। जो नॉर्मल डिलीवरी में मदद करता है। डॉक्टर का कहना है कि अगर आप प्रेगनेंसी में सेक्स करने से डरती हैं, तो 9वां महीना शुरू होने के बाद सेक्स करना जरूर शुरू करें ताकि वेजाइनल मसल्स मजबूत हो सकें और योनि प्रसव आसानी से हो सके।
एक्सपर्ट के मुताबिक वे इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही में सेक्स करना नॉर्मल वेजाइनल डिलीवरी को आसान बना देता है। यह गर्भाशय के निचले हिस्से की मांसपेशियों को नर्म और लचीला बनाता है, ऑक्सीटॉसिन रिलीज करवाता है और आप दोनों को फीलगुड भी करवाता है। अब घबराने की जरूरत नहीं, अपनी डॉक्टर से सलाह लें और गर्भावस्था में सेक्स को पूरी तरह से एनजॉय करें।

Morning Walk: शरीर को पूरे दिन एक्टिव और हेल्दी बनाए रखने के लिए ज्यादातर लोग दिन की शुरूआत मॉर्निंग वॉक से करते हैं। पर्यावरण के नजदीक कुछ देर रहने से पक्षियों की चहचहाहट, ठंडी हवाओं और हरियाली को खुली आंखों से महसूस किया जाता है। इससे बॉडी और माइंड एक्टिव रहता है। हालांकि गर्मी के दिनों में देरी से वॉक के लिए निकलने के कारण पसीना आना, बार-बार गला सूखना और थकान का सामना करना पड़ता है। ऐसे में नियमित वक्त पर वॉक पर जाना बेनिफिशियल साबित होता है। सुबह की सैर पर निकलने से पहले रखें कुछ बातों का खास ध्यान-
एक हेल्थ रिपोर्ट के मुताबिक पैदल चलना सभी उम्र के लोगों के लिए व्यायाम का एक बेहतरीन तरीका है। इसके लिए पैदल चलने की क्रिया को धीरे धीरे शुरू करें। समय के साथ इसकी आदत हो जाने पर रास्ते की लंबाई और चलने की गति बढ़ाते जाएं।
इस बारे में फिटनेस एक्सपर्ट बताते हैं कि शरीर को संतुलित रखने और मांसपेशियों की ऐंठन से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करें। इससे शरीर का लचीलापन बढ़ने लगता है और शारीरिक अंगों में बढ़ने वाली थकान से भी बचा जा सकता है। नियमित रूप से इसका अभ्यास शरीर में जमा कैलोरीज को भी बर्न करने में मदद करता है।
मॉर्निंग वॉक पर जाने से पहले रखें इन बातों का ध्यान
1. वॉर्मअप होना ना भूलें
वॉक करने से पहले शरीर को एक्टिव करने के लिए वॉर्मअप सेशन बहुत आवश्यक है। इससे शरीर का तापमान उचित बना रहता है और शरीर में लचीलापन रहता है। इसके अलावा कोर मसल्स मज़बूत बनते हैं, जिससे चोटिल होने का खतरा भी कम होने लगता है। वॉक से पहले 15 मिनट का वॉर्मअप मांसपेयियों सेशन बेहद ज़रूरी है। एक रिपोर्ट के अनुसार वॉर्मअप की मदद से मांसपेशियों में बढ़ने वाले खिंचाव को कम किया जा सकता है और ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने में मदद मिलती है।
2. बॉडी को हमेशा हाइड्रेट रखें
टहलने से कुछ देर पहले पानी पीने से बार-बार प्यास लगने की समस्या हल होने लगती है। साथ ही कार्यप्रणाली में सुधार आने लगता है, जिससे होने वाली थकान से बचा जा सकता है। इससे शरीर के तापमान को नियंत्रित करने, जोड़ों की मोबिलिटी को बढ़ाने और पोषक तत्वों के अवशोषण में मदद मिलती है। इससे शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह उचित बना रहता है।
3. कपड़े और जूतों का ख्याल रखें
गर्मी में वॉक पर जाने के दौरान अधिक टाइट कपड़े पहनने से बचें। इसके अलावा फुल स्लीव्स और कैप को भी अवॉइड करें। इससे गर्मी का स्तर बढ़ने लगता है। ऐसे में हल्के रंग के और खुले कपड़े पहनें। इसके अलावा स्पोर्टस शूज पहनकर ही वॉक पर निकलें। इससे थकान कम होने लगती है और गिरने का जोखिम भी कम हो जाता है।
4. धीमी गति से करें शुरूआत
तेज़ी से चलना जहां एक तरफ आपके समय को तो बचाता है। मगर उससे शारीरिक थकान बढ़ जाती है और बार बार पसीना आने लगता है। ऐसे में शुरूआत धीमी गति से करें और फिर स्टेमिना बिल्ड होने के बाद समय सीमा को बढ़ा दें। इससे स्वास्थ्य को भी फायदा मिलता है।
5. सही तकनीक का करें प्रयोग
आराम से धीरे और बाहों को हिलाते हुए चलें। इसके अलावा वॉक के दौरान शरीर को एकदम सीधा कर लें और लंबे लंबे फुट स्टेप्स लेने से बचें। शुरूआत 20 मिनट की वॉक से कर लें और सप्ताह में 2 से 3 बार ही वॉक के लिए जाएं।
6. खुद को कूल कर लें
आप हमेशा लॉन्ग और फास्ट सैर करने के बाद शांत हो जाएं। शरीर को एक्टिव रखने के लिए टहलने के बाद कुछ स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करें। इससे बॉडी में बढ़ने वाली पेन और थकान कम होने लगती है। इसके बाद बॉडी को कुछ देर रिलैक्स होने के लिए छोड़ दें, जिससे शरीर की एनर्जी दोबारा बूस्ट हो सके।
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अगर आप BABY PLAN करना चाहते हैं और कंसीव करने का मन बना रहे हैं तो अपने साथ-साथ अपने पार्टनर की फर्टिलिटी का भी जरूर ध्यान रखें। जब कभी हम फर्टिलिटी की बात करते हैं तो पहले फीमेल फर्टिलिटी की ही बात करते हैं लेकिन अक्सर मेल फर्टिलिटी को दरकिनार कर देते हैं। यह समझना बहुत जरूरी है कि कंसीव करने के लिए एग और स्पर्म दोनों फर्टाइल होने जरूरी होते हैं। मेल फर्टिलिटी से संबंधित जानकारी पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी होनी चाहिए। क्योंकि अपने पार्टनर को सही गाइड करने में कोई बुराई नहीं।
एक सीनियर गाइनेकोलॉजिस्ट और रोबोटिक सर्जन ने मेल फर्टिलिटी बूस्ट करने को लेकर कुछ अहम टिप्स दिए हैं। आइये इस बारे में पूरे विस्तार से जानते हैं-
जानें पुरुषों के हेल्दी फर्टिलिटी से जुड़े कुछ टिप्स
1. टाइट और सिंथेटिक अंडरगारमेंट्स से नुकसान
कुछ अध्यन के मुताबिक टाइट अंडर गारमेंट्स या पैंट पहनने वाले पुरुषों का स्पर्म काउंट सामान्य पुरुषों की तुलना में कम होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि टाइट अंडरगारमेंट हवा को पास होने से रोकते हैं, जिसकी वजह से अंदर का तापमान बढ़ जाता है। स्क्रोटल टेंपरेचर बढ़ने की वजह से स्पर्म काउंट पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसलिए अगर आपके पार्टनर टाइट और सिंथेटिक अंडरगारमेंट्स पहनते हैं, तो इन्हें आज ही कॉटन अंडरगारमेंट से बदले ताकि उनके टेस्टीकल्स एक हेल्दी एनवायरमेंट में रह सकें।
2. स्कोमिंग का कुप्रभाव
जो लोग अत्याधिक स्मोकिंग करते हैं उन पुरुषों की फर्टिलिटी यानी कि स्पर्म काउंट और क्वालिटी दोनों समय के साथ कम होते जाता है। सिगरेट का धुआं ब्लड वेसल्स को नुकसान पहुंचता है, इसके अलावा डीएनए डैमेज का कारण बन सकता है। ब्लड वेसल्स के नुकसान की वजह से ब्लड फ्लो कम हो जाता है, जिसकी वजह से इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। कुछ मामलों में पुरुषों के स्पर्म असामान्य शेप में आ जाते हैं, जिसकी वजह से फर्टिलाइजेशन की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है। वहीं सिगरेट के धुएं में मौजूद टॉक्सिंस डीएनए डैमेज का कारण बन सकते हैं, ऐसे में मिसकैरेज, बर्थ डिफेक्ट जैसे गंभीर समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
3. सॉना-जकूजी बाथ प्लानिंग के 6 महीने पहले से न लें
सॉना और जकूजी बाथ को लंबे समय से अलग-अलग कल्चर में प्रैक्टिस किया जा रहा है। इसे शरीर को रिलैक्स करने के लिए और कई सेहत संबंधी फायदे प्रदान करने के लिए जाना जाता है। पर असल में स्पर्म काउंट और मेल फर्टिलिटी पर इसका नकारात्मक असर हो सकता है, यह स्पर्म की मात्रा और गुणवत्ता दोनों को प्रभावित कर सकता है। टेस्टिकल्स शरीर के बाहर इसलिए होते हैं, क्योंकि उन्हें बॉडी के कोर टेंपरेचर से कम टेंपरेचर में रहने की आवश्यकता होती है, ताकि हेल्दी स्पर्म प्रोडक्शन मेंटेन रखा जा सके। इस तरह लंबे समय तक गर्म वातावरण में समय बिताने की वजह से स्पर्म काउंट और मोटिलिटी कम हो जाती है, और एब्नार्मल स्पर्म बढ़ जाता है। जिसकी वजह से कंसीव करने में परेशानी आती है। इसलिए बेबी प्लैनिंग के 06 महीने पहले से सॉना और जकूजी बाथ लेना बंद कर दें।
4. गोद में लैपटॉप और अगली जेब में मोबाइल न रखें
जिस प्रकार सॉना और जकूजी बाथ में टेस्टिकल्स को अधिक तापमान में रहना पड़ता है, जिसकी वजह से स्पर्म क्वालिटी पर नकारात्मक असर पड़ता है। ठीक उसी प्रकार गोद में लैपटॉप रखकर इस्तेमाल करने से या अपने मोबाइल फोन को अपने फ्रंट पॉकेट में रखने की वजह से स्क्रोटल टेंपरेचर बढ़ जाता है, जो स्पर्म प्रॉडक्शन और क्वालिटी को डिस्टर्ब कर सकता है। हालांकि, प्राइमरी कंसर्न हिट है, परंतु लैपटॉप द्वारा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड जेनरेट होता है, जिसकी वजह से स्पर्म क्वालिटी संबंधी समस्याएं आ सकती हैं। इसलिए हमेशा डेस्क पर रखकर लैपटॉप चलाएं।
5. खानपान का रखें ध्यान
इन सभी के अलावा मेल फर्टिलिटी को बनाए रखने के लिए खान-पान पर ध्यान देना भी जरूरी है। पर्याप्त मात्रा में विटामिन-C युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए, जो एक प्रकार का एंटीऑक्सीडेंट है, और शरीर पर ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के प्रभाव को कम कर देता है। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस स्पर्म काउंट को प्रभावित कर सकता है।
अलवा इसके पर्याप्त मात्रा में विटामिन-D लेने की सलाह दी जाती है, जो टेस्टोस्टरॉन लेवल को मेंटेन रखने में मदद करते हैं। साथ ही साथ कम से कम तनाव लें और शरीर को पर्याप्त आराम दें। इतना ही नहीं नियमित रूप से एक्सरसाइज करना भी निहायत ही जरूरी है, ताकि पूरी तरह स्वस्थ रहा जा सके।
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Natural Cooking: आज के इस आधुनिकता भरी दुनिया में किचन में स्टील, नॉन स्टिक और कुकर जैसे बर्तन आम हो गए हैं। लेकिन एक बार फिर आयुर्वेद और विज्ञान पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों की ओर लौटने की सलाह दे रहा है। मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने और खाना खाने के फायदे हेल्थ के साथ-साथ परंपरा की दृष्टि से भी काफी अहम हैं।
मिट्टी के बर्तन में पकाने के फायदे
आयुर्वेद के मुताबिक खाने को धीमी आंच में पकाना ही सबसे बेहतर तरीका है। मिट्टी के बर्तनों में खाना धीरे-धीरे पकता है जिससे इसमें मौजूद सभी जरूरी न्यूट्रियंस सुरक्षित रहते हैं, जबकि कुकर में तेज भाप और दबाव की वजह से ऐसा नहीं होता है। कुकर में खाना बनने के दौरान 87 प्रतिशत तक पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। पर मिट्टी के बर्तनों में ये 100 प्रतिशत तक सुरक्षित रहते हैं। साथ ही भोजन में मौजूद सभी प्रोटीन शरीर को खतरनाक बीमारियों से सुरक्षित रखते हैं।
खाने का टेस्ट में इजाफा करता है मिट्टी का बर्तन
मिट्टी के बर्तन भारत में पारंपरिक रूप से सदियों से उपयोग में लाए जा रहे हैं। मिट्टी के बर्तन अन्य धातुओं के बर्तनों की तुलना में आज भी काफी सस्ते होते हैं। विभिन्न रूपों, डिजाइनों और रंगों में ये बर्तन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही जगह पर आसानी से मिल जाते हैं। मिट्टी के बर्तनों में पकाया हुआ खाना वी सिर्फ स्वास्थ्यवर्धक होता है, बल्कि इसका टेस्ट भी लाजवाब होता है। सौंधी सी खुशबू और मसालों का मेल एक ऐसा खास जायका तैयार करता है जिसे कोई भी भूल नहीं सकता। ये खाने को खास बना देता है, या खाने के स्वाद को दो गुना कर देता है।
आज के दौर में मिट्टी के बर्तन केवल सेहत के लिहाज से ही नहीं, बल्कि सजावट और पारंपरिकता के लिए भी पसंद किए जा रहे हैं। खूबसूरत कलाकारी से सजे ये बर्तन किचन और डाइनिंग टेबल को एक देसी और आकर्षक रूप देते हैं। सुबह की चाय कुल्हड़ में हो या ठंडा पानी मटकी में, इसका अनुभव अलग ही होता है।
सेहत के लिए है फायदेमंद
एक इंसान को हर दिन 18 तरह के सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरूरत होती है। ये पोषक तत्व मुख्य रूप से मिट्टी से प्राप्त होते हैं। दूसरी तरफ, एल्युमीनियम के बर्तनों में पकाया गया खाना इन पोषक तत्वों को नष्ट कर देता है. इतना ही नहीं, यह टीबी, डायबिटीज, अस्थमा और पैरालिसिस जैसी कई गंभीर बीमारियों का कारण भी बन जाता है। कांसे और पीतल के बर्तन में भी खाना बनाने से कुछ पोषक तत्व नष्ट होते हैं। लेकिन सबसे सुरक्षित और लाभदायक मिट्टी के बर्तन ही होते हैं।
आज के आधुनिक दौर में मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल माइक्रोवेब में भी किया जाता है जिससे इन्हें पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह के किचन में प्रयोग करना आसान हो जाता है। हालांकि इनका सीधा तेज ताप में इस्तेमाल ना करने की सलाह जी जाती है, क्योंकि इनकी हीट सहन करने की क्षमता अन्य धातुओं सेथोड़ा कम होती है। मिट्टी के बर्तनों में अगर दही भी जमाते हैं तो इनका स्वाद काफी बढ़ जाता है। गर्म दूध भी जब मिट्टी की हांडी में डाला जाता है तो उसमें एक अलग ही सौंधापन आ जाता है।
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DIABETES: आजकल भागदौड़ वाली जीवनशैली के कारण सेहत संबंधी प्रॉब्लम्स भी तेजी से बढ़ रही है। ब्लड प्रेशर से लेकर डायबिटीज तक जैसी गंभीर समस्याएं भी अब आम हो गई हैं। डायबिटीज अब ऐसी समस्या बन चुकी है जो कम उम्र के लोगों को भी तेजी से दबोच लेती है। बता दें कि यह ऐसी बीमारी है जो किसी को एक बार घेर ले तो फिर धीरे-धीरे शरीर को कमजोर करने लगती है। जिससे शरीर को दूसरी बीमारियां तेजी से घेरती हैं। शरीर में शुगर लेवल बढ़ने पर इसे नियंत्रित कर पाना भी मुश्किल हो जाता है। डायबिटीज ब्लड शुगर को तो बढ़ावा ही है, साथ ही साथ बोन और ज्वाइंट्स को भी कमजोर करने लगता है। जिससे ऑस्टियोपोरोसिस यानी हड्डियों के पतले होने, घिसने और अर्थराइटिस की समस्या में इजाफा हो सकता है। इससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और फ्रैक्चर और ज्वाइंट्स पेन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। जानते हैं डायबिटीज हड्डियों और ज्वाइंट्स को कैसे नुकसान पहुंचाता है-
विशेषज्ञ बताते हैं कि, मधुमेह न केवल ब्लड शुगर को बढ़ाता है, बल्कि यह हड्डियों और जोड़ों को भी कमजोर कर सकता है। जब शरीर में शुगर लेवल लंबे समय तक बढ़ा रहता है, तो यह हड्डियों में कैल्शियम की मात्रा को कम कर सकता है, जिससे वे कमजोर हो जाती हैं। इससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। अलावा इसके डायबिटीज के कारण जोड़ों में सूजन आ सकती है, जिससे दर्द और जकड़न फील होती है।
कई मामलों में, हाई ब्लड शुगर शरीर के टिशूज़ और कार्टिलेज को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे गठिया जैसी समस्याएं पनप सकती हैं। डायबिटीज से प्रभावित नसों और रक्त वाहिकाओं के कारण हड्डियों और जोड़ों में सही मात्रा में पोषण नहीं पहुंच पाता, जिससे ठीक होने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और छोटी चोटें भी जल्दी ठीक नहीं होतीं। लंबे समय तक अनकंट्रोल शुगर रहने से बोन मिनरल डेंसिटी कम हो जाती है, जिससे फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है, खासकर रीढ़, कूल्हों और घुटनों में।
डायबिटीज से ग्रस्त लोगों को अपनी हड्डियों और जोड़ों की देखभाल के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए, कैल्शियम और विटामिन-D युक्त आहार लेना चाहिए और शुगर लेवल को कंट्रोल में रखना चाहिए। अगर हड्डियों या जोड़ों में लगातार दर्द या जकड़न हो रही हो, तो इसे नजरअंदाज भूलकर भी ना करें और तुरंत अपने डॉक्टर से सलाह लें। सही खान-पान, नियमित व्यायाम और ब्लड शुगर को नियंत्रित रखकर हड्डियों को मजबूत रखा जा सकता है और जोड़ों की समस्याओं से निजात पाया जा सकता है।
हड्डियों और ज्वाइंट्स को कैसे प्रभावित करती है DIABETES?
डायबिटीज अब एक आम समस्या बन चुकी है, जिसकी सबसे बड़ा कारण है अनियमित लाइफस्टाइल और खान-पान। डायबिटीज हड्डियों और ज्वाइंट्स की सेहत को भी काफी प्रभावित करती है। आइये जानते हैं कि डायबिटीज हड्डियों और ज्वाइंट्स में किस तरह की समस्याएं उत्पन्न कर सकती है।
1. हड्डियों को बनाता है कमजोर
डायबिटीज हड्डियों के बनने और टूटने के बीच के संतुलन को बिगाड़ देती है, जिससे धीरे-धीरे हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है। इससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और आगे चलकर फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है।
2. Joints Pain और अकड़न की समस्या
ब्लड शुगर यानी हाइपरग्लाइसेमिया से लंबे वक्त तक परेशान होने के कारण जोड़ों में सूजन की समस्या पैदा हो जाती है, जिससे जोड़ों में दर्द, अकड़न की शिकायत होने लगती है। इसलिए, व्यक्ति को अपने सामान्य दैनिक कार्य करने में भी कठिनाई होने लगती है।
3. घाव का देरी से भरना
डायबिटीज के कारण जिस तरह सामान्य बीमीरियों से उबरने में भी समय लग जाता है, उसी तरह चोटों के भरने में भी देरी होती है। डायबिटीज के चलते शरीर में ब्लड फ्लो प्रॉपर नहीं रहता, जिसके चलते फ्रैक्चर और जोड़ों की चोटों के ठीक होने में देरी होती है।
4. बढ़ जाता है ऑस्टियोआर्थराइटिस का खतरा
डायबिटीज के मरीजों में ऑस्टियोआर्थराइटिस का खतरा ज्यादा होता है। खासतौर पर घुटनों में। इससे वजन बढ़ता है, सूजन होती है और जॉइंट्स को नुकसान पहुंचता है, जिससे जोड़ों में टूट-फूट की समस्या हो सकती है।
5. लिगामेंट इंजरी
ब्लड में ग्लूकोज के बढ़ने से लिगामेंट कमजोर होने लगता है, जिससे डायबिटिक व्यक्ति में ऐसी लिगामेंट इंजर की आशंका ज्यादा हो जाती है, जिसके लिए तत्काल उपचार की जरूरत होती है।
6. फ्रोजन शोल्डर
डायबिटीज के चलते एडहेसिव कैप्सूलाइटिस या फ्रोजन शोल्डर की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसके कारण कंधे के जोड़ में असहनीय दर्द और अकड़न की समस्या पैदा हो जाती है।
डायबिटीज के मरीज इस तरह रखें हड्डियों की सेहत का ध्यान
डायबिटीज के पेशेंट्स को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि ये स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं का खतरा भी बढ़ा देती है। तो चलिए जानते हैं कि डायबिटीज के मरीजों को अपनी हड्डियों और जॉइंट्स कैसे ख्याल रखना चाहिए।
1. कैल्शियम-विटामिन युक्त भोजन का सेवन
अपनी हड्डियों और जॉइंट्स की सेहत का ख्याल रखने के लिए डायबिटीज के मरीजों को अपने खानपान का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए। ऐसे किसी भी खाद्य से दूर रहना चाहिए जो ग्लूकोज की मात्रा को तेजी से बढ़ाता है। डायबिटीज के मरीजों को कैल्शियम और विटामिन से भरपूर खाद्य का सेवन करना चाहिए।
2. ये चीजें करें डाइट में शामिल
डायबिटीज के मरीजों को अपनी डाइट में डेयरी प्रोडक्ट्स, मेवे, हरी पत्तेदार सब्जियां और अगर आप नॉन-वेजीटेरियन (Non-Vegetarian) हैं तो मछली का सेवन जरूर करना चाहिए। इससे बोन हेल्थ इंप्रूव होती है और हड्डियों और जॉइंट्स के दर्द में राहत मिलती है।
3. इन चीजों से रहें दूर
डायबिटीज के मरीजों को भूलकर भी चीनी और कार्बोहाइड्रेट से युक्त खाद्यों का सेवन नहीं करना चाहिए। क्रेविंग होने पर इसके अल्टरनेट तलाशें, लेकिन चीनी और कार्बोहाइड्रेट से दूर ही रहें।
4. रूटीन में बढ़ाएं फिजिकल एक्टिविटी
डायबिटीज के मरीजों में वजन तेजी से बढ़ने लगता है, जिससे हड्डियों और जॉइंट्स भी प्रभावित होते हैं। इसलिए डायबिटीज के मरीजों को अपने रूटीन में पैदल चलना, फिजिकल एक्टिविटी और योग को शामिल करना चाहिए। इससे वजन बढ़ने का खतरा दूर होता है और बोन हेल्थ इंप्रूव होती है।
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