
Women in 40: अनुभव और थकान से भरी एक ऐसी उम्र जब आप बहुत कुछ समझ चुकी होती हैं। लेकिन करने को अब भी बहुत कुछ शेष होता है। घर और बाहर की दुनिया की कई चुनौतियों को आप ने पार कर लिया है, मगर कामयाबी के कई सितारे अभी आपके कंधों पर सजने बाकी होते हैं। इस उम्र तक आते अधिकतर महिलाएं अपनी सेहत को सबसे निचले लेवल पर ला चुकी होती है। जबकि यह वही उम्र है जब आपको अपनी सेहत का सबसे अधिक ख्याल रखने की आवश्यकता होती है।
वजन, उम्र और पोजिशन कुछ ऐसी हो जाती है कि शारीरिक रूप से एक्टिव रहने का वक्त भी कम होता चला जाता है। जिसके कारण आप अपनी उम्र के पुरषों से ज्यादा बीमारियों के गिरफ्त में होते हो। अगर इन जोखिमों से बचकर, सफलता के साथ आगे बढ़ना है तो आपको खुद को शारीरिक रूप से सक्रिय रखने पर ध्यान देना होगा।
एक सीनियर साइकोलॉजिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट के मुताबिक देखने में भले ही यह सामान्य लगे लेकिन यह उम्र आपके मन के स्तर पर बहुत सारे बदलाव लेकर आती है और यह सब हॉर्मोन में हो रहे बदलाव की वजह से होता है। जो आपकी स्किन, पीरियड, मूड और वेट सभी कुछ प्रभावित करते हैं। इसलिए इस समय आपको अपना और ज्यादा ख्याल रखना जरूरी होता है।
महिलाओं में 40 की उम्र में होने वाली सबसे आम समस्याएं
1. हॉर्मोनल असंतुलन
ये उम्र उन हॉर्मोन में बदलाव की उम्र है, जो अभी तक आपके रिप्रोडक्टिव हेल्थ और बाहरी खूबसूरती के लिए जिम्मेदार थे। अनियमित माहवारी और त्वचा पर उग आने वाले बाल बताते हैं कि आपके हॉर्मोन असंतुलित हो रहे हैं। इस समय एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हॉर्मोन में गिरावट आने लगती है।
2. हेयर फॉल और स्किन में बदलाव
एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन आपकी प्रजनन क्षमता के साथ-साथ आपके लुक को भी प्रभावित करते हैं। इनमें बाल पहले से हल्के और पतले होने लगते हैं, जबकि त्वचा में लोच और कसाव की कमी दिखाई देने लगती है। बालों का सफेद होना और त्वचा पर झुर्रियां उम्र के इसी पड़ाव पर नजर आने लगती है।
3. पाचन संबंधी समस्याएं
40 की उम्र की महिलाओं का पाचन तत्र पहले से धीमा हो जाता है, जिससे उन्हें पाचन संबंधी समस्याएं बहुत ज्यादा परेशान करने लगती हैं। अक्सर आपने महसूस किया होगा कि पहले आप जिन चीजों को बड़े दिलचस्पी के साथ खाती थीं, अब वही आपके पेट पर बोझ की तरह रहती है। अगर परहेज न किया जाए, तो गैस, एसिडिटी और बदहजमी जैसी समस्याएं इस समय ज्यादा होने लगती हैं।
4. वजन में इजाफा होना
मेटाबॉलिज्म धीमा होने और हॉर्मोन असंतुलन होने की वजह से महिलाओं को इस उम्र में पेट के पास चर्बी बढ़ने लगती है। इस समय वजन बढ़ना जितना आसान होता है, उसे नियंत्रित करना उतना ही मुश्किल हो जाता है।
5. कमजोर होने लगती हैं हड्डियां
हालांकि 30 के बाद से ही महिलाओं की बोन डेंसिटी कम होने लगती है, इसलिए उन्हें केल्शियम पर ध्यान देने की सलाह दी जाती है। मगर 40 की उम्र पार करते एस्ट्रोजन की कमी के कारण ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है। इसलिए केल्शियम के साथ-साथ आपको विटामिन-D का लेवल भी चेक करते रहने की जरूरत होती है।
6 मूड स्विंग्स
हॉर्मोन सिर्फ आपकी प्रजनन क्षमता को ही नहीं, बल्कि आपके मूड को भी प्रभावित करते हैं। हॉर्मोनल असंतुलन के कारण इस समय आपको ज्यादा गुस्सा आ सकता है। ज्यादातर महिलाओं के परिवार में यह शिकायत आती है कि वे बहुत चिड़चिड़ी और गुस्सैल हो गई हैं। यह पेरिमेनोपॉज का भी एक संकेत हो सकता है। जब आपको हॉट फ्लैश और मूड स्विंग्स का सामना करना पड़ता है।
इस उम्र में कैसे रहा जाए फिट और हेल्दी
डॉक्टर के अनुसार 40 की उम्र में सक्रिय रहने के लिए तनाव को संतुलित करना, अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखना और सकारात्मक जीवनशैली अपनाने का दृष्टिकोण रखना आवश्यक है। तनाव ऊर्जा को समाप्त करने वाले प्रमुख कारणों में से एक है, इसलिए इसे प्रभावी ढंग से प्रबंधित रहना बेहद जरूरी है।
1. टेंशन देने वाले कारकों की पहचान करें
सबसे पहले, अपने जीवन में मौजूद तनाव के कारणों की पहचान करें, यानी यह जानें कि तनाव व्यवसायिक, व्यक्तिगत, वित्तीय या सामाजिक जीवन से आ रहा है। तनाव प्रबंधन पर सक्रिय रूप से काम करें और जरूरत पड़ने पर किसी जानकार से मार्गदर्शन लें। जितनी जल्दी कोई व्यक्ति अपने तनाव को पहचानकर किसी विशेषज्ञ से सलाह लेता है, उतने ही ज्यादा अवसर होते हैं कि वह अपने 40 के दशक में सक्रिय और ऊर्जावान रह सके। इसके साथ ही, उचित नींद लेना भी जरूरी है। अच्छी गुणवत्ता वाली नींद हमारे शरीर और दिमाग को ऊर्जावान बनाने के लिए जरूरी होती है।
2. खूब सारा पानी पीएं
हाइड्रेशन भी एक महत्वपूर्ण कारक है। पर्याप्त मात्रा में तरल पेय पीना और आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार लेना बहुत जरूरी है। इसके अतिरिक्त, संगीत सुनना, किताबें पढ़ना या रचनात्मक गतिविधियों में शामिल होना मन और संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है।
3. चाय-कॉफी कम कर दें
हो सकता है कि सुबह की पहली कॉफी या चाय आपको दिन के लिए तैयार करती हो, मगर यह आपको डिहाइड्रेट भी करती है। इसलिए इन्हें कम करने और धीरे-धीरे छोड़ने की ओर ध्यान दें। साथ ही, निकोटीन, शराब या किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों से दूर रहना अत्यंत आवश्यक है।
4. हर रोज़ एक्सरसाइज करें
यह आपके लिए सबसे जरूरी एक्टिविटी है। डांस, जुंबा, एरोबिक्स, साइकलिंग, कार्डियो जो भी आपको पसंद है, उसकी मदद से खुद को एक्टिव रखें। हर दिन कम से कम 45 मिनट और सप्ताह में पांच दिन आपका फिजिकल एक्सरसाइज करना बहुत जरूरी है। इससे मेटाबॉलिज्म ठीक रहता है, वजन नियंत्रित रहता है और आपका मूड भी अच्छा रहता है और आप कम बीमार पड़ती हैं।
डॉक्टर का कहना है कि साल में कम से कम एक बार संपूर्ण स्वास्थ्य जांच कराना चाहिए। ये सुझाव किसी भी व्यक्ति को उनके 40 के दशक में सक्रिय और ऊर्जावान बनाए रखने में मदद पहुंचा सकता है।
फोटो सौजन्य- गूगल

Period के समय महिलाओं के शरीर में कई तरह के बदलाव देखने के मिलते हैं। यूट्रस कॉन्ट्रैक्ट के कारण जहां जांघों और कमर में दर्द बना रहता है। वहीं, हार्मोनल बदलाव मूड स्विंग की समस्या को बढ़ा देते हैं। ऐसे में अपने खानपान का ध्यान रखने के अलावा शरीर को गर्माहट प्रदान करने के लिए चाय का सेवन करती हैं। हालांकि इससे मांसपेशियों में उठने वाले दर्द कम होने लगता है। लेकिन कई बार चाय का सेवन हेल्थ को नुकसान पहुंचा सकता है। आइये जानते हैं पीरियड के दौरान चाय पीना हेल्थ के लिए कितना फायदेमंद है?
डायटीशियन के अनुसार पीरियड साइकल के दौरान महिलाओं को चाय का सेवन करने से पेट के निचले हिस्से में होने वाले दर्द से राहत मि्यालती है। असल में शरीर का तापमान को बैलेंस रखने वाली चाय से मसल्स कान्ट्रेक्शन को कम किया जा सकता है। मगर ज्यादा मात्रा में इसका सेवन करने से पेट में एसिडिटी, ब्लोटिंग और अपच का सामना करना पड़ता है। अलावा इसके ड्यूरिटिक प्रभाव होने के कारण फ्रीक्वेंट यूरिनेशन का भी सामना करना पड़ता है।
ज्यादा चाय किस तरह हेल्थ को पहुंचाता है नुकसान
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अध्ययन के मुताबिक पीरियड के दौरान चाय पीने से कैटेचिन और टैनिक एसिड की मात्रा शरीर में बढ़ जाती है जो आयरन के एबजॉर्बशन को कम करता है। इस तरह आयरन के अवशोषण में रुकावट डालने का कार्य करते हैं। ऐसे में ज्यादा चाय पीने से बचना चाहिए।
पीरियड में चाय पीने से क्या होता है-
1. यूरीन के लिए बार बार जाना
चाय में कैफीन की उच्च मात्रा पाई जाती है, जिससे उसका प्रभाव डयूरिटक होने लगता है और बॉडी में वॉटर एक्सक्रीशन की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसके कारण फ्रीक्वेंट यूरिनेशन का सामना करना पड़ता है, जो पीरियड के दौरान परेशानी का सबब बनती है।
2. नींद में कमी आना
चाय का सेवन करने से ब्रेन एक्टिव हो जाता है, जिससे अनिद्रा की समस्या बढ़ने लगती है। पीरियड साइकल के दौरान महिलाओं को क्रैम्प की शिकायत बढ़ जाती है। ऐसे में शरीर को आराम पहुंचाने के लिए हेल्दी नैप्स और भरपूर नींद की जरूरत होती है। ज्यादा चाय का सेवन नींद में बाधा उत्पन्न करने लगता है।
3. ब्लोटिंग को बढ़ाती है चाय
अधिक मात्रा में चाय का सेवन करने से गट मोटिलिटी का सामना करना पड़ता है। इसके कारण पेट फूलने लगता है और असुविधा बढ़ने लगती है। इससे वॉटर रिटेंशन का भी सामना करना पड़ता है। पीरियड के दौरान चाय पीने से ब्लोटिंग और अपच का सामना करना पड़ता है।
4. पीरियड हो सकते हैं हैवी
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक कैफीन से शरीर में एस्ट्रोजन का उत्पादन बढ़ने लगता है। इससे हार्मोन असंतुलन बढ़ने लगता है। इससे प्रीमेन्स्ट्रुअल सिंड्रोम, हैवी पीरियड और ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ने लगता है। दरअसल, कैफीन एरोमाटेज एंजाइम को बाधित करने लगता है, जो एंड्रोजन को एस्ट्रोजन में परिवर्तित करने का काम करता है।
5. शरीर में पानी की कमी
ब्लीडिंग के कारण शरीर में फ्लूइड का लेवल कम होने लगता है। ऐसे में चाय का सेवन करने से यूरिनेशन बढ़ जाता है। इसके वजह से पानी की कमी शरीर में बढ़ने लगती है, जिसके कारण घबराहट, सिरदर्द और थकान का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में चाय को पानी या फिर लेमन व ग्रीन टी से रिप्लेस कर सकते हैं।

Prostate Cancer: पुरुषों के पेट में प्रोस्टेट एक छोटी ग्लैंड मात्र है जिसका आकार एक अखरोट जैसा होता है यह ग्लैंड सिर्फ पुरुषों में पाई जाती है। प्रोस्टेट कैंसर एक तरह का कैंसर है जो प्रोस्टेट ग्लैंड में होता है। मालूम हो कि यह कैंसर तब शुरू होता है जब प्रोस्टेट ग्रंथि में कोशिकाएं अनियंत्रित होने लगती है। एक अध्ययन के अनुसार, प्रोस्टेट ग्लैंड से बढ़कर शरीर के अन्य भागों में जाने लगता है तब यूरीन संबंधी परेशानियां नजर आने लगती है।
60 फीसदी मामले इस बीमारी के 65 वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों में होते हैं। हर 14 लोगों में से एक बुजुर्ग को इस बीमारी से दोचार होना पड़ता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर, कैंसर से होने वाली मौतों का दूसरा मुख्य कारण है। जबकि प्रोस्टेट से भारत भी बचा हुआ नहीं है। यही वजह है कि इस बीमारी से संबंधित अक्सर लोगों के दिमाग में काफी प्रश्न होते हैं, हम आपको ऐसे ही कुछ सवालों के बारे में बताएंगे-
1. क्या है प्रोस्टेट कैंसर?
प्रोस्टेट कैंसर एक तरह का कैंसर है जो पुरुषों की प्रोस्टेट ग्लैंड में उत्पन्न होता है। यह छोटी सी ग्लैंड अखरोट के आकार का होता है पर बुजुर्ग पुरुषों में यह बहुत बड़ा हो सकता है। प्रोस्टेट कैंसर धीरे-धीरे बढ़ता है। हालांकि, कई प्रोस्टेट कैंसर अधिक आक्रामक होते हैं और प्रोस्टेट ग्लैंड के बाहर फैल सकते हैं, जोकि घातक हो सकता है।
2. प्रोस्टेट कैंसर के कारण ?
प्रोस्टेट कैंसर के लिए बढ़ती उम्र एक प्रमुख वजह होता है। भारत में, व्यक्ति की आयु 50 वर्ष होने के बाद ये बीमारी विकसित होने का जोखिम तेज़ी से बढ़ने लग जाता है। अलावा इसके अन्य जोखिम वाले कारणों में बहुत अधिक धूम्रपान करने की आदत, खराब खान-पान और ओबिसिटी है।
3. कैसे फैलता है प्रोस्टेट कैंसर?
प्रोस्टेट कैंसर के फैलने के तेज़ी के ऊपर इसको 2 मूल प्रकार में रखा गया है-
- एग्रेसिव (Aggressive) या आक्रामक: ये बहुत तेजी से बढ़ता है।
- नॉन-एग्रेसिव (non-aggressive): ये धीमी गति से बढ़ता है।

Lose Weight: वजन कम करना महज एक्सरसाइज और डाइट का मामला भर नहीं है बल्कि इसका असल संबंध आपके पाचन तंत्र से भी होता है। गट हेल्थ विशेषज्ञ का मानना है कि अगर आप अपने पाचन तंत्र का ध्यान रखेंगे तो फैट तेजी से बर्न कर पाएंगे। गट हेल्थ का मतलब हमारे पाचन तंत्र, खासकर आंतों का सही तरीके से काम करना। बता दें कि हमारे गट में ट्रिलियन्स की संख्या में गुड और बैड बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जिन्हें मिलाकर गट माइक्रोबायोम कहा जाता है। जब इन बैक्टीरिया का संतुलन सही रहता है तो पाचन, इम्यून सिस्टम, मेटाबॉलिज्म और मानसिक स्वास्थ्य भी फिट रहता है। खराब गट के कारण गैस, सूजन, कब्ज, स्किन की समस्या और वजन बढ़ने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। आइये जानते हैं वो रोजाना के हैबिट्स जो आपको हेल्दी गट और फैट लॉस में मददगार साबित होगी।
फाइबर फुड्स से करें दिन की शुरुआत
सुबह के नाश्ते में फाइबर युक्त चीजें जैसे ओट्स, चिया सीड्स या ताजे फल शामिल करें। ये न सिर्फ लंबे वक्त पेट भरा रखते हैं, बल्कि गट में अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ावा देकर पाचन को सुधारते हैं और मेटाबॉलिज्म को सक्रिय बनाते हैं, जिससे फैट तेजी से बर्न होता है। अगर आप वेट कंट्रोल रखना चाहते हैं, तो अपनी डाइट में फाइबर फूड्स को ब्रेकफास्ट से ही शामिल करने की आदत डाल लें। ऐसा करना आपकी पाचन क्रिया को भी हेल्दी बनाए रखने में मदद करेगा।
प्रोबायोटिक फूड
आपको अपनी खाने में प्रोबायोटिक्स शामिल करने की जरूरत है। दही, छाछ, अचार जैसे फूड्स प्रोबायोटिक्स से भरपूर होते हैं, जो गट बैलेंस को सुधारते हैं। ये फूड्स पेट की सूजन कम करते हैं और फैट स्टोरेज को रोकते हैं। शरीर के बढ़ते वजन को कंट्रोल करने के लिए भी अपनी डाइट में प्रोबायोटिक्स से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करना जरूरी है।
कम से कम 30 मिनट खुद को रखें एक्टिव
हर दिन चलना, योग करना या हल्का कार्डियो करना गट मूवमेंट को बेहतर बनाता है। इससे पाचन क्रिया तेज होती है, शरीर में सूजन कम होती है और मेटाबॉलिज्म एक्टिव रहता है। नियमित फिजिकल एक्टिविटी फैट बर्निंग प्रोसेस को तेज करने में सहायक होती है और ऊर्जा भी बढ़ाती है। ऐसा सिर्फ वजन कम करने के लिए ही नहीं बल्कि आपके अंदरूनी स्वास्थ्य को सही बनाए रखने के लिए भी बेहद जरूरी है।
मीठे और प्रोसेस्ड फूड से रहें दूर
शुगर और जंक फूड्स का ज्यादा सेवन गट में बैड बैक्टीरिया को बढ़ाता है, जिससे गट बैलेंस बिगड़ जाता है। इससे सूजन, गैस, कब्ज जैसी समस्याएं होती हैं और मेटाबॉलिज्म धीमा पड़ता है। नतीजतन, फैट बर्न करना मुश्किल हो जाता है और वजन घटाने की प्रक्रिया रुक जाती है। साथ ही बाहर के प्रोसेस्ड फूड्स व ज्यादा चीनी वाले फूड्स स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य खई बीमारियों की वजह भी बन सकते हैं।
पर्याप्त नींद के फायदे
नींद की कमी और ज्यादा तनाव गट हेल्थ को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे पाचन और फैट बर्निंग प्रोसेस धीमी हो जाती है। डेली 7-8 घंटे की गहरी नींद और मेडिटेशन जैसी तकनीकों से हार्मोन बैलेंस रहता है, मेटाबॉलिज्म सुधरता है और वजन घटाना बेहद आसान होता है।
फोटो सौजन्य- गूगल

Attractive Breast: किस लड़की की चाहत नहीं होती- सुडौल और आकर्षक ब्रेस्ट। कई लड़कियों को ब्रेस्ट का मनचाहा आकार नेचुरली मिल जाता है, पर कुछ लड़कियों को ब्रेस्ट का मनचाहा आकार नहीं मिल पाता है। ब्रेस्ट का छोटा होने के पीछे कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। खराब खानपान, शरीर में न्यूट्रिएंट इलिमेंट्स की कमी या जेनेटिक के कारण से ब्रेस्ट का साइज छोटा रह जाता है।
छोटे ब्रेस्ट का आकार लड़कियों या महिलाओं के आत्मबल स्तर को गिरा सकता है। इसलिए हर लड़की स्तनों का आकार बढ़ाने के लिए तरह-तरह के उपाय इस्तेमाल करती हैं। कोई इंजेक्शन लगवाता है तो कोई सर्जरी की मदद लेतीं हैं। लेकिन आप चाहे तो नेचुरल तरीकों से भी ब्रेस्ट का आकार बढ़ा सकती हैं। एक्सपर्ट से जानते हैं ब्रेस्ट साइज बढ़ाने के लिए क्या हैं घरेलू उपाय-
ये है ब्रेस्ट साइज बढ़ाने के टिप्स
1. रोजाना एक्ससरसाइज करें
ब्रेस्ट साइज का आकार बढ़ाने के लिए आपको डेली एक्सरसाइज और योगभ्यास करना चाहिए। एक्सरसाइज करने से ब्रेस्ट के नजदीक की मांसपेशियों का विकास तेजी से होता है। इससे स्तनों के आकार को भी बढ़ावा मिलता है। स्तनों का आकार बढ़ाने के लिए आपको रोजाना 30 मिनट एक्सरसाइज अपने रूटीन में शामिल करना होगा। इससे स्तनों के आस-पास की मांसपेशियां टोन भी होती हैं। स्तनों के साइज बढ़ाने के लिए आप पुश-अप, डंबल चेस्ट प्रेस और वॉल प्रेस जैसी एक्सरसाइज अपना सकती हैं।
2. फाइटोएस्ट्रोजन से भरे फूड्स खाएं
फाइटोएस्ट्रोजन स्तनों के आकार को बढ़ावा देता है। फाइटोएस्ट्रोजन ब्रेस्ट टिश्यू को बढ़ाने में मदद करते हैं। अगर आप स्तनों के साइज बढ़ाना चाहते हैं, तो अपनी डाइट में फाइटोएस्ट्रोजन जरूर शामिल करें। आपको बता दें कि अलसी के बीज, सोयाबीन, तिल के बीज, टोफू, मूंगफली, अखरोट आदि में फाइटोस्ट्रोजन पाया जाता है। इन फूड्स को खाने से स्तनों के साइज बढ़ाने में मदद मिल सकती है। ब्रेस्ट साइज बढ़ाने के लिए मेथी के दाने भी बेहद उपयोगी साबित होते हैं। आपको अपनी डाइट में डेयरी प्रोडक्ट्स, नट्स, सीड्स और दाल जरूर शामिल करने चाहिए।
3. मसाज टैक्निक है कारगर
अगर आपके स्तनों का आकार छोटा है, तो आपको मसाज टैक्निक भी जरूर अपनानी चाहिए। मसाज करने से ब्रेस्ट साइज को बढ़ावा मिल सकता है। अगर आप कुछ महीनों तक रोज सुबह-शाम स्तनों की मालिश करेंगे, तो इससे मांसपेशियों का विकास तेजी से होता है। ब्रेस्ट साइज बढ़ाने के लिए आप नारियल तेल, जैतून के तेल या बादाम के तेल से मालिश कर सकते हैं। इसके लिए आप कोई भी तेल लें और इसे गुनगुना कर लें। अब तेल को स्तनों पर लगाएं और फिर सर्कुलर मोशन में मसाज करें। आप रोज रात को स्तनों की मसाज कर सकते हैं। इससे आपको काफी फर्क देखने को मिलेगा।

Newly Mom: प्रेग्नेंसी शुरू होते ही शरीर में कई तरह के हार्मोनल चेंजिंग दिखने लगते हैं और 09 महीने के फेज के बाद जब डिलीवरी होती है तो मां को सबसे अधिक खुशी का एहसास होता है पर इसके बाद कई सरह के स्ट्रेस भी सामने आते हैं जैसे कि चिड़चिढ़ापन, उदासी, चिंता, बच्चे के साथ जुड़ाव में कमी जैसा प्रॉब्लम होने लगता है। डिलीवरी के बाद शरीर कमजोर हो जाता है और तनाव का कुप्रभाव भी सेहत पर नजर आता है।
प्रेग्नेंसी के बाद पहले जैसा हेल्दी और फिट बनने के लिए अपने रूटीन के साथ ही खानपान का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है। वरना कुछ प्रॉब्लम लाइफटाइम परेशानी खड़ा कर सकती है जैसे वजन कंट्रोल न किया जाए तो कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है साथ ही शरीर में दर्द और कमजोरी लंबे वक्त तक बनी रह सकती है। विशेषज्ञ से जानेंगे कि कैसे डाइट को सही तरीकों से लेकर योगा या वर्कआउट करने तक कैसे अपने स्वास्थ्य को ठीक रख सकती हैं।
नई मां की फिजिकल हेल्थ के साथ ही मेंटल हेल्थ भी दुरुस्त रहना बहुत जरूरी होता है, तभी वह अपने बच्चे को भी पूरी तरह से देखभाल कर पाएंगी और बच्चा हेल्दी रहता है। बाद वाली परेशानियों से बचने के लिए सबसे जरूरी होता है फैमिली का इमोशनल सपोर्ट। अलावा इसके भी एक्सपर्ट ने कई छोटी-छोटी ट्रिक बताई हैं और डाइट, वर्कआउट की डिटेल भी दी है ताकि डिलीवरी के बाद मां खुद को स्वस्थ रख सके।
एक्सपर्ट लाइफस्टाइल डिजीज जैसे डायबिटीज, पीसीओडी, थायराइड, ओबेसिटी आदि से लोगों को नेचुरली रिवर्स करने में मदद करती हैं और यह भी बताती हैं कि कैसे आप टेस्टी खाना खाकर भी स्लिम और फिट रह सकते हैं।
मेंटल हेल्थ दुरुस्त रखने के टिप्स
- एक्सपर्ट कहती हैं कि नई मां बनी हैं तो रोजाना कुछ देर लाइट वॉक करें और नंगे पैर घास पर चलें।
- मेंटल हेल्थ को सुधारने के लिए ब्रीदिंग टेक्निक जैसे कपालभाति प्राणायाम और अनुलोम विलोम करना सही रहता है।
- एक्सपर्ट का कहना है कि कोई भी स्ट्रेस जो आपको परेशान कर रहा हो, उसके बारे में बात करें।
- स्ट्रेस कम ना हो तो जरूरत के हिसाब से थेरेपिस्ट या काउंसलर से बात करनी है तो वो बिल्कुल नॉर्मल है। जरूर बात करें, स्ट्रेस को कैसे डील करें?



Vaginal Infection: भारत जैसे देशों में महिलाओं के स्वास्थ्य पर काफी कम बातें होती हैं। कभी-कभी वीमेन से जुड़ी छोटी-छोटी दिक्कतों को नजरअंदाज करना महिलाओं के लिए भारी पर जाता है। लेडीज में वेजाइनल इन्फेक्शन एक ऐसी ही समस्या है। आज हम बताएंगे कि आखिर क्यों होता है वेजाइनल इन्फेक्शन और क्या हैं इससे बचने के तरीके-
जानें क्या है वेजाइनल इन्फेक्शन-
वेजाइनल इन्फेक्शन वेजाइनल में हुए संक्रमण को कहते हैं। ये इन्फेक्शन बैक्टीरिया, फंगस, या वायरस के कारण हो सकता है। दरअसल, वेजाइना में बैक्टीरिया और फंगस में एक बैलेंस होता है पर जब यही बैलेंस बिगड़ता है तो इनफेक्शन की संभावना बढ़ जाती है। भले ही ये इन्फेक्शन मामूली लगे लेकिन कई बार और बड़ी बीमारियों को जन्म दे देता है।
वेजाइनल इन्फेक्शन के लक्षण
1. यूरिन डिस्चार्ज में दर्द-
यूरिन डिस्चार्ज करते हुए दर्द या जलन होना या वेजाइना से बदबू आना।
2. खुजली और जलन -
वेजाइना और उसके आसपास खुजली और जलन होने लगे तो इनफेक्शन के ही लक्षण हैं।
3. लालिमा और सूजन-
वेजाइना के आसपास की त्वचा लाल और सूज सकती है।
4. सेक्स के दौरान दर्द-
पेशाब के दौरान जलन या दर्द और सेक्स के दौरान दर्द।
5. अनियमित पीरियड्स
पीरियड्स की साइकिल अनियमित हो सकती है। एक्सपर्ट ने वैजाइनल इंफेक्शन को दो भागों में बांटा है।
1. नॉन सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन
2. सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन
इन्हें और कई भागों में बांटा जा सकता है-
1. बैक्टीरियल वेजिनोसिस :
यह तब होता है जब वेजाइना में अच्छे और नुकसानदायक बैक्टीरिया का बैलेंस बिगड़ जाता है। ये नॉन सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन है।
2. फंगल इन्फेक्शन :
यह कैंडीडा नामक फंगस के कारण होता है। ये संक्रमण तब बढ़ता है जब फंगस का स्तर नॉर्मल से अधिक हो जाता है। इसमें आपकी वैजाइना लाल।हो जाती है। डायबिटीज के पेशेंट्स को इसका ख़तरा अधिक होता है।
3. ट्राइकोमोनायसिस:
ये सेक्सुअली ट्रांसमिट हुआ इनफेक्शन है जो Trichomonas vaginalis नाम की बैक्टीरिया से फैलता है। सेक्स के दौरान कॉन्डोम ना इस्तेमाल करना, एक से अधिक पार्टनर्स के साथ सेक्स करना- ये इस इन्फेक्शन के प्रमुख कारण हैं।
4. हार्मोनल बदलाव:
पीरियड्स, प्रेग्नेन्सी या मेनोपॉज के दौरान महिलाओं के शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं, इस बदलाव से भी वेजाइनल इन्फेक्शन हो सकता है। पीरियड्स के दौरान अगर आप अपने पैड्स तीन चार बार नहीं बदलते तो ये इन्फेक्शन कॉमन है।
5. वेजाइनल सफाई में गलत तरीका अपनाना:
वेजाइना को अंदर से साफ करने के लिए डूशिंग या कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल इनफेक्शन का कारण बन सकता है। ये भी नॉन सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन है।
वेजाइनल इन्फेक्शन से कैसे बचें-
- वेजाइना को हल्के गुनगुने पानी से धोएं। बाहरी हिस्से की सफाई करें, लेकिन अंदरूनी हिस्से को जबरन रगड़ने की ज़रूरत नहीं।
- सूती अंडरवियर का इस्तेमाल करें और तंग कपड़ों से बचें, जो पसीना रोक दे।
- पीरियड्स के दौरान हर 4-6 घंटे में पैड या टैम्पोन बदलें। अक्सर ग्रामीण इलाकों में लोग इसे सीरियसली नहीं लेते जिस वजह से इंफेक्शन बढ़ जाता है।
- सेफ सेक्स करें। सेक्स के दौरान कंडोम का इस्तेमाल करें। सेक्स के लिए एक से अधिक पार्टनर से बचें।
- वेजाइना के पास परफ्यूम, डिओडोरेंट या किसी साबुन का इस्तेमाल न करें।
- दही और प्रोबायोटिक्स युक्त खाना खाएं। चीनी कम से कम खाएं ।
- तनाव कम लीजिए। ज्यादा तनाव लेने से शरीर में हार्मोन्स का बैलेंस बिगड़ सकता है जो इनफेक्शन को बढ़ाता है।

Health Tips: अनहेल्दी जीवन शैली और अनियमित खानपान वेटगेन का मुख्य कारण साबित होता है। ऐसे में वर्क आउट के लिए कुछ ऐसी चीज लेनी चाहिए जो स्वास्थ्य के लिए अहम हो, इसमें जो नाम सबसे ऊपर आता है वो है अजवाइन और जीरे का पानी, जोकि आपके वजन को नियंत्रित रखता है। इसमें मौजूद गुणों का भंडार वजन को कम करने के अलावा पेट फूलने की समस्या से छुटकारा दिलाने में भी मदद करते हैं। अजवाइन और जीरे में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा और एंटी इंफ्लामेटरी गुण स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होता है। आइये जानते हैं वजन नियंत्रित करने के लिए किस तरह से इन दोनों का मिश्रण फायदेमंद होता है-
अजवाइन और जीरे के बीज क्यों हैं खास
इस बारे में डायटीशियन का कहना है कि अजवाइन का सेवन करने से शरीर को डाइजेस्टिव एंजाइम की प्राप्ति होती है। इसमें मौजूद फाइबर, विटामिन और मिनरल शरीर के पाचन में सुधार करके मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में मदद करते हैं। इन बीजों से पेट फूलनाए गैस और अपच को कम किया जा सकता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक इसमें थाइमोल और कार्वाक्रोल जैसे दो एक्टिव कंपाउड पाए जाते हैं, जो बैक्टीरिया और फंगस के विकास को रोकते हैं।
वहीं, जीरा में एंटीऑक्सीडेंट गुणों के अलावा डाइजेस्टिव एंजाइम मौजूद हैं, जो पाचन में सहायता करने में मदद करते है। वे भूख बढ़ाने, सूजन को कम करने और वजन प्रबंधन में सहायता करते हैं। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार जीरा लीवर से पित्त यानी बाइल के स्राव को भी बढ़ाता है। पित्त पेट में वसा और कुछ पोषक तत्वों को पचाने में मदद करता है। शोध के अनुसार आईबीएस के 57 रोगियों ने दो हफ्ते तक जीरे का सेवन किया। इससे लक्षणों में सुधार देखने को मिला।
अजवाइन और जीरे के महत्वपूर्ण फायदे
1. पाचन में लाए सुधार
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च एंड हेल्थ साइंसेज की रिपोर्ट के मुताबिक जीरा गैस्ट्रिक जूस के स्राव को उत्तेजित करके पाचन में सुधार करने में मदद करता है। वहीं, अजवाइन में कार्मिनेटिव गुण होते हैं जो सूजन और गैस को कम करने में मदद करते हैं। इन्हें पानी के साथ मिलाए जाने पर पोषण अवशोषण में सुधार आने लगता है।
2. एसिडिटी से दिलाए राहत
जीरा और अजवाइन का पानी पेट के मौजूद ACID को कम करके एसिडिटी से राहत दिलाने में मदद कर सकता है। इसकी मदद से गैस्ट्रिक जूस को एसिडिक होने से रोका जा सकता है। बायोकेमिस्ट्री रिसर्च इंटरनेशनल के अनुसार अजवाइन के बीज गैस और सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं।
3. मेटाबॉलिज्म को करता है बूस्ट
इससे चयापचय को उत्तेजित करने में मदद मिलती हैं, जिससे अधिक कैलोरी को बर्न किया जा सकता है। इनमें मौजूद फाइबर की मात्रा भूख को कम करके शरीर में कैलोरी को स्टोर होने से राकते हैं। इससे ओवरइटिंग और बार बार भूख लगने की समस्या को कम किया जा सकता है। साथ ही शरीर में दिनभर एक्टिव बना रहता है।
4. डिटॉक्सिफाइंग गुणों का खजाना
इस पानी का सेवन करने से विषाक्त पदार्थों और वॉटर रिटेंशन को खत्म करने में मदद मिलती हैंं। इससे बॉडी फंक्शनिंग उचित बनी रहती है। साथ ही बार बार भूख लगने की समस्या को भी हल किया जा सकता है। इसके सेवन से पाचनतंत्र को मज़बूती मिलती है।
ऐसे तैयार किया जाता है अजवाइन और जीरे का पानी
अजवाइन और जीरे का पानी एक पारंपरिक भारतीय पेय पदार्थ है जिसे पानी में अजवाइन और जीरे को उबालकर बनाया जाता है। मिश्रण का सेवन अक्सर इसके पाचन और स्वास्थ्य लाभों के लिए किया जाता है। व्यंजनों को तैयार करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अजवाइन और जीरा में औषधीय गुण पाए जाते हैं। जब इन्हें पानी में उबाला जाता है, तो उससे नेचुरल ऑयल और एक्टिव कंपाउड मिलते हैं, जिससे शरीर को कई अहम फायदे मिलते हैं।
फोटो सौजन्य- गूगल

COVID CASES: भारत समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना वायरस ने एक बार फिर से पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। भारत में भी कोविड-19 के मामलों में लगातर बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। महाराष्ट्र में शुक्रवार को कोविड-19 के 45 केस सामने आए। इसमें सबसे अधिक मुंबई में 35, पुणे में 04, रायगढ़ में 02, कोल्हापुर में 02 और ठाणे तथा लातूर में एक नए मरीज मिले हैं। मुंबई में अब तक कोरोना के कुल मरीजों की तादाद 183 हो गई है। वहीं, महाराष्ट्र में पॉजिटिव मामले 210 तक पहुंच गए हैं।
कोरोना के ना केवल संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है, बल्कि अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। यानी लक्षण गंभीर हो रहे हैं। भारत में केरल, महाराष्ट्र सहित 257 से अधिक मामले सक्रिय हैं। जबकि मुंबई में दो लोगों की कोविड से मौत हो चुकी है। विशेषज्ञों ने अभी से सावधानी बरतने की सलाह दी है और अनुमान लगाया है कि अगले तीन सप्ताह और भी अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।
कोविड का नया वेरिएंट और ताज़ा आंकड़े
सिंगापुर, थाईलैंड और हांगकांग में संक्रमितों की जांच के आंकड़ों में सामने आया है कि इस बार संक्रमण का कारण ओमिक्रोन का सब वेरिएंट JN.1 संक्रमण फैला रहा है। इससे कई एशियाई देशों में लोग हल्के से गंभीर लक्षणों के शिकार हो रहे हैं।
अप्रैल के आखिरी और मई के पहले सप्ताह में ही कोविड संक्रमितों की संख्या 14 हजार के पार पहुंच गई है। इनमें सर्वाधिक खराब हालात सिंगापुर और हांगकांग के हैं, जहां हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी गई है। जापान में भी सार्स कोविड के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।
भारत में COVID के सक्रिय मामले
कोविड के प्रसार का तरीका पहले जैसा है, जिसने साल 2019 के अंत से मार्च-अप्रैल 2020 तक दुनिया भर में कहर बरपाया था। भारत के बड़े शहरों, जो अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं से सीधे जुड़े हैं, वहां सबसे ज्यादा कोविड के सक्रिय मामले देखे जा रहे हैं। इनमें केरल और मुंबई में सबसे ज्यादा लोग कोविड के सब वेरिएंट जेएन.1 से संक्रमित हुए हैं।
क्या इस वेरिएंट से घबराने की जरूरत है?
कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों और मुंबई में हुई 2 मौतों के बाद लोगों में डर का माहौल है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी तत्काल सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ का कहना है कि एशिया के कई देशों में कोविड-19 के मामलों में स्पष्ट वृद्धि देखी जा रही है, जिससे स्वास्थ्य अधिकारियों की चिंता बढ़ गई है। बदलते हुए वायरस वेरिएंट और कम होती रोग प्रतिरोधक क्षमता इस मौजूदा लहर को बढ़ावा दे रही है। इस समय जब लोगों की आवाजाही और सेहत के प्रति लापरवाही भी बढ़ी है।
ओमिक्रॉन स्ट्रेन का नया सबवेरिएंट्स, JN.1 मौजूदा हेल्थ जोखिमों के लिए जिम्मेदार है। यह सबवेरिएंट अत्यधिक संक्रामक है और पहले की तुलना में बेहतर तरीके से रोग प्रतिरोधक क्षमता को चकमा देने में कामयाब है।
विशेषज्ञ आगे कहते हैं कि हालांकि, यह अधिक घातक नहीं है। इसके तेज़ी से फैलने के कारण कुल मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है। जो लोग पहले से वैक्सीनेटेड हैं, उनमें लक्षण हल्के ही पाए जा रहे हैं।
बूस्टर डोज लेना हो सकता है बचाव का उपाय
विशेषज्ञ के मुताबिक रोग प्रतिरोधक क्षमता समय के साथ कम हो जाती है। इसलिए कई देशों ने बूस्टर डोज लेने की सलाह दी है। एशिया के अधिकांश लोगों ने एक साल से भी पहले अपनी वैक्सीन की खुराक ली थी। समय पर बूस्टर न मिलने के कारण प्रतिरक्षा क्षमता घट जाती है, जिससे बुज़ुर्गों और वे लोग जो अन्य किसी बीमारी से पहले ही ग्रस्त हैं, उनमें संक्रमण का जोखिम और ज्यादा बढ़ जाता है।
महामारी के समय के नियमों में ढील ने समस्या को और गंभीर बना दिया है। लोग अब सामान्य जीवन में लौट आए हैं, मास्क पहनना, सामाजिक दूरी बनाए रखना और स्वच्छता जैसे उपायों को काफी हद तक छोड़ दिया गया है। सार्वजनिक समारोहों और अंतरराष्ट्रीय यात्रा के फिर से शुरू हो जाने से वायरस को फैलने का भरपूर मौका मिल गया है।
अगले तीन हफ्ते हैं बेहद संवेदनशील
मौजूदा लहर को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है और लोगों को सावधानी बरतनी चाहिए ताकि संक्रमण से बचा जा सके। अगले तीन हफ्ते इन मामलों में तेजी देखी जा सकती है। फ्यूचर में किसी भी नए म्यूटेशन का समय रहते पता लगाने के लिए निगरानी जारी रखना लाभकारी हो सकता है। इसके अलावा, सतर्कता और जिम्मेदार व्यवहार वायरस को नियंत्रित रखने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
चढ़ते-उतरते मौसम भी इसमें भूमिका निभा रहे हैं। ज्यादातर लोग घरों के अंदर रहने लगे हैं, जहां वेंटिलेशन की कमी होती है और संक्रमण का खतरा अधिक होता है। अलावा इसके अब टेस्टिंग भी कम हो गई है, जिससे केसों की सही संख्या रिपोर्ट नहीं हो पा रही है। असली आंकड़े रिपोर्ट किए गए मामलों से कहीं अधिक हो सकते हैं।
फोटो सौजन्य- गूगल