Search
  • Noida, Uttar Pradesh,Email- masakalii.lifestyle@gmail.com
  • Mon - Sat 10.00 - 22.00

Author Archives: Nafisa Khan

Never forget to warm up before going for a morning walk

Morning Walk: शरीर को पूरे दिन एक्टिव और हेल्दी बनाए रखने के लिए ज्यादातर लोग दिन की शुरूआत मॉर्निंग वॉक से करते हैं। पर्यावरण के नजदीक कुछ देर रहने से पक्षियों की चहचहाहट, ठंडी हवाओं और हरियाली को खुली आंखों से महसूस किया जाता है। इससे बॉडी और माइंड एक्टिव रहता है। हालांकि गर्मी के दिनों में देरी से वॉक के लिए निकलने के कारण पसीना आना, बार-बार गला सूखना और थकान का सामना करना पड़ता है। ऐसे में नियमित वक्त पर वॉक पर जाना बेनिफिशियल साबित होता है। सुबह की सैर पर निकलने से पहले रखें कुछ बातों का खास ध्यान-

एक हेल्थ रिपोर्ट के मुताबिक पैदल चलना सभी उम्र के लोगों के लिए व्यायाम का एक बेहतरीन तरीका है। इसके लिए पैदल चलने की क्रिया को धीरे धीरे शुरू करें। समय के साथ इसकी आदत हो जाने पर रास्ते की लंबाई और चलने की गति बढ़ाते जाएं।

इस बारे में फिटनेस एक्सपर्ट बताते हैं कि शरीर को संतुलित रखने और मांसपेशियों की ऐंठन से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करें। इससे शरीर का लचीलापन बढ़ने लगता है और शारीरिक अंगों में बढ़ने वाली थकान से भी बचा जा सकता है। नियमित रूप से इसका अभ्यास शरीर में जमा कैलोरीज को भी बर्न करने में मदद करता है।

मॉर्निंग वॉक पर जाने से पहले रखें इन बातों का ध्यान

Never forget to warm up before going for a morning walk

1. वॉर्मअप होना ना भूलें

वॉक करने से पहले शरीर को एक्टिव करने के लिए वॉर्मअप सेशन बहुत आवश्यक है। इससे शरीर का तापमान उचित बना रहता है और शरीर में लचीलापन रहता है। इसके अलावा कोर मसल्स मज़बूत बनते हैं, जिससे चोटिल होने का खतरा भी कम होने लगता है। वॉक से पहले 15 मिनट का वॉर्मअप मांसपेयियों सेशन बेहद ज़रूरी है। एक रिपोर्ट के अनुसार वॉर्मअप की मदद से मांसपेशियों में बढ़ने वाले खिंचाव को कम किया जा सकता है और ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने में मदद मिलती है।

2. बॉडी को हमेशा हाइड्रेट रखें

Never forget to warm up before going for a morning walk

टहलने से कुछ देर पहले पानी पीने से बार-बार प्यास लगने की समस्या हल होने लगती है। साथ ही कार्यप्रणाली में सुधार आने लगता है, जिससे होने वाली थकान से बचा जा सकता है। इससे शरीर के तापमान को नियंत्रित करने, जोड़ों की मोबिलिटी को बढ़ाने और पोषक तत्वों के अवशोषण में मदद मिलती है। इससे शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह उचित बना रहता है।

3. कपड़े और जूतों का ख्याल रखें

गर्मी में वॉक पर जाने के दौरान अधिक टाइट कपड़े पहनने से बचें। इसके अलावा फुल स्लीव्स और कैप को भी अवॉइड करें। इससे गर्मी का स्तर बढ़ने लगता है। ऐसे में हल्के रंग के और खुले कपड़े पहनें। इसके अलावा स्पोर्टस शूज पहनकर ही वॉक पर निकलें। इससे थकान कम होने लगती है और गिरने का जोखिम भी कम हो जाता है।

4. धीमी गति से करें शुरूआत

तेज़ी से चलना जहां एक तरफ आपके समय को तो बचाता है। मगर उससे शारीरिक थकान बढ़ जाती है और बार बार पसीना आने लगता है। ऐसे में शुरूआत धीमी गति से करें और फिर स्टेमिना बिल्ड होने के बाद समय सीमा को बढ़ा दें। इससे स्वास्थ्य को भी फायदा मिलता है।

5. सही तकनीक का करें प्रयोग

आराम से धीरे और बाहों को हिलाते हुए चलें। इसके अलावा वॉक के दौरान शरीर को एकदम सीधा कर लें और लंबे लंबे फुट स्टेप्स लेने से बचें। शुरूआत 20 मिनट की वॉक से कर लें और सप्ताह में 2 से 3 बार ही वॉक के लिए जाएं।

6. खुद को कूल कर लें

आप हमेशा लॉन्ग और फास्ट सैर करने के बाद शांत हो जाएं। शरीर को एक्टिव रखने के लिए टहलने के बाद कुछ स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करें। इससे बॉडी में बढ़ने वाली पेन और थकान कम होने लगती है। इसके बाद बॉडी को कुछ देर रिलैक्स होने के लिए छोड़ दें, जिससे शरीर की एनर्जी दोबारा बूस्ट हो सके।

फोटो सौजन्य- गूगल 

Natural Cooking

Natural Cooking: आज के इस आधुनिकता भरी दुनिया में किचन में स्टील, नॉन स्टिक और कुकर जैसे बर्तन आम हो गए हैं। लेकिन एक बार फिर आयुर्वेद और विज्ञान पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों की ओर लौटने की सलाह दे रहा है। मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने और खाना खाने के फायदे हेल्थ के साथ-साथ परंपरा की दृष्टि से भी काफी अहम हैं।

मिट्टी के बर्तन में पकाने के फायदे

आयुर्वेद के मुताबिक खाने को धीमी आंच में पकाना ही सबसे बेहतर तरीका है। मिट्टी के बर्तनों में खाना धीरे-धीरे पकता है जिससे इसमें मौजूद सभी जरूरी न्यूट्रियंस सुरक्षित रहते हैं, जबकि कुकर में तेज भाप और दबाव की वजह से ऐसा नहीं होता है। कुकर में खाना बनने के दौरान 87 प्रतिशत तक पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। पर मिट्टी के बर्तनों में ये 100 प्रतिशत तक सुरक्षित रहते हैं। साथ ही भोजन में मौजूद सभी प्रोटीन शरीर को खतरनाक बीमारियों से सुरक्षित रखते हैं।

खाने का टेस्ट में इजाफा करता है मिट्टी का बर्तन

Natural Cooking

मिट्टी के बर्तन भारत में पारंपरिक रूप से सदियों से उपयोग में लाए जा रहे हैं। मिट्टी के बर्तन अन्य धातुओं के बर्तनों की तुलना में आज भी काफी सस्ते होते हैं। विभिन्न रूपों, डिजाइनों और रंगों में ये बर्तन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही जगह पर आसानी से मिल जाते हैं। मिट्टी के बर्तनों में पकाया हुआ खाना वी सिर्फ स्वास्थ्यवर्धक होता है, बल्कि इसका टेस्ट भी लाजवाब होता है। सौंधी सी खुशबू और मसालों का मेल एक ऐसा खास जायका तैयार करता है जिसे कोई भी भूल नहीं सकता। ये खाने को खास बना देता है, या खाने के स्वाद को दो गुना कर देता है।

आज के दौर में मिट्टी के बर्तन केवल सेहत के लिहाज से ही नहीं, बल्कि सजावट और पारंपरिकता के लिए भी पसंद किए जा रहे हैं। खूबसूरत कलाकारी से सजे ये बर्तन किचन और डाइनिंग टेबल को एक देसी और आकर्षक रूप देते हैं। सुबह की चाय कुल्हड़ में हो या ठंडा पानी मटकी में, इसका अनुभव अलग ही होता है।

सेहत के लिए है फायदेमंद

एक इंसान को हर दिन 18 तरह के सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरूरत होती है। ये पोषक तत्व मुख्य रूप से मिट्टी से प्राप्त होते हैं। दूसरी तरफ, एल्युमीनियम के बर्तनों में पकाया गया खाना इन पोषक तत्वों को नष्ट कर देता है. इतना ही नहीं, यह टीबी, डायबिटीज, अस्थमा और पैरालिसिस जैसी कई गंभीर बीमारियों का कारण भी बन जाता है। कांसे और पीतल के बर्तन में भी खाना बनाने से कुछ पोषक तत्व नष्ट होते हैं। लेकिन सबसे सुरक्षित और लाभदायक मिट्टी के बर्तन ही होते हैं।

आज के आधुनिक दौर में मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल माइक्रोवेब में भी किया जाता है जिससे इन्हें पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह के किचन में प्रयोग करना आसान हो जाता है। हालांकि इनका सीधा तेज ताप में इस्तेमाल ना करने की सलाह जी जाती है, क्योंकि इनकी हीट सहन करने की क्षमता अन्य धातुओं सेथोड़ा कम होती है। मिट्टी के बर्तनों में अगर दही भी जमाते हैं तो इनका स्वाद काफी बढ़ जाता है। गर्म दूध भी जब मिट्टी की हांडी में डाला जाता है तो उसमें एक अलग ही सौंधापन आ जाता है।

फोटो सौजन्य- गूगल

How diabetes weakens bones and joints

DIABETES: आजकल भागदौड़ वाली जीवनशैली के कारण सेहत संबंधी प्रॉब्लम्स भी तेजी से बढ़ रही है। ब्लड प्रेशर से लेकर डायबिटीज तक जैसी गंभीर समस्याएं भी अब आम हो गई हैं। डायबिटीज अब ऐसी समस्या बन चुकी है जो कम उम्र के लोगों को भी तेजी से दबोच लेती है। बता दें कि यह ऐसी बीमारी है जो किसी को एक बार घेर ले तो फिर धीरे-धीरे शरीर को कमजोर करने लगती है। जिससे शरीर को दूसरी बीमारियां तेजी से घेरती हैं। शरीर में शुगर लेवल बढ़ने पर इसे नियंत्रित कर पाना भी मुश्किल हो जाता है। डायबिटीज ब्लड शुगर को तो बढ़ावा ही है, साथ ही साथ बोन और ज्वाइंट्स को भी कमजोर करने लगता है। जिससे ऑस्टियोपोरोसिस यानी हड्डियों के पतले होने, घिसने और अर्थराइटिस की समस्या में इजाफा हो सकता है। इससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और फ्रैक्चर और ज्वाइंट्स पेन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। जानते हैं डायबिटीज हड्डियों और ज्वाइंट्स को कैसे नुकसान पहुंचाता है-

विशेषज्ञ बताते हैं कि, मधुमेह न केवल ब्लड शुगर को बढ़ाता है, बल्कि यह हड्डियों और जोड़ों को भी कमजोर कर सकता है। जब शरीर में शुगर लेवल लंबे समय तक बढ़ा रहता है, तो यह हड्डियों में कैल्शियम की मात्रा को कम कर सकता है, जिससे वे कमजोर हो जाती हैं। इससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। अलावा इसके डायबिटीज के कारण जोड़ों में सूजन आ सकती है, जिससे दर्द और जकड़न फील होती है।

कई मामलों में, हाई ब्लड शुगर शरीर के टिशूज़ और कार्टिलेज को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे गठिया जैसी समस्याएं पनप सकती हैं। डायबिटीज से प्रभावित नसों और रक्त वाहिकाओं के कारण हड्डियों और जोड़ों में सही मात्रा में पोषण नहीं पहुंच पाता, जिससे ठीक होने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और छोटी चोटें भी जल्दी ठीक नहीं होतीं। लंबे समय तक अनकंट्रोल शुगर रहने से बोन मिनरल डेंसिटी कम हो जाती है, जिससे फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है, खासकर रीढ़, कूल्हों और घुटनों में।

डायबिटीज से ग्रस्त लोगों को अपनी हड्डियों और जोड़ों की देखभाल के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए, कैल्शियम और विटामिन-D युक्त आहार लेना चाहिए और शुगर लेवल को कंट्रोल में रखना चाहिए। अगर हड्डियों या जोड़ों में लगातार दर्द या जकड़न हो रही हो, तो इसे नजरअंदाज भूलकर भी ना करें और तुरंत अपने डॉक्टर से सलाह लें। सही खान-पान, नियमित व्यायाम और ब्लड शुगर को नियंत्रित रखकर हड्डियों को मजबूत रखा जा सकता है और जोड़ों की समस्याओं से निजात पाया जा सकता है।

हड्डियों और ज्वाइंट्स को कैसे प्रभावित करती है DIABETES?

How diabetes weakens bones and joints

डायबिटीज अब एक आम समस्या बन चुकी है, जिसकी सबसे बड़ा कारण है अनियमित लाइफस्टाइल और खान-पान। डायबिटीज हड्डियों और ज्वाइंट्स की सेहत को भी काफी प्रभावित करती है। आइये जानते हैं कि डायबिटीज हड्डियों और ज्वाइंट्स में किस तरह की समस्याएं उत्पन्न कर सकती है।

1. हड्डियों को बनाता है कमजोर

डायबिटीज हड्डियों के बनने और टूटने के बीच के संतुलन को बिगाड़ देती है, जिससे धीरे-धीरे हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है। इससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और आगे चलकर फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है।

2. Joints Pain और अकड़न की समस्या

ब्लड शुगर यानी हाइपरग्लाइसेमिया से लंबे वक्त तक परेशान होने के कारण जोड़ों में सूजन की समस्या पैदा हो जाती है, जिससे जोड़ों में दर्द, अकड़न की शिकायत होने लगती है। इसलिए, व्यक्ति को अपने सामान्य दैनिक कार्य करने में भी कठिनाई होने लगती है।

3. घाव का देरी से भरना

डायबिटीज के कारण जिस तरह सामान्य बीमीरियों से उबरने में भी समय लग जाता है, उसी तरह चोटों के भरने में भी देरी होती है। डायबिटीज के चलते शरीर में ब्लड फ्लो प्रॉपर नहीं रहता, जिसके चलते फ्रैक्चर और जोड़ों की चोटों के ठीक होने में देरी होती है।

4. बढ़ जाता है ऑस्टियोआर्थराइटिस का खतरा 

डायबिटीज के मरीजों में ऑस्टियोआर्थराइटिस का खतरा ज्यादा होता है। खासतौर पर घुटनों में। इससे वजन बढ़ता है, सूजन होती है और जॉइंट्स को नुकसान पहुंचता है, जिससे जोड़ों में टूट-फूट की समस्या हो सकती है।

5. लिगामेंट इंजरी

ब्लड में ग्लूकोज के बढ़ने से लिगामेंट कमजोर होने लगता है, जिससे डायबिटिक व्यक्ति में ऐसी लिगामेंट इंजर की आशंका ज्यादा हो जाती है, जिसके लिए तत्काल उपचार की जरूरत होती है।

6. फ्रोजन शोल्डर

डायबिटीज के चलते एडहेसिव कैप्सूलाइटिस या फ्रोजन शोल्डर की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसके कारण कंधे के जोड़ में असहनीय दर्द और अकड़न की समस्या पैदा हो जाती है।

डायबिटीज के मरीज इस तरह रखें हड्डियों की सेहत का ध्यान

How diabetes weakens bones and joints

डायबिटीज के पेशेंट्स को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि ये स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं का खतरा भी बढ़ा देती है। तो चलिए जानते हैं कि डायबिटीज के मरीजों को अपनी हड्डियों और जॉइंट्स कैसे ख्याल रखना चाहिए।

1. कैल्शियम-विटामिन युक्त भोजन का सेवन

अपनी हड्डियों और जॉइंट्स की सेहत का ख्याल रखने के लिए डायबिटीज के मरीजों को अपने खानपान का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए। ऐसे किसी भी खाद्य से दूर रहना चाहिए जो ग्लूकोज की मात्रा को तेजी से बढ़ाता है। डायबिटीज के मरीजों को कैल्शियम और विटामिन से भरपूर खाद्य का सेवन करना चाहिए।

2. ये चीजें करें डाइट में शामिल

डायबिटीज के मरीजों को अपनी डाइट में डेयरी प्रोडक्ट्स, मेवे, हरी पत्तेदार सब्जियां और अगर आप नॉन-वेजीटेरियन (Non-Vegetarian) हैं तो मछली का सेवन जरूर करना चाहिए। इससे बोन हेल्थ इंप्रूव होती है और हड्डियों और जॉइंट्स के दर्द में राहत मिलती है।

3. इन चीजों से रहें दूर

डायबिटीज के मरीजों को भूलकर भी चीनी और कार्बोहाइड्रेट से युक्त खाद्यों का सेवन नहीं करना चाहिए। क्रेविंग होने पर इसके अल्टरनेट तलाशें, लेकिन चीनी और कार्बोहाइड्रेट से दूर ही रहें।

4. रूटीन में बढ़ाएं फिजिकल एक्टिविटी

डायबिटीज के मरीजों में वजन तेजी से बढ़ने लगता है, जिससे हड्डियों और जॉइंट्स भी प्रभावित होते हैं। इसलिए डायबिटीज के मरीजों को अपने रूटीन में पैदल चलना, फिजिकल एक्टिविटी और योग को शामिल करना चाहिए। इससे वजन बढ़ने का खतरा दूर होता है और बोन हेल्थ इंप्रूव होती है।

फोटो सौजन्य- गूगल

On International Women's Day, gift trendy jewellery

International Women’s Day: अंतराष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 08 मार्च को मनाया जाता है। महिलाओं के लिए यह दिन बहुत ही स्पेशल होता है क्योंकि उन्होंने ही हमारी जिंदगी को खास होने का एहसास कराया है। उनमें सबसे ऊपर हैं मां फिर बहन, पत्नी, बेटी और दोस्त, उनके प्रति प्यार और सम्मान जाहिर करने के मकसद से इससे अच्छा दिन कोई हो नहीं सकता। अगर आप अपनी जिंदगी में महिलाओं के लिए कुछ खास करने का सोच रहे हैं तो उन्हें ज्वेलरी तोहफे में दें। शायद ही कोई ऐसी महिला होगी, जिसे ज्वेलरी पसंद न हो। इसी के कारण आज हम आपको यहां ज्वेलरी के कुछ विकल्प देने जा रहे हैं, ताकि आप भी कुछ ट्रेंडी खरीद कर महिला दिवस को सेलिब्रेट कर सकें।

पर्सनलाइज्ड नेम ज्वेलरी

On International Women's Day, gift trendy jewellery

अपनी जिंदगी की सबसे स्पेशल महिला को अगर आप कुछ यूनिक और इमोशनल गिफ्ट देना चाहते हैं, तो नेम पेंडेंट या कस्टमाइज्ड ब्रेसलेट बेस्ट ऑप्शन है। इसमें उनके नाम, जन्मतिथि, या कोई खास मैसेज लिखवा सकते हैं।

मिनिमलिस्ट ज्वेलरी

International Women's Day

हर दिन पहनने के लिए आप सिंपल ज्वेलरी का चयन आप तोहफे के रूप में कर सकते हैं। इसके लिए आप डेलिकेट गोल्ड या सिल्वर चेन खरीद सकते हैं। अगर बजट कम है तो स्मॉल हूप इयररिंग्स तोहफे में दें।

स्टेटमेंट ज्वेलरी

International Women's Day

ये ज्वेलरी उन महिलाओं को काफी पसंद आती है जो रॉयल लुक कैरी करती हैं। इसके लिए चंकी गोल्ड चेन नेकलेस परफेक्ट विकल्प है। कुछ हैवी लेना है तो मल्टी लेयर नेकलेस ले सकते हैं।

ब्रेसलेट हैं बढ़िया विकल्प

International Women's Day

कुछ ऐसा तोहफा देना है जिसे रोजाना पहना जा सके तो चार्म ब्रेसलेट अच्छा विकल्प है। ऐसे ब्रेसलेट में छोटे-छोटे प्यारे चार्म्स (हार्ट, स्टार या नेम) लगे होने चाहिए। ये नहीं तो सोने या चांदी का कड़ा भी आप खरीद सकते हैं।

फोटो सौजन्य- गूगल

The water coming out of the taps of houses is giving rise to CANCER

CANCER: आज बुजुर्गों की बात बिल्कुल सच हो गई कि एक दिन वो भी आएगा जब हमें पानी को छान (फिल्टर) कर पीना पड़ेगा। उन्होंने जो कहा वह आज सच साबित हो चुका है और फिल्टर का पानी हमारे स्वस्थ जीवन के लिए काफी जरूरी है, वजह कई सारे हैं जिनके कारण अब ग्राउंड वाटर भी हमारे पीने लायक नहीं रहा पर क्या आप को मालूम है कि इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी तक हो जाने का खतरा है? ऐसे जानलेवा खतरों से बचने के लिए हम कौन सा तरीका इस्तेमाल कर सकते हैं।

टैप के पानी से CANCER का खतरा!

जर्नल ऑफ एक्सपोजर साइंस एण्ड इन्वायरमेन्टल एपिडेमोलोजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे घरों में टैप से गिरने वाले पानी में ऐसे परमानेंट एलीमेंट्स पाए जाते हैं जो कैंसर के लिए एक बड़ी वजह हैं। रिपोर्ट एक स्टडी के आधार पर है और उसके नतीजों के अनुसार, ऐसे लोग जो टैप वाटर को पीने में या खाना बनाने में इस्तेमाल करते हैं, उनमें कैंसर का खतरा 33 फीसदी तक बढ़ जाता है। रिपोर्ट में आगे है कि दुनिया भर की लगभग 45 फीसदी आबादी इसकी जद में है। कैंसर के ये खतरा वाकई बड़ा भी है फिर भी इसके बगैर हमारा काम एक दिन भी नहीं चल सकता।

टेप के पानी में कैंसर पैदा करने वाले एलीमेंट्स

The water coming out of the taps of houses is giving rise to CANCER

1.आर्सेनिक (Arsenic)

आर्सेनिक एक खतरनाक केमिकल एलीमेंट है जो प्राकृतिक रूप से जमीन के अंदर पाया जाता है। अगर टैप के पानी में आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा हो तो ये कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है। वैसे तो आर्सेनिक कुदरती जल सोर्स में ही पाया जाता है लेकिन ये स्टोर किये गए पानी में भी जन्म ले सकता है, खासकर तब जब पानी की सफाई का इंतेजाम न हो।

3.क्लोरीन (Chlorine)

कैंसर हॉस्पिटल के अनुसार, क्लोरीन का इस्तेमाल पानी को साफ करने के लिए किया जाता है। लेकिन पानी में ज्यादा क्लोरीन के होने से कुछ नुकसान देने वाले केमिकल एलीमेंट्स बन सकते हैं, जिन्हें डिसिन्फेक्टन बायप्रोडक्ट्स (DBPs)कहा जाता है। इनमें से कुछ केमिकल्स जैसे डायक्लोरोसाइनोफिन (Dichloramine) और ट्राइहैलोमिथेन (Trihalomethanes) कैंसर को बढ़ावा दे सकते हैं।

4.लेड (Lead)

लेड एक मेटल है जो पुराने पाइपलाइन और हमारे घर के नलों में हो सकती है। लिड अगर पानी में ज्यादा मात्रा में तो ये हमारे शरीर में जमा होने लगता है। इसकी वजह से पहले ट्यूमर और बाद में कैंसर तक के भी खतरे देखे जाते हैं।

क्या पानी से बढ़ रहा है कैंसर का खतरा

The water coming out of the taps of houses is giving rise to CANCER

1.लॉंगटाइम एक्सपोजर

डॉक्टर कहते हैं कि इन खतरों के बावजूद ये कहना भी सही है कि टैप के पानी से कैंसर का खतरा तब ही ज्यादा होगा जब हम इसे ज्यादा इस्तेमाल में लाएं। ज्यादा से मेरा मतलब लंबे समय तक। अगर पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड, या लिड जैसी चीजें हैं और हम उन्हें लगातार पीते हैं तो ये धीरे-धीरे शरीर में जमा होने लगते हैं और इस वजह से शरीर में कैंसर जन्म लेता है।

2. केमिकल रिएक्शन का शरीर पर असर

ये आप जानते होंगे कि पानी को साफ करने के लिए भी कुछ केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है। कई बार तो ये तरीका सही होता है लेकिन जब बिना जाने कि पानी के अंदर कौन से नुकसानदायक एलीमेंट्स हैं, किसी केमिकल के जरिए उसे साफ करने की कोशिश की जाती है तो केमिकल रिएक्शन होने के चांस होते हैं। ये केमिकल रिएक्शन शरीर में असर छोड़ते है और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों तक भी पहुंचा सकते हैं।

बचाव के उपाय

1. पानी का टेस्ट करवाएं

सबसे पहला कदम है, पानी की क्वालिटी टेस्ट करना। आप लोकल अथॉरिटी से बोल कर अपने घर आ रहे पानी की क्वालिटी के बारे में पूछ सकते हैं। पानी का टेस्ट करने की भी रिक्वेस्ट डाल सकते हैं ताकि आपको पता लगे कि आपके पानी में कौन से एलीमेंट्स ऐसे हैं जो नुकसान दे रहे हैं। कई बार अगर ये काम लोग प्राइवेटली भी कराते हैं।

2. फिल्टर का इस्तेमाल करें

अगर आपके पानी में आर्सेनिक, लेड, फ्लोराइड या अन्य हानिकारक एलीमेंट्स हैं तो एक अच्छा पानी फिल्टर लगवाना बेहद जरूरी है। आजकल बाजार में कई प्रकार के वाटर फिल्टर्स उपलब्ध हैं जो इन खतरनाक तत्वों को पानी से निकाल सकते हैं। ऐसे फिल्टर्स का चुनाव करें जो इन तत्वों को आसानी से और पूरे तरीके से हटाने में सक्षम हों।

3. पानी उबाल कर पियें

अगर आपके इलाके के पानी में आर्सेनिक या लिड की समस्या है तो पानी उबालने से वह कुछ हद तक सुरक्षित हो सकता है क्योंकि पानी को उबालने से बैक्टीरिया और वायरस खत्म हो जाते हैं। हालांकि, ये सही है कि उबालने से पूरी तरह पानी के एलीमेंट्स हट जाएं इसकी गारंटी नहीं है लेकिन यह जरूर है कि उबालने से पानी कुछ हद तक साफ जरूर हो सकता है।

4. नई पाइप का इस्तेमाल

अगर आपके घर में पुराने पाइप हैं तो उसे बदल देना चाहिए। पाइप जितना पुराना होगा, उसमें लेड जैसे खतरनाक एलीमेंट्स के होने का खतरा उतना ही होगा। अलावा इसके अपको इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि आपके घर पानी जिस सोर्स से आ रहा हो, उसकी पाइपलाइन भी बहुत पुरानी न हो। अगर ऐसा है तो पानी गरम कर के या फ़िल्टर कर के ही पियें।

5. पानी के श्रोत का रखें ध्यान

आपके लिए यह जानना जरूरी है कि आप जो पानी पी रहे हैं या खाना बनाने में इस्तेमाल कर रहे हैं, वो कहां से आ रहा है। अगर वो किसी सुरक्षित जगह से नहीं आ रहा जो साफ है तो फिल्टर्ड मिनरल वाटर का इस्तेमाल करें।

When there is a delay in periods, apart from pregnancy

PERIODS: किशोर अवस्था के मद्देनजर गर्भावस्था तक महिलाओं के जिंदगी में शारीरिक और मानसिक तौर पर बहुत कुछ चलता रहता है। पीरियड्स भी इन्हीं प्रक्रियाओं में से एक है। किसी को एक से ज्यादा पीरियड्स भी होते हैं तो किसी को 07, ये हर महिलाओं की उनकी शरीरिक बनावट की वजह से बदलते रहते हैं। कुछ महिलाओं के पीरियड्स अनियमित होते हैं। वहीं, कुछ को पीरियड्स जल्दी होने की समस्या से दो चार होना पड़ता है।

अगर एक बार पीरियड्स थोड़ा जल्दी हो जाएं तो यह चिंता की बात नहीं है लेकिन यह लगातार हो रहा है तो यह आपके लिए स्वास्थ्य को लेकर अलर्ट रहने का वक्त है। आपका पीरियड्स आपकी वर्तमान पीरियड्स के पहले दिन से शुरू होता है। इसकी समाप्ति अगले पीरियड्स के पहले दिन होती है। औसतन, एक चक्र 21 से 39 दिनों के बीच होता है। इसलिए आपके द्वारा ब्लीड किए जाने वाले दिनों की संख्या भी अलग-अलग होती है।

अगर आपकी पीरियड्स साइकिल या चक्र 21 दिनों की है, तो यह एक चिंताजनक बात है और आपको इस बदलाव को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये आपके शारीरिक स्वास्‍थ्‍य के बारे में बहुत कुछ बताता है।

यहां हैं जल्‍दी पीरियड्स आने के लिए 9 अहम वजह

1. प्रीमेनोपॉज़

जैसा कि नाम से पता चलता है, यह रजोनिवृत्ति से पहले के पीरियड्स हैं। आम तौर पर ये मध्य-चालीसवें या बाद के वर्षों में शुरू होता है। ज्यादातर मामलों में चार साल तक चलता है। इस समय के दौरान, हार्मोन के स्तर में भारी उतार-चढ़ाव देखा जाता है। जिससे हर महीने ओव्यूलेशन नहीं हो सकता। इससे अनियमित या पीरियड 18 दिन या 21 दिन पर भी हो सकते हैं।

2. इंटेंस एक्सरसाइज

आप सोच सकती हैं कि जिम में व्यायाम करना आपके शरीर की मदद कर रहा है। पर, हर चीज में संतुलन की जरूरत होती है। बहुत जोरदार व्यायाम आपके पीरियड्स को रोक सकता है। यह एक ऐसी स्थिति है, जो एथलीटों में सबसे अधिक देखी जाती है।

यहां तक ​​कि अगर पीरियड्स बंद नहीं होते हैं, तो यह जल्दी पीरियड्स होने का कारण बनता है। उचित ऊर्जा के बिना, आपका शरीर सामान्य तरीके से ओव्यूलेट करने के लिए पर्याप्त मात्रा में हार्मोन का उत्पादन नहीं कर पाएगा।

3. वजन में उतार-चढ़ाव

ज्यादातर केस में, आपके पीरियड में कोई भी बदलाव आपके वजन से जुड़ा होता है। चाहे, तेजी से वजन घट रहा हो या बढ़ रहा हो, आपके हार्मोन पर प्रभाव डाल सकता है। जब ऐसा होता है, तो आपके पीरियड्स प्रभावित हो जाते हैं। जिससे आपको समय से पहले ही माहवारी (Early periods) हो सकती है।

4. तनाव का स्तर आपके हार्मोन पर डाल सकता है प्रभाव

How can you take care of your wife or girlfriend during periods?

तनाव के बारे में बात किये बिना कोई भी सूची कैसे पूरी हो सकती है?आपके तनाव का स्तर आपके हार्मोन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। जिससे अनियमित पीरियड्स हो सकते हैं। कारण कोई भी हो, खुद को तनाव मुक्त करने के तरीके खोजें।

5. हार्मोनल बर्थ कंट्रोल

गर्भनिरोधक गोलियों में मौजूद हार्मोन, ओव्यूलेशन और आपके पीरियड्स पर सीधा प्रभाव डालते हैं। यदि आप नियमित रूप से गर्भनिरोधक गोलियां लेती हैं, तो आपकी अगले पीरियड का समय इस बात पर निर्भर करेगा कि आपके चक्र के दौरान आपने गोलियां लेना कब शुरू किया था।

इसके अलावा, अंतर्गर्भाशयी उपकरणों जैसे विकल्प भी मासिक धर्म चक्र अनियमितताओं का कारण बन सकते हैं, लेकिन केवल शुरुआती दो से तीन महीनों में।

6. पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम)

पीरियड्स जल्दी होने के लिए एक और कारण पीसीओएस या पॉलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम है, जो प्रत्येक 10 महिलाओं में 01 को प्रभावित करता है। असल में, यह बहुत सी महिलाओं में अनियंत्रित हो जाता है। जब तक कि वे बेबी प्‍लान नहीं करते। PCOS के कुछ सबसे सामान्य लक्षणों में अनियमित पीरियड्स, मिस्ड पीरियड्स, मुंहासे, वजन बढ़ना और शरीर पर अत्यधिक हेयर ग्रोथ शामिल हैं।

7. एंडोमेट्रियोसिस

यह मासिक धर्म विकार तब होता है जब ऊतक जो आपके गर्भाशय को लाइन करता है वह गर्भाशय के बाहर बढ़ने लगता है। इस स्थिति में, महिलाएं केवल अनियमित पीरियड्स से नहीं गुजरती हैं, बल्कि मासिक धर्म में गंभीर ऐंठन, पीठ के निचले हिस्से में दर्द और सेक्स के दौरान दर्द का अनुभव करती हैं।

8. अनियंत्रित मधुमेह

जब मधुमेह का समय पर निदान नहीं किया जाता है, तो रक्त शर्करा का स्तर सामान्य से बहुत अधिक होता है। साल 2011 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि टाइप 02 मधुमेह वाली महिलाओं में अनियमित पीरियड्स थे।

9. थायराइड की बीमारी

यह माना जाता है कि आठ में से एक महिला को अपने जीवनकाल में थायरॉयड की समस्या होगी। जब थायरॉयड ग्रंथि ठीक से काम नहीं करती है, तो आपका चयापचय और मासिक धर्म चक्र अनियंत्रित हो जाता है। ज्यादातर मामलों में, पीरियड्स सामान्य से काफी हल्के होते हैं और जल्दी आते हैं। अप्रत्याशित रूप से वजन बढ़ना या कम होना भी इसका एक कारण है।

फोटो सौजन्य- गूगल

First Time Sex

SEX ना तो अब टैबू रह गया है और ना ही शादीशुदा जीवन का पार्ट रहा गया। लेकिन यह आपकी सेहत से जुड़ा मामला आवश्य है। अब भी लोग इस पर बात नहीं कर पाते। यही कारण है कि इसके बारे में बहुत सारी भ्रांतियां प्रचारित है। अधिकतर किशोर और युवा पहली बार सेक्स इंटरनेट पर यह सर्च करते हैं कि पहली बार सेक्स के बाद क्या होता है?

क्या बदलाव हो सकते हैं पहली बार सेक्स के बाद-

यदि आपने हाल ही में पहली बार सेक्स किया है या सेक्स करने का प्लान कर रही हैं, तो हम बता दें कि आपके शरीर में यही बदलाव आने वाले हैं। हम जानते हैं कि इन बदलावों से जुड़े कई सवाल हैं आपके दिमाग में, इसलिए आपकी जिज्ञासा का निदान करेंगे।

हालांकि हर व्यक्ति में सेक्स के बाद अलग बदलाव आ सकते हैं, पर यह प्रमुख जानकारी आपको जरूर होनी चाहिए-

1. आपको दर्द हो सकता है

unbearable pain in lower back during periods

सेक्स के दौरान दर्द होना सामान्य है। इसके पीछे कई अलग-अलग कारण हो सकते हैं, लेकिन वे सभी कारण पूरी तरह सामान्य होते हैं। आपका हाइमेन खिंचने के कारण दर्द हो सकता है, लुब्रिकेशन की कमी से दर्द हो सकता है या वेजाइनिस्मस यानी पेल्विक मसल्स के टाइट होने के कारण दर्द हो सकता है। आपके दर्द का कारण एंग्जायटी भी हो सकती है। सेक्स से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं भी हो सकती हैं या पुराना कोई ट्रॉमा हो सकता है।

कई बार शुरुआत में सेक्स के दौरान ऑर्गेज्‍म होने पर यूटेरस में क्रेम्प्स होने लगते हैं। सेक्स के दौरान ऑक्सिटोसिन निकलता है, जिससे यूटेरस में कॉन्ट्रेक्शन के कारण दर्द होने की सम्भावना होती है।

2. स्पॉटिंग हो सकती है 

आपको सेक्स के बाद खून आ सकता है, आपको सेक्स के बाद खून न आए यह भी सम्भव है। दोनों ही स्थिति सामान्य हैं। अगर आपको पहली बार सेक्स के बाद खून आता है, तो इसका कारण होता है हाइमेन। हाइमेन एक पतली सी त्वचा की झिल्ली होती है, जो सेक्स करने पर खिंच जाती है और खून निकल सकता है।

हाइमेन आसानी से खिंच सकती है और इसके टूटने का एकमात्र कारण सेक्स ही नहीं है। स्पोर्ट्स के कारण भी हाइमेन टूट जाता है। यहां तक कि टैम्पॉन्स के प्रयोग से भी हाइमेन टूट सकता है। हाइमेन का आपकी वर्जिनिटी से कोई लेना देना नहीं है।

उसके अलावा भी आपको कई बार स्पॉटिंग नजर आ सकती है। इस स्पॉटिंग का कारण है सेक्स के कारण सर्विक्स में सूजन। अगर आप रफ सेक्स करती हैं, तो स्पॉटिंग की सम्भावना अधिक होती है। यह खून सुर्ख लाल रंग का होता है।

3. पेशाब के दौरान जलन होती है

अगर आपको सेक्स के बाद बाथरूम जाने पर जलन महसूस हो रही है, तो यह नार्मल है। वेजाइना और यूरेथ्रा काफी पास में ही होते हैं इसलिए वेजाइना पर पड़े दबाव का दर्द यूरेथ्रा में भी होता है। लेकिन अगर यह दर्द दो-तीन दिन से ज्यादा रहे, तो डॉक्टर की आवश्य सलाह लें।

4. वेजाइना में खुजली हो सकती है

हल्की खुजली सामान्य है, लेकिन अगर आपको बहुत अधिक खुजली हो रही है जिसे कंट्रोल नहीं कर पा रहीं, तो यह कॉन्डम से एलर्जी के कारण हो सकता है। अगर आपने लुब्रिकेंट का इस्तेमाल किया है तो वह भी एलर्जी का कारण हो सकता है।

5. आपको UTI हो सकता है

Do we have to face the risk of UTI after sex?

सेक्स के दौरान आपके ऐनस के पास मौजूद बैक्टीरिया आपकी वेजाइना और यूरेथ्रा तक पहुंच सकते हैं। इससे दर्दनाक UTI हो सकता है। कई बार खुजली और जलन के लिए यही जिम्मेदार होता है।

6. निपल्स और क्लिटोरिस का साइज बदल सकता है

आपके निप्पल्स में कई सारी नसें आकर खत्म होती हैं, जिसके कारण आपके उत्तेजित होने पर निप्पल्स में बदलाव आ जाता है। इससे आपके ब्रेस्ट के टिश्यू फूल जाते हैं और ब्रेस्ट बड़े लगने लग सकते हैं। यही नहीं सेक्सुअली उत्तेजित होने पर आपके निप्पल्स टाइट हो जाते हैं। उसी तरह क्लाइटोरिस में भी बहुत सी नसें खत्म होती हैं, जिससे क्लाइटोरिस का साइज बढ़ जाता है। हालांकि सेक्स के बाद यह नॉर्मल साइज में लौट जाती है।

7. हैप्पी हॉर्मोन्स निकलते हैं

First Time Sex

जब आप सेक्स करने लगती हैं, तो शरीर में ब्लड फ्लो बढ़ जाता है। यही नहीं, उत्तेजित होने पर निप्पल, ऐरीओला और क्लाइटोरिस की मांसपेशियों में टेंशन आ जाती है। सेक्स के दौरान आपको ऑर्गेज्म की प्राप्ति होती है। इस सब का कारण है दिमाग में ऑक्सिटोसिन का बढ़ा हुआ स्तर जो सेक्स के कारण बढ़ता है।

8. वेजाइना की इलास्टिसिटी

आपकी वेजाइना की मांसपेशियां बहुत इलास्टिक होती हैं और यह इलास्टिसिटी बदलती रहती है। आपकी वेजाइना सेक्स के बाद काफी हद तक खुल जाती है, जो कि बिल्कुल सामान्य है। तो लेडीज, सेक्स करने से पहले ही जान लें सेक्स के बाद या दौरान आपके शरीर में क्या बदलाव आएंगे ताकि आप खुद को मानसिक रूप से तैयार कर सकें।

फोटो सौजन्य- गूगल

When there is a delay in periods, apart from pregnancy

Period शुरू होने में अगर देरी होती है तो अधिकतर मामले में प्रेगनेंसी को जिम्मेदार ठहराया जाता है। बता दें कि वजन में बहुत ज्यादा बदलाव, हार्मोनल अनियमितताएं और मेनोपॉज की तरफ बढ़ता साइकल भी इसके कारणों में से एक हो सकता है। अगर एक या दो महीने से ज्यादा पीरियड में देरी की समस्या होती है तो यह एमेनोरिया का प्रॉब्लम हो सकता है। यदि यह समस्या अक्सर हो रही है तो गायनेकोलोजिस्ट से मिलना जरूरी है। फिलहाल एक एक्सपर्ट से जानते हैं कि किन वजहों से पीरियड में देरी हो सकती है।

पीरियड में देरी बढ़ा देती है चिंता

जिस दिन पीरियड शुरू होती है और अगली माहवारी के पहले दिन तक को एक पीरियड साइकल कहा जाता है। सामान्य पीरियड साइकल लगभग 28 दिनों का होता है। हालांकि एक सामान्य चक्र 38 दिनों तक का भी हो सकता है। अगर आपकी पीरियड साइकल इससे ज्यादा लंबा है या सामान्य से अधिक लंबा है तो इसे पीरियड में देरी माना जाता है। लगातार पीरियड में देरी होने पर महिलाएं अपना प्रेगनेंसी टेस्ट करती हैं। पर अगर आप प्रेगनेंट नहीं हैं, तब पीरियड में देरी होने के और भी कई कारण हो सकते हैं।

प्रेगनेंसी के अलावा पीरियड मिस होने के कारण

How can you take care of your wife or girlfriend during periods?

1. थायराइड में गड़बड़ी

गायनेकोलोजिस्ट बताती हैं कि थायराइड पीरियड साइकल को नियंत्रित करने में मदद करता है। बहुत अधिक या बहुत कम थायराइड हार्मोन पीरियड साइकल को बहुत हल्का, भारी या अनियमित बना सकता है। थायराइड डिजीज के कारण मासिक धर्म कई महीनों या उससे अधिक समय तक रुक सकते हैं, इस स्थिति को एमेनोरिया कहा जाता है।

2. हाई प्रोलैक्टिन लेवल

डॉ. रिद्धिमा शेट्टी बताती हैं, ‘ब्रेन के पिटउइटेरी ग्लैंड से सीक्रेट होता है प्रोलैक्टिन हॉर्मोन। प्रोलैक्टिन हार्मोन स्तनपान, ब्रेस्ट टिश्यू के विकास और दूध उत्पादन के लिए जिम्मेदार होते हैं। ब्लड में प्रोलैक्टिन का सामान्य से अधिक स्तर पीरियड में देरी कर सकता है। 50-100 एनजी/एमएल के बीच हाई प्रोलैक्टिन लेवल अनियमित अनियमित पीरियड और इनफर्टिलिटी के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। कुछ दवा, इन्फेक्शन यहां तक कि स्ट्रेस भी प्रोलैक्टिन हॉर्मोन के सीक्रेशन को बढ़ावा देता है।’

3. हीमोग्लोबिन का लेवल गिरना

Say goodbye to heavy bleeding by adopting these tips during periods

विशेषज्ञ के मुताबिक हीमोग्लोबिन का लो लेवल एंडोमीट्रियल ग्रोथ को प्रभावित कर सकता है। इससे पीरियड शुरू होने में देरी हो सकती है। लो हीमोग्लोबिन के कारण शरीर में आयरन कम हो जाता है, जो पीरियड्स को प्रभावित कर सकता है। इसके कारण एनीमिया हो जाता है, जो मासिक धर्म चक्र में देरी या अनियमितताओं का कारण बन सकता है। यदि लगातार दो से ज्यादा पीरियड साइकिल में देरी या अनियमित पीरियड का अनुभव हो रहा है, तो समस्या को समझने के लिए डॉक्टर से परामर्श करना जरूरी है।

4. अत्यधिक मोटापा या पोषण की कमी

अधिक वजन या मोटापा मासिक धर्म चक्र को प्रभावित कर सकता है। यदि वजन अधिक है, तो शरीर अतिरिक्त मात्रा में एस्ट्रोजन का उत्पादन करने लग सकता है। यह महिलाओं में प्रजनन प्रणाली को नियंत्रित करने वाले हार्मोनों में से एक है। एस्ट्रोजन की अधिकता सीधे तौर पर पीरियड को प्रभावित कर सकती है। यह उसे रोकने का कारण भी बन सकती है। पोषक तत्वों की कमी भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। क्योंकि शरीर में बहुत अधिक बदलाव आने पर इस साइकल पर नेगेटिव इफेक्ट पड़ता है।

5. फीवर और इन्फेक्शन

किसी तरह का संक्रमण मासिक धर्म को सीधे तौर पर प्रभावित नहीं कर सकता है। लेकिन इसके कारण होने वाला फीवर, यूटीआई के कारण पीरियड डिले हो सकता है। UTI के कारण शरीर पर पड़ने वाला तनाव पीरियड को प्रभावित कर सकता है। साथ ही यदि आपकी स्ट्रेसफुल लाइफस्टाइल है, तो तनाव कोर्टिसोल प्रोडक्शन बढ़ा देते हैं। इससे पीरियड में देरी हो जाती है।

क्या करें जब एक-दो महीने से पीरियड न आए?

How can you take care of your wife or girlfriend during periods?

पीरियड में सप्ताह भर की देरी होना सामान्य है। पर अगर आपके पीरियड पंद्रह से बीस दिन बाद भी नहीं आए हैं, तब यह जरूरी है कि आप अपना प्रेगनेंसी टेस्ट करें। कुछ महिलाओं को 01 महीने बाद भी पीरियड नहीं आता। जबकि कुछ जानना चाहती हैं कि 02 महीने बाद भी पीरियड न आए तो क्या करें?

एक्सपर्ट के अनुसार पर अगर आप यौन सक्रिय हैं तो बेहतर है कि आप अपना प्रेगनेंसी टेस्ट करवाएं। लेकिन अगर आप सेक्सुअली एक्टिव नहीं हैं, तो आपको जबरन पीरियड लाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। कई बार तनाव और खानपान सही नहीं होने के कारण भी पीरियड में एक-दो महीने की देरी हो जाती है। यह स्थिति नॉर्मल नहीं है। इसलिए जरूरी है कि आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें। किसी भी तरह के घरेलू उपाय अपनाकर जबरन पीरियड लाने का प्रयास करना आपके लिए खतरनाक हो सकता है। इसलिए ऐसा न करें।

फोटो सौजन्य- गूगल

If you are troubled by white hair then do this special exercise daily

Hair Loss से छुटकारा पाने के लिए अक्सर कई तरह के नुस्खे और शैम्पू का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन फॉलिकल्स की मजबूती के मद्देनजर सबसे जरूरी अंदरूनी ताकत का मिलना है। दरअसल, बॉडी में पोषक की कमी बालों के झड़ने का अहम कारण बनता है। इसके स्कैल्प का रूखापन भी बढ़ने लगता है और हेयरथिनिंग का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में बालों को प्रोटीन और बीटा कैरोटीन समेत कई पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जो विटामिन्स के सेवन से शरीर को हासिल होते है। आइये जानते हैं किन विटामिन्स की कमी से बढ़ने लगती हेयरफॉल की समस्या और उससे बचने के लिए किन टिप्स की लें सकते हैं सहायता-

इन VITAMINS की कमी से बढ़ती है बाल झड़ने की समस्या

Healthy Hair: Make your hair healthy in winter with kitchen items

1. विटामिन B, बायोटिन और फॉलिक एसिड

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक विटामिन-B12 का सेवन करने से स्कैल्प पर सेल डिविज़न में मदद मिलती है। बायोटिन एक प्रकार का विटामिन बी है जो शरीर में मौजूद फूड को ऊर्जा में बदलने और सेल कम्यूनिकेशन में मदद करता है। ऐसे में बालों का झड़ना बायोटिन की कमी को दर्शाता है। ऐसे में विटामिन बी से भरपूर फूड्स को आहार में शामिल करके इस समस्या को हल किया जा सकता है।

2. विटामिन- D

इस विटामिन को सनशाइन विटामिन भी कहा जाता है। इसके सेवन से बालों का रोम चक्र प्रभावित होता है और इससे हेयरलॉस से राहत मिलती है। इससे बालों के फॉलिकल्स को मज़बूती मिलती है, जिससे हेयर नरिशमेंट बढ़ जाता है। शरीर में इसकी मात्रा को बढ़ाने के लिए धूप प्रदान करने के अलावा दूध, दही, पनीर, मछली, अंडे और संतरे का सेवन करने से फायदा मिलता है।

3. विटामिन- C की कमी

शरीर में विटामिन- C की कमी आयरन के अवशोषण को कम कर देती है। इसके कारण खून की कमी हेयरलॉस का कारण साबित होता है। अलावा इसके विटामिन- C की कमी के चलते कोलेजन का स्तर कम होता है, जिससे स्कैल्प का रूखापन बढ़ने लगता है और शुष्कता बढ़ जाती है। इसके लिए आहार में ब्रोकली, बैरीज़ और खट्टे फलों को शामिल करें।

4. विटामिन- E

विटामिन- E की गिनती फैट सॉल्यूबल विटामिन में की जाती है। इससे त्वचा, बालों और नाखूनों का स्वासथ्य उचित बना रहता है। इसमें मौजूद सूजनरोधी गुण ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने में मदद करते हैं। इसके सेवन से एलोपीसिया का जोखिम कम हेने लगता है।

बालों की ग्रोथ के लिए इन फूड्स को करें आहार में शामिल

With regular hair massage our hair can become beautiful and healthy

1. पालक से मिलती है विटामिन और आयरन की मात्रा

आहार में पालक को शामिल करने से शरीर को शरीर को फोलेट, आयरन, विटामिन ए और सी की भी प्राप्ति होती है। यूएसडीए के अनुसार 1 कप पालक का सेवन करने से 20 फीसदी विटामिन ए की प्राप्ति होती है। इससे ब्लड सेल्स को ऑक्सीजन मिलती है, जिससे बालों का टूटना और झड़ना कम होने लगता है।

2. शकरकंदी है बीटा कैरोटीन से भरपूर

विटामिन- A की कमी हेयरलॉस का कारण बनने लगती है। ऐसे में विटामिन- A से भरपूर शकरकंदी को आहार में शामिल करने से बालों को बीटा कैरोटीन की प्राप्ति होती है, जिससे सीबम प्रोडक्टशन बढ़ने लगता है। इससे हेयरलॉस की समस्या हल हो जाती है।

3. एवोकाडो से होगी विटामिन-E की प्राप्ति

स्कैल्प के नरिशमेंट के लिए विटामिन-C और E बेहद कारगर साबित होते है। इससे स्कैल्प पर बढ़ने वाले ऑक्सीडेटिव तनाव को कम किया जा सकता है। एवोकाडो का सेवन करने से शरीर को हेल्दी फैट्स की प्राप्ति होती है, जिससे बालों की मज़बूती बढ़ने लगती है।

4. बैरीज़ से मिलते हैं एंटीऑक्सीडेंटस

इसमें मौजूद विटामिन-C से कोलेजन का प्रोडक्शन बढ़ने लगता है। इससे बालों को रूखापन दूर होता है और मज़बूती बढ़ जाती है। आहार में बैरीज़ को एड करने से शरीर में आयरन का एबजॉर्बशन बढ़ने लगता है। इससे हेयरलॉस से बचा जा सकता है।

Sexual intimacy helps in recovering from loneliness and depression

Reproductive Organ में अगर किसी तरह की कोई खराबी नहीं होती फिर भी प्रेगनेंसी में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। Conceive का प्लान करने के बावजूद हसबैंड और वाइफ दोनों को निराश होना पड़ता है। जिन्हें प्रेगनेंसी में दिक्कत होती है, उन्हें फ्रेंड्स सलाह देते हैं कि इंटरकोर्स के बाद कुछ देर तक बिस्तर पर ही लेटे रहें। क्या यह वाकई कारगर है? क्या है कोई साइंटिफिक वजह है? हम यहां एक्सपर्ट के जरिए जानेंगे प्रेगनेंसी के इस खास तरीके का पूरा सच।

SEX के बाद लेटने से कंसीव करना आसान हो जाता है?

एक्सपर्ट के मुताबिक जब प्रेगनेंसी किन्हीं कारणों से लेट होने लगती है, तो डॉक्टर भी सेक्स के बाद 15- 20 मिनट तक बेड पर लेटे रहने की सलाह देते हैं। दरअसल, सेक्स के बाद स्पर्म का बाहर निकलना सामान्य है। ऐसा ग्रेविटी के कारण होता है। सेक्स के बाद स्पर्म का बाहर निकलने से गर्भधारण की संभावना कम नहीं होती। हालांकि खड़े होने या बाथरूम जाने से गुरुत्वाकर्षण शुक्राणु को गर्भाशय ग्रीवा से खींच कर दूर ले जा सकता है। इसलिए इस मामले में ज्यादातर डॉक्टर सलाह देते हैं कि सेक्स के बाद कम से कम 05 मिनट तक लेटे रहें। इससे गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।

कंसीव करने के लिए SEX के बाद कितनी देर तक लेटे रहना चाहिए और कैसे?

Some Natural Ways To Spice Up Your Sex Life

एक्सपर्ट इस बात की सलाह देते हैं कि अगर आप कंसीव करना चाहती हैं, तो सेक्स के बाद अपने हिप्स के नीचे एक तकिया लगा लें। इससे सीमेन को गर्भाशय की ओर ले जाने में ग्रेवेटी की मदद मिलती है। इस अवस्था में 10–15 मिनट रहने की सलाह दी जाती है। यह अवधि स्पर्म के लिए पर्याप्त होती है।

इस विधि के अलावा विशेषज्ञ पैर ऊपर करने की भी सलाह देते हैं। पैरों को एक साथ उठाकर दीवार से लगा दें। इस अवस्था में आराम करें। इस विधि में भी गुरुत्वाकर्षण को स्पर्म की मदद करने का अवसर मिलता है। यह भी एक असरदार तरीका है।

कितनी देर में गर्भाशय तक पहुंचता है स्पर्म

यदि स्पर्म के मूवमेंट की बात की जाए, तो स्पर्म को फैलोपियन ट्यूब के भीतर अपने गंतव्य तक पहुंचने में 2 मिनट से भी कम समय लग सकता है। अक्सर शुक्राणु अंडाशय से एग जारी होने तक धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते हैं। ये शरीर में लगभग पांच दिनों तक जीवित रह सकते हैं। इसका मतलब हुआ कि गर्भाधान वास्तव में सेक्स के कई दिनों बाद भी हो सकता है।

ओवुलेशन के दौरान कैसे ऐग मिलता है स्पर्म से

जो महिलाएं अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान से गुजरती हैं, उनमें स्पर्म की बड़ी संख्या को गर्भाशय के नजदीक छोड़ दिया जाता है। इससे ओव्यूलेशन के दौरान एक अंडा स्पर्म से मिलकर जायगोट बना लेता है। इसमें भी ग्रेविटी के रूल को ही फ़ॉलो किया जाता है।

SEX के बाद यूरीन पास करें या नहीं!

एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई कि 15 मिनट तक लेटने से गर्भधारण की दर 27 फीसदी तक बढ़ जाती है। जबकि इंटरकोर्स के तुरंत बाद उठने वाले लोगों में प्रेगनेंसी की दर 18 फीसदी थी।

अगर आप प्रेगनेंट नहीं होना चाहतीं और सेक्स के दौरान स्पर्म अंदर चला गया है, तो डॉक्टर आपको तुरंत यूरीन पास करने की सलाह देते हैं। यही कारण है कि प्रेगनेंसी को रोकने के तरीके के रूप में सेक्स के बाद यूरीन पास करने की सलाह दी जाती है। सेक्स के बाद पेशाब करने से यूटेरिन ट्रैक्ट इन्फेक्शन से बचाव हो सकता है।

इसके कारण सेक्सुअली ट्रांसमिट होने वाले कुछ संक्रमण को रोकने में भी मदद मिल सकती है। ग्रेविटी फ़ोर्स की वजह से सीमेन वेजाइना के अंदर नहीं जा सकते हैं। लेकिन सभी को यह बात जान लेनी चाहिए कि यूरीन एक छोटे से छेद से निकलता है, जिसे यूरेथरा कहा जाता है। सेक्स के बाद यूरीन करने से योनि से शुक्राणु नहीं निकल पाते हैं।

फोटो सौजन्य- गूगल