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Author Archives: Zahid Abbas

Dhanteras: Know the auspicious time of shopping on Dhanteras

Dhanteras: धनतेरस का त्योहार हिंदू धर्म में बहुत ही शुभ माना जाता है। हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। धनतेरस के त्योहार को धन त्रयोदशी और भगवान धन्वंतरि की जयंती के मौके पर भी मनाई जाती है। हिंदू धर्म में धन, संपदा, सुख-समृद्धि और आरोग्यता के इस त्योहार का खास महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस पर्व पर भगवान धन्वंतरि, मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। धनतेरस से 05 दिवसीय दीपावली पर्व की शुरुआत हो जाती है।

धनतेरस पर पूजा और खरीदारी का खास महत्व होता है। धनतेरस पर खरीदारी, निवेश और किसी नए कार्य की शुरुआत को बहुत ही शुभ माना जाता है। इस बार धनतेरस पर त्रिपुष्कर योग का संयोग बन रहा है। ऐसी मान्यता है धनतेरस पर खरीदारी और नए कार्य करने से इसमें तीन गुना फल की प्राप्ति होती है। धनतेरस पर मुख्य रूप से बर्तन, सोना-चांदी और वाहन की खरीदारी करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस तिथि पर देवताओं के वैध भगवान धन्वंतरि की प्रागट्य हुआ था। आइए जानते हैं धनतेरस की तिथि, पूजा विधि और खरीदारी का शुभ मुहूर्त आदि।

धनतेरस तिथि और शुभ मुहूर्त

धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि का पूजन और बर्तन की खरीदारी करना विशेष लाभकारी कहा गया है। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे। जिस कारण से हर साल धनतेरस को धन्वंतरि जयंती के नाम से मनाया जाता है। धनतेरस पर बर्तन खरीदने की प्रथा काफी पुरानी है।

  • त्रयोदशी तिथि आरंभ- 29 अक्तूबर सुबह 10:31 मिनट से
  • त्रयोदशी तिथि समाप्त- 30 अक्तूबर दोपहर 01:15 तक

धनतेरस पर खरीदारी का शुभ योग

Dhanteras: Know the auspicious time of shopping on Dhanteras

धनतेरस पांच दिनों तक चलने वाले दीपोत्सव का पहला पर्व है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक धनतेरस पर पूजा और बर्तन खरीदने पर कभी भी धन का भंडार खाली नहीं रहता है। धनतेरस के दिन धन और समृद्धि प्रदान करने वाली देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विधान होता है। इस दिन जो भी व्यक्ति धन की देवी मां लक्ष्मी, भगवान कुबेर और धन्वंतरि की पूजा करता है उसके जीवन में कभी भी धन, वैभव, सुख और समृद्धि की कमी नहीं होती है। धनतेरस पर सोने के आभूषण, चांदी के सिक्के, बर्तन, कार, मोटरसाइकिल, इलेक्ट्रानिक चीजें और नए कपड़े शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखते हुए खरीदे जाते हैं।

धनतेरस पर खरीदारी का शुभ मुहूर्त

  • पहला मुहूर्त- सुबह 06:31 से अगले दिन सुबह 10: 31 मिनट तक
  • दूसरा मुहूर्त (अभिजीत मुहूर्त)- सुबह 11:42 दोपहर 12: 27 मिनट तक
  • तीसरा मुहूर्त- शाम 06:36 से रात 8:32 मिनट तक

धनतेरस पर पूजा विधि और नियम

Dhanteras: Know the auspicious time of shopping on Dhanteras

धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की 16 क्रियायों से पूजा करने का विशेष महत्व होता है। जिसे षोडशोपचार पूजा विधि कहते हैं। इस दिन सोने-चांदी के सिक्के, आभूषण और बर्तन की खरीदारी की जाती है और शाम को मुख्य द्वार और आंगन में दीपक जलाए जाते हैं। धनतेरस पर दीपक जलाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। अलावा इसके धनतेरस की शाम को यमदेवता के लिए दीपदान किया जाता है।

धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त

शाम 06: 30 से 08: 12 मिनट तक
प्रदोषकाल मुहूर्त
शाम 05: 37 से 08:12 मिनट तक
वृषभ काल मुहूर्त
06: 30 से लेकर 08: 26 मिनट तक

कौन है भगवान धन्वंतरि-

समुद्र मंथन से 14 प्रमुख रत्नों की उत्पत्ति हुई जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए जो अपने हाथों में अमृत कलश लिए हुए थे। भगवान विष्णु ने इन्हें देवताओं का वैद्य और वनस्पतियों तथा औषधियों का स्वामी नियुक्त किया। इन्हीं के वरदान स्वरूप सभी वृक्षों-वनस्पतियों में रोगनाशक शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। भगवान धन्वन्तरि आरोग्य और औषधियों के देव हैं।

धनतेरस पर किस चीज की करें खरीदारी

धनतेरस के दिन सोना-चांदी के अलावा बर्तन, वाहन और कुबेर यंत्र खरीदना शुभ होता है।
इसके अलावा झाड़ू खरीदना भी अच्छा माना जाता है। मान्यता यह है इस दिन झाड़ू खरीदने से मां लक्ष्मी मेहरबान रहती हैं।
धनतेरस पर साबुत धनिया जरूर घर ले आएं।
धनतेरस पर गोमती चक्र भी खरीद सकते हैं। इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

धनतेरस पर किस चीज की खरीदारी ना करें

धनतेरस लोहा या लोहे से बनी वस्तुएं घर लाना शुभ नहीं माना जाता है।
धनतेरस पर एल्युमिनियम या स्टील की वस्तुएं न खरीदें।
धनतेरस के शुभ अवसर पर शीशे या कांच की बनी चीजें भी बिल्कुल नहीं खरीदनी चाहिए।
ज्योतिष के अनुसार धनतेरस के दिन चीनी मिट्टी या बोन चाइना की कोई भी वस्तु नहीं खरीदनी चाहिए।

धनतेरस पर करें ये उपाय

धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी, कुबेर, यमराज और भगवान गणेश जी की पूजा करें।
धनतेरस के दिन घर और बाहर 13 दीपक जलाने से बीमारियों को दूर किया जा सकता है।
दान करना पुण्य कर्म है। धनतेरस के दिन दान करने का विशेष महत्व होता है।
धनतेरस पर पशुओं की पूजा करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं।

फोटो सौजन्य- गूगल

Hormonal balance may deteriorate in teenagers

शरीर में हार्मोन का घटना-बढ़ना किसी भी उम्र में महिलाओं को प्रभावित कर सकता है। यहां तक की Teenagers लड़कियों में भी हार्मोनल इंबैलेंस हो सकता है। अमुमन टीनएज में लोगों को हार्मोन से जुड़ी ज्यादा जानकारी नहीं होती, इसलिए लड़कियां हार्मोनल इंबैलेंस के लक्षण को नहीं समझ पाती हैं। ऐसे में सभी माताओं को मालूम होना चाहिए कि आखिर कौन से लक्षण हार्मोनल इंबैलेंस की ओर इशारा करते हैं।

हार्मोनल इंबैलेंस सभी को अलग-अलग रूपों में प्रभावित कर सकता है, इस स्थिति में नजर आने वाले लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि कौन से हार्मोंस और ग्लैंड सही से कार्य नहीं कर रहे। हार्मोनल इंबैलेंस के लक्षण से जुड़ी जानकारी सभी को होनी चाहिए, ताकि उन्हें समय रहते समझा जा सके और उनके लिए ट्रीटमेंट लिया जा सके। तो चलिए जानते हैं ऐसे ही कुछ लक्षण जो हार्मोनल इंबैलेंस के दौरान टीनेजर लड़कियों में दिखाई देते हैं।

टीनएजर लड़कियों में इन हार्मोंस का बिगड़ सकता है बैलेंस

Hormonal balance may deteriorate in teenagers

1. प्रोजेस्टेरोन

यह हार्मोन ओवरी द्वारा निर्मित होता है और ओव्यूलेशन के दौरान इसका उत्पादन बढ़ जाता है। कम प्रोजेस्टेरोन सिरदर्द, एंजायटी और अनियमित पीरियड्स की वजह बन सकता है। प्रोजेस्टेरोन एस्ट्रोजन को संतुलित करने में भी अहम भूमिका निभाता है, इसलिए जब प्रोजेस्टेरोन कम होता है, तो प्रमुख एस्ट्रोजन अपनी तरह की कई समस्याएं पैदा कर सकता है।

2. एस्ट्रोजन

एस्ट्रोजन असंतुलन एक युवा लड़की के जीवन के कई पहलू को प्रभावित कर सकता है। बहुत ज्यादा एस्ट्रोजन के कारण आपका वजन बढ़ सकता है, आपकी सेक्स ड्राइव कम हो सकती है, स्तन कोमल हो सकते हैं, मूड स्विंग और PMS हो सकता है। बहुत कम एस्ट्रोजन के कारण हॉट फ्लैश, बार-बार यूटीआई, थकान, शरीर में दर्द और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई हो सकती है।

3. कोर्टिसोल

कोर्टिसोल को आमतौर पर ‘स्ट्रेस हार्मोन’ कहा जाता है। अतिरिक्त कोर्टिसोल यंग लड़कियों में वेट गेन, एंजायटी और डिप्रेशन का कारण बन सकता है। कम कोर्टिसोल एडिसन रोग, थकान और वजन घटाने का कारण बनता है।

4. थायराइड हार्मोन

हाइपरथायरायडिज्म, या बहुत अधिक थायराइड हार्मोन अन्य लक्षणों के अलावा एंजाइटी, वेट लॉस, रैपिड हार्टबीट, अनियमित पीरियड्स और थकान का कारण बन सकते हैं। हाइपोथायरायड, या कम थायरॉयड हार्मोन का स्तर भी थकान, वजन बढ़ना, अवसाद, शुष्क त्वचा और बाल के साथ अनियमित पीरियड्स का कारण बन सकता है।

5. टेस्टोस्टेरोन

टीनएजर लड़कियों में भी टेस्टोस्टेरोन होता है और यह पीसीओएस के कारणों में से एक है, पर यह अन्य स्वास्थ्य समस्याओं जैसे चेहरे पर काले बाल आना और एक्ने की समस्या पैदा कर सकता है।

टीनएजर लड़कियों में हार्मोनल इंबैलेंस में ये समान लक्षण नजर आ सकते हैं-

  • हैवी, इरेगुलर और पेनफुल पीरियड
  • ऑस्टियोपोरोसिस
  • हॉट फ्लैश और रात को पसीना आना
  • वेजाइनल ड्राइनेस
  • ब्रेस्ट में दर्द महसूस होना
  • कब्ज की समस्या
  • पीरियड्स के पहले पिंपल्स आना

कुछ अन्य लक्षण भी नजर आ सकते हैं

  • डिप्रेशन
  • किसी भी कार्य को करने में मन न लगना
  • ध्यान केंद्रित करने में परेशानी आना
  • हर समय थकान का अनुभव होना
  • सेल्फ डाउट

जानें टीनएजर लड़कियों में हार्मोनल बैलेंस बनाए रखने के क्या हैं टिप्स

Hormonal balance may deteriorate in teenagers

1. पर्याप्त प्रोटीन लें : प्रोटीन अमीनो एसिड प्रदान करते हैं, इस पोषक तत्व को आपका शरीर खुद नहीं बना सकता है। वहीं ये पेप्टाइड हार्मोन बनाने के लिए आवश्यक होते हैं। ये हार्मोन कई शारीरिक प्रक्रियाओं को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिसमें ग्रोथ, एनर्जी मेटाबॉलिज्म, भूख, तनाव और बहुत कुछ शामिल है।

2. एक्सरसाइज करने से मिलेगी मदद : रोजाना उचित समय के लिए शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने से आपके हार्मोनल स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह हार्मोन रिसेप्टर सेंसटिविटी को बढ़ाता है, पोषक तत्वों और हार्मोन संकेतों के वितरण में मदद करता है।

3. सीमित मात्रा में चीनी लें : अतिरिक्त चीनी का सेवन कम करने से हार्मोन को संतुलित करने में मदद मिल सकती है। अधिक चीनी लेने से इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ावा मिलता है, और फ्रुक्टोज का सेवन आंत के माइक्रोबायोम को असंतुलित कर देता है, जिससे अंततः हार्मोनल असंतुलन हो सकता है।

4. स्ट्रेस मैनेज करें : स्ट्रेस कई तरह से आपकी बॉडी हार्मोंस को नुकसान पहुंचा सकता है। नियमित तनाव को कम करने का प्रयास करें और स्ट्रेस मैनेजमेंट टेक्निक पर ध्यान दें।

5. वेट मैनेजमेंट पर ध्यान दें : वजन बढ़ना सीधे तौर पर हार्मोनल असंतुलन से जुड़ा होता है। मोटापा महिलाओं में ओव्यूलेशन की कमी से संबंधित होता है। अपनी डाइट में सीमित कैलोरी युक्त खाद्य पदार्थ लें, इससे हार्मोनल संतुलन बनाए रखने में मदद मिल सकती है।

6. गट हेल्थ पर ध्यान दें: आपका पेट कई मेटाबोलाइट्स बनाता है, जो हार्मोनल हेल्थ को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए फाइबर से भरपूर खान पान और प्रयाप्त मात्रा में पानी पिएं, इससे आंतों की सेहत बरकरार रहती है।

7. पर्याप्त नींद लें : ज्यादातर बच्चे रात को देर से सोते हैं, जिसकी वजह से उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती। नींद हार्मोनल असंतुलन में एक महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। रात को 7 से 8 घंटे की नींद लें, इस तरह आपको हार्मोनल संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।

फोटो सौजन्य- गूगल

After all, when did the worship of Maa Durga start in Bengal?

Durga Puja: पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा विश्व विख्यात है। हर वर्ष पूरी दुनिया कई देशों से लोग बंगाल की दुर्गा पूजा का दर्शन करने आते हैं। आज वहां भव्य मंडप, रोशनी से चकाचौंध मां दुर्गा की प्रतिमा होती है पर क्या आप जानते हैं कि बंगाल की यह भव्य दुर्गापूजा कब शुरू हुई ? किसने पहली बार दुर्गा पूजा की थी? आखिर दुर्गा पूजा करने का कारण क्या था? सनातन धर्मानुसार इतने देवताओं के होने के बाद 10 भुजा वाली मां दुर्गा की पूजा क्यों? ऐसे ही कई सवाल लोगों के मन में उठते हैं तो चलिए बताते हैं बंगाल की दुर्गा पूजा का शानदार इतिहास।

इतिहास के पन्नों पर बंगाल के दुर्गा पूजा के पीछे की रोचक कहानी-

Durga Puja

बंगाल के इतिहास के पन्नों को पलटें तो हमें मालूम चलता है कि लगभग 16वीं शताब्दी के आखिर में 1576 ई में पहली बार दुर्गापूजा हुई थी। उस समय बंगाल अविभाजित था जो वर्तमान समय में बांग्लादेश है। इसी बांग्लादेश के ताहिरपुर में एक राजा कंसनारायण हुआ करते थे। कहा जाता है कि 1576 ई में राजा कंस नारायण ने अपने गांव में देवी दुर्गा की पूजा की शुरुआत की थी। कुछ और विद्वानों के मुताबिक मनुसंहिता के टीकाकार कुलुकभट्ट के पिता उदयनारायण ने सबसे पहले दुर्गा पूजा की शुरुआत की। उसके बाद उनके पोते कंसनारायण ने की थी। इधर कोलकाता में दुर्गापूजा पहली बार 1610 ईस्वी में कलकत्ता में बड़िशा (बेहला साखेर का बाजार क्षेत्र) के राय चौधरी परिवार के आठचाला मंडप में आयोजित की गई थी। तब कोलकाता शहर नहीं था। तब कोलकाता एक गांव था जिसका नाम था ‘कोलिकाता’।

अश्वमेघ यज्ञ का विकल्प बनी दुर्गा पूजा

Durga Puja

विवेकानंद विश्वविद्यालय में संस्कृत और दर्शन के प्रोफेसर राकेश दास ने बताया कि राजा कंसनारायण ने अपनी प्रजा की समृद्धि के लिए और अपने राज्य विस्तार के लिए अश्वमेघ यज्ञ की कामना की थी। उन्होंने यह इस बात की चर्चा अपने कुल पुरोहितों से की। ऐसा कहा जाता है कि अश्वमेघ यज्ञ की बात सुनकर राजा कंस नारायण के पुरोहितों ने कहा कि अश्वमेघ यज्ञ कलियुग में नहीं किया जा सकता। इसे भगवान राम ने सतयुग में किया था पर अब कलियुग करने का कोई फल नहीं है।

इस काल में अश्वमेघ यज्ञ की जगह दुर्गापूजा की जा सकती है। तब पुरोहितों ने उन्हें दुर्गापूजा महात्मय बारे में बताया। पुरोहितों ने बताया कि कलियुग में शक्ति की देवी महिषासुरमर्दिनी मां दुर्गा की पूजा करें। मां दुर्गा सभी को सुख समृद्धि, ज्ञान और शाक्ति सब प्रदान करती हैं। इसी के बाद राजा कंसनारायण ने धूमधाम से मां दुर्गा की पूजा की। तब से आज तक बंगाल में दुर्गापूजा का सिलसिला चल पड़ा।

देवी भागवतपुराण में है दुर्गापूजा का उल्लेख

इतिहास के अनुसार राजा कंसनारायण की पूजा के पहले दुर्गापूजा की व्याख्या देवी भागवतपुराण और दुर्गा सप्तशती में मिलती है। दुर्गा सप्तशती और देवी भागवतपुराण में शरद ऋतु में होने वाली दुर्गापूजा का वर्णन है। देवी भागवतपुराण में इसका भी जिक्र है कि भगवान श्रीराम ने लंका जाने से पहले शक्ति के लिए देवी मां दुर्गा की पूजा की थी। देवी भागवत पुराण की रचना की तिथि पर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वानों का कहना है कि यह एक प्राचीन पुराण है और 6वीं शताब्दी ईस्वीं से पहले रचा गया था। कुछ के मुताबिक इस पुस्तक की रचना 9वीं और 14वीं शताब्दी के मध्य ईस्वीं बीच हुई थी।

Govinda in Hospital: How Govinda got shot

Govinda Case: हिंदी सिनेमा के लोकप्रिय स्टार गोविंदा को गोली लगने के मामले में पुलिस ने अपनी जांच पूरी कर ली है। डीसीपी दीक्षित गेदाम ने स्पष्ट कर दिया है कि ये मामला सिर्फ एक हादसा है। बता दें कि कहीं कोई साजिश नजर नहीं आ रही है। हालांकि, अभी तक गोविंदा का बयान दर्ज नहीं किया जा सका है, क्योंकि अभी वो अस्पताल में हैं।

पुलिस के मुताबिक जिस गन से गोली चली थी वो गोविंदा की अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर है। जांच में मालूम चला है कि यह सिर्फ एक हादसा है, इसलिए अभी तक कोई केस दर्ज नहीं किया गया है। महाराष्ट्र पुलिस ने महज अपनी डायरी में इस हादसे को एक रिपोर्ट के तहत लिया है।

मालूम हो कि गोविंदा को मंगलवार की सुबह 4 बजकर, 45 मिनट पर गोली लग गई थी, जिसके बाद उन्हें फौरन क्रिटीकेयर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बताया गया कि गोविंदा कोलकाता जाने के लिए निकल रहे थे, इससे पहले उन्होंने अपनी रिवॉल्वर को साफ करने के लिए निकाला ताकि इसके बाद अलमारी में सुरक्षित रख सकें लेकिन रिवॉल्वर उनके हाथ से गिर गई और मिस-फायर हो गया।

गोविंदा ने दिया था हेल्थ अपडेट

इस पूरे मामले में गोविंदा के पैर में गोली लगी, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां डॉक्टरों ने तुरंत सर्जरी कर उनके पैर से गोली निकाली। इसके बाद एक्टर को आईसीयू में अंडर-ऑब्जर्वेशन रखा गया था। हालांकि गोविंदा ने खुद एक ऑडियो जारी कर ये क्लियर किया था ये गोली उन्हें गलती से लगी है, बाबा के आशीर्वाद से सब ठीक है। उनके पैर से गोली को निकाल लिया गया है और अब उनकी हालत में सुधार है।

पुलिस ने नहीं लिया गोविंदा का बयान

गोविंदा के मैनेजर शशि सिन्हा ने बताया था कि मुंबई पुलिस ने गोविंदा की बेटी टीना का बयान दर्ज किया है लेकिन गोविंदा का बयान अभी तक दर्ज नहीं हुआ है। गोविंदा की सेहत में सुधार के बाद उनका बयान दर्ज किया जाएगा। बीती शाम मुंबई पुलिस के अधिकारी अस्पताल में पहुंचे थे। उन्होंने गोविंदा से बातचीत की। उनके साथ हुई घटना के बारे में जानकारी ली पर अभी तक ऑफिशियली एक्टर का बयान दर्ज नहीं किया गया है।

गोविंदा की पत्नी सुनीता ने क्या बताया?

पत्नी सुनीता आहुजा ने बताया कि उनकी तबीयत पहले से बेहतर है। उन्हें नार्मल वॉर्ड में शिफ्ट किया जाएगा। वो कल यानी मंगलवार से बेहतर हैं। गुरुवार को उन्हें डिसचार्ज कर दिया जाएगा। आप सभी के, फैंस की दुआ से गोविंदा बिल्कुल ठीक हैं। हर जगह उनके सेहत को लेकर पूजा प्रार्थना चल रही है। उनकी बहुत ज्यादा फैन फॉलोइंग है। सबके आर्शीवाद से उनकी तबीयत बेहतर हुई है। मैं फैंस से आग्रह करती हूं कि वो जरा भी पैनिक ना हों। कुछ महीनों बाद वह फिर से डांस फ्लोर पर होंगे।

फोटो सौजन्य- गूगल

Heart Blockage: Abnormal changes in the body mean the risk of heart blockage

Heart Blockage: गलत खाने-पीने की आदतें शरीर में कोलेस्ट्रोल के लेवल को काफी बढ़ा देती हैं। इससे आर्टरीज में प्लाक जैसे पदार्थ जमा होने लगते हैं, जो हार्ट में ब्लड के दबाव को कम कर देता है। इससे शरीर को हार्ट संबंधी प्रोब्लम्स का सामना करना पड़ता है। गलत खानपान के अलावा नींद की कमी और दिनों दिन बढ़ रहा स्ट्रेस भी हार्ट ब्लॉकेज की वजह बनने लगता है। आर्टरीज में बढ़ने वाली ब्लॉकेज को कम करने के लिए कुछ खास बातों का ख्याल रखना जरूरी है लेकिन उससे पहले जानते हैं शरीर में दिखने वाले वो साइन जो हार्ट ब्लॉकेज की ओर इशारा करते हैं।

कैसे होता है हार्ट ब्लॉकेज

If you get such signs, then understand that heart problems have started

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक जब प्लाक रूपी चिपचिपा पदार्थ हार्ट को ब्लड पहुंचाने वाली आर्टरीज में जमा हो जाता है तो उस स्थिति को हार्ट ब्लॉकेज कहा जाता है। ये प्लाक अनहेल्दी फैट्स, कॉलेस्ट्रॉल, सेलुलर वेस्ट प्रॉडक्ट्स, कैल्शियम और फाइब्रिन नाम के क्लॉटिंग सबस्टांस से बना होता है। इस बारे में बातचीत करते हुए इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट का कहना है कि कोरोनरी आर्टरीज में ब्लॉकेज के कारण ब्लड पूरी तरह से हार्ट तक नहीं पहुंच पाता है। शरीर में किसी भी तरह का असामान्य बदलाव महसूस होने पर फौरन डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज यानी सीएडी हार्ट डिजीज का सबसे आम वजह है। जब हार्ट में ब्लड की आपूर्ति करने वाली आर्टरीज़ समय के साथ संकुचित होने लगती हैं और बल्ड सप्लाई में बाधा आने लगती है। ये रुकावटें फैट्स के निर्माण के कारण बढ़ने लगती हैं। आर्टरीज़ में ब्लॉकेज से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बना रहता है। इस्केमिक स्ट्रोक उस समस्या को कहते हैं, जब रक्त वाहिका में रूकावट आती है जो ब्रेन को ब्लड और ऑक्सीजन की सप्लाई करती है।

आइये जानते हैं हार्ट ब्लॉकेज़ के क्या हैं संकेत-

1. थकान और कमज़ोरी का अनुभव

नेशनल हार्ट, लंग एंड ब्लड इंस्टीट्यूट के मुताबिक आर्टरीज़ में ब्लॉकेज के कारण ब्लड फ्लो की अनियमितता बढ़ने लगती है। इससे ऑक्सीजन का प्रवाह भी प्रभावित होने लगता है। ऐसे में सिरदर्द, थकान और काम करने में असमर्थता का सामना करना पड़ता है। किसी कार्य को करने के दौरान ये थकान तेज़ी से बढ़ने लगती है।

2. सीने में दर्द या एंजाइना

WHO warning: Long working hours increase the risk of heart disease and heart attack

सीने में उठने वाला दर्द और किसी भी प्रकार की असुविधा धमनियों में जमने वाले प्लॉक का संकेत देती हैं। ये दर्द छाती से होता हुआ बाहों के नीचे, गर्दन या जबड़े तक पहुंच जाता हैं। इसके कारण सीने में जकड़न महसूस होने लगती है। ये समस्या कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक बनी रहती है। ऐसे में स्वैटिंग और सांस फूलने का सामना करना पड़ता है।

3. सांस लेने में दिक्कत

हार्वर्ड हेल्थ के मुताबिक सीढ़िया चढ़ने या कोई अन्य कार्य करने के दौरान सांस फूलने की समस्या का सामना करना पड़ता है। ये समस्या हृदय रोग को दर्शाती है। इससे एंजाइना, हार्ट अटैक और हार्टफेलियर का खतरा बढ़ने लगता है। दरअसल, जब हार्ट को ब्लड पंप करने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन की प्राप्ति नहीं होती है, तो उस समय सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में शरीर तेज़ी से सांस लेने का प्रयास करता है।

4. पैरों के निचले हिस्से में सूजन

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की रिसर्च के अनुसार टांगों के निचले हिस्से में सूजन दिल की समस्या का एक मुख्य संकेत है। शरीर में रक्त का प्रवाह धीमा होने से पैरों की नसों में वापिस लौटने लगता है। इससे टिशूज़ में तरल पदार्थ का निर्माण होने लगता है। हार्ट डिजीज से ग्रस्त होने पर पैरों के अलावा पेट में भी सूजन हो सकती है, जिससे वेटगेन का सामना पड़ता है।

5. खांसी का बढ़ना

जब हृदय ब्लड को पूरी तरह से पंप नहीं कर पाता है, तो ऐसे में बॉडी में खासतौर से फेफड़ों में फ्लूइड बनने लगता है, जो म्यूकस की शक्ल में शरीर से बाहर निकलता है। इस तरह के म्यूकस का रंग गहरा होता है। इसके चलते बार-बार खांसी का सामना करना पड़ता है।

हार्ट ब्लॉकेज से बचने के लिए इन सुझावों का करें पालन

1. स्वस्थ आहार लें

आहार में विटामिन, मिनरल और फाइबर की भरपूर मात्रा लें। इससे कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित बनाए रखने में मदद मिलती है। इसके अलावा नट्स और सीड्स का सेवन भी फायदा पहुंचाते हैं। साथ ही मछली का सेवन करने से शरीर को ओमेगा-3 फैटी एसिड की प्राप्ति होती है। इससे ब्लॉकेज को रेगुलेट किया जा सकता है।

2. स्मोकिंग करने से बचें

नियमित रूप से स्मोकिंग करने से ब्लड वेसल्स डैमेज होने का खतरा बढ़ जाता है और प्लाक बिल्डअप होने लगता है। ऐसे में शरीर में ब्लड का प्रवाह प्रभावित होता है। हृदय रोगों से बचने के लिए स्मोकिंग से दूरी बनाकर रखें।

3. रेगुलर एक्सरसाइज़ करें

किसी फिटनेस एक्सपर्ट की मदद से हृदय रोगों से बचने के लिए व्यायाम के अलावा मेडिटेशन करें। इससे शरीर में बढ़ने वाले तनाव और वसा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। दिनभर में कुछ देर वॉक करने से शरीर को फायदा मिलता है और ब्लॉकेज से राहत मिलती है।

फोटो सौजन्य- गूगल

Importance of Eid Milad-Un-Nabi in Islam and its history

Eid Milad-Un-Nabi को ईद-ए-मिलाद के नाम से भी जाना जाता है। इस्लाम धर्म में ईद मिलाद-उन-नबी का पर्व पैगंबर हजरत मोहम्मद के जन्मदिन के मौके पर मनाया जाता है। ईद मिलाद-उन-नबी इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी अल-अव्वल की 12वीं तारीख को मनाया जाने वाला एक खास इस्लामिक त्योहार है। इस मौके पर मुस्लिम समुदाय में विशेष दुआ, समारोह और जश्न मनाते हैं। मुस्लिम समाज के लोग मस्जिदों में जाकर प्रार्थना करते हैं और हजरत मोहम्मद साहब द्वारा दी गई शिक्षा और उपदेशों को याद करते हैं। इस बार मिलाद-उन-नबी 15 सितंबर से लेकर 16 सितंबर यानी आज शाम तक मनाया जाएगा।

ईद मिलाद-उन-नबी का ये है महत्व

Importance of Eid Milad-Un-Nabi in Islam and its history

ईद मिलाद-उन-नबी का महत्व इस्लामिक धर्म में बहुत अधिक है। यह त्योहार पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन के अवसर के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें इस्लामिक धर्म का आखिरी नबी माना जाता है। यह पर्व इस्लामिक लोगों को एकता के सूत्र में बांधता है और उन्हें पैगंबर द्वारा दिए गए पैगाम को याद करने का अवसर प्रदान करता है। अलावा इसके यह त्योहार मुस्लिम लोगों को समाज सेवा के लिए प्रेरित करता है और गरीबों, जरूरतमंदों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

इस दिन रात भर प्राथनाएं होती हैं और जगह-जगह जुलूस भी निकाले जाते हैं। घरों और मस्जिदों में कुरान पढ़ी जाती है। इस दिन गरीबों को दान भी किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि ईद मिलाद-उन-नबी के दिन दान और जकात करने से अल्लाह खुश होते हैं।

जानें मिलाद-उन-नबी का इतिहास

Importance of Eid Milad-Un-Nabi in Islam and its history

ईद मिलाद-उन-नबी का इतिहास इस्लामिक धर्म के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म से जुड़ा हुआ है। हजरत मोहम्मद साहब का जन्म 570 ईस्वी में मक्का में हुआ था। बता दें कि सुन्नी लोग पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म को रबी अल-अव्वल की 12वीं तारीख को मनाते हैं जबकि, शिया समुदाय इस त्योहार को 17वें दिन मनाते हैं। यह दिन न सिर्फ पैगंबर मोहम्मद के जन्म का प्रतीक है, बल्कि उनकी मृत्यु के शोक में भी इस दिन को याद किया जाता है।

पैगंबर साहब के जन्म से पहले ही उनके पिता का निधन हो चुका था। जब वह 06 वर्ष के थे तो उनकी मां की भी मृत्यु हो गई। मां के निधन के बाद पैगंबर मोहम्मद अपने चाचा अबू तालिब और दादा अबू मुतालिब के साथ रहने लगे। इनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और माता का नाम बीबी आमिना था। अल्लाह ने सबसे पहले पैगंबर हजरत मोहम्मद को ही पवित्र कुरान अता की थी। इसके बाद ही पैगंबर साहब ने पवित्र कुरान का संदेश दुनिया के हर कोने तक पहुंचाया।

फोटो सौजन्य- गूगल

Can you become a mother even after menopause

IVF: किसी भी फिमेल के लिए एक मां बनने की राह काफी व्यक्तिगत और अक्सर टफ होता है। इसमें कई महिलाओं को गर्भधारण के लिए ऐसे प्रोब्लम्स का सामना करना पड़ता है जिसके निदान के लिए मे़डिकल हेल्प की जरूरत पड़ सकती है। हाल के दिनों में प्रजनन से जुड़ी टेक्नोलॉजी में हुई प्रगति, विशेष रूप से इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF), उन महिलाओं के लिए आशा की किरण बनकर आई है, जो पहले यह मानती थीं कि मातृत्व उनकी पहुंच से काफी बाहर है।

अक्सर एक प्रश्न जो सामने आता है वह यह है कि क्या मेनोपॉज यानी रजोनिवृत्ति (मासिक चक्र का बंद होना) की अवस्था से गुजर रही महिलाएं सफलतापूर्वक IVF करवा सकती हैं और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं?

मेनोपॉज और प्रेगनेंसी के बीच संबंध

मेनोपॉज एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है, जो किसी महिला के मासिक चक्र के अंत को दर्शाती है। यह आमतौर पर 45 से 55 साल की उम्र की होती है। हालांकि, यह ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि मेनोपॉज एक धीरे-धीरे होने वाली प्रक्रिया है, जो पेरिमेनोपॉज से शुरू होती है। इस दौरान हार्मोनल बदलाव शुरू होते हैं, जिससे मासिक चक्र अनियमित हो जाता है और अंततः माहवारी बंद हो जाती है।

पेरिमेनोपॉज है मेनोपॉज का फर्स्ट स्टेप

जो महिलाएं मेनोपॉज के शुरुआती चरण में होती हैं, जिसे आमतौर पर पेरिमेनोपॉज कहा जाता है।उनके लिए गर्भधारणा के लिए आईवीएफ एक व्यवहार्य विकल्प हो सकता है। इस समय के दौरान, भले ही अंडाशय में अंडाणुओं का नंबर (ओवेरियन रिजर्व) कम हो रहा हो, फिर भी हार्मोन की सक्रियता और अंडाणुओं की गुणवत्ता पर्याप्त हो सकती है, जिससे IVF के माध्यम से सफल गर्भधारणा हो सके। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अंडाणुओं की उपलब्धता होनी चाहिए, चाहे वह प्राकृतिक रूप से हो या दान किए गए अंडाणुओं के माध्यम से।

प्रारंभिक मेनोपॉज में आईवीएफ की सफलता

Can you become a mother even after menopause

स्टडी से पता चला है कि जो महिलाएं मेनोपॉज़ की प्रारंभिक अवस्था में होती हैं, उन्हें आईवीएफ उपचार के सफल परिणाम मिल सकते हैं। खासकर जब वे दान किए गए अंडाणुओं का उपयोग करती हैं। कई अध्ययनों में दिखाया गया है कि 50 साल से कम उम्र की महिलाएं जो प्रारंभिक मेनोपॉज में थीं, उनके गर्भधारणा की दर युवा महिलाओं के समान थीं, जब उन्होंने दान किए गए अंडाणुओं का उपयोग किया।

इस आयु वर्ग में आईवीएफ की सफलता दर आमतौर पर 40-50 फीसदी के आसपास होती है। यह दर्शाती है कि उम्र और मेनोपॉज की स्थिति किसी महिला के सफल गर्भधारणा में बाधा नहीं बनती।

अलावा इसके IVF तकनीकों में हुई प्रगति, जैसे प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (PGT), ने स्वस्थ गर्भधारणा की संभावनाओं को काफी हद तक बढ़ा दिया है। यह तकनीक उन भ्रूणों का चयन करना सुगम बनाती है, जिनमें सफलता की संभावना सबसे ज्यादा होती है।

मेनोपॉज के बाद की चुनौतियां

हालांकि, जब एक महिला पूरी तरह से मेनोपॉज में प्रवेश कर जाती है, यानी मासिक धर्म पूरी तरह से बंद हो जाता है, तो स्थिति बदल जाती है। इस चरण में, अंडाशय अंडाणु बनाना पूरी तरह से बंद कर देते हैं, और शरीर में महत्वपूर्ण हार्मोनल बदलाव होते हैं, जिससे प्राकृतिक गर्भधारणा असंभव हो जाता है। जबकि आईवीएफ एक विकल्प बना रहता है, लेकिन यह लगभग पूरी तरह से दान किए गए अंडाणुओं पर निर्भर होता है।

अलावा इसके मेनोपॉज की अवस्था में पहुंच चुकी महिलाएं गर्भावस्था को पूर्ण अवधि तक ले जाने का प्रयास करते वक्त अतिरिक्त जोखिम और चुनौतियों का सामना करती हैं। इनमें गर्भकालीन मधुमेह, उच्च रक्तचाप, और अन्य गर्भावस्था से संबंधित जटिलताओं का ज्यादा खतरा शामिल है, जो ज़्यादा उम्र की महिलाओं में अधिक सामान्य होते हैं। इसके साथ ही, इस श्रेणी में आईवीएफ की सफलता दर भी काफी कम हो जाती है, जो लगभग 5-10 फीसदी तक गिर जाती है।

प्रारंभिक मेनोपॉज में सफल संतान प्रसव

इन चुनौतियों के बावजूद, यह बताना महत्वपूर्ण है कि मेनोपॉज के शुरुआती चरण में महिलाएं फिर भी आईवीएफ के माध्यम से सफलतापूर्वक संतान को जन्म दे सकती हैं। खासकर जब वे दान किए गए अंडाणुओं का उपयोग करती हैं। जिन महिलाओं का मासिक धर्म पूरी तरह से बंद नहीं हुआ था, उनमें सफलता की दर अधिक पाई गई, और कई मामलों में यह देखा गया कि गर्भधारणा सफल रहा और स्वस्थ संतान का जन्म हुआ।

हालांकि, जो महिलाएं पूरी तरह से मेनोपॉज में प्रवेश कर चुकी हैं, उनके लिए सफल प्रसव की संभावना काफी कम हो जाती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभिक हस्तक्षेप और प्रजनन विशेषज्ञ से परामर्श लेना कितना महत्वपूर्ण है।

गर्भधारण और गर्भावस्था के लिए मेनोपॉज़ कुछ चुनौतियां पेश करता है, लेकिन यह मातृत्व की संभावना को पूरी तरह से समाप्त नहीं करता। मेनोपॉज के शुरुआती चरण में प्रवेश करने वाली महिलाएं अभी भी आईवीएफ के सफल परिणाम प्राप्त कर सकती हैं, विशेष रूप से जब दान किए गए अंडाणुओं का उपयोग किया जाता है।

जरूरी बातें

एक बार जब मासिक धर्म पूरी तरह से बंद हो जाता है, तो सफल आईवीएफ और संतान प्रसव की संभावना काफी कम हो जाती है। जो महिलाएं मेनोपॉज के दौरान या बाद में आईवीएफ पर विचार कर रही हैं, उनके लिए यह आवश्यक है कि वे एक योग्य प्रजनन विशेषज्ञ से सलाह लें ताकि वे अपने विकल्पों और संबंधित जोखिमों को समझ सकें।

प्रजनन से जुड़ी टेक्नोलॉजी में हुई तरक्की कई महिलाओं के लिए एक नई उम्मीद है। लेकिन इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से किए गए इलाज तभी सफल हो पाते हैं जब यह प्रारंभिक अवस्था में किया जाए, उम्मीदें वास्तविक हों और व्यक्तिगत रूप से देखभाल उपलब्ध कराई जाए।

फाइल फोटो- गूगल

Hartalika Tee: Hartalika Teej fast will be broken tomorrow at Brahmamuhurta

Hartalika Teej के दिन व्रत का पारण अलग-अलग क्षेत्रों में अलग तरीके से किया जाता है। कई महिलाएं प्रदोष काल में शिव-पार्वती की विधिवत पूजा करने के बाद व्रत का पारण कर देती हैं, तो कई महिलाएं चतुर्थी तिथि को सर्योदय से पूर्व व्रत का पारण करती हैं। इन नियमों के तहत व्रत रखने से आपको व्रत का पूर्ण फल हासिल होता है जिससे अच्छे परिणाम मिलते हैं।

तीज के दिन अखंड सौभाग्य के लिए स्त्रियों ने हरतालिका तीज का व्रत किया है। ये व्रत विवाहित स्त्रियां पति की दीर्घायु और कुंवारी लड़कियां अच्छे जीवनसाथी मिलने की कामना से रखती है। हरतालिका तीज व्रत 24 घंटे के लिए निर्जला किया जाता है। कहते हैं ये व्रत जितना कठिन है उतना ही ज्यादा इसका शुभ फल प्राप्त होता है।

इस व्रत का एक बार संकल्प लेने के बाद इसे आजीवन रखना पड़ता है। आइए जानते हैं कि हरतालिका तीज का व्रत कब रखा जाएगा-

कब करें हरतालिका तीज व्रत पारण ?

Hartalika Teej

धार्मिक मान्यता है कि हरतालिका तीज व्रत रात्रि जागरण कर किया जाता है। इस व्रत रात्रि के चारों प्रहर की पूजा होती है। अगले दिन सुबह 5-6 बजे के बीच आखिरी पूजा के बाद ही स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत पारण करती हैं। ऐसे में इस बार हरतालिका तीज का व्रत पारण 7 सितंबर, 2024 को किया जाएगा।

हरतालिक तीज व्रत पारण समय- 7 सितंबर, 2024 को सुबह 06:01 मिनट के बाद

हरतालिका तीज व्रत पारण की विधि

जिन महिलाओं ने हरतालिका तीज व्रत किया है वह अगले दिन आखिरी पूजा से पहले स्नान करें। शिव जी को बेलपत्र और माता पार्वती को समस्त पूजा की सामग्री चढ़ाएं। आरती करें और फिर सुहागिनें माता पार्वती को चढ़ाया सिंदूर अपने माथे पर लगाएं। मां पार्वती से आशीर्वाद लें। सास या नंद (जो सुहागिन हों) उन्हें सुहाग पिटारा दान करें। सुहाग पिटारा में सुहाग की सभी सामग्री (चूड़ी, बिंदी, मेहंदी, सिंदूर, साड़ी, बिछिया, कुमकुम, दक्षिणा आदि) होनी चाहिए। इसके बाद पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन करें और फिर पूजा में चढ़ाया भोग ग्रहण करें।

हरतालिका तीज व्रत पारण नियम

  • हरतालिका तीज का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद ही खोलें। ध्यान रहें शिव-पार्वती की विधिवत पूजा और दान के बाद ही व्रत पारण किया जाता है।
  • हरतालिका तीज व्रत खोलते समय सबसे पहले पूजा में चढ़ाया प्रसाद ही ग्रहण करें। इसके बाद पानी पिएं।
  • व्रत खोलते समय लहसुन-प्याज से युक्त भोजन नहीं करना चाहिए। सात्विक भोजन करें।
Do we have to face the risk of UTI after sex?

UTI मतलब यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन एक काफी आम समस्या है जिसका सामना महिलाएं अपने लाइफ में एक बार जरूर करती हैं। यूरिनरी ट्रैक में होने वाले इस संक्रमण के पीछे हानिकारक बैक्टीरिया जिम्मेदार होते हैं, जो कई कारणों से आपके यूरिनरी ट्रैक में प्रवेश करते हैं। इन्हीं में से एक कारण है ‘SEX’। महिलाएं अक्सर ये सवाल पूछा करती हैं कि आखिर सेक्स के वक्त UTI होने का क्या कारण ? आज हेल्थ शॉट्स आपके इसी प्रश्न का जवाब लेकर आएं हैं। जानेंगे SEX और UTI के बीच क्या संबंध है।

एक्सपर्ट के मुताबिक सेक्स से होने वाले UTI के कुछ सामान्य कारण बताएं हैं। साथ ही उन्होंने कुछ बचाव के नुक्से भी बताएं हैं, जिन्हें याद रख सेक्स के बाद होने वाले UTI के खतरे को कम कर सकती हैं।

समझें सेक्स से यूटीआई होने की वजह

Do we have to face the risk of UTI after sex?

UTI पैदा करने वाले बैक्टीरिया एनस के आस-पास के क्षेत्र में रहते हैं। इंटरकोर्स ही नहीं बल्कि कोई भी अन्य सेक्सुअल एक्टिविटी बैक्टीरिया को यूरिनरी ट्रैक के करीब और ऊपर धकेल सकती है और यूटीआई का कारण बन सकती है। पुरुष और महिला दोनों को सेक्स से यूटीआई हो सकता है, महिलाओं में पोस्ट-कोइटल यूटीआई विकसित होने की संभावना अधिक होती है। डेटा की मानें तो यूटीआई के लक्षण अक्सर सेक्स करने के लगभग 02 दिनों के बाद शुरू होते हैं।

ज्यादातर यूटीआई गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (GI) ट्रैक से बैक्टीरिया के कारण होते हैं। 80 फीसदी से ज़्यादा यूटीआई एस्चेरिचिया कोली (ई कोलाई) बैक्टीरिया के कारण होते हैं। ये कीटाणु आंतों के अंदर सामान्य और आम होते हैं, जहां वे आपको बीमार किए बिना पाचन में मदद करते हैं।

1. सेक्सुअल इंटरकोर्स:

सेक्सुअल इंटरकोर्स का मोशन एनस के आस-पास रहने वाले बैक्टीरिया को मूत्रमार्ग की ओर धकेल सकती है। इससे बैक्टीरिया के शरीर में प्रवेश करने और संक्रमण पैदा करने का जोखिम बढ़ जाता है। सेक्स से इंटिमेट एरिया में जलन हो सकता है। यह जलन संक्रमण के जोखिम को बढ़ा देती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पेनेट्रेटिव सेक्स यूटीआई का एकमात्र कारण नहीं है। ओरल और मैनुअल सेक्स भी वेजाइनल ओपनिंग में हानिकारक बैक्टीरिया के प्रवेश का कारण बन सकता है, जिससे संक्रमण हो सकता है।

2. अनसेफ सेक्स:

कई बार लोग बिना प्रोटेक्शन के नियमित सेक्स करते हैं, जिसकी वजह से भी UTI का खतरा बढ़ जाता है। अगर आप बिना प्रोटेक्शन के सेक्स कर रही हैं, तो हाइजीन के प्रति बरती गई छोटी सी भी लापरवाही आपको UTI का शिकार बना सकती है। इंटरकोर्स के दौरान एक दूसरे के इंटिमेट एरिया पर मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया एक्सचेंज हो सकते हैं, जिसकी वजह से UTI हो जता है।

3. एनल सेक्स:

एनल सेक्स के दौरान एनस में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया आपके जेनिटल में पास हो सकते हैं, जिसकी वजह से यूरिनरी ट्रैक्ट इनफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। यदि कोई आदमी एनल सेक्स कर रहा है, तो उनमें इसका खतरा अधिक होता है।

4. बर्थ कंट्रोल:

कुछ गर्भनिरोधक, जैसे कि डायाफ्राम और स्पर्मिसाइड लुब्रिकेंट्स, यूटीआई के जोखिम को बढ़ा देते हैं। डायाफ्राम यूरिनरी ट्रैक्ट की ओर पुश होता है, जिससे इसके ब्लैडर में फंसने की संभावना अधिक होती है। जब ऐसा होता है, तो बैक्टीरिया बढ़ सकते हैं, जिससे संक्रमण हो सकता है। शुक्राणुनाशक (अक्सर लुब्रिकेंट और कंडोम में पाए जाते हैं) इंटिमेट एरिया के बैक्टिरियल बैलेंस को बदल सकते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

सेक्स के बाद UTI के खतरे को कम करने के कुछ प्रभावी तरीके

Do we have to face the risk of UTI after sex?

सेक्स के पहले और सेक्स के बाद यूरिन पास करना बहुत जरूरी है। इससे बैक्टीरिया यूरिनरी ट्रैक्ट से बाहर निकल आता है और उन्हें संक्रमण फैलने का समय नहीं मिलता।

सेक्सुअल इंटरकोर्स के दौरान प्रोटेक्शन यानी कि मेल और फीमेल कंडोम का इस्तेमाल करें। ताकि एक दूसरे के स्किन पर मौजूद बैक्टीरिया जेनिटल में ट्रांसफर हो कर आपको संक्रमंत न कर सके।

सेक्स से पहले और बाद में हाइजीन का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। अपने इंटिमेट एरिया को आगे से पीछे की ओर अच्छी तरह से क्लीन करें।

अपने जन्म नियंत्रण पर ध्यान से विचार करें। यदि आप डायाफ्राम या शुक्राणुनाशक का उपयोग करती हैं, तो ये स्वस्थ बैक्टीरिया को मार सकते हैं, जो कीटाणुओं को नियंत्रित रखते हैं। इसलिए इनके इस्तेमाल से बचें।

लुब्रिकेंट का उपयोग करें, सेक्सुअल इंटरकोर्स के दौरान लगातार फ्रिक्शन होने की वजह से इंटिमेट एरिया के आसपास जलन हो सकती है। वहीं कई बार कट लगने की वजह से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, लुब्रिकेंट आपके इंटरकोर्स को बेहद स्मूद बना देता है।

UTI के रिस्क को अवॉइड करने के लिए इन बातों का भी रखें ख्याल

इंटिमेट एरिया पर डौश, पाउडर या स्प्रे का उपयोग न करें। इससे हेल्दी बैक्टीरिया का प्रभाव कम हो जाता है जिससे की हानिकारक बैक्टीरिया हावी हो कर संक्रमण का कारण बन सकते हैं।

स्टॉल पास करने के बाद अपने एनस को अच्छी तरह से साफ करें, क्योंकि सबसे ज्यादा हानिकारक बैक्टीरिया इसी एरिया में होते हैं, जिनकी वजह से इंटरकोर्स के दौरान संक्रमण के ट्रांसफर होने का खतरा बढ़ जाता है।

नियमित रूप से प्रोबायोटिक जैसे की दही, कंबूजा, अचार आदि का सेवन करें। इससे UTI का खतरा कम होता है, अलावा इसके क्रैनबेरी जूस भी बचाव में आपकी मदद कर सकती है।

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

VEGAN DIET: आज कई लोग जैसे कि स्पोर्ट्स पर्सन, एथलीट और सेलिब्रिटी हैं जो वीगन डाइट यानी प्लांट बेस्ड डाइट लेटे हैं। वहीं, प्लांट बेस्ड डाइट के मद्देनजर कई स्टडी किए गए जिसमें सामने आया है कि यह एक व्यक्ति के उम्र को बढ़ा देता है। क्या वाकई ऐसा मुमकिन है? क्या प्लांट बेस्ड डाइट एनिमल बेस्ड डाइट से ज्यादासुरक्षित है? आज यहां आपके सभी प्रश्नों के जवाब लेकर आए हैं। तो आइये जानते हैं, प्लांट बेस्ड डाइट और लांगेविटी को लेकर क्या कहती है स्टडी।

जानें प्लांट बेस्ड डाइट और लोंगेविटी को लेकर क्या कहती है स्टडी-

साल 2020 में दो अध्ययन किए गए और उसमें पाया गया कि प्लांट बेस्ड डाइट लेने से किसी भी इंसान की उम्र ज्यादा लंबी हो सकती है। हार्वर्ड और तेहरान विश्व विद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक स्टडी में पाया गया कि जिन लोगों ने प्लांट बेस्ड डायट से अपने प्रोटीन की जरूरतों को पूरा किया है, उसमें वक्त से पहले मौत का जोखिम 05 फीसदी कम होता है।

JAMA इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि रेड मीट और अंडे की जगह प्लांट बेस्ड प्रोटीन का सेवन करने वाले पुरुषों में समय से पहले मौत का जोखिम 24 फीसदी और महिलाओं में 21 फीसदी तक कम होता है।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन द्वारा प्रकाशित अध्ययन के अनुसार प्लांट बेस्ड डाइट एंटीऑक्सीडेंट का एक बेहतरीन स्रोत है, जो आपकी बॉडी सेल्स को फ्री रेडिकल्स के प्रभाव से बचाता है और बॉडी इन्फ्लेमेशन को कम कर देता है। अलावा इसके इसमें फाइटोकेमिकल्स पाए जाते हैं, जिन में एंटी इन्फ्लेमेटरी और एंटी कैंसर प्रॉपर्टीज होती हैं और यह शरीर को इस तरह की बीमारियों से बचाते हैं।

जानें प्लांट बेस्ड डाइट के फायदे

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

मणिपाल हास्पिटल, गाज़ियाबाद में हेड ऑफ न्यूट्रीशन और डाइटेटिक्स डॉ अदिति शर्मा ने वेगन डायट यानी कि प्लांट बेस्ड डाइट फॉलो करने के कुछ महत्वपूर्ण फायदे बताएं हैं। डॉक्टर के अनुसार यह खुद को स्वस्थ एवं सुरक्षित रखने का एक अच्छा तरीका है।

1. वेट लॉस में होती है मदद

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार वीगन डाइट में कम फैट और अधिक फाइबर होता है। नट्स, पालक, केला आदि जैसे फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ खाने से आपको संतुष्टि प्राप्त होती है और आप कम खाती हैं।

2. ब्लड शुगर करता है कंट्रोल

विगन डाइट आपको ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। प्लांट बेस्ड डायट में अधिक साबुत अनाज, ताजी सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ होते हैं, जो ग्लाइसेमिक इंडेक्स में कम रैंक करते हैं। इस प्रकार यह ग्लूकोज के स्तर को सामान्य रखने में आपकी मदद करता है। प्लांट बेस्ड डायट में सैचुरेटेड फैट भी कम होता है, जो इसे टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए आदर्श बनाता है।

3. CANCER के खतरे को करें कम

This is why people who take vegan diet have less risk of cancer

मोटापा, गतिहीन जीवनशैली आदि जैसे कई जीवनशैली कारक किसी व्यक्ति को कुछ प्रकार के कैंसर, विशेष रूप से पेट, लिवर, पेनक्रियाज, पित्ताशय आदि के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं। अधिक फलियां और क्रूसिफेरस सब्जियां खाने और रेड मांस जैसे रिफाइंड खाद्य पदार्थों का सेवन कम करने से कैंसर होने का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है।

4. मेटाबॉलिज्म को बनाए बेहतर

प्लांट बेस्ड डाइट हमारे आंत में बैक्टीरिया/माइक्रोबायोम को बढ़ावा देता है। इस प्रकार हेल्दी बैक्टीरिया बेहतर पाचन में मदद करते हैं, साथ ही साथ मेटाबॉलिज्म भी बेहतर होता है। इससे पाचन संबंधी समस्याओं का खतरा कम हो जाता है। साथ ही साथ वेट मैनेजमेंट में भी मदन मिलती है।

5.हेल्दी हृदय को बढ़ावा दें

बता दें कि यह डाइट कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और साथ ही ब्लड शुगर और पुरानी सूजन को भी कम करता है, इसलिए यह हृदय स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भी बहुत अच्छा है। बढ़ता कोलेस्ट्रॉल और क्रोनिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस दो ऐसे वजह हैं, जो अक्सर हार्ट अटैक का कारण बनते हैं।

फोटो सौजन्य- गूगल