
Libido: कामेच्छा की कमी आधुनिक जीवनशैली में कई लोगों की समस्या बन चुकी है। लोगों की लाइफस्टाइल में तनाव, एंग्जायटी, अनहेल्दी इटिंग और लगातार भागदौड़ के बीच उनकी फिजिकल और मेंटल हेल्थ के साथ-साथ सेक्सुअल लाइफ पर भी प्रभाव पड़ता है और आहिस्ता-आहिस्ता लोगों में सेक्स करने की इच्छा में कमी आने लगती है। लंबे वक्त तक कमेच्छा में कमी की समस्या की वजह से लोगों की शादीशुदा जिंदगी पर भी असर पड़ सकता है और इससे रिश्तों में गैप बढ़ जाता है। हालांकि, कई बार लोग कमेच्छा बढ़ाने के लिए दवाओं का सहारा भी लेते हैं। पर, इन दवाओं के दुष्प्रभाव होते हैं जो लंबे वक्त तक दिखायी दे सकते हैं।
ऐसे में दवाओं के बिना नेचुरली कामेच्छा बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए और किस तरह की सावधानियां बरतने से कामेच्छा की कमी दूर हो सकती है।
नेचुरली कामेच्छा बढ़ाने के उपाय क्या हैं?
सेक्स जीवन का एक अहम हिस्सा है और हेल्दी सेक्स लाइफ के लिए कामेच्छा काफी अहम है। अगर आपकी कामेच्छा कम है और आप इसे बढ़ाना चाहते हैं तो आपको खास कर तीन स्टेजेस पर काम करना होगा। ये स्टेज हैं शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर।
शारीरिक स्तर पर कामेच्छा बढ़ाने के लिए डाइट में बदलाव जरूरी
अच्छी डाइट हेल्दी शरीर और हेल्दी लिबिडो लेवल के लिए भी जरूरी है। आप अपनी कम कमेच्छा की समस्या से राहत पाना चाहते हैं तो आप अपनी डाइट में बदलाव करें। अपनी डेली डाइट में बदलाव करें। आप जिंक और एल-आर्जिनिन जैसे तत्वों से भरपूर फूड्स जैसे- बींस, सीड्स, लॉब्स्टर्स और प्याज जैसी चीजों का सेवन करें।
कामेच्छा बढ़ाने के लिएआप चॉकलेट, अनार, एवोकाडो, ग्रीन टी, पम्पकिन सीड्स और तरबूज जैसे फूड्स का सेवन कर सकते हैं।
इन सबके साथ आप प्रोसेस्ड फूड्स से परहेज करें क्योंकि, प्रोसेस्ड फूड्स आपके शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं और लिबिडो भी कम करते हैं।
रोजाना करें एक्सरसाइज
रोजाना हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करें। आप मसल्स स्ट्रेंथनिंग एक्सरसाइज, कार्डियाक एक्सरसाइज करें। आप रोजाना योगाभ्यास कर सकते हैं और मेडिटेशन का भी अभ्यास करें। इससे आपको कामेच्छा बढ़ाने में मदद मिलेगी।
नींद की कमी ना होने दें
इन सबके अलावा रोजाना 6-7 घंटे की गहरी नींद सोएं। इससे आपका तनाव कम होगा और कामेच्छा बढ़ाने में भी आसानी होगी।
अपनी बीमारियों को करें मैनेज
अगर आपको हाइपटेंशन, मोटापा या अन्य किसी प्रकार की पुरानी स्वास्थ्य समस्या या क्रोनिक डिजिज है तो उसे मैनेज करें और नियंत्रित रखने के लिए जरूरी उपाय करें।
इन आदतों से बचें
अल्कोहल का सेवन करते हैं तो उसे धीरे-धीरे बंद कर दें। इसी तरह स्मोकिंग से भी कामेच्छा कम होती है इसीलिए, आप अपनी धूम्रपान की आदत छोड़ दें।
इंटीमेसी के लिए निकालें कीमती समय
अपनी व्यस्त जीवनशैली के बीच अपने पार्टनर के लिए समय जरूर निकालें। अपने पार्टनर के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं और अपनी रिलेशनशिप की अच्छी बातों को याद करें। इससे आपकी रिलेशनशिप में नयी जान आएगी और आपको अपने पार्टनर से इमोशनली कनेक्ट कर पाने में भी मदद होगी।
फोटो सौजन्य- गूगल

नेचुरल इंग्रीडिएंट के इस्तेमाल से निखरती है खूबसूरती
Tamanna Bhatia दक्षिण फिल्म इंडस्ट्री में मिल्की ब्यूटी के नाम से जानी जाती है। इसके कारण तमन्ना की सॉफ्ट और ग्लोइंग त्वचा। तमन्ना की त्वचा क्लिन और हेल्दी ग्लो वाली है। अपनी स्किन को हेल्दी रखने के लिए तमन्ना अपने स्किन केयर रूटीन का बहुत ज्यादा ख्याल रखती हैं। तमन्ना केमिकलयुक्त प्रॉडक्ट्स और ट्रीटमेंट से दूर रहते हुए नेचुरल इंग्रीडिएंट का प्रयोग करती हैं। नेचुरल इंग्रीडिएंट्स हैं पसंद
घर में मिलने वाली आम चीजों की मदद से फेस पैक बनाती हैं तमन्ना और अपनी स्किन पर उन्हें इस्तेमाल करती हैं। बता दें कि ये नेचुरल इंग्रीडिएंट कई पीढ़ियों से भारतीय महिलाओं की पहली पसंद रही हैं और उन्हें इन इंग्रीडिएंट्स पर काफी विश्वास रहा है। आइये जानते हैं कि तमन्ना भटिया अपनी स्किन पर कौन सी चीजें अप्लाई करती हैं-
बेसन का फेस पैक
दो चम्मच बेसन, दो चम्मच गुलाब जल और एक चम्मच दही मिलाएं। सभी चीजों को मिक्स करके फेस पैक बना लें। फिर इस पैक को अपनी गर्दन और चेहरे पर लगाएं। जब फेस पैक सूख जाता है तो अपना चेहरा ठंडे पानी से धो लें।
कॉफी-चंदन का फेस पैक
इस फेस पैक को बनाने के लिए 02 चम्मच चंदन पाउडर, 2 चम्मच कॉफी पाउडर और 2 चम्मच शहद की जरूरत पड़ती है। इन सभी चीजों को मिक्स करके फेस पैक बनाएं। इस फेस पैक को आप अपने चेहरे और गर्दन पर लगाएं। 20-25 मिनट के बाद आप इसे चेहरे से साफ कर दें।
स्किन के लिए बेसन के फायदे
बेसन चने के आटे से तैयार होता है। इसमें चने के गुण पाए जाते हैं। बेसन लगाने से स्किन पर निखार आता है। यह पिम्पल्स की समस्या से आराम दिलाता है और स्किन टैनिंग को भी साफ करता है।
स्किन को सॉफ्ट और ग्लोइंग के लिए तमन्ना का हेल्दी डाइट
स्किन को सॉफ्ट और ग्लोइंग रखने के लिए तमन्ना अपनी डाइट पर खास ध्यान देती हैं। वे ब्रोकोली का सलाद खाती हैं और एवोकाडो भी उनकी डाइट में रहता ही है। इन सबके साथ तमन्ना को रोजाना 8-10 गिलास पानी पीने की आदत है।
फोटो सौजन्य- गूगल

Kidney इंफेक्शन के क्या हैं लक्षण-
क्या आपको मालूम है कि किडनी इंफेक्शन क्यों और कैसे होता है? आखिर इस इंफेक्शन के Symptom क्या हैं? बता दें कि किडनी संक्रमण मूत्राशय के संक्रमण से शुरू होता है और फिर एक या दोनों किडनी तक अपनी पहुंच बना लेता है। किडनी इंफेक्शन किसी भी व्यक्ति को हो सकता है लेकिन महिलाओं में किडनी इंफेक्शन सबसे आम है। जिनको भी किडनी में पथरी होती है उनमें भी किडनी इंफेक्शन खतरा अधिक रहता है। इसके कारण आपको फीवर आ सकता हैऔर ठंड लग सकता है। किडनी इंफेक्शन के कारण आपको यूरीन डिस्चार्ज करते समय जलन हो सकती है। किडनी इंफेक्शन का वक्त पर इलाज करवाना काफी अहम होता है, नहीं तो किडनी फेलियर होने का चांस बढ़ जाता है। क्या हैं किडनी इंफेक्शन के संकेत पेशाब करते समय जलन महसूस होना
किडनी इंफेक्शन होने पर आपको पेशाब से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जब किडनी इंफेक्शन होता है, तो बार-बार पेशाब आने की समस्या हो सकती है। इतना ही नहीं, इसकी वजह से पेशाब में जलन हो सकती है और पेशाब करते वक्त दर्द महसूस हो सकता है। जब किडनी इंफेक्शन शुरू होता है तो पेशाब में झाग आ सकता है और पेशाब में खून भी निकल सकता है। किडनी इंफेक्शन के कारण पेशाब में बदबू भी आ जाती है।
किडनी इंफेक्शन होने पर आपको पेशाब से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जब किडनी इंफेक्शन होता है, तो बार-बार पेशाब आने की समस्या हो सकती है। इतना ही नहीं, इसकी वजह से पेशाब में जलन हो सकती है और पेशाब करते वक्त दर्द महसूस हो सकता है। जब किडनी इंफेक्शन शुरू होता है, तो पेशाब में झाग आ सकता है और पेशाब में खून भी निकल सकता है। किडनी इंफेक्शन के कारण पेशाब में बदबू भी आ जाती है।
अचानक से बुखार आना
एकाएक बुखार का आना और कंपकंपी फील होना भी किडनी इंफेक्शन का शुरुआती लक्षण हो सकता है। अगर आपको अचानक से बुखार आने के साथ ही, कंपकंपी भी महसूस हो तो एक बार किडनी का टेस्ट जरूर करवाएं। हालांकि, बुखार और कंपकंपी होना सिर्फ किडनी इंफेक्शन का संकेत नहीं होता है। इसलिए आपको एक बार डॉक्टर से जरूर सलाह लेना चाहिए।
पीठ और कमर में दर्द होना
किडनी इंफेक्शन की वजह से कमर और पीठ में भी दर्द हो सकता है। जब किडनी इंफेक्शन शुरू होता है, तो पीठ के निचले हिस्से या कमर में दर्द हो सकता है। यह दर्द एक तरफ या दोनों तरफ महसूस हो सकता है। इसलिए अगर आपको कमर में दर्द की समस्या रहती है, तो इस संकेत को बिल्कुल नजरअंदाज न करें। यह संकेत किडनी इंफेक्शन का हो सकता है। इसलिए अगर आपको लंबे समय से कमर या पीठ में दर्द हो रहा है, तो एक बार केएफटी जरूर कराएं।
रह रहकर जी मिचलाना
किडनी में इंफेक्शन होने पर आपको उल्टी आना और जी मिचलाने जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। हालांकि, कई अन्य कारणों से भी ऐसी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए अगर आपको अचानक से उल्टी आ रही है या जी मिचलाने की समस्या हो रही है तो एक बार डॉक्टर से जरूर कंसल्ट करें।
थकान और कमजोरी महसूस होना
किडनी में इंफेक्शन होने पर शरीर पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं कर पाता है। इसके कारण आपको थकान और कमजोरी का अनुभव हो सकता है। किडनी इंफेक्शन की वजह से आप अनहेल्दी महसूस कर सकते हैं। आपको हर समय बीमार वाली फिलिंग्स हो सकती है।
फोटो सौजन्य- गूगल

Vaginal Dryness:
सर्दियों में खासकर बहुत-सी महिलाओं को वेजाइनल ड्राइनेस की समस्या होती है। योनि में सूखापन बढ़ने से इरिटेशन महसूस होती है। वहीं, इससे महिलाओं को सेक्स के दौरान दर्द भी महसूस होता है। वेजाइनल ड्राइनेस की वजह से खुजली और तेज सेंसेशन या जलन जैसी परेशानियां भी महिलाओं को महसूस हो सकती हैं। वहीं, कुछ मामलों में सेक्स के बाद ब्लीडिंग की समस्या भी देखी जाती है। वेजाइनल ड्राइनेस एक तकलीफभर कंडीशन और सर्दियों में यह समस्या बार-बार होने की संभावना भी बढ़ जाती है। ऐसे में वेजाइनल हेल्थ को मेंटेन करने और खुद का ख्याल रखना महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। गायनोकॉलोजिस्ट के मुताबिक वेजाइनल ड्राइनेस की समस्या से बचाव को लेकर सलाह दी। वेजाइनल ड्राइनेस के कारण क्या हैं? हार्मोन्स का प्रभाव
शरीर में एस्ट्रोजन हॉर्मोन्स का लेवल कम हो जाने से वेजाइना में ड्राइनेस बढ़ सकती है। महिलाओं में प्रेगनेंसी, मेनोपॉज और बेस्टफीडिंग के दौरान एस्ट्रोजेन का स्तर कम हो सकता है।
दवाओं के साइड-इफेक्ट्स
डिप्रेशन और कैंसर के इलाज के दौरान दी जाने वाली दवाओं और एंटीहिस्टामाइन गोलियों (antihistamines tablet) के साइड-इफेक्ट्स के कारण भी वेजाइनल ड्राइनेस की समस्या हो सकती है।
ये हैं बीमारियां
किसी पुरानी ऑटोइम्यून बीमारी, सिंड्रोम और डायबिटीज जैसी बीमारियों के कारण भी वेजाइनल ड्राइनेस की समस्या हो सकती है।
लाइफस्टाइल से जुड़ी वजह
स्मोकिंग, स्ट्रेस और अनहेल्दी लाइफस्टाइल की वजह से भी इस तरह की समस्याए बढ़ सकती हैं।
वेजाइनल ड्राइनेस की समस्या से बचने के उपाय क्या हैं?
एक्सपर्ट के अनुसार, वेजाइनल ड्राइनेस और इंटीमेसी के दौरान होनेवाली तकलीफों को सही अप्रोच और कुछ सावधानियों की मदद से कम किया जा सकता है। हाइड्रेटेड रहकर, शरीर में हार्मोनल बैलेंस बनाकर, वॉटर बेस्ड लुब्रिकेंट्स का इस्तेमाल करने के अलावा सेक्स से पहले फोर प्ले की मदद लेने से ये समस्याए कम हो सकती हैं।
हालांकि, अगर इन सबके बाद भी आपको दर्द और योनि में सूखापन की समस्या बनी रहती है तो किसी स्पेशलिस्ट की सलाह लें।
वेजाइनल ड्राइनेस के घरेलू और नेचुरल उपचार (Home remedies for treating Vaginal Dryness problem)
दही का ऐसे करें सेवन
दही एक नेचुरल प्रोबायोटिक है। प्रोबायोटिक्स गट में हेल्दी बैक्टेरिया (Healthy bacteria in Gut) को बढ़ाने का काम करते हैं। इससे आपका डाइजेशन भी सुधरता है। प्रोबायोटिक्स वेजाइनल हेल्थ को भी बेहतर बनाते हैं। ये संक्रमण के रिस्क को कम करने के साथ-साथ ड्राइनेस की समस्या से भी बचाते हैं। वहीं, प्रोबायोटिक्स आपके ब्लैडर को भी हेल्दी रखते हैं।
दही के अलावा पनीर, अचार और किमची (Kimchi) का भी सेवन आप प्रोबायोटिक्स के लिए कर सकती हैंय़
विटामिन E रिच फूड्स खाएं
शरीर को अगर सही मात्रा में विटामिन ई प्राप्त होता है तो इससे वेजाइनल लुब्रिकेशन भी बढ़ जाता है। इससे योनि में ड्राइनेस की समस्या कम होती है। विशेषकर मेनोपॉज के बाद महिलाओं में वेजाइनल ड्राइनेस की परेशानी बढ़ सकती है। ऐसे में महिलाएं अपनी डाइट में विटामिन ई रिच फूड्स जरूर शामिल करें।
एवोकाडो, फ्लैक्सीड्स और पम्पकिन सीड्स के अलावा अंडे, फिश और शकरकंद में विटामिन ई (Vit E) पाया जाता है।
हमेशा हाइड्रेटेड रहें
वेजाइनल ड्राइनेस से बचने का एक सबसे आसान तरीका है हाइड्रेशन। अगर आप सही मात्रा में पानी पीती हैं तो इससे वेजाइनल ड्राइनेस से बचने में आसानी हो सकती है। इसीलिए, रोजाना 8-10 गिलास पानी जरूर पीएं। सर्दियों के मौसम में लिक्विड इंटेक बढ़ाने के लिए आप गर्म सूप, दाल का पानी, नारियल पानी और फल-सब्जियों के जूस भी पी सकती हैं।
फोटो सौजन्य- गूगल

Sleep Benefits: बच्चों के फिजिकल और मेंटल डेवलपमेंट के मद्देनजर भरपूर नींद बहुत ही जरूरी है। जल्दी सोने और जल्दी उठने से बच्चों में अनुशासन आता है और वे स्वस्थ्य रहते हैं। इससे बच्चों की इम्यूनिटी भी बूस्ट होती है। बचपन से बच्चों का एक टाइम सेट करें, उसके मुताबिक ही बच्चों को जागना, सोना, पढ़ना, खेलना सिखाएं। हालांकि ज्यादतर माता-पिता इन बातों पर अपने बिजी शेड्यूल की वजह से ध्यान नहीं दे पाते हैं। पेरेंट्स खुद रात में देर से सोते हैं और बच्चे भी उन्हीं के साथ सोना पसंद करते हैं, ऐसे में उनका बेड टाइम भी लेट हो जाता है। पर साधारण से लगने वाली ये बात गंभीर है। इसलिए बच्चों को वक्त पर सोने और उठने की आदत डालें। कुछ तरीके आपके लिए बेहद कारगर हो सकते हैं-
लेट नाइट डिनर से बचें
अगर आप चाहते हैं कि बच्चा समय पर सो जाए तो आप लेट नाइट डिनर से बचें। रात 08 बजे से पहले आप डिनर कर लें। डिनर और बच्चों के सोने के समय में कम से कम 02 से 03 घंटे का गैप होना जरूरी। ऐसा करने से एसिड रिफ्लक्स और पाचन संबंधी अन्य समस्याएं नहीं होंगी।
स्क्रीन टाइम पर दें कम रखें
आमतौर पर बच्चे माता-पिता के साथ देर तक टीवी या फिर मोबाइल देखते हैं। लेकिन यह पेरेंट्स की बड़ी भूल है। स्क्रीन की ब्लू लाइट बच्चों के साथ ही बड़ों की नींद में खराब करती है। इसलिए सोने से कम से कम 1 घंटे पहले बच्चे को स्क्रीन से दूर रखें।
चीनी और कैफीन की मात्रा कम दें
बच्चों को हमेशा चीनी और कैफीन से दूर रहना चाहिए पर ज्यादातर बच्चे सोने से पहले दूध पीते हैं, जिसमें कॉफी या फिर चॉकलेट पाउडर आदि भी डाला जाता है। लेकिन चीनी और कैफीन दोनों ही नींद के दुश्मन हैं। इससे बेड पर जाने से ठीक पहले बच्चों को दूध न दें। बच्चों को दूध देने का बेस्ट टाइम शाम 4 से 6 के बीच है। उसी समय उन्हें दूध दें।
सोने का रूटीन बनाएं
सोने से कम से कम 30 मिनट पहले इसका एक रूटीन सेट करें। किताबें पढ़कर बच्चों को सुनाएं, कहानियां सुनाएं, लोरी गाएं। इनसे बच्चा मेंटली और फिजिकली सोने के लिए तैयार होगा। वहीं बच्चों को सुलाने से पहले उनके साथ खेलने या फिर हंसी मजाक करने जैसी एक्टिविटी न करें। इससे बच्चे का माइंड एक्टिव रहेगा और वो सोना ही नहीं चाहेगा।
रात में बनाएं सोने का माहौल
अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा गहरी और अच्छी नींद ले तो उसे अच्छा नींद का माहौल दें। कमरे को साफ करें, बेडशीट या तो चेंज करें या फिर उसे फिर से ठीक से बिछाएं, कमरे की रोशनी धीमी करें, पर्दे अच्छे से लगाएं। बच्चों को नाइट वियर जरूर पहनाएं। ये उनकी नाइट रूटीन का हिस्सा होने चाहिए। उन्हें नहलाकर या फिर हाथ मुंह वॉश करके क्रीम और पाउडर लगाएं। इससे वे रिलैक्स होंगे। इसी के साथ कमरे का टेंपरेचर बच्चों के अनुसार सेट करें। इससे बच्चे को पता चल जाएगा कि अब सोने का समय है और वे गहरी नींद सो पाएंगे। इतना ही नहीं उनकी नींद बीच-बीच में टूटेगी नहीं।
फोटो सौजन्य- गूगल

Mental Health:
कई पैरेंट्स छोटी-मोटी बात पर आपस में चिल्लाने लगते हैं या वह बच्चों पर गुस्सा करने लगते हैं, जो सभी को आम बात लगती है। दिनभर की थकान, काम का टेंशन और बच्चों की शरारतें सब मिलकर कभी-कभी पैरेंट्स को चिल्लाने पर मजबूर कर देते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि लगातार गुस्सा या चिल्लाने से बच्चों के दिमाग और भावनाओं पर गंभीर असर पड़ता है? शायद आपको तुरंत इसका पता ना चले लेकिन घर पर बच्चों के साथ होने वाली कसकर चिल्लाने से छोटे व बड़े दोनों उम्र के बच्चों के दिमाग पर असर डालती है। साइकोलॉजिस्ट के मुताबिक गुस्से में चिल्लाने पर बच्चे का मस्तिष्क डर और तनाव की स्थिति में चला जाता है। उनके शरीर में कॉर्टिसोल नामक तनाव हार्मोन बढ़ जाता है। लंबे वक्त तक यह हार्मोन ज्यादा रहने से बच्चे में चिंता, अवसाद और सीखने की क्षमता में कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। बच्चों पर उनकी उम्र के हिसाब से प्रभाव छोटे बच्चे का मस्तिष्क अभी विकसित हो रहा होता है, इसलिए चिल्लाना उन्हें बहुत डराता है और वे सहज रूप से सीख नहीं पाते। वहीं, किशोरावस्था में लगातार डांट और चिल्लाना उनके आत्म-सम्मान, कॉन्फिडेंस और सामाजिक व्यवहार को डिस्टर्ब कर सकता है। चिल्लाने की जगह ये करें
- संयम बनाएं- गुस्से में फौरन चिल्लाने की बजाय पहले खुद शांत होना जरूरी।
- सकारात्मक भाषा अपनाएं- बच्चों को डांटने की बजाय समझाने की कोशिश करें।
- मिसाल के तौर पर- बच्चा होमवर्क नहीं करता? चिल्लाने की बजाय उसके साथ बैठकर कारण समझें और हल खोंजे।
- प्रोत्साहन दें- छोटी छोटी अच्छी आदतों और प्रयासों को सराहें। इससे बच्चा ज्यादा आत्मविश्वासी बनता है।
- बच्चों में डर और असुरक्षा की भावना बढ़ती है।
- उनकी सोचने और सीखने की क्षमता पर असर पड़ता है।
- लंबे वक्त में भावनात्मक समस्याएं और आत्मविश्वास में कमी आ सकती है।
- सामाजिक जीवन और रिश्तों में भी असर दिखाई दे सकता है।
डॉक्टर के अनुसार बच्चों के लिए प्यार और सुरक्षा की भावना सबसे अहम है। जब हम गुस्से में चिल्लाते हैं तो वे सिर्फ डर महसूस करते हैं और सीखने या सोचने की जगह बचने पर ध्यान देते हैं।
इसलिए हर बार गुस्सा आने पर एक गहरी सांस लें और बच्चों के साथ संवेदनशील, प्यार सा और सकारात्मक संवाद करें। चिल्लाना तात्कालिक राहत दे सकता है पर लंबे समय में यह बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास को प्रभावित करता है। संयम, समझदारी और मोहब्बत से बच्चों को समझाना उन्हें हेल्दी, खुशहाल और आत्मविश्वासी बनाता है।
हाइलाइट्स-
आपका बच्चों के साथ कैसा व्यावहार करते हैं,इसका बच्चे के दिमाग पर सीधा असर पड़ता है। चिल्लाने से बच्चे के मन में डर पैदा हो जाता है।
बच्चों पर चिल्लाने के बजाय प्यार से बात करें और कूल होकर समझाएं।
फोटो सौजन्य- गूगल

Microwave में खाना गर्म करना सेहत के लिए नुकसानदायक
आज के टेक्नोलॉजी के इस युग में घरेलू जिंदगी में बहुत सारी सुविधाएं हो गई हैं। अब हर काम के लिए मशीनें हाजिर हैं। ऐसी ही एक मशीन है माइक्रोवेव, जिसे खाने को गर्म रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आजकल ज्यादातर घरों में माइक्रोवेव पाया जाता है पर क्या आप जानते हैं कि माइक्रोवेव में खाना गर्म करना हेल्थ के लिए भारी नुकसानदेह हो सकता है। बता दें कि माइक्रोवेव इलेक्ट्रिक होने के कारण इससे रेडिएशन निकलती है, जोकि खाने को रेडियोएक्टिव बना सकता है। माइक्रोवेव ऐसे में गर्म किए गए खाने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां होने की आशंका बनी रहती है। माइक्रोवेव में खाना गर्म करते वक्त कभी भी ऐसी गलती ना करें
वैसे माइक्रोवेव में खाना गर्म किया जा सकता है लेकिन सावधानी भी रखनी होगी। खाना सेहत को नुकसान ना पहुंचाए। रिसर्च में यह साफ हुआ है कि माइक्रोवेव से रेडिएशन केवल खाना गर्म करने को लेकर निकलता है। हालांकि, कुछ गलतियां करने से फिर भी बचना चाहिए।
माइक्रोवेव के बर्तन ही इस्तेमाल करें
अगर आप चाहते हैं कि माइक्रोवेल में खाना गर्म करने के बाद भी वह सेहत को नुकसान न पहुंचाए, तो इसके लिए माइक्रोवेव में उन बर्तनों का ही इस्तेमाल करें, तो इस मशीन के लिए बने होते हैं। प्लास्टिक के बर्तन गर्म होने पर हानिकारक केमिकल छोड़ सकते हैं। ऐसे में यह सेहत के लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है।
नॉर्मल टेंपरेचर पर ही गर्म करें खाना
ऐसा तो सभी जानते हैं कि खाने को ज्यादा पकाने से पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। ऐसे में यदि सही तापमान और सही समय तक खाने को गर्म किया जाए, तो इससे खाने को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता है। पौष्टिकता के लिहाज से यह सुरक्षित रहता है।
माइक्रोवेव में ज्यादा टाइम सेट कर खाना न करें गर्म
माइक्रोवेव में खाने को ज्यादा समय तक भी गर्म नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह न सिर्फ खाने के टेस्ट को खराब करता है, बल्कि ओवन को भी खराब कर सकता है। दरअसल, ज्यादा देर तक खाना गर्म करने पर उसके पोषक तत्व भी खत्म हो जाते हैं।
Women in 40 की उम्र में आते हैं बड़े बदलाव, उम्र के इस पड़ाव को खुद के रखें एक्टिव और फिट
फॉयल पेपर में गर्म न करें खाना बता दें कि ओवन में भूलकर भी एल्युमीनियन फॉयल पेपर नहीं रखना चाहिए। असल में, इससे माइक्रोवेव को तो नुकसान पहुंचता ही है, साथ ही सेहत के लिए भी यह सुरक्षित नहीं है। ऐसे में अगर आप ओवन में खाना गर्म कर रहे हैं, तो सिरेमिक या फिर कांच के बर्तनों का इस्तेमाल ही करें। माइक्रोवेव का सही से इस्तेमाल कर अपना और अपनों का ख्याल रखें। फोटो सौजन्य- गूगल
Mental Health: आजकल हर किसी की जिंदगी में बस भागदौड़ है और किसी ना किसी बात को लेकर तनाव है। लगातार टेंशन और स्ट्रेस में रहने के कारण कई तरह की समस्याएं हो सकती है। किसी को ऑफिस का स्ट्रेस है तो किसी को घर का, हर इन्सान किसी ना किसी बात से तनावग्रस्त है। तनाव की वजह से सिर्फ मानसिक समस्याएं ही नहीं, बल्कि कई तरह की फिजिकल समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। बता दें कि लंबे समय तक स्ट्रेस में रहना आपके दिमाग को प्रभावित कर सकता है। डॉक्टर का कहना है कि जब आप टेंशन लेते हैं तो दिमाग से कॉर्टिसोल नाम का हार्मोन निकलता है जिसकी वजह से आपको अच्छा फील नहीं होता है। कभी कभी ऐसा होना नार्मल है लेकिन जब आप लंबे वक्त तक तनाव में रहते हैं तो दिमाग पर इसका विपरीत असर पड़ने लगता है। इसकी वजह से आपकी याददाश्त कमजोर होने लगती है और आप बातें भूलने लगते हैं।
तनाव दिमाग को कैसे प्रभावित करता है?
- ज्यादा तनाव लेने से दिमाग का एक हिस्सा, हिप्पोकैम्पस, सिकुड़ जाता है। यह दिमाग का वह भाग है जहां मेमोरी होती है और जो सीखने से जुड़ा हुआ है। ज़्यादा टेंशन लेने से हमारा दिमाग़ सिर्फ थकता नहीं है, बल्कि इससे हमारी सोचने की क्षमता में भी गिरावट आ जाती है। हम अपने अंदर की क्रिएटिविटी खो देते हैं, हमें फैसले लेने में घबराहट होती है।
- ज्यादा तनाव सेरोटोनिन और डोपामाइन के स्तर को, बिगाड़ देता है, जो दिमाग के लिए जरूरी है। इस कारण, चिंता, अवसाद और अनिद्रा की परेशानी हो सकती है।
- ज्यादा तनाव के कारण कोर्टिसोल का स्तर बढ़ने से दिमाग और शरीर की सूजन को बढ़ जाती है, जो समय के साथ बढ़ सकती है। अगर इसका इलाज न किया जाए, तो अल्जाइमर या पार्किंसंस जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
- ज्यादा तनाव से प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स प्रभावित होता है। इसकी वजह से व्यक्ति चिड़चिड़ा, मूड स्विंग्स, अकेलापन और ओवर सेंसिटिविटी महसूस करता है।
- टाइम मैनेजमेंट करें – कामों की लिस्ट बनाकर प्रायोरिटी सेट करें।
- बॉडी को मूव करें – रोज़ाना 20–30 मिनट वॉक या एक्सरसाइज स्ट्रेस को घटाती है।
- नींद जरूरी है- रात में 7-8 घंटे की अच्छी नींद जरूर लें।
- सांस पर ध्यान दें – गहरी सांस लेने से दिमाग तुरंत रिलैक्स होता है।
- डिजिटल डिटॉक्स – थोड़ी देर मोबाइल और सोशल मीडिया से दूर रहें।
- पॉजिटिव एक्टिविटी – म्यूजिक, पढ़ना, मेडिटेशन या हॉबी टेंशन घटाते हैं।
- लोगों से बात करें – अपनी फीलिंग्स शेयर करने से बोझ हल्का होता है।

Women in 40: अनुभव और थकान से भरी एक ऐसी उम्र जब आप बहुत कुछ समझ चुकी होती हैं। लेकिन करने को अब भी बहुत कुछ शेष होता है। घर और बाहर की दुनिया की कई चुनौतियों को आप ने पार कर लिया है, मगर कामयाबी के कई सितारे अभी आपके कंधों पर सजने बाकी होते हैं। इस उम्र तक आते अधिकतर महिलाएं अपनी सेहत को सबसे निचले लेवल पर ला चुकी होती है। जबकि यह वही उम्र है जब आपको अपनी सेहत का सबसे अधिक ख्याल रखने की आवश्यकता होती है।
वजन, उम्र और पोजिशन कुछ ऐसी हो जाती है कि शारीरिक रूप से एक्टिव रहने का वक्त भी कम होता चला जाता है। जिसके कारण आप अपनी उम्र के पुरषों से ज्यादा बीमारियों के गिरफ्त में होते हो। अगर इन जोखिमों से बचकर, सफलता के साथ आगे बढ़ना है तो आपको खुद को शारीरिक रूप से सक्रिय रखने पर ध्यान देना होगा।
एक सीनियर साइकोलॉजिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट के मुताबिक देखने में भले ही यह सामान्य लगे लेकिन यह उम्र आपके मन के स्तर पर बहुत सारे बदलाव लेकर आती है और यह सब हॉर्मोन में हो रहे बदलाव की वजह से होता है। जो आपकी स्किन, पीरियड, मूड और वेट सभी कुछ प्रभावित करते हैं। इसलिए इस समय आपको अपना और ज्यादा ख्याल रखना जरूरी होता है।
महिलाओं में 40 की उम्र में होने वाली सबसे आम समस्याएं
1. हॉर्मोनल असंतुलन
ये उम्र उन हॉर्मोन में बदलाव की उम्र है, जो अभी तक आपके रिप्रोडक्टिव हेल्थ और बाहरी खूबसूरती के लिए जिम्मेदार थे। अनियमित माहवारी और त्वचा पर उग आने वाले बाल बताते हैं कि आपके हॉर्मोन असंतुलित हो रहे हैं। इस समय एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हॉर्मोन में गिरावट आने लगती है।
2. हेयर फॉल और स्किन में बदलाव
एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन आपकी प्रजनन क्षमता के साथ-साथ आपके लुक को भी प्रभावित करते हैं। इनमें बाल पहले से हल्के और पतले होने लगते हैं, जबकि त्वचा में लोच और कसाव की कमी दिखाई देने लगती है। बालों का सफेद होना और त्वचा पर झुर्रियां उम्र के इसी पड़ाव पर नजर आने लगती है।
3. पाचन संबंधी समस्याएं
40 की उम्र की महिलाओं का पाचन तत्र पहले से धीमा हो जाता है, जिससे उन्हें पाचन संबंधी समस्याएं बहुत ज्यादा परेशान करने लगती हैं। अक्सर आपने महसूस किया होगा कि पहले आप जिन चीजों को बड़े दिलचस्पी के साथ खाती थीं, अब वही आपके पेट पर बोझ की तरह रहती है। अगर परहेज न किया जाए, तो गैस, एसिडिटी और बदहजमी जैसी समस्याएं इस समय ज्यादा होने लगती हैं।
4. वजन में इजाफा होना
मेटाबॉलिज्म धीमा होने और हॉर्मोन असंतुलन होने की वजह से महिलाओं को इस उम्र में पेट के पास चर्बी बढ़ने लगती है। इस समय वजन बढ़ना जितना आसान होता है, उसे नियंत्रित करना उतना ही मुश्किल हो जाता है।
5. कमजोर होने लगती हैं हड्डियां
हालांकि 30 के बाद से ही महिलाओं की बोन डेंसिटी कम होने लगती है, इसलिए उन्हें केल्शियम पर ध्यान देने की सलाह दी जाती है। मगर 40 की उम्र पार करते एस्ट्रोजन की कमी के कारण ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है। इसलिए केल्शियम के साथ-साथ आपको विटामिन-D का लेवल भी चेक करते रहने की जरूरत होती है।
6 मूड स्विंग्स
हॉर्मोन सिर्फ आपकी प्रजनन क्षमता को ही नहीं, बल्कि आपके मूड को भी प्रभावित करते हैं। हॉर्मोनल असंतुलन के कारण इस समय आपको ज्यादा गुस्सा आ सकता है। ज्यादातर महिलाओं के परिवार में यह शिकायत आती है कि वे बहुत चिड़चिड़ी और गुस्सैल हो गई हैं। यह पेरिमेनोपॉज का भी एक संकेत हो सकता है। जब आपको हॉट फ्लैश और मूड स्विंग्स का सामना करना पड़ता है।
इस उम्र में कैसे रहा जाए फिट और हेल्दी
डॉक्टर के अनुसार 40 की उम्र में सक्रिय रहने के लिए तनाव को संतुलित करना, अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखना और सकारात्मक जीवनशैली अपनाने का दृष्टिकोण रखना आवश्यक है। तनाव ऊर्जा को समाप्त करने वाले प्रमुख कारणों में से एक है, इसलिए इसे प्रभावी ढंग से प्रबंधित रहना बेहद जरूरी है।
1. टेंशन देने वाले कारकों की पहचान करें
सबसे पहले, अपने जीवन में मौजूद तनाव के कारणों की पहचान करें, यानी यह जानें कि तनाव व्यवसायिक, व्यक्तिगत, वित्तीय या सामाजिक जीवन से आ रहा है। तनाव प्रबंधन पर सक्रिय रूप से काम करें और जरूरत पड़ने पर किसी जानकार से मार्गदर्शन लें। जितनी जल्दी कोई व्यक्ति अपने तनाव को पहचानकर किसी विशेषज्ञ से सलाह लेता है, उतने ही ज्यादा अवसर होते हैं कि वह अपने 40 के दशक में सक्रिय और ऊर्जावान रह सके। इसके साथ ही, उचित नींद लेना भी जरूरी है। अच्छी गुणवत्ता वाली नींद हमारे शरीर और दिमाग को ऊर्जावान बनाने के लिए जरूरी होती है।
2. खूब सारा पानी पीएं
हाइड्रेशन भी एक महत्वपूर्ण कारक है। पर्याप्त मात्रा में तरल पेय पीना और आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार लेना बहुत जरूरी है। इसके अतिरिक्त, संगीत सुनना, किताबें पढ़ना या रचनात्मक गतिविधियों में शामिल होना मन और संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है।
3. चाय-कॉफी कम कर दें
हो सकता है कि सुबह की पहली कॉफी या चाय आपको दिन के लिए तैयार करती हो, मगर यह आपको डिहाइड्रेट भी करती है। इसलिए इन्हें कम करने और धीरे-धीरे छोड़ने की ओर ध्यान दें। साथ ही, निकोटीन, शराब या किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों से दूर रहना अत्यंत आवश्यक है।
4. हर रोज़ एक्सरसाइज करें
यह आपके लिए सबसे जरूरी एक्टिविटी है। डांस, जुंबा, एरोबिक्स, साइकलिंग, कार्डियो जो भी आपको पसंद है, उसकी मदद से खुद को एक्टिव रखें। हर दिन कम से कम 45 मिनट और सप्ताह में पांच दिन आपका फिजिकल एक्सरसाइज करना बहुत जरूरी है। इससे मेटाबॉलिज्म ठीक रहता है, वजन नियंत्रित रहता है और आपका मूड भी अच्छा रहता है और आप कम बीमार पड़ती हैं।
डॉक्टर का कहना है कि साल में कम से कम एक बार संपूर्ण स्वास्थ्य जांच कराना चाहिए। ये सुझाव किसी भी व्यक्ति को उनके 40 के दशक में सक्रिय और ऊर्जावान बनाए रखने में मदद पहुंचा सकता है।
फोटो सौजन्य- गूगल

